जौनपुर का पसंदीदा व्यंजन लिट्टी चोखा

स्वाद - भोजन का इतिहास
24-09-2018 01:10 PM
जौनपुर का पसंदीदा व्यंजन लिट्टी चोखा

भारत विविधता और परम्पराओं से भरा देश है, जहाँ विभिन्न भाषाएं बोली जाती हैं। भारत में एक कहावत प्रचलित है, "कोस-कोस पर बदले पानी, चार कोस पर वाणी"। इस विभिन्नता वाले देश में पारंपरिक, सांस्कृतिक, भाषायिक विभिन्नता के साथ-साथ खानपान में भी विभिन्नता देखी जाती है। तो चलिए आज आपको बताते हैं बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश के मुख्य व्यंजन लिट्टी चोखा के बारे में।

ऐसा माना जाता है कि इस व्यंजन की शुरुआत मगध राज्य से हुई थी। लिट्टी मगध के दरबार में तो लोकप्रिय थी ही और साथ ही बाहर भी एक प्रमुख व्यंजन थी। 1857 के स्वतंत्र संग्राम में रानी लक्ष्मीबाई, तन्तिया टोपे और कई अन्य लोगों द्वारा भी इसे अपनी यात्रा में भोजन बनाए जाने की बात कही गयी है। क्योंकि लिट्टी को बहुत कम पानी की आवश्यकता होती है और बिना किसी बर्तन के सेका जाता है, साथ ही यह 2-3 दिनों तक नरम और खाने योग्य रहती है। ऐसा माना जाता है कि यह रानी लक्ष्मीबाई के काफी पसंदीदा भोजन में से एक थी।

नए शासकों के आगमन के दौरान लिट्टी चोखा बनाने की विधि में काफी परिवर्तन हुआ। मुगल साम्राज्य में इसे शोरबा और पेस के साथ परोसा जाता था। वहीं ब्रिटिश शासन में इसे कढ़ी के साथ परोसा जाता था। आज भी इसके कई भिन्न-रूप पाए जाते हैं जैसे कि ऊपर दिखाए गए चित्र में तली हुई लिट्टी प्रस्तुत की गयी है।

इसका सेवन आमतौर पर बिहार के किसानों द्वारा किया जाता था, परंतु इसके स्वाद और खुशबू के कारण यह बिहार से बाहर देवरिया, बलिया, जौनपुर, गोरखपुर, वाराणसी, गोपालगंज, छपरा, हाजीपुर, बेतिया आदि जिलों में बड़े शौक से खाया जाता है। आज यह केवल गांव या सड़क के किनारे लगे स्टाल में ही नहीं वरन प्रसिद्ध रेस्तरां में भी उपलब्ध होने लग गया है।

साथ ही स्वास्थ्य की दृष्टि से भी यह व्यंजन काफी अच्छा है। एक तो इसमें ज्यादा तेल-मसाला ना होने की वजह से कोलेस्ट्रॉल (Cholestrol) बढ़ने का खतरा नहीं रहता है। और दूसरा इसमें चने का सत्तू डाला जाता है जो पेट के लिए काफी अच्छा और पाचक होता है। गर्मी के दिनों में सत्तू और नींबू के प्रयोग को स्वास्थ्य के हिसाब से अच्छा माना जाता है। साथ ही सत्तू गर्मियों में लू से भी बचाता है।

लिट्टी-चोखा राजस्थानी दाल-बाटी के लगभग समान है। दाल बाटी का जन्म लिट्टी-चोखे से काफी समय पहले हुआ था। मुग़ल शासन में इसका आगमन रानी जोधाबाई के साथ हुआ था। यह योद्धाओं द्वारा मिट्टी में धूप से सिकने के लिए दबाई जाती थी ताकि यह अच्छे से तथा कम मेहनत और बर्तनों के पक जाए। यह लिट्टी के समान ज्यादा दिनों तक नहीं रखी जा सकती थी और साथ ही इसमें सत्तू भी नहीं डाला जाता है। कह सकते हैं कि लिट्टी चोखा और दाल बाटी में चचेरे भाइयों वाला ही सम्बन्ध है। हमारे जौनपुर में अक्सर लोगों को इन दो व्यंजनों के मिश्रण का मज़ा लेते भी देखा जा सकता है जहाँ वे बाटी के साथ चोखे का आनंद लेते हैं।

आज यह उत्‍तरी भारत में एक पारंपरिक व्‍यंजन के रूप में प्रसिद्धि पाने के साथ ही स्‍वाद और स्‍वास्‍थ्‍य पर लाभदायक प्रभाव डालती हुई अपने क्षेत्र की सीमाओं से बाहर भी प्रसिद्ध होती जा रही है।

संदर्भ:
1.https://en.wikipedia.org/wiki/Litti_(cuisine)
2.https://food.ndtv.com/food-drinks/everything-you-should-know-about-the-bihari-delicacy-litti-chokha-1692578
3.https://differenttruths.com/history-culture/litti-chokha-relished-by-a-peasant-the-rich-and-famous-and-the-royalties/
4.https://indianexpress.com/article/lifestyle/food-wine/food-story-the-evolution-of-daal-baati-churma-and-litti-chokha/