1947 से पहले जब भारत अंग्रेज़ों की ग़ुलामी में था, तब तक भारत में सबसे अधिक प्रचलित भाषा न तो हिंदी थी और न ही उर्दू, वह थी ‘हिन्दुस्तानी’ भाषा। इस भाषा को लिखने में दो लिपियों को इस्तेमाल होता था, पहली उर्दू (मूल- फ़ारसी और अरबी) और दूसरी नगरी (मूल- ब्राह्मी)। आगे चलकर बंटवारे के समय ये लिपियाँ भाषाओँ में बदल गईं जब पाकिस्तान ने उर्दू को अपनी भाषा का दर्जा दिया और भारत ने भी हिंदी और उर्दू को दो अलग भाषा (न कि लिपि) माना। तो चलिए आज जानते हैं कि आखिर उर्दू की शुरुआत हुई कहाँ से।
अन्य भाषाओं की तरह उर्दू भाषा की उत्पत्ति काफी अस्पष्ट है। उर्दू भाषा की उत्पत्ति की व्याख्या करने के लिए विद्वानों द्वारा कई सिद्धांत बताये गये हैं। कुछ प्रमुख सिद्धांत इस प्रकार हैं:
• मुहम्मद हुसैन आज़ाद (प्रसिद्ध उर्दू कवि) ब्रजभाषा और फारसी भाषा के मिश्रण से उर्दू भाषा की उत्पत्ति मानते हैं। किंतु इनके लेखन में दिए गए स्पष्टीकरण को काफी साधारण होने के कारण इस तथ्य को स्वीकारना थोड़ा कठिन है।
• महमूद शेरवानी के अनुसार महमूद गज़नवी के भारत पर आक्रमण के साथ ही मुसलमानों का प्रवेश भारत में हुआ। इन्हीं के साथ कई फ़ारसी, अफगानी और तुर्की लोग भी पंजाब आ कर बस गए। पंजाबी बोलने वाले और फारसी बोलने वाले लोगों के इस संपर्क से दोनों भाषाओँ में मिश्रण हुआ और एक नयी भाषा की उत्पत्ति हुयी।
• इतिहासकारों द्वारा अमीर खुसरो की भाषा हिंदी और उर्दू बतायी जाती है। पर इन्होंने स्वयं अपनी भाषा को हिन्दवी या देहलवी (फारसी+हिन्दी) स्वीकारा है जो आगे चलकर उर्दू में रूपांतरित हुयी। “साकी पिया को जो मैं ना देखूं तो कैसे काटूं ये अंधेरी रात” - खुसरो
अन्य सूफी कवियों ने भी उर्दू भाषा के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इन्हें एहसास हो गया था भारत में इस्लाम के प्रचार के लिए फारसी भाषा का प्रयोग करना व्यर्थ होगा क्योंकि भारतीय इस भाषा को समझ ही नहीं पाएँगे तथा इन्होंने अपनी रचनाओं में हिन्दवी का प्रयोग किया। इन दोनों भाषाओं में भिन्न लिपि का प्रयोग किया जाता था अर्थात उर्दू में फारसी और हिन्दी में नगरी।
अब आपको बताते हैं कि कैसे और क्यों कुछ उर्दू, अरबी और फारसी शब्द भारत आते-आते अपना अर्थ बदलते गए। ये शब्द निम्न हैं:
• ‘बर्बाद’ का शाब्दिक अर्थ है ‘हवा पर’, जैसा कि फारसी में ‘बर’ का अर्थ है ‘पर’ और ‘बाद’ का मतलब ‘हवा’ है। और अब इसका मतलब खराब, नष्ट, तहस-नहस होना है। ऐसा कहा जा सकता है कि इसका अर्थ एक ऐसे व्यक्ति ने निकाला होगा जिसने किसी खंडहर के मलबे को हवा में तितर-बितर होते देखा होगा।
• ‘तहजीब’ का अरबी में अर्थ है, एक पुराने खजूर के पेड़ को काटना या खजूर के पेड़ों में से मृत तने को काट के साफ करना। लेकिन आज ‘शिष्टाचार’ के अर्थ में इसका इस्तेमाल होता है। कह सकते हैं कि जब हम अपनी बुरी आदत रुपी मृत तने को काट देंगे तब हम साफ़ हो जाएँगे अर्थात सभ्य बन जाएँगे।
• अरबी में ‘सहल’ का अर्थ है ‘चिकना क्षेत्र’। चूंकि एक चिकने क्षेत्र में घूमना आसान है, इसलिए शब्द का अर्थ ‘आसान’ में परिवर्तित हो गया।
• ‘अजम’ एक अरबी शब्द है जिसका शाब्दिक अर्थ है ‘गूंगा’। क्योंकि अरबी मानते थे कि अरबी भाषा सबसे ज़्यादा तमीज़ से बोली जाने वाली भाषा है इसलिए वे दूसरी भाषाओँ को (ख़ास करके फ़ारसी को) ‘अजम’ अर्थात तमीज़ से ना बोल पाने योग्य मानते थे। बाद में, इस शब्द को ‘गैर-अरब देशों’ के संदर्भ में प्रयोग किया जाने लगा और ‘अजमी’ का अर्थ बना दिया गया ‘गैर-अरब’ व्यक्ति।
• अरबी शब्द ‘तहरिर’ को ‘लेखन’ या ‘शिलालेख’ के समानार्थी के रूप में उपयोग किया जाता है, लेकिन अरबी में इसका अर्थ है ‘मुक्ति’ या ‘किसी को मुक्त करना’। पुराने दिनों में जब एक ग़ुलाम को मुक्त किया जाता था तब उसे लिखित में यह बताया जाता था। उस लिखित घोषणापत्र को ‘तहरीर’ कहा जाता था।
• ‘खटमल’ अब ‘कीड़े’ के लिये उपयोग किया जाता है लेकिन उर्दू में ‘खट’ का मतलब है ‘बिस्तर’ और ‘मल’ का अर्थ है ‘पहलवान’। क्योंकि खटमल बिस्तर में हमारी नींद के विरुद्ध लड़ता है इसलिए उसे यह काम दिया गया है।
संदर्भ:
1.https://www.dawn.com/news/487757/urdu-words-and-their-origin
2.http://www.historydiscussion.net/history-of-india/medieval-age/origin-of-urdu-language-in-india/6222
3.https://www.quora.com/What-are-the-origins-of-Urdu
4.https://en.wikipedia.org/wiki/Urdu
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