समयसीमा 237
मानव व उनकी इन्द्रियाँ 948
मानव व उसके आविष्कार 726
भूगोल 236
जीव - जन्तु 275
चूंकि दुनिया का सबसे पुराना लोकतंत्र समलैंगिक संबंध को वैध मानता है, तो अब यह दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के लिए कुछ आवश्यक परिवर्तन करने का समय है - लेकिन क्या हम लोग, समाज, और देश के रूप में इस समलैंगिक संबंध को वैध बनाने के लिए तैयार हैं? और इसका जवाब नहीं है। क्योंकि भारतीय न्यायपालिका और सरकार तो बदलाव की ओर कदम बड़ा चुके हैं, परन्तु भारत में अपनी सोच के चलते बहुत कम लोग इसको स्वीकार ने के लिये तैयार हैं। क्या आप जानते हैं मध्ययुगीन युग के सूफी समुदाय द्वारा इसको व्यापक रूप से स्वीकारा हुआ था, आइये इसमें एक नजर डालें।
तो चलिये शुरू करते हैं, बुलेह शाह से जिन्होने कभी भी धर्म, लिंग और लैंगिकता में फर्क नहीं किया था। इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण यह है कि उनके द्वारा अपनी कविताओं में अपने मुस्लिम लोकाचार के बावजुद भी उन्होने हिंदू देवता को शामिल किया, जो कि मुस्लिम और हिंदू अवधारणा के बीच के भेद को दृष्टिमांद्य करता है। और वहीं अन्य कविताओं में बुलेह शाह खुद को एक महिला के रूप में प्रस्तुत करते हैं। जिसमें बुलेह शाह हीर के रूप में अपने प्यारे रांझा को संबोधित करते हुए प्रेमी और प्रिय के बीच के भेद को दृष्टिमांद्य कर देते हैं।
एक अन्य प्रमुख सूफी संत शाह हुसैन को एक हिंदू लड़के माधो लाल के साथ प्यार हो गया था। लाहौर में इन दोनो को एक साथ दफनाया गया तथा ये दोनों दिव्य प्रेम का प्रतिक बने और आज इनका नाम भी एक साथ संदर्भित किया जाता है - "माधो लाल हुसैन"। बुलेह शाह की तरह इन्होंने भी अपनी कुछ कविताओं में सीधे माधो लाल को भी संदर्भित किया है। माधो लाल और शाह हुसैन के प्यार को लेकर काफी विवाद हुआ था, जिसका कारण उनका अलग-अलग धर्म था ना की उनका एक ही लिंग का होना।
अब आपको बताते हैं सरमद काशीनी के बारे में जिनकी कहानी शाह हुसैन के समान है। माना जाता है कि एक अर्मेनियाई व्यापारी सरमद को हिंदुसतान में व्यपार करते वक्त एक हिंदू लड़के अभाई चंद से प्यार हो गया था। तभी उन्होने अपना व्यापार छोड़ दिया और अभाई चंद को अपना शिष्य बना कर उसके साथ रहने लगे। उन्होने एक भविष्यवाणी करी कि अभाई चंद आने वाले दिनो में राज्य में राज करेगा। जब यह बात औरंगजेब को पता चली तो उसने अभाई चंद को मरवा दिया। तब सरमद एक संत बनकर मस्जिद में निर्वस्त्र रहने लगे। अंततः सरमद को भी गिरफ्तार कर लिया गया और 1661 में सरमद का सिर काटकर मृत्यु कर दी गयी और दिल्ली के जामा मस्जिद की छाया में दफनाया गया। यहाँ पर भी दोनो को एक ही लिंग में प्यार करने के लिये नहीं मारा गया बल्कि शासन के लोभ में मार दिया गया।
आज समाज इन रिश्तों को कैसे समझता है यह तो हम सब अच्छी तरह से जानते हैं। अब यदि हम में से कोई इन सूफी कवियों के चरित्र पर कोई अपमानजनक चर्चा करते हैं तो यह धर्म के प्रति अपमान होगा। आज हमें अपनी सोच का दायरा बढ़ाने की आवश्याकता है, और हम सभी को समलैंगिक संबंध और उन लोगो की सोच को खुशी-खुशी स्वीकार कर लेना चाहिए।
1.https://scroll.in/article/810007/from-bulleh-shah-and-shah-hussain-to-amir-khusro-same-sex-references-abound-in-islamic-sufi-poetry
2.https://www.livemint.com/Leisure/N7FBbGjeLotufVA8sLjyUM/Delhis-Belly--The-real-naked-fakir.html
3.https://www.indiatoday.in/magazine/society-the-arts/books/story/20051219-book-loves-rite-same-sex-marriage-in-india-and-west-by-ruth-vanita-786330-2005-12-19
4.http://www.newageislam.com/islam-and-spiritualism/sufi-saint-sarmad-shaheed--the-%E2%80%98disbeliever%E2%80%99-who-was-adored-by-believers/d/1592
A. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.
B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership — This is the Sum of all Subscribers (FB+App), Website (Google+Direct), Email, and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.