नल दमयन्ति की कथा राजा रवि वर्मा के चित्रों में

दृष्टि III - कला/सौंदर्य
06-09-2018 04:02 PM
नल दमयन्ति की कथा राजा रवि वर्मा के चित्रों में

भारत में चित्रकारी की परंपरा अत्‍यंत प्राचीन है। ऐतिहासिक गुफाओं से लेकर वर्तमान समय तक की चित्रकारी मानवीय भावनाओं, विचारों और अभिव्‍यक्ति को व्‍यक्‍त करने का प्रबल माध्‍यम रही है। चलिए जानते हैं भारत के प्रसिद्ध आधुनिक चित्रकारों (19वीं सदी के) में से एक राजा रवि वर्मा की कलाकृतियों के विषय में। भारत में राजा रवि वर्मा द्वारा बनाई गयी तस्‍वीरें (शकुन्‍तला, नल दम्‍यंती, दम्‍यंती हंस संवाद, जटायु का रावण से युद्ध अन्‍य) घरों की शोभा बढ़ाती हैं। प्राचीन भारत के ऐतिहासिक धर्मग्रंथों की प्रसिद्ध महिलाओं (शकुन्‍तला, दमयन्ति, मेघदूत की नायिका) पर बनीं ये तस्‍वीरें भारत के घरों में पूजा स्‍थल पर उपयोग नहीं की जाती हैं। नल दमयन्ति (महाभारत का हिस्‍सा) के जीवन पर उनके द्वारा बनाया गया चित्र भी उनमें से एक है। इस चित्र के माध्‍यम से नल दमयंती की कथा आम लोंगों के मध्‍य काफी प्रसिद्ध हुयी, जो शायद इससे पूर्व इतनी प्रचलित ना थी।

कथा प्रारंभ होती है युधिष्ठिर के जुए में सब कुछ हार जाने के पश्‍चात वनवास करने से, और उसी वनवास के दौरान एक ऋषि द्वारा उन्‍हें एक कथा सुनाई जाती है। नल निषध देश के वीर और पराक्रमी राजा थे। दमयन्ति विदर्भ के राजा की रूपवती गुणवान कन्‍या थी। नल और दमयन्ति लोगों के माध्‍यम से एक दूसरे के गुणों का वर्णन सुनकर एक दूसरे से प्रेम करने लग गये। हंसों से नल की प्रशंसा सुनकर दमयन्ति उनसे विवाह के लिए और अधिक व्‍याकुल हो गईं। उनकी स्थिति देखकर उनके पिता ने स्‍वयं उनके स्‍वयंवर का निर्णय लिया जिसमें सभी देवता नल का रूप धारण करके स्‍वयंवर में शामिल हुए और उनके मध्‍य असली नल को पहचानकर दमयन्ति ने उन्‍हें अपना वर चुना।

किंतु भाग्‍य हमेशा एक समान नहीं रहता। नल की जुए की बुरी आदत में वे अपना सब कुछ हार गये जिस कारण उन्‍हें अपना राज काज छोड़ना पड़ा। दमयन्ति भी उनके साथ चल पड़ी पर उन्‍हें खुद से ज्‍यादा दमयन्ति की स्थिति पर तरस आ रहा था, यह देखते हुए वे एक रात दमयन्ति को छोड़कर चले गये। भूख प्‍यास से व्‍याकुल दमयंती को अजगर अपना निवाला बनाने लगा जिससे एक व्‍याध ने उनकी रक्षा की किंतु वह उन पर अपनी कुदृष्टि डालने लगा जो दमयन्ति के सतीत्‍व के श्राप का शिकार हुआ। किसी प्रकार दमयन्ति अपने माता पिता के पास पहुंच जाती है।

वहीँ दूसरी ओर नल को जंगल में एक दिन आग में एक सांप दिखता है जिसे बचने पर वह उन्हें काट लेता है जिससे नल का रूप बदल जाता है और वे बौने बन जाते हैं। साथ ही सांप उन्हें एक जादुई कपड़ा देता है जिससे नल अपने असल रूप में आ सकते हैं। इसके बाद नल अयोध्या के राजा ऋतुपर्ण के राज में शरण लेते हैं और उनके बावर्ची तथा रथ चालक बन जाते हैं।

नल को खोजने के लिए दमयंती एक बार फिर अपना स्वयंवर रखवाने की मांग रखती है। स्वयंवर में राजा ऋतुपर्ण भी आते हैं तथा वे अपना भोजन नल से ही बनवाते हैं। उस भोजन को किसी प्रकार दमयंती भी चख लेती है और समझ जाती है कि वह नल द्वारा ही पकाया गया है। अंततः दोनों (नल-दमयन्ति) के जीवन में नया सवेरा आता है तथा दोनों का जीवन सामान्‍य हो जाता है।

रवि वर्मा द्वारा नल दमयन्ति के जीवन के कुछ अमुक दृष्‍यों को अपने चित्रों में उकेरा गया। दमयंती-हंस संवाद तथा नल का दमयन्ति को छोड़कर जाना। ये दोनों दृष्‍य पूरी कथा को अमुक शब्‍दों में बयां करते हैं।

संदर्भ :
1.https://en.wikipedia.org/wiki/Damayanti
2.https://en.wikipedia.org/wiki/Nala
3.https://www.youtube.com/watch?v=pr2SDsIOJ7k
4.https://www.thehindu.com/society/history-and-culture/damayantis-courage-and-conviction/article20706175.ece
5.http://ritsin.com/story-nala-damyanti-love-unknown-mahabharata-vana-parva.html/
6.https://devdutt.com/articles/indian-mythology/mahabharata/chef-nala.html