भारत के अधिकांश वस्त्रों में विभिन्न प्रकार की कलात्मकता देखी जाती है। भारतीय कारीगरों द्वारा कई आकर्षक कढ़ाईयाँ की जाती हैं, जिनमें से एक हैकांथा कढ़ाई, जो की भारतीय कढ़ाई का काफी पुराना रूप है। ऐसा कहा जाता है कि भगवान बुद्ध और उनके शिष्यों द्वारा खुद को ढंकने के लिये विभिन्न प्रकार के पैच से कपड़े बनाये गये, जहांसेकांथाकढ़ाई कीउत्पत्ति हुयी। लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत की यहकांथा कढ़ाईजापान की सशिको(सशिको शब्द का शाब्दिक अर्थ है ‘छोटे स्टैब्स’)के समरूप है।
18वीं शताब्दी में जापान में सशिको की उत्पत्ति हुई थी, इस बात की पुख्ती हम जापानी संग्रहालयों में 19वीं सदी के सशिको संग्रह से कर सकते हैं।सशिको और कांथा दोनों का उपयोग साधारण आदमी के पुराने कपड़ों को सुरक्षित रखने के लिये किया जाता है। इनमें पुराने कपड़ों के अच्छे भागोंको काटकर नए वस्त्रों और रजाइयों में पैचवर्क के काम के लिये उपयोग किया जाता है।
इन दोनों के बीच में कुछ ज्यादाअंतर नहीं है, बस कांथामें रुपरेखा को भरने के लिए निरंतर सिलाई का उपयोग किया जाता है, जबकि सशिको में मुख्य रूप से रूपरेखा डिजाइन करने के लिए जियोमेट्रिक पैटर्न्स का इस्तेमाल किया जाता है।इनकी समानताओं के विषय में तो हम जान चुकें है, अब सशिको और कांथा कढ़ाई के चरणों पर एक नज़र डालतें हैं।
परंपरागत रूप से सशिको की नीले कपड़ों में सफेद धागे से सिलाई की जाती है। सिलाई के लिए इस्तेमाल की जाने वाली सुई (2 इंच के करीब) विशेष रुप से मोटे धागों के लिये बनाई जाती है। जैसा कि हमने आपको पहले ही बताया था कि इसमें इस्तेमाल होने वाले पैटर्न ज्यादातर जियोमेट्रिक(Geometric) डिजाइन के दोहराए हुए पैटर्न्स होते हैं। और अब रही सबसे महत्वपुर्ण बात कि सशिको कढ़ाई की सिलाई कैसे करते हैं :-
चरण 1 : पहले कपड़े को अच्छे से धो लें, अगर आप ऐसा नहीं करते हैं तो सिलाई और डाई पुरी होने के बाद जब आप इसे धोयेंगे तो कपड़ा सिकुड़ जाएगा।
चरण 2 : अब एक डिजाइन चुनें। एक साधारण डिजाइन फ्रीहैंड(Free hand) बनाएं या किसी बच्चे की ड्राइंग बुक से कॉपी करें।
चरण 3 : डिजाइन की सिलाई के लिए एक अच्छा और कुशल पैटर्न तय करें। यह एक महत्वपूर्ण चरण है, क्योंकि जितना संभव हो सके निरंतर सिलाई के द्वारा इसे बनाएं।
चरण 4 : अब आप सशिको सिलाई को शुरू कर सकते हैं। अब आपने निरंतरन करने वाली सिलाई भी करना सीख लिया है।
वहीं कन्था कढ़ाई को ज्यादतर निरंतर सिलाई के द्वारा किया जाता है, इस सिलाई का एक फायदा यह है कि यह सिलाई आगे और पीछे समान दिखती है।
इन कढ़ाईयों के बीच की समानताओं को लोगों के समक्ष पेश करने के लिये जापान में एक प्रदर्शन में, कांथा कढ़ाई के लगभग 70 टुकड़े इवातेते लोक वस्त्र संग्रहालय के संग्रह से लाये जाते हैं और वहीं सशिको के 60 टुकड़े जापान लोक शिल्प संग्रहालय संग्रह से पेश किये जाते हैं।जो लोगों को इन कढ़ाईयों की एतिहासिकता से अवगत कराते हैं तथा साथ ही इनकी उपयोगिता भी बताते हैं।
1.https://en.wikipedia.org/wiki/Sashiko_stitching
2.https://sewguide.com/learn-sashiko-hand-embroidery/
3.https://en.wikipedia.org/wiki/Kantha
4.http://www.mingeikan.or.jp/english/exhibition/english_201409.pdf
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