संगीत हम सभी को आकर्षित करता है। कहा जाता है कि संगीत में माँ सरस्वती का वास होता है। शायद ही कोई व्यक्ति होगा, जिसे संगीत पसंद न हो। प्राचीन काल में सम्पूर्ण भारत में संगीत की केवल एक पद्धति थी परंतु आज हम देखते हैं कि संगीत की दो पद्धतियां हैं। माना जाता है कि उत्तरी संगीत (हिन्दुस्तानी संगीत) पर अरब और फ़ारसी संगीत का प्रभाव पड़ा जिससे उत्तरी संगीत, दक्षिणी (कर्नाटक संगीत) संगीत से अलग हो गया।
उत्तरी संगीत या भारतीय शास्त्रीय संगीत में 7 मुख्य संरचना शैलियां हैं: ख़याल, ध्रुपद, धमार, ठुमरी, तराना, टप्पा, दादरा। कहा जाता है कि भारत में प्राचीन काल से ही ध्रुपद सबसे महान और सबसे श्रेष्ठ शैली थी, परंतु इस्लाम के विकास के दौरान भारत में संस्कृति और सभ्यता के साथ-साथ संगीत में भी परिवर्तन आये। इसी कारण 13वीं शताब्दी में ख़याल गायन शैली का जन्म हुआ। वस्तुत: यह ध्रुपद का ही एक प्रकार है। अंतर केवल इतना ही है कि ध्रुपद वास्तविक भारतीय शैली है। ख़याल में भारतीय और फारसी संगीत का मिश्रण है।
इसका आरंभ कब हुआ यह निश्चित रूप से ज्ञात नहीं है। कहा जाता है कि प्राचीन काल में अमीर खुसरो (महान फारसी संगीतकार) ने ख़याल गायकी का परिशोधन किया। लेकिन इस कहानी का कोई प्रमाण मौजूद नहीं है। कुछ लोग मानते हैं कि ख़याल गायकी 14वीं शताब्दी में जौनपुर के सुल्तान मुहम्मद शारक्वी (जो भारत के पहले मुगल शासक बाबर के समकालीन थे) के कोर्ट में विक्सित हुआ। किंतु उनके समय में इस गायकी का उतना स्पष्ट रूप नहीं था। 17वीं शताब्दी में मुगल सम्राट मुहम्मद शाह ‘रंगीले’ के समय, यह गायकी पुन: अस्तित्व में आयी। उनके ज़माने में नियामत खान (सदारंग) और फिरोज़ खान (अदारंग) नामक दो संगीतकार थे। इन संगीतकारों ने हजारों की संख्या में ख़याल की रचना की और अपने शिष्यों में उनका प्रसार किया।
चूंकि ख़याल पूरे भारत के दरबारों में विकसित हुआ, इसलिये इसकी अलग-अलग शैलीयां अलग-अलग घरानों में उभरीं। रियासतों के नाम पर तीन प्रमुख ख़याल घरानों (ग्वालियर, रामपुर और पटियाला) को मूल रूप से बढ़ावा दिया गया था। बाद में आगरा, किराना और जयपुर घराना ख़याल गायन के प्रमुख केंद्र बने। ख़याल में गायक की कल्पना का भी समावेश होता है। ख़याल दो प्रकार के होते हैं। पहला प्रकार है बड़ा ख़याल जो विलंबित लय और तिलवाड़ा, झुमरा तथा एक ताल में गाया जाता है तथा इसको गाने की गति धीमी होती है। दूसरा है छोटा ख़याल जो चपल चाल से त्रिताल, तथा एक ताल में गाया जाता है और साथ ही इसे गाने की गति भी तेज़ होती है।
अपने अधिकांश अस्तित्व में ख़याल हमेशा कुलीन संरक्षकों का संगीत रहा है। केवल 20वीं शताब्दी में अन्य समूहों ने ख़याल में महत्वपूर्ण भागीदारी प्राप्त की है। आज ख़याल, शास्त्रीय संगीत के सबसे जीवंत और विविधता से भरे रूपों में से एक है।
संदर्भ:
1.https://www.indianetzone.com/35/origin_development_khayal_indian_music.htm
2.अंग्रेज़ी पुस्तक: Bagchee, Sandeep. 2015. Nad: Understanding Raga Music, S.Chand (G/L) & Company Ltd
3.https://www.shivpreetsingh.com/2011/02/15/khayal-an-imagination-in-indian-classical-music/
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