भारतीय अर्थव्यवस्था का सबसे बड़ा भाग 'कृषि' आज से ही नहीं वरन् सिंधु घाटी सभ्यता से की जा रही है। यह देश की आबादी के लगभग 70 प्रतिशत लोगों के आर्थिक विकास और रोजगार में योगदान प्रदान करती है। वर्तमान समय में कृषि कार्यों की जटिलता, मशीनीकरण, निवेश हेतु धन का अभाव तथा भूमि की कमी ने इससे प्राप्त होने वाले मुनाफे को कम कर दिया है। यही कारण है कि कुछ वर्षों से कृषि उत्पादकता में गिरावट देखी गयी है। इस समस्या के निवारण के लिए हमें कृषि का आधुनिकीकरण करने और तकनीकि सुविधाओं को अपनाने की आवश्यकता है, जिसमें कृषि ‘प्रेसीज़न’ अर्थात ‘यथार्थता’ (Precision Agriculture) एक अच्छा विकल्प है।
कृषि यथार्थता सीमित भूमि में उत्पादकता की वृद्धि करने, किसानों के श्रम कम करने तथा लाखों लोगों की खाद्य आपूर्ति करने में सक्षम हो सकती है। इसमें सैटेलाइट अवलोकन और परिष्कृत कृषि मशीन शामिल है। इसमें जी पी एस (GPS) से स्थान और समय का सूक्ष्म आकलन किया जाता है। इस प्रकार से, उपयुक्त मात्रा तथा सटिक जगह के लिये बीज, पानी, उर्वरक, कीटनाशकों आदि, के संदर्भ में जानकारी प्राप्त करके खाद्य उत्पादकता को बढ़ाया जा सकता है, और किसान पानी, कीटनाशकों और उर्वरक लागतों पर बचत भी कर सकते हैं।
आनुमानित है की आने वाले दस वर्षों में कृषि प्रेसीज़न से भारत में कृषि व्यवसाय को एक अच्छा भविष्य मिलेगा और रोज़गार के नये अवसर प्राप्त होंगे। कृषि प्रेसीज़न ना केवल कृषि के क्षेत्र में बल्कि प्रौद्योगिकी के क्षेत्र मे भी नौकरी के अवसर प्रदान कराता है, जो इससे जुड़े अविष्कारों के निर्माण में लगे हैं। प्रेसिजन कृषि के लिए रोबोट (robot) और ड्रोन (drone) जैसे मशीन की रचना करने के लिए IITs, NITs आदि जैसे संस्थानों के उत्कृष्ट इंजीनियरों की आवश्यकता है।
इससे कृषि यांत्रिकी या रोबोटिक्स (Robotics) नामक इंजीनियरिंग की एक नई शाखा की स्थापना भी की जा सकती है। इंजीनियर तथा कृषि वैज्ञानिक इस क्षेत्र के विकास में मिलकर काम कर सकते हैं। इससे इस क्षेत्र में छात्र बेहतर नौकरियों के साथ कृषि से संबंधित व्यवसाय का भी चयन करना चाहेंगें। इस उच्च तकनीकी खेती के माध्यम से ना केवल ग्रामीण किसानों को अपनी आजीविका सुधारनें का मौका मिलेगा बल्कि भारत में अगली हरीत क्रांति लाने में भी मदद मिलेगी।
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