पृथ्वी पर कछुए की व्युत्पत्ति

जौनपुर

 01-08-2018 12:06 PM
रेंगने वाले जीव

वर्तमान काल में हम विभिन्न प्रकार के जीवों को देखते हैं जो कि सरीसृप की श्रेणी में आते हैं। परन्तु पृथ्वी का जब निर्माण हुआ था, उस समय यहाँ पर किसी भी प्रकार का कोई जीव नहीं पाया जाता था। तो फिर वह कौनसा समय था जब सरीसृपों ने पृथ्वी पर जन्म लिया, और क्या वे आज भी वैसे ही हैं या उनमें कुछ बदलाव भी आये हैं? आइये आज बात करते हैं पृथ्वी पर एक तरह के सरीसृप, कछुए की व्युत्पत्ति की।

आज से 30 करोड़ साल पहले उभयचर जीवों ने सरीसृपों को जन्म दिया। ये ठन्डे रक्त के जीव दुनिया के पहले जीव थे जिनको रीढ़ की हड्डी हुआ करती थी। और यही कारण है कि सरीसृपों के अंडे मादा के पेट में बड़े होते हैं न कि जल में। सरीसृपों में एक बात खास यह है कि ये अपने अंडों का निर्माण इस प्रकार से करते हैं कि ये शुष्क मौसम में भी अंडे के अन्दर रहने वाले तरल पदार्थ की वजह से बच जाते हैं। ये पृथ्वी की सतह पर चलने वाले पहले जीवों में से हैं। करीब 28 करोड़ साल पहले स्तन धारी सरीसृपों का जन्म हुआ जो कि पृथ्वी के पर्मियन काल (Permian Period) तक रहे थे।

प्रस्तुत चित्र में भिन्न युगों एवं कालों का क्रम दर्शाया गया है:

जौनपुर और भारत में अनेकों सरीसृप पाए जाते हैं जैसे कछुए, सांप, मगर, घड़ियाल आदि। इन सभी में कछुआ एक ऐसा जीव है जिसका विकास अत्यंत दिलचस्प है। ये जीव पृथ्वी के सबसे पहले जीवों की श्रेणी में आते हैं। 1887 में जर्मनी के एक वैज्ञानिक द्वारा एक जीवाश्म पाया गया जो कि दिखने में पूर्ण रूप से कछुए की तरह था। इस पर एक खोल थी और पेट के नीचे भी खोल थी जो कि एक कछुए को होती है और यह खोज अब तक की दुनिया में सबसे पुराने कछुए की खोज है। सबसे प्राचीन कछुए को प्रोगानोकेलिस (Proganochelys) कहा जाता है और ये 21 करोड़ साल पहले पृथ्वी पर विचरण करते थे जिस काल को तृतीयक काल या त्रियासिक काल (Triassic Period) कहा जाता है।

ये कछुए आकार में बहुत बड़े हुआ करते थे। वर्तमान काल के कछुओं की तरह प्रोगानोकेलिस का सर उसके खोल में नहीं जाता था। यह हमें बताता है कि किस प्रकार से कछुओं का विकास होना शुरू हुआ था। अब यह प्रश्न उठता है कि इन कछुओं पर खोल कैसे आया और ये किस सरीसृप श्रेणी में आते हैं?

आम सरीसृप यूरेप्टीलिया (Eureptilia) समूह में आते हैं। इस समूह में सांप, डायनासोर, पंछी आदि आते हैं। दूसरा समूह है पैरारेप्टालिया (Parareptilia)। अब जब कछुए की बात आती है तो इसका विकास पैरेयासौर (Pareiasaur) नामक जीव से माना जाता है जो कि 26 करोड़ साल पहले पर्मीयन काल में रहा करते थे। इसके शरीर पर एक मज़बूत परत हुआ करती थी। इसी प्रकार से पैरेयासौर का कालांतर का रूप एन्थोडॉन (Anthodon) था जिसके ऊपर एक मज़बूत कवच का निर्माण हो गया था जो कि कुछ हद तक कछुए के सर की तरह दिखाई देता था। विभिन्न वैज्ञानिकों ने इस विषय पर अपने मत देना शुरू किया और दोनों ही सरीसृप समूहों से इसको जोड़ा जाने लगा।

इसी दौरान चीन में एक कछुए का जीवाश्म मिला जो कि इसके पहले प्राप्त सभी कछुओं से भिन्न था। यह करीब 22 करोड़ साल पुराना माना गया। इसके जीवाश्म में मात्र खोल का भाग प्राप्त हुआ था। इसका नाम ओडोंटोकेलिस (Odontochelys) था तथा इसके दांत भी थे। इसी कारण इसे दांत वाला कछुआ कहा गया। मोटा कवच सुरक्षा के लिए हुआ करता था तथा इन कछुओं के शुरूआती समय में सामने का पैर खुदाई के लिए प्रयोग में लाया जाता था। लेकिन कालांतर में विकास के साथ यह सुरक्षा के लिए प्रयोग में लाया जाने लगा।

धीरे-धीरे जो कवच पतला और लम्बा हुआ करता था वह फैलाव दार हो गया और यही कारण है कि कछुओं की चाल में धीमापन आ गया। आज जब हम एक कछुए को देखते हैं तो हमें यह समझना चाहिए कि हम कम से कम 25 करोड़ साल पुराना जीव देख रहे हैं जो कि धीरे-धीरे कई बदलावों को झेलते हुए आज इस स्थिति पर पहुंचा है। जौनपुर में कछुए आराम से तालाबों नदियों आदि में दिखाई दे जाते हैं। भारत में भी कछुओं का विकास लगभग उसी काल में हुआ था। चित्र में दिखाए गए कछुए के कवच का जीवाश्म लगभग 20-33 लाख साल पुराना अनुमानित है।

संदर्भ:
1.अंग्रेज़ी पुस्तक: Lal, Pranay. 2016. Indica, Penguin Random House India.
2.https://www.facebook.com/EonsPBS/videos/571555306553224/UzpfSTEwMDAwMTg1MDgzMzA5MDoyMDkwMjYxMzI3NzEyMjA4/
3.https://www.thehindu.com/books/books-reviews/on-the-origin-of-species-in-india/article17449619.ece
4.https://www.thehindu.com/lit-for-life/pranay-lal-talks-of-the-importance-of-conserving-indias-natural-history-in-museums-and-outside/article22374029.ece



RECENT POST

  • नटूफ़ियन संस्कृति: मानव इतिहास के शुरुआती खानाबदोश
    सभ्यताः 10000 ईसापूर्व से 2000 ईसापूर्व

     21-11-2024 09:24 AM


  • मुनस्यारी: पहली बर्फ़बारी और बर्फ़ीले पहाड़ देखने के लिए सबसे बेहतर जगह
    पर्वत, चोटी व पठार

     20-11-2024 09:24 AM


  • क्या आप जानते हैं, लाल किले में दीवान-ए-आम और दीवान-ए-ख़ास के प्रतीकों का मतलब ?
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     19-11-2024 09:17 AM


  • भारत की ऊर्जा राजधानी – सोनभद्र, आर्थिक व सांस्कृतिक तौर पर है परिपूर्ण
    आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

     18-11-2024 09:25 AM


  • आइए, अंतर्राष्ट्रीय छात्र दिवस पर देखें, मैसाचुसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी के चलचित्र
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     17-11-2024 09:25 AM


  • आइए जानें, कौन से जंगली जानवर, रखते हैं अपने बच्चों का सबसे ज़्यादा ख्याल
    व्यवहारिक

     16-11-2024 09:12 AM


  • आइए जानें, गुरु ग्रंथ साहिब में वर्णित रागों के माध्यम से, इस ग्रंथ की संरचना के बारे में
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     15-11-2024 09:19 AM


  • भारतीय स्वास्थ्य प्रणाली में, क्या है आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस और चिकित्सा पर्यटन का भविष्य
    विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

     14-11-2024 09:15 AM


  • क्या ऊन का वेस्ट बेकार है या इसमें छिपा है कुछ खास ?
    नगरीकरण- शहर व शक्ति

     13-11-2024 09:17 AM


  • डिस्क अस्थिरता सिद्धांत करता है, बृहस्पति जैसे विशाल ग्रहों के निर्माण का खुलासा
    शुरुआतः 4 अरब ईसापूर्व से 0.2 करोड ईसापूर्व तक

     12-11-2024 09:25 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id