सूफी परंपरा का जौनपुर से एक बेहद पुराना और सुंदर रिश्ता है। जौनपुर में चिश्ती सिलसिला सीधे ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती से निकला था। ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती ने भारत में सूफी को ठीक ढंग से स्थापित किया था।
मध्यकाल के दौरान सूफी सिलसिले में खानकाह का महत्व अत्यंत महत्वपूर्ण था। खानकाह का सल्तनत काल में शहरों के निर्माण और उनके फैलाव से एक रिश्ता था। खानकाह या जमात खाना एक विशिष्ट ईमारत हुआ करती थी जहाँ पर सूफियों से सम्बंधित सभी जरूरतों की पूर्ती होती थी। उस समय खानकाह गरीबों को भोजन आदि का भी इंतज़ाम कराता था।
चिश्ती संतों ने जमात खाना का निर्माण करवाया था और सुह्र्वादी संतों ने खानकाह का निर्माण करवाया था। जौनपुर सूफी सिलसिलों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान हुआ करता था और सूफी का चिश्ती सिलसिला यहाँ पर जौनपुर और जफराबाद के क्षेत्र में एक ही समय पर फैला था। यह कुछ हद तक सुह्रावार्दिया सिलसिले से भिन्न होता है। इस सिलसिले को मानने वाले चिल्ला नामक व्यवस्था का पालन करते थे जिसमें 40 दिन तक अनवरत मस्जिद के एक कोने में बैठ कर प्रार्थना करना होता है। इनका यह भी मानना था कि ज्ञान कभी मरता नहीं बल्कि यह एक से दूसरे तक बढ़ता रहता है।
यह सिलसिला ख्वाजा अबू इशाक शमी (940 इश्वी) में निर्मित किया गया था जो कि एशिया के उपरी भाग से आकर हेरात के नजदीक चिश्त नामक गाँव में बस गए थे। पहले चिश्तिया संत जो कि भारत आये वो महमूद गजनवी के साथ आये थे, उनका नाम था ख्वाजा अबू मुहम्मद बिन अबी अहमद चिश्ती। इस सिलसिले के असलियत रूप से संस्थापक ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती थे जो कि सिजिस्तान से थे। उन्होंने अपनी शिक्षा ख्वाजा उस्मान चिश्ती हारुनी से ग्रहण की थी।
पृथ्वी राज के शासन के दौरान वे भारत आये। लाहौर पहुँचने के बाद उन्होंने शेख अली हजवेरी दाता गंज बक्श की कब्र पर चिल्ला का प्रतिपालन किया। ख्वाजा मुइनुद्दीन एक महान संत थे जिन्होंने इस सिलसिले की स्थापना बड़े सांगीतिक रूप से किया जो कि भारत ही नहीं बल्कि विदेशों में भी फैला। दिल्ली सूफी का गढ़ था जहाँ पर विभिन्न सिलसिलों का समागम हुआ करता था। तैमुर के आक्रमण के बाद वे बंगाल, गुजरात, मालवा, डेक्कन और जौनपुर में आकर बस गए थे। जौनपुर ने उपरोक्त सभी में से सबसे ज्यादा तारीफ हासिल की क्यूंकि यह दिल्ली के नजदीक था और दूसरा यह कि यहाँ के शासकों ने इसको अपना पूरा समर्थन किया। जौनपुर के चिश्ती संतों में ख्वाजा अबुल फतह थे जिन्होंने चिश्तिया सिलसिले को आगे बढ़ाया। इनके अलावा ख्वाजा हमजा चिश्ती भी जौनपुर में हुए जिनकी दरगाह आज भी जौनपुर के सिपाह में स्थित है तथा इसे चित्र में भी दर्शाया गया है।
अकबर ने भी चिश्ती संतों को बड़े पैमाने पर संरक्षण प्रदान किया। अजमेर शरीफ में जो दो भगोने (छोटी देघ और बड़ी देघ) आज दिखाई देते हैं, वे अकबर ने सूफियों की तपस्या और आत्मसंयम को सम्मानित करके भेंट दिया था।
संदर्भ:
1. http://shodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/29321/8/08_chapter%204.pdf
2. http://www.columbia.edu/itc/mealac/pritchett/00islamlinks/txt_asani_muinuddin.html
3. सयीद, मियां मुहम्मद. 1972. द शर्की सल्तनत ऑफ़ जौनपुर, द इंटर सर्विसेज प्रेस लिमिटेड
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