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हाल ही में जौनपुर-वासिओं को एक खुश खबरी मिली थी कि जल्द ही जौनपुर को भी अपना एक हवाई-अड्डा मिलेगा। वर्तमान में जौनपुर से हवाई सफ़र करने के इच्छुक नागरिकों को वाराणसी के हवाई अड्डे का इस्तेमाल करना पड़ता है। परन्तु इसमें काफी समय की बर्बादी हो जाती है। अपना खुद का हवाई अड्डा होने से जौनपुर भी एक चैन की सांस ले सकेगा। अब जब हवाई यात्रा की बात शुरू हो ही गयी है तो जानते हैं कि आखिर यह प्लेन आया कहाँ से। ‘हवाई जहाज’ शब्द आज बहुत साधारण हो गया है परन्तु एक समय ऐसा था जब हवाई जहाज के बारे में कोई सोच भी नहीं सकता था। हवाई अभियाँन्त्रिकी के अंदर इसके शुरूआती दौर से अब तक कई बदलाव आ चुके हैं जैसे कि आज रॉकेट, जेट आदि प्रकारों का निर्माण हो चुका है।
आधुनिक वायुयान को सबसे पहले राइट भाइयों ने बनाया था। राईट भाइयों के नाम विल्बर और ओरविल थे। जिस समय उन्हें हवाई जहाज बनाने का ख्याल आया, उस समय विल्बर की उम्र 11 साल की थी और ओरविल की उम्र 7 साल थी।
हवाई जहाज बनाने का ख्याल उनके पिता द्वारा दिया गया उड़ने वाला खिलौना था। यह खिलौना बांस, कार्क, कागज और रबर के छल्लों का बना था। इस खिलौने को उड़ता देख विल्बर और ओरविल के मन में भी आकाश में उड़ने का विचार आया। उन्होंने निश्चय किया कि वे भी एक ऐसा उड़ने वाला खिलौना बनाएंगे जिसमें मनुष्य सफ़र कर सकें। इसके बाद वे दोनों एक के बाद एक कई प्रकारों को बनाने में जुट गए।
अंतत: उन्होंने जो मॉडल बनाया, उसका आकार एक बड़ी पतंग सा था। इसमें ऊपर तख्ते लगे हुए थे और उन्हीं के सामने छोटे-छोटे दो पंखे भी लगे थे, जिन्हें तार से झुकाकर अपनी मर्जी से ऊपर या नीचे ले जाया जा सकता था। बाद में इसी यान में एक सीधी खड़ी पतवार भी लगायी गयी। इसके बाद राइट भाइयों ने अपने विमान के लिए 12 हॉर्सपावर (Horsepower) का एक डीज़ल इंजन बनाया और इसे वायुयान की निचली लाइन के दाहिने और निचले पंख पर लगाया, और बाईं ओर पायलट के बैठने की सीट बनाई।
राइट भाइयों के प्रयोग काफी लंबे समय तक चले। तब तक वे काफी बड़े हो गये थे और अपने विमानों की तरह उनमें भी परिपक्वता आ गयी थी। आखिर, 1903 में 17 दिसम्बर को उन्होंने अपने वायुयान का परीक्षण किया। पहली उड़ान ओरविल ने की। उसने अपना वायुयान 36 मीटर की ऊंचाई तक उड़ाया। इस उड़ान की तस्वीर ऊपर दर्शायी गयी है ।इसी यान से दूसरी उड़ान विल्बर ने की। उसने हवा में लगभग 200 फुट की दूरी तय की।
तीसरी उड़ान फिर ओरविल ने और चौथी और अन्तिम उड़ान फिर विल्बर ने की। उसने 850 फुट की दूरी लगभग 1 मिनट में तय की। यह इंजन वाले जहाज की पहली उड़ान थी। उसके बाद नये-नये किस्म के वायुयान बनने लगे। पर सबके उड़ने का सिद्धांत एक ही है। वर्तमान में अनेक प्रकार के जहाजों का निर्माण हो चुका है।
हवाई जहाज ने विश्व युद्ध मे बड़ी भूमिका का निर्वहन किया था। आज भी जहाजों मे कई बदलाव आ रहे हैं। इनकी अभियाँत्रिकी में भी बड़ी उन्नती हो रही है। कई लड़ाकू विमानों का भी निर्माण हो चुका है जो अत्यन्त तीव्र गति पर उड़ते हैं। यह प्रदर्शित करता है कि हवाई अभियाँत्रिकी का योगदान अत्यन्त महत्वपूर्ण है। भारत के कई तकनीकी महाविद्यालयों व विश्वविद्यालयों मे हवाई अभियाँत्रिकी की शिक्षा दी जाती है।
संदर्भ:
1. कलाम, डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल. 2016. वैज्ञानिक भारत, प्रभात प्रकाशन
2. सिंह, शीलवंत. 2017. विज्ञान एवं प्रद्योगिकी का विकास, मकग्राव हिल एजुकेशन
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