जौनपुर शहर उत्तर भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश की धार्मिक नगरी वाराणसी जिले से उत्तर-पश्चिम की ओर स्थित है।
वर्तमान समय में विभिन्न देश अन्य प्राकृतिक आपदाओं की अपेक्षा सर्वाधिक भूकंप से ही प्रभावित होते हैं जिनमें प्रमुख रूप से जापान, चीन, भारत, नेपाल आदि शामिल हैं। भूकम्पीय जोखिम की दृष्टि से भारत को 5 भागों में विभाजित किया गया है। जौनपुर नगर भूकंपीय क्षेत्र III में आता है जो भारत के अन्य महानगर जैसे मुबंई, गांधीनगर, आगरा, कोलकाता, चेन्नई इत्यादि के समरूप है।
गोमती नदी के तट पर बसे जौनपुर नगर का इतिहास अत्यंत प्रभावशाली रहा है। प्रारम्भ में इस नगरी तक पहुंचने का एक मात्र मार्ग गोमती नदी थी, जब भगवान गौतम बुद्ध का आगमन इस नगर में हुआ तो वहां के स्थानीय राजाओं ने उनके लिए विभिन्न पैदल मार्गों का निर्माण करवाया जिनके माध्यम से वे मुख्य मार्गों तक पहुंचे।
इस खूबसूरत ऐतिहासिक नगरी को भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं के कुप्रभाव से बचाने के लिए विभिन्न उपायों को अपनाने की आवश्यकता है। जिसमें सर्वप्रथम यहाँ की भवन निर्माण प्रक्रिया को सुधारने और भूकंपरोधी बनाने पर बल दिया जाना चाहिए।
हम भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं के निश्चित स्थान, समय और परिणामों का पूर्वानुमान नहीं लगा सकते हैं। इस क्षेत्र से कुछ दूर हिमालय की प्लेटें (Tectonic Plates) खिसकने के कारण यहाँ विनाशकारी भूकंप आने की संभावना रहती है। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण 1934 में नेपाल और बिहार में आया भूकंप है। इन दोनों (बिहार और नेपाल) की सीमा के निकट होने के कारण इसका प्रभाव जौनपुर में भी देखा गया था और ये संभावनाएँ भविष्य में भी बनीं रहेंगीं।
इमारतों की क्षति भूकंप की तीव्रता और इमारत की निर्माण प्रक्रिया पर भी निर्भर करती है। इमारत की दीर्घायु और इसकी भूकंप सहन क्षमता का आंकलन करना संभव है। वर्तमान समय में सरकार द्वारा भवन निर्माण में विभिन्न उपायों के माध्यम से इमारतों को भूकंपरोधी बनाया जा रहा है। जिसमें सर्वप्रथम भूकंप की दृष्टि से भू परीक्षण, भवन निर्माण में उपयोग होने वाली सामग्रीयों का अनुपात, भवन निर्माण की क्रमिक प्रक्रिया अर्थात नींव की खुदाई, भवन के विभिन्न भागों में भूकंपरोधी बिंबों का उपयोग, दरवाजों और खिड़कियों का निर्माण लिंटेल (Lintel) के स्तर पर करना, सुदृढ कंक्रीट और अन्य सामग्रियों का उपयोग इत्यादि शामिल है। रेतीली और भू-जल वाली भूमि में विभिन्न भू सुधारों के बाद तथा पाइपनुमा और कठोर बिंबों का उपयोग करके भवन का निर्माण किया जा सकता है। दीवारों की ऊंचाई के आधार पर ही बिंबों की लम्बाई और चौड़ाई का निर्धारण किया जाना चाहिए।
इस प्रकार के छोटे-छोटे उपायों को अपनाकर जौनपुर शहर की इमारतों को भूकंप के प्रकोप से बचाया जा सकता है और इसकी ऐतिहासिकता और आधुनिकता को लम्बे समय के लिए सुरक्षित रखा जा सकता है।
संदर्भ:
1.दूबे ‘शर्तेंदु, सत्य नारायण. 2013.जौनपुर का गौरवशाली इतिहास. शारदा पुस्तक भवन
2.http://www.bmtpc.org/disaster%20resistnace%20technolgies/ZONE%20III.htm
3.http://nidm.gov.in/PDF/safety/earthquake/link1.pdf
4.https://www.thehindu.com/sci-tech/science/making-buildings-earthquakesafe/article7154814.ece
© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.