शिक्षा एक जरूरत ही नहीं बल्कि एक आवश्यकता है। भारतीय शिक्षा पद्धति में यदि देखा जाए तो यह आज भी ब्रिटिश राज द्वारा निर्धारित व्यवस्था पर चल रही है। इस व्यवस्था में आज तक किसी प्रकार का बदलाव नहीं आया है। यह व्यवस्था 10+2+3/4 के आधार पर कार्य करती है। जौनपुर में अनेकों विश्वविद्यालय, महाविद्यालय, विद्यालय आदि की उपलब्धता है। ये विद्यालय राज्य शिक्षा विभाग और केंद्र शिक्षा व्यवस्था से जुड़े हुए है। भारत को आज़ाद हुए करीब 70 साल हो गए हैं परन्तु शिक्षा व्यवस्था आज भी ब्रिटिश कालीन है।
अब यदि मध्यकालीन भारत, सल्तनत कालीन भारत और प्राचीन भारत देखा जाए तो यह शिक्षा के लिए एकदम भिन्न व्यवस्था का पालन करता था जिसका प्रमाण यह है कि भारत में अनेको ग्रंथों आदि की रचना की गयी। जौनपुर मध्यकालीन इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण शहर था। पूरे भारत ही नहीं अपितु विश्व के अनेकोनेक देशों में जौनपुर को एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त था। जौनपुर की महत्ता और इसकी सफलता का पूरा श्रेय यहाँ की उच्चतम श्रेणी की शिक्षा को जाता है, तथा यहाँ पर इसलाम की मदरसा व्यवस्था के अनुसार शिक्षा दिलाई जाती थी। आजकल मदरसे या तो माध्यमिक शिक्षा या फिर उच्च शिक्षा के रूप में देखे जाते हैं परन्तु यदि देखा जाए तो यह एक गलत अवधारणा है। मदरसों की व्यवस्था को समझने के लिए हमें इसकी जड़ में जाने की आवश्यकता है। इस व्यवस्था को मध्यकालीन और सल्तनत काल के मध्य के काल में समझा जा सकता है-
पूरे भारत भर के मदरसा आज यदि देखा जाए तो वे एक ही व्यवस्था को मानते हैं। वर्तमान में उत्तर प्रदेश में तहतानिया (प्राइमरी स्तर) और फौकानिया (जूनियर हाई स्कूल स्तर) मदरसों की संख्या करीब 14,000 है तथा आलिया स्तर के मदरसों की संख्या 4,500 के करीब है। इस व्यवस्था में धर्म शास्त्रीय शिक्षा पर ज्यादा जोर दिया जाता है। मदरसा में पढ़ाये जाने वाले विषय और उनके केंद्र अधोलिखित हैं- मदरसा-ए-फिरोजशाही दिल्ली में तफसीर, हदीस (परंपरा) और फिकह की पढ़ाई करायी जाती थी। इनके साथ व्याकरण, साहित्य, तर्कशास्त्र, रहस्यवाद, सूफीवाद, मतवाद आदि विषयों की भी पढ़ाई कराई जाती थी।
यदि शिक्षा पद्धति की बात की जाए तो यह बहुत कम ही ज्ञात है। संभवतः किताबों के माध्यम से पढ़ाया जाना एक पद्धति और प्रचलन है और यह महत्वपूर्ण भी है। क्योंकि उस काल में कोई भी छाप-खाना नहीं हुआ करता था तो लोग हाथ से लिखी किताबों को प्रयोग में लाया करते थे। जौनपुर में भी इसी विधि से पढ़ाई करायी जाती थी और यही कारण है कि जौनपुर सभी शिक्षा के केन्द्रों में सर्वोत्तम हुआ करता था। इसका नाम सिराज भी इसी आधार पर पड़ा था। जौनपुर शिक्षा के कारण ही सूफी का केंद्र बना तथा यहाँ पर लाल दरवाजा मस्जिद जैसे शिक्षा के केंद्र बनाये गए थे। शेर शाह सूरी की शिक्षा भी जौनपुर से ही हुयी थी तथा उसके बौद्धिक विकास को शायद ही कोई नकार सकता है।
संदर्भ:
1.http://www.historydiscussion.net/history-of-india/medieval-age/education-under-the-sultans-of-india-medieval-age/6210
2.http://www.milligazette.com/news/178-origins-of-madrasah-education-in-india-predates-muslim-period
3.https://www.jaunpurcity.in/2012/07/madersa-jamiya-imania-nasirya-jaunpur_24.html
4.http://madarsaboard.upsdc.gov.in/About.aspx
© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.