1970 के आस-पास वैज्ञानिकों ने सीखा कि एक चिप पर बड़ी संख्या में माइक्रोस्कोपिक ट्रांजिस्टर (Microscopic Transistor) को क्रम में रखकर, बेहतर क्षमता वाले माइक्रोइलेक्ट्रोनिक सर्किटों (Microelectronic Circuits) का निर्माण किया जा सकता है जिनका दाम भी कम हो। माइक्रोटेक्नोलॉजी (Microtechnology) का लक्ष्य है कम से कम आकार के तकनीकी उपकरणों का उत्पादन करना। इस टेक्नोलॉजी का सम्बंध विद्युत और यांत्रिक उपकरणों से है, जो आकार में एक मीटर के दस लाखवे हिस्से के करीब हैं।
आज हम हमारी रोजमर्रा की जिन्दगी में माइक्रोप्लास्टिक (Microplastic), माइक्रोबीड (Microbead) और माइक्रोफाइबर (Microfiber) उत्पादों से होने वाले खतरों के बारे में जानेंगे।
भारतीय बाजार में उपलब्ध कई सौन्दर्य प्रसाधनों में माइक्रोप्लास्टिक या माइक्रोबीड शामिल हैं। पर्यावरण अनुसंधान और नीति वकालत के एक निकाय द्वारा एक नया अध्ययन पाया गया है। माइक्रोबीड- गैर बायोडिग्रेडेबल (Non-Biodegradable), छोटे प्लास्टिक कण होते हैं, जो पर्यावरण, विशेष रूप से समुद्री जानवरों के लिए गंभीर खतरा पैदा करते हैं।
एक कथनानुसार, फेसवॉश (Facewash) में 50 प्रतिशत और फेशियल स्क्रब (Facial Scrub) में 67 प्रतिशत माइक्रोप्लास्टिक पाया जाता है। उत्पाद के नमूने से पता चला कि इनमें प्रमुख माइक्रोप्लास्टिक में पॉलिइथायलीन (Polyethylene) होता है।
यह कहा गया था कि कई देशों में सौन्दर्य प्रसाधनों में माइक्रोप्लास्टिक का प्रयोग करने पर प्रतिबंध लगाया जाएगा। भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) ने सौन्दर्य प्रसाधन उत्पादों में उपयोग होने वाले असुरक्षित तत्वों में माइक्रोबीड को वर्गीकृत किया था, लेकिन उनके उपयोग की अभी तक अनुमति थी।
माइक्रोप्लास्टिक अपनी सतह पर अत्यधिक विषैले रसायनों को इकट्ठा करता है। दृढ़ जैविक प्रदूषण और ओर्गेनो क्लोरीन (Organo Chlorine) कीटनाशक समुद्री प्रजातियों की प्रजनन व्यवस्था पर हानिकारक प्रभाव डालते हैं। ये जहरीले और हानिकारक रसायन अंत में खाद्य श्रृंखला में ऊपर बढ़ते-बढ़ते मनुष्य तक पहुंचते हैं। जिसका सीधा प्रभाव मानव स्वास्थ्य पर पड़ता है।
विश्वभर में माइक्रोबीड को प्रदूषक के रूप में पहचाना गया है और कई देशों में प्रतिबंधित किया जा रहा है, लेकिन भारत में इसके विरूद्ध बहुत कम कार्यवाही हुई है।
सौन्दर्य प्रसाधनों के उत्पादन में प्लास्टिक एक बंद करने योग्य तत्व है और हमारे महासागरों व सभी जीवित प्राणियों की रक्षा के लिए यह बहुत जरूरी भी है।
महासागरों में प्रदूषण के सबसे बड़े अभिदाताओं में से एक अभी भी हमारी अलमारी में लटक रहा है। माइक्रोबीड की तरह ही माइक्रोफ़ाइबर के बने कपड़े धोने पर महासागर जोखिम में आ जाते हैं। यह माइक्रोफ़ाइबर, उन जैकेट में पाया जाने वाला पॉलिएस्टर का अति सूक्ष्म किस्म है, जिसे हम सभी जानते हैं और पसन्द भी करते हैं।
माइक्रोफ़ाइबर, महासागरों और अन्य जलमार्गों के लिए संभावित रूप से अधिक समस्याग्रस्त हैं। माइक्रोप्लास्टिक न केवल घने होते हैं, बल्कि डूबने में भी सक्षम होते हैं, जबकि माइक्रोबीड और अन्य प्लास्टिक तैर सकते हैं। माइक्रोफ़ाइबर जाल और निस्पंदन प्रणाली के पार गुज़र सकते हैं, जबकि बड़े प्लास्टिक प्रदूषक पकड़े जाते हैं, जैसा कि अन्य माइक्रोप्लास्टिक के साथ होता है। वो सामान्यतः गलती से असंख्य समुद्री जीवन के लिए भोजन बन जाते हैं और उनके भोजन और पाचन में बाधा डालते हैं।
दो जर्मन आविष्कारकों ने महासागरों में फैलने वाले माइक्रोफाइबर को रोकने के लिए एक कपड़े धोने का थैला बनाया है। यह एक ऐसा थैला है जिसमें माइक्रोफाइबर वाले कपड़े अन्दर रखकर इसे वाशिंग मशीन (Washing Machine) में डाला जा सकता है। थैले के अन्दर पानी तो प्रवेश कर सकता है (धुलाई को सफल करने के लिए) परन्तु माइक्रोफाइबर के रेशे थैले के अन्दर ही रहते हैं।
अतः आज तकनीकी उन्नति करने में भी यह ध्यान रखने की आवश्यकता है कि कहीं इससे हमारी आने वाली पीढ़ियों को कोई खतरा तो नहीं है।
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Microtechnology
2. http://technology.businessservices.hol.es/difference-between-micro-and-nano-technology/
3. https://scienceblog.com/494502/like-microbeads-microfiber-clothes-washed-put-oceans-risk
4. https://www.business-standard.com/article/pti-stories/many-cosmetics-in-indian-market-contain-microplastics-or-microbeads-study-118043000724_1.html
5. https://www.theguardian.com/sustainable-business/2017/feb/12/seafood-microfiber-pollution-patagonia-guppy-friend
6. https://www.smithsonianmag.com/smart-news/whale-dies-thailand-80-plastic-bags-its-stomach-180969232/
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