जौनपुर का इतिहास हमेशा से ही गौरव पूर्ण रहा है। यहाँ पर महाजनपद काल से भी पहले अनेकों सभ्यताओं ने अपना विस्तार किया। कुषाणों और प्रतिहारों के भी अधिकार क्षेत्र में यह जिला रहा था। जौनपुर शहर और इसके कुछ अन्य कस्बों का निर्माण मध्यकालीन भारत में उस समय हुआ जब भारत पर कई सल्तनत शासकों का प्रभाव था। ऐसे में जौनपुर शर्की काल में भारत की सबसे ताकतवर सल्तनत के रूप में उभरा। इस काल में यहाँ पर अनेकों भवनों का निर्माण किया गया। इन भवनों में मस्जिद, इमामबाड़ा, किले आदि का निर्माण किया गया। मस्जिदों में अटाला, झंझरी, जामी प्रमुख हैं और वहीँ इमामबाड़ा में कल्लू का इमामबाड़ा, इस्लाम का चौक, सदर इमामबाड़ा, हमजापुर इमामबाड़ा, पंजे शरीफ आदि हैं। आइये हम जानते हैं कि आखिर इमामबाड़ा होता क्या है?
इमामबाड़ा के कई नाम हैं जैसे हुसैनिया, असुरखाना और इमामबाड़ा। यह शिया सम्प्रदाय से जुड़ा होता है जो कि हुसैन इब्न अली को मानते हैं। हुसैन इब्न अली शिया सम्प्रदाय के तीसरे इमाम थे और इनकी हत्या कर्बला, इराक में याज़िद द्वारा कर दी गयी थी। इसी के मातम के रूप में मुहर्रम मनाया जाता है और लोग इमामबाड़ा में इकट्ठा होते हैं। इमामबाड़ा दो शब्दों से मिल कर बना है। पहला ‘इमाम’ जो कि एक अरबी शब्द है और दूसरा ‘बाड़ा’ जो कि हिंदी का शब्द है। इमामबाड़ा एक मस्जिद से भिन्न होता है तथा इसका निर्माण मुख्य रूप से लोगों के हुजूम को इकट्ठा होने के लिए करवाया जाता है।
जौनपुर में इतनी बड़ी संख्या में इमामबाड़ों को देखकर सहसा यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि इसको शर्की और मुग़ल काल में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त था। जैसा कि यह स्थान शर्कियों की राजधानी थी तो इसका निर्माण और साज-सज्जा तो होना तय ही था परन्तु लोदियों के बाद मुगलों ने जौनपुर को एक अहम स्थान दिया। जौनपुर अपने भवनों आदि के कारण मुगलों को आकर्षित तो किया ही था परन्तु साथ-साथ यह ऐसी भौगोलिक दशा पर स्थित था कि यह मुगलों के लिए उत्तम स्थान के रूप में उभर कर सामने आया था। आज भी यहाँ की मस्जिदें, इमामबाड़े व अन्य भवन जौनपुर के स्वर्णिम इतिहास को प्रस्तुत करते हैं।
1. जौनपुर का गौरवशाली इतिहास, शरतेन्दु दुबे
2. शर्की सल्तनत ऑफ़ जौनपुर, ए. एल. बाशम
3. http://www.dictionary.com/browse/imambarah
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