वर्तमान काल में जौनपुर में सूर्य पूजन इतना प्रचलित नहीं है। परन्तु यदि हम प्राचीन काल की बात करें तो यहाँ पर सूर्य पूजन अत्यंत प्रचलित था। आज भारत में यदि देखा जाए तो कुछ ही सूर्य मंदिर स्थित हैं जिनमें कोणार्क, मोढेरा और कश्मीर का मार्तंड सूर्य मंदिर है। सामान्यतया लोग सूर्य की पूजा अर्चना बिना किसी मूर्ती के करते हैं तथा वे साक्षात सूर्य को देखते हैं आसमान में। यह जानकर अत्यंत रोचक भावना का जन्म होता है कि जौनपुर एक काल में सूर्य मंदिरों का गढ़ था और यहाँ पर अनेकों सूर्य मंदिरों का निर्माण हुआ था। ये मंदिर प्रतिहार राजाओं द्वारा बनवाये गए थे।
जौनपुर के बगौझर में भारत की सबसे बड़ी सूर्य प्रतिमाओं में से एक प्रतिमा स्थित है। यह मूर्ती 10वीं से 11वीं शताब्दी के मध्य बनायी गयी थी। जौनपुर में प्रतिहार काल के चरम के समय यहाँ पर सूर्य पूजा की परंपरा का जन्म हुआ। समूचे जिले भर में अनेकों सूर्य मंदिरों का निर्माण उस काल में जौनपुर में होना शुरू हुआ। प्रदेश पुरातत्व विभाग द्वारा करवाए गए गाँव से गाँव के अन्वेषण में अनेकों मूर्तियों की प्राप्ति हुयी जिसमें सूर्य की मूर्तियों की बड़ी मात्रा में प्राप्ति हुयी। ये सभी मूर्तियाँ प्रतिहार काल से ही सम्बंधित हैं। प्राचीन मंदिर समय के साथ काल कवलित हो गए और यहाँ पर उनके अवशेष मात्र ही बचे हैं जो उस काल की गाथा बयान करते हैं।
सूर्य मंदिर मुख्यतया जल श्रोत के पास ही पाया जाता है और इससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि जहाँ-जहाँ भी सूर्य की मूर्तियों और मंदिरों के अवशेष प्राप्त हुए हैं वहां-वहां पर एक समय बड़े तालाब भी रहे होंगे। बगौझर के सूर्य मंदिर के समीप ही एक अत्यंत वृहद् तालाब आज भी उपलब्ध है जो इसकी पुष्टि करता है। प्रतिहार कालीन मंदिर नागर शैली में बनाये जाते थे और इनका अलंकरण अत्यंत विषद होता था। मध्य प्रदेश के मोरेना जिला में स्थित बटेश्वर मंदिर श्रंखला से प्रतिहारों की कला का अंदाजा लगाया जा सकता है।
1. प्रदेश पुरातत्व अन्वेषण पुस्तिका 2014। सुभाष चन्द्र यादव
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