जौनपुर की यदि बात की जाए तो कुछ रोचक तथ्य हमारे सामने निकल कर आते हैं। यदि पूरे जिले में मात्र मैदानी इलाके हैं तो यहाँ पर निर्मित प्राचीन मंदिर, किले, मस्जिद व अन्य इमारतें पत्थर की कैसे बनायीं गयीं। यहाँ पर पत्थर कहाँ से लाये गए, यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है। जौनपुर का पड़ोसी जिला मिर्जापुर, विन्ध्य के पहाड़ी क्षेत्र में आता है और इसलिए वहाँ पर बलुए पत्थर की भरमार है तो जौनपुर में बने सभी पत्थर के महल आदि मिर्ज़ापुर के पत्थरों से बनाये गए हैं। वर्तमान काल में भी यदि देखा जाए तो यहाँ पर घरों के निर्माण में प्रयुक्त होने वाला पत्थर का पाटिया भी मिर्ज़ापुर के पत्थरों से ही बना हुआ होता है।
मिर्ज़ापुर के पत्थर की खदान का इतिहास मौर्य काल तक जाता है। भारत भर में उपस्थित सम्राट अशोक के स्तम्भ यहीं मिर्ज़ापुर के चुनार स्थित खदान से निकाले पत्थरों द्वारा ही बनाये गए हैं। यह सोचने पर ही अत्यंत सिरहन पैदा होती है कि यहाँ से इतने बड़े स्तंभों को इतनी दूर-दूर तक कैसे ले जाया जाता होगा? यह अवश्य है कि उस काल में प्रद्योगिकी अपने चरम पर थी। यहाँ के पाए जाने वाले बलुए पत्थर को बड़ी आसानी से उस काल में चमकाया जा सकता था। यही कारण है कि यहाँ के पत्थरों का प्रयोग बड़े पैमाने पर किया जाता था। जौनपुर में प्रतिहारों के काल में अनेकों मंदिर बनाए गए थे जो कि पत्थर के थे। हो न हो उनका भी पत्थर मिर्ज़ापुर से लाया जाता रहा होगा। प्रतिहारों के बाद जब जौनपुर में तुगलक का काल आया था उस समय जौनपुर में किले का निर्माण कार्य शुरू हुआ था। यह किला भी मिर्जापुर से लाये गए बलुए पत्थर से बनाया गया था।
शर्कियों के काल में अनेकों बड़ी मस्जिदों का निर्माण जौनपुर जिले में किया गया जिसमें मिर्ज़ापुर के पत्थरों का प्रयोग किया गया था। जौनपुर के शाही पुल के निर्माण में भी इन्हीं पत्थरों का निर्माण किया गया था। यह सिद्ध करता है कि मिर्ज़ापुर के पत्थर की खदान अत्यंत महत्वपूर्ण थी और जौनपुर के निर्माण में इनका बड़ा हाथ था। आज भी मिर्ज़ापुर में अनेकों प्राचीन खदानों के अवशेष हमें प्राप्त होते हैं जो इस बात की पुष्टि कर देते हैं। जौनपुर जिले में कोल्हू भी बड़े पैमाने पर पाया जाता है जो कि मिर्ज़ापुर के ही पत्थरों से बनाया गया था। आज भी मिर्ज़ापुर की खदानों से बड़ी मात्रा में पत्थर निकाला जाता है जो कि जौनपुर समेत अनेकों जिलों में निर्माण कार्य व मूर्तियों आदि के निर्माण के लिए प्रयोग में लाया जाता है।
1. अ हिस्ट्री ऑफ़ ऐनसयंट एंड अर्ली मेडिवल इंडिया, उपेंदर सिंह
2. अशोक द सर्च फॉर इंडियाज लॉस्ट एम्परर, चार्ल्स एलेन
3. ऐनसिएंट एंड मेडिवल इंडिया, पूनम दलाल दहिया
4. http://mirzapur.nic.in/DISTRICTSURVEYREPORT2018.pdf
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