घोड़ागाड़ी के चक्के की किनारी (या साइकिल के टायर) पर रंगीन कागज़ का एक टुकड़ा चिपका दें। जब गाड़ी (या साइकिल) चलने लगे, कागज़ के टुकड़े को ध्यान से देखते रहें। आप एक विचित्र बात गौर करेंगे : कागज़ जब तक चक्के के निचले भाग में है, वह आराम से स्पष्ट दिखता रहता है; ऊपरी भाग में वह इतनी तेज़ी से घूमता है कि आप मुश्किल से उसकी झलक ले पाते हैं।
ऐसा लगता है मानो चक्के के निचले भाग की अपेक्षा ऊपरी भाग अधिक तेज़ी से गतिमान है। किसी चलती बग्गी के चक्के में ऊपर और नीचे की तीलियों को देखा जाये, तो यही बात नज़र आएगी। ऊपरी तीलियाँ एक-दुसरे से स्पष्टतः अलग नहीं दिखती हैं, जबकि नीचे की तीलियाँ स्पष्ट रूप से अलग-अलग दिखती हैं। इससे भी मानो यही निष्कर्ष निकलता है कि चक्के का ऊपरी भाग निचले की अपेक्षा अधिक तेजी से घूमता है।
इस विचित्र रहस्य की कुंजी क्या है? यही कि लुढ़कते चक्के का ऊपरी भाग निचले भाग की अपेक्षा सचमुच में अधिक तेज घूमता है। पहली दृष्टि में तथ्य असंभव सा लगता है, पर एक सरल तर्क इसमें विश्वास दिलाने के लिए काफी रहेगा। लुढ़कते चक्के का हर बिंदु दो प्रकार से गतिमान होता है : वह अक्ष की परिक्रमा करता है और अक्ष के साथ-साथ आगे भी बढ़ता है। पृथ्वी के गोले की तरह ही यहाँ भी दो गतियों का संयोजन होता है, जिसका परिणाम चक्के के ऊपरी और निचले भागों के लिए पृथक होता है। ऊपर चक्के की घूमने की गति उसकी अग्रगामी गति के साथ जुडती है, क्योंकि दोनों गतियों की दिशाएँ समान हैं। नीचे घूमने की गति की दिशा विपरीत है, अतः वह अग्रगामी गति में से घाट जाती है। इसलिए स्थिर अवलोकक के सापेक्ष चक्के का ऊपरी भाग निचले की अपेक्षा अधिक तेजी से स्थानांतरित होता है।
उपरोक्त बात की सत्यता एक सरल प्रयोग द्वारा जाँची जा सकती है। एक चक्के के पास ज़मीन में एक छड़ी लांब रूप से गाड़ दें। छड़ी चक्के की धुरी के ठीक सामने होनी चाहिए। चक्के की किनारी पर सबसे ऊपरी और सबसे निचले बिन्दुओं पर कोयले या खल्ली से निशान लगा दें : ये निशान छड़ी के ठीक सामने होंगे। अब चक्के को दायें लुढ़कायें, ताकि अक्ष छड़ी से करीब 20-30 सेंटीमीटर आगे बढ़ जाये। ध्यान दें कि आपके निशानों का स्थानान्तरण किस प्रकार हुआ है। ऊपरी चिह्न A विशेष रूप से आगे बढ़ा होगा, जबकि निचला निशान B छड़ी के लगभग पास ही होगा।
समझना कठिन नहीं है कि चक्के में सबसे धीमी गति उन बिन्दुओं की है, जो दिए क्षण में ज़मीन को स्पर्श करते हैं। ठीक-ठीक कहा जाये, तो ये बिंदु ज़मीन छूते वक़्त बिलकुल अचल होते हैं। परन्तु ये बात सिर्फ लुढ़कते चक्के के लिए सही है, अचल अक्ष पर घूमते चक्कों के साथ यह बात सही नहीं उतरती।
1. मनोरंजक भौतिकी, या. इ. पेरेलमान
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