राजनीती सदैव से मानव जीवन के महत्वपूर्ण अंग के रूप में समाज में उपस्थित रही है। चाणक्य ने अर्थशास्त्र की रचना करते समय राजनीति और इसके प्रभावों को प्रमुखता से लिखा। राजनीति जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, कारण यह है कि नेताओं के हाथ में हमारे निवास स्थान व जीवन से जुड़े कई अहम फैसले लेने की ताक़त है। इस कारण से यह प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य बन जाता है कि वह किस प्रकार से नेताओं का चयन करता है। यह कभी कभी देखा जाता है कि जो व्यक्ति उसी स्थान से ताल्लुक रखता है, उसे ही जनता स्वीकार करती है। कभी-कभी ऐसा होता है कि कोई व्यक्ति अन्य स्थान से आता है जिसे उस स्थान की संस्कृति व भाषा दोनों पता होती हैं, ऐसे में क्या वहां के लोग उसका स्वागत करते हैं? यह एक सवाल है जिसका सबसे बड़ा उदाहरण जौनपुर से हमें प्राप्त होता है।
समय था 1963 का जौनपुर और यहाँ से चुनाव में कांग्रेस के सामने जनसंघ के पंडित दीन दयाल उपाध्याय चुनाव में खड़े थे। जैसा कि दीन दयाल जौनपुर से नहीं थे तो उस वक़्त यह कहा जाने लगा कि जो व्यक्ति जौनपुर से हो और यहाँ के वातावरण में रहा हो वही यहाँ से चुना जाना चाहिए। उस चुनाव में दीन दयाल की हार हुयी परन्तु कई सवाल पैदा हुए कि क्या स्वतंत्र देश में कोई भी कहीं से भी चुनाव जीत सकता है? वहां की भाषा और संस्कृति जानते हुए भी? यह एक सोचनीय विषय है क्यूंकि यदि आपके यहाँ पर खड़ा चुनावी प्रतिद्वंदी उस स्थान का होने के बावजूद भी अपने कर्म को पूर्ण करने वाला न हो तो बाहर से आये उस व्यक्ति पर भरोसा किया जा सकता है जिसे उस स्थान के बारे में सम्पूर्ण जानकारी है।
स्वतंत्र देश जहां पर सभी एक समान हैं और हर कोई कहीं भी आ जा सकता है ऐसे स्थान पर यह महत्वपूर्ण बन जाता है कि प्रतिद्वंदियों को प्रत्येक कसौटी पर देखा जाए। वर्तमान में कई ऐसे उदाहरण हमारे सामने उपस्थित हैं जहाँ पर बाहर से आकर एक जनप्रतिनिधि ने उस स्थान के हित में कई कदम उठाये हैं। दीन दयाल ने जौनपुर में हुई इस हार पर लेख भी लिखा जिसमें उन्होंने बाहरी और आतंरिक दोनों प्रतिद्वंदियों पर टिप्पणी की। यह टिप्पणी आज भी यथार्थ है। उनके कथन के अनुसार प्रस्तुत आंकड़े वास्तव में अभी भी जीवंत और सत्य लगते हैं। जौनपुर के उस चुनाव में यह सिद्ध हो गया था कि लोग अपने आस पास के ही नेताओं पर ज्यादा भरोसा करते हैं। हालाँकि जातिगत और धर्मगत मामले चुनावों का मुख मोड़ देते हैं। परन्तु चुनाव के मामले में इस घटना व कथन से यह स्पष्ट है कि किसी प्रतिनिधि का चुनाव जाति, धर्म व संप्रदाय के आधार पर नहीं अपितु कार्य व सोच के आधार पर करना चाहिए। यह कम ही मायने रखता है कि वह प्रत्याशी कहाँ से है। प्रतिनिधि का चुनाव करना अत्यंत गूढ़ विषय है, कारण कि उसी प्रत्याशी के हाथ में स्थान के विकास और सुचिता की जिम्मेदारी होती है।
1.https://www.thequint.com/news/india/deendayal-upadhyay-a-stoic-leader-who-was-murdered-at-his-prime
2.https://hindi.firstpost.com/special/pandit-deen-dayal-upadhyay-his-vision-behind-ekatam-manavvad-jansangh-rss-bjp-55881.html
3.http://deendayalupadhyay.org/lost.html
4.https://timesofindia.indiatimes.com/home/sunday-times/all-that-matters/people-choose-criminal-politicians-as-theyre-seen-to-get-things-done-milan-vaishnav/articleshow/56539354.cms
5.http://journals.sagepub.com/doi/full/10.1177/2321023016634902
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