गर्मियां आ गई हैं अब हमें कई जगह स्ट्रॉ दिखाई देने लगेंगे जो कि शीतल पेय पीने के लिए प्रयोग में लाये जाते है। नारियल पानी से लेकर कोल्ड ड्रिंक्स तक पीने में स्ट्रॉ का प्रयोग किया जाता है। देखने में अत्यंत आम सी यह वस्तु ऐसा आभास देती है जैसे मानो यह कई सदियों से मानव द्वारा प्रयोग में लायी जाती रही होगी।
परन्तु ऐसा नहीं है, पहले के स्ट्रॉ आज की तरह प्लास्टिक के नहीं होते थे, दुनिया का पहला पेपर स्ट्रॉ मार्विन स्टोन द्वारा बनाया गया था। ये सिगरेट पकड़ने के होल्डर का निर्माण करते थे। एक दिन मिंट की शरबत को पीते हुए स्टोन अत्यधिक परेशान हो गए थे क्यूंकि फूस की बनी स्ट्रॉ अक्सर टूट जाती थी और यह पेय पदार्थ में कचरा भी छोड़ देती थी। उन्होंने सोचा कि फैक्ट्री में प्रयोग की जाने वाले कागज़ का प्रयोग स्ट्रॉ बनाने में किया जा सकता है और उन्होंने एक पेंसिल के चारों ओर पेपर लपेट कर और गोंद से चिपका कर पहले स्ट्रॉ का निर्माण किया। बाद में स्ट्रॉ में पैराफिन का लेप लगा कर इसे गलने से बचने वाला बनाया। 1888 में स्टोन ने इसका पेटेंट कराया।
तब से अब तक स्ट्रॉ के आकार प्रकार में बदलाव आये। ये प्लास्टिक, कांच आदि के भी बनाये जाने लगे। 1937 में जोसेफ बी फ्राइडमैन द्वारा स्ट्रॉ को दिया लचीलापन अत्यंत महत्वपूर्ण संयोजन साबित हुआ। इस संयोजन से पेपर स्ट्रॉ को गिलास में मोड़ कर भी प्रयोग में लाया जा सकता था। यह प्रयोग युवाओं में काफी लोकप्रिय हुआ। 1947 में लचीले स्ट्रॉ का पहला व्यापार फ्राइडमैन कंपनी द्वारा एक हॉस्पिटल में किया गया था क्योंकि बिस्तर पर आराम करते हुए मरीजों के लिए यह बहुत उपयोगी था। आज इस आविष्कार का उपयोग सम्पूर्ण मानव प्रजाति द्वारा किया जाता है।
1. मास प्रोडक्शन- फ़ायडॉन प्रेस
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