भारत में प्राचीन काल से मंदिरों का बहुत बड़ा महत्व रहा है, आप भारत में किसी भी जगह जाएँ, आपको वहाँ पर एक ना एक मंदिर जरुर मिलेगा। ईश्वर की आराधना करने के लिए हम घर में भी पूजाघर बनाते हैं और भगवान की मूर्ति की स्थापना करते हैं तो हम मंदिर क्यों बनाते हैं? मंदिरों को हम इतना महत्व क्यों प्रदान करते हैं अगर हमारे सभी धर्म-ग्रन्थ और सिद्धपुरुष कह गए हैं कि इश्वर हर कण-कण में बसता है?
इंसान समाज के प्रति निष्ठा रखने वाला जीव है। स्वामी विवेकानंद के अनुसार मंदिर एक ऐसी जगह होती है जहाँ पर इंसान भीड़ में रहकर भी अकेले रह आत्मिक समाधान प्राप्त कर सकता है। प्राचीन काल से मंदिर एक ऐसी जगह है जहाँ पर सब लोग इकठ्ठा होकर धार्मिक-सामाजिक कार्य उत्सव आदि एक होकर मनाते हैं। पूजाघर आदि घर के लोगों तक सीमित रहता है लेकिन मंदिर सभी के लिए होता है तथा बड़े बड़े उत्सव जो बड़े पैमाने पर होते हैं उसके लिए मंदिरों की जरुरत होती है, इससे सामाजिक एकता एवं सलोखा जुड़ा रहता है। मंदिरों का दूसरा और महत्वपूर्ण कार्य जो प्राचीन समय से चला आ रहा है, वह है शिक्षा एवं जानकारी-समाचार-सूचना आदि का प्रसार। मंदिरों का स्थापत्य हमारे शास्त्र-ग्रंथों के अनुसार होता है, जिसके हिसाब से पूजाविधि, पूजा-उपचार आदि के साथ-साथ उपरोक्त दिए कारणों की भी सिद्धि हो। इसी वजह से बहुत से मंदिरों में गर्भ-गृह आदि के साथ ही सभा-मंडप, नृत्य/नाट्य/रंग मंडप रहते हैं। मंदिर हमेशा पानी के स्त्रोत के पास होता है तथा मंदिर में धर्म के चार पुरुषार्थ: धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष तथा भगवान की जीवन कहानियाँ, उसके अनेक रूप और लोगों के रोज़-मर्रा के जिंदगी का भी चित्रण मिलता है।
जौनपुर का चौकिया धाम मंदिर अथवा करालबीर मंदिर, इन दोनों मंदिरों के अपने स्थलवृक्ष हैं।
हमारे धर्म में वृक्षों का अनन्यसाधारण महत्व है जिस वजह से हर मंदिर में भी पेड़ रहते हैं, बहुतायता से भगवान की मूर्तियों की स्थापना पेड़ के नीचे की जाती है, खास कर जब वहाँ कोई मंदिर न हो अथवा छोटा सा मंदिर बनाना हो। कभी-कभी किसी पेड़ के नीचे अथवा किसी वाटिका/उपवन के अन्दर मूर्तियाँ मिलती हैं। हर भगवान के कुछ प्रिय पेड़-पौधे रहते हैं और क्योंकि वे कभी-कभी जिस पेड़ के नीचे अथवा प्रकार के उपवन में मिले हैं तब उनके मंदिर में आप उस वृक्ष अथवा पौधों को पाते हैं। इनका बहुत खयाल रखा जाता है क्योंकि वे पवित्र और भगवान को प्रिय माने जाते हैं। स्थलपुराण नामक प्राचीन ग्रन्थ में इस बारे में लिखा गया है, ऐसे वृक्षों को स्थल-वृक्ष कहते हैं, बहुत से प्राचीन शहरों का, मंदिरों का नाम उनके स्थल-वृक्ष के नाम से रखा गया है।
1. आलयम: द हिन्दू टेम्पल एन एपिटोम ऑफ़ हिन्दू कल्चर- जी वेंकटरमण रेड्डी
2. http://www.thehindu.com/books/trees-and-temples/article5026047.ece
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