बढ़ते समय, बढ़ती आबादी और बेबाक बढ़ते आधुनिकीकरण की वजह से आज इंसान की समस्याएँ भी बढ़ रहीहैं। किसी भी मनुष्य अथवा प्राणी को अच्छा जीवन जीने के लिए सेहतमंद होना जरुरी होता है, इसकेलिए उसे अच्छा खाना-पीना, साफ़-सुथरा वातावरणऔर जगह की जरुरत होती है। आज आबादी की वजह सेमनुष्य कोये सब मिलना बहुत कठिन होते जा रहा है, जगह जगह पर प्रति स्क्वायर मील रहने वाले लोगों की घनता बढ़ते जा रही है, प्राकृतिकसाधन का वितरण भी असमान है और फिर बढ़ते प्रदूषण की वजह से यह सभी साधान चाहे वो जल हो, जमीन हो या फिर हम जिसमें सांसे लेते हैं वो हवा हो, सभीप्रदूषितहो रहे हैं। पानी के बहाव में डाले जाने वाले औद्योगिक रसायन, जलनिकास और गटर का गन्दा पानी और उसी जगह मेंबर्तन-कपड़े धोना, नहाना और जानवरों को नहलाना, पूजा अर्चना के फूल बहाना, लाशों को समर्पित करना आदि की वजह से पानी के स्त्रोत दिन-ब-दिन और भी ज्यादा प्रदूषित हो रहे हैं, कितनी ही नदियाँ या तो नालों में परिवर्तित हो चुकी हैं अथवा पूरी तरह दम तोड़ चुकी हैं, उनका पानी इतना जहरीला हो चुका है कि अब उसमें शैवाल भी नहीं जी सकते। इन सभी चीजों पर अगर रोक लगानी है तो यथोचित कचराप्रबंधन और मलजल प्रक्रिया होना बहुत जरुरी है।
उत्तर प्रदेश जल निगम ने सन 1993 में गोमती एक्शनप्लान (GoAP-Gomti Action Plan) बनाया जिसके तहत गोमती के किनारे बसे जौनपुर के साथ सुल्तानपुर और लखनऊ इन तीन शहरों में आते मैले पानी काअवरोध, विचलन और उपचारकिया जाने वाला था। जौनपुर में रोजाना 14 लाख प्रति दिन मैला पानी पर यह उपचार किया जाने वाला था। कुछ तकनिकी और वित्तीय कारणों की वजह से यह अभी तक सरकार दरबार में विचाराधीन है, जौनपुर में इसके यंत्रनिर्माण करनेवालेकारखाने उपलब्ध हैं।
मैलेपानीका उपचार मतलब इनमेंसे दूषित पर्दार्थों को निकाल देना। इनमेंभौतिक, रासायनिक, और जैविक प्रक्रियाओं का इस्तेमाल किया जाता है। इस प्रक्रिया का प्रतिफल थोड़ा घना घोल होता है, जिसे मैल-गाद भी कहते हैं। इसमैल-गाद को
निपटानया किसी और जगह जैसे जमीन में इस्तेमाल से पहले वापसउपचारित किया जाता है। यह प्रक्रिया घर से निकले मैलेपानी तथा किसी कारखाने से निकले मैलेपानी दोनों केलिए इतेमाल होती है। इसके प्रमुख तीन हिस्से/पड़ाव होते हैं:
1. प्रथम उपचार: गंदे पानी की जांच, एकत्रीकरण, समकरण कर के मैलेपानी प्रक्रिया केंद्र में भेजना।
2. द्वितीयउपचार: तरलीकृत वायुजिवी जैविक प्रतिघातक(FAB- Fluidized Aerobic Bio-Reactor) का इस्तेमाल करके जैविक उपचार और फिर उसका निपटान।
3.तृतीय उपचार: इसमें इस पानी में क्लोरीन से प्रक्रिया करके छाना जाता है।
इसमें से मिलने वाले पानी का इस्तेमाल बागवानी, सिंचाई आदि के लिए किया जा सकता है।
कचरा प्रबंधन का मतलब होता है इसे जमा करना, दूसरी जगह परिवहन करके उसका निपटान करना।कचरे को पांच प्रमुख हिस्सों में बांटा गया है:
1. सूखा कचरा जैसे प्लास्टिक, कागज़, लकड़ी आदि।
2.गीला कचरा जैसे फूल, पत्ते, छिलके, खाना, हड्डी आदि।
3. जोखिमवाला कचरा जैसे केमिकल, रंग, कीटकनाशक आदि।
4. ई-कचरा, ई यहाँइलेक्ट्रॉनिक कासंक्षिप्त रूप है। इसमें मोबाइल फ़ोन, संगणक के हिस्से, धातु के तार आदि आते हैं।
5. जैविक-वैद्यक सम्बन्धी कचरा जिसमें माहवारी के समय इस्तेमाल की जाने वाली चीज़े, अस्पतालसे जुडी चीजें जैसे खून के कपड़े अथवा पट्टियां और कोई भी सामग्री जो रक्त या अन्य शरीर के तरल पदार्थ से दूषित होती है।
इसके लिए भारत में तीन प्रमुख नियमन हैं:
1. नगर निगम मैलनिसरण(प्रबंधन और संचलन) नियम 2000.
2. जैव-चिकित्सक मैलनिसरण(प्रबंधन और संचलन) नियम 1998.
3. ई-कचरा मैलनिसरण(प्रबंधन और संचलन) नियम 2010.
जैव प्रसंस्करण, उष्णता-सम्बंधितप्रसंस्करण औरस्वास्थकर भूमि-भराव डालना यह तीन कचरा प्रबंधन के प्रमुख तरीके हैं। इसके अलावा खाद बनाने में इसका इस्तेमाल करना या फिर उन्हेंजला देना यह और दो तरीके हैं। खाद बनाने की दो प्रक्रिया हैं: ऑक्सीजनजीवी जीवाणु का इस्तेमाल कर खाद बनाना अथवाअवायुजीव जीवाणु का इस्तेमाल कर के खाद बनाना।
1.http://jn.upsdc.gov.in/page/en/ganga-plan-ii
2.http://netsolwater.com/waste-water-treatment-plant-manufacturer.php/jaunpur
3.http://www.jayaquaappliances.in/Jaunpur/sewage.php
4.http://www.indiawaterportal.org/questions/frequently-asked-questions-faqs-solid-waste-
management
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