सन 1300 और 1600 के बीच, फारसी चित्रकारी शैलियों का भारत में सल्तनत और मुगल राज के साथ-साथ हिंदू चित्रकला शैलियों पर लगातार प्रभाव पड़ा। इसके विषय की जानकारी विभिन्न स्थानों से हमें हो जाती है। 14 वीं शताब्दी में शाह-नामा का एक संस्करण भारत में बनाया गया था, और 14 वीं शताब्दी में जैन पांडुलिपियों में फारसी मूल के लिए शाही आकृति का प्रयोग देखने को मिलता है। 15 वीं और 16 वीं शताब्दी की शुरुआत में, सल्तनत चित्रकारी से जुड़े कई दस्तावेज़ उपलब्ध हैं जो भारतीय और फारसी चित्रकारी के मिश्रण को प्रस्तुत करता है। 16 वीं शताब्दी के आखिरी साठ वर्षों के दौरान, फ़ारसी कलाकार, प्रकाशक और लेखक फारस में राजनैतिक परिवर्तन और उठा पटक के कारण भारत पहुंचे थे। इस अवधि में बड़े पैमाने पर चित्रों और लेखों का उद्भव हुआ। उन्ही लेखों में से एक लेख है शाहनामा। जौनपुर इतिहास के विभिन्न पड़ावों पर खरा उतरता है।
यहाँ पर कई पुस्तकों हस्तलिपियों को लिखा गया था जैसा कि जैनियों की प्रमुख हस्तलिपि कल्पसूत्र और शाहनामा। यह हस्तलिपि 1501 में लिखी गई थी और अब यह न्यू यॉर्क के पब्लिक पुस्तकालय में है। ईरान के राजाओं के इतिहास का शाहनामा फेर्दोसी द्वारा 10 वी सदी में लिखा गया था। यह किताब फ़ारसी भाषा में लिखी गई थी और मुग़ल महाराजाओं की पसंदीदा किताब हुआ करती थी; मुग़ल बादशाह इस किताब को पढ़कर ईरान से प्रेरणा लेते थे। भारत के संग्रहालयों में बहुत सी शाहनामा की हस्तलिपियां हैं जो कि मुग़ल सम्राटों की हुआ करती थी। इनमें से सबसे पुरानी हस्तलिपि जौनपुर की है और इसे 1501 में लिखा गया था, अब यह न्यू यॉर्क के पुस्तकालय में मौजूद है।
1300 से 1600 के बीच फ़ारसी चित्रकला ने भारतीय चित्रकला को काफ़ी प्रभावित किया था। यह सभी चित्र मुग़ल दरबार और बड़े-बड़े राजघरानो में लगाए जाते थे। 14 वी सदी तक यह संभावनाए थीं कि छोटे शाहनामा भारतीय उत्पत्ति के थे और जैन हस्तलिपि से ही फ़ारसी हस्तलिपि की शुरुवात हुई थी। यहाँ पर सल्तनत की हस्तलिपियों के साथ छेड़छाड़ की भी परेशानी उत्पन्न हुई थी। तारीख या चित्र में थोड़े बदलाव कर देने से एक अलग ही मंद उत्पादन तैयार होता था जिससे कि एक अहम् और नयी सल्तनत हस्तलिपि बनाई जा सके। कुछ प्राचीन काल में प्रयोग होने वाली हस्तलिपियां हाल ही में खोजी गई हैं, उदहारण के लिए – जौनपुर में लिखा गया फेर्दोसियों का शाहनामा। इसके लिखे जाने की तारीख से छेड़छाड़ हुई थी , क्योंकि इसमें जौनपुर के प्रति अन्त्यानुप्रासवाले शब्द थे जो कि मुग़ल काल के पहले नहीं हुआ करते थे। और इस हस्तलिपि में सभी चित्र या व्यक्ति पगड़ी पहने हुए देखे जा सकते थे, यह बादशाह हुमायूँ के काल के दौरान हुआ करता था। सारे अक्षर काफी पुराने हैं लेकिन छोटे-छोटे चित्रों में नए समय की मिलावट देखी जा सकती है। इस प्रकार से हम पाते हैं कि जौनपुर उस समय में कितना उत्कृष्ट था।
1.http://www/iranicaonline.org/articles/india-xx-persian-influences-on-indian-painting
2.https://digitalcollections.nypl.org/collections/shhnmah#/?tab=about
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