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जौनपुर के इतिहास पर नज़र डालने पर यह तथ्य पता चलता है कि जौनपुर का इतिहास पुरातात्त्विक ही नहीं धार्मिक रूप से भी अत्यंत विकसित था। यहाँ का नाम भी एक मत के अनुसार महर्षि यमदग्नि के नाम पर ही पड़ा है। महर्षि यमदग्नि भारत के मशहूर सप्त ऋषियों में से एक हैं। जौनपुर में सनातनी परंपरा के साथ ही साथ बौद्ध धर्म का भी विकास हुआ। यही कारण है कि जौनपुर में कई बौद्ध धर्म के साक्ष्य प्राप्त होते हैं। बौद्ध साक्ष्य पुरातात्त्विक ही नहीं अपितु भाषा व स्थान के आधार पर भी प्राप्त होते हैं। जौनपुर जिले में स्थित मछलीशहर का प्राचीन नाम मस्चिका संड था जिसका शाब्दिक अर्थ है बाज़ार। इसके अलावा मछलीशहर से हमें कई अन्य पुरातात्विक साक्ष्य प्राप्त हुए हैं जो यहाँ पर बौद्ध धर्म होने की बात स्वीकारते हैं।
मछलीशहर जौनपुर शहर से करीब 31 किलोमीटर पश्चिम में स्थित है। शर्कियों के काल में मछलीशहर एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण शहर था जिसका कारण है इस शहर की भौगोलिक संरचना। मछलीशहर जौनपुर से इलाहाबाद की तरफ जाने वाले रास्ते पर पड़ता है जिस कारण यह स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण हो गया। संभवतः महात्मा बुद्ध कौशाम्बी जाते वक़्त जौनपुर होते हुए ही गए हों। मछलीशहर मात्र बौद्ध ही नहीं अपितु शर्कियों के काल में भी अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान था जिस कारण यहाँ पर कई निर्माण के कार्य शर्की शासन काल के दौरान हुए। शर्कियों के दौर में लिखे गए कई ग्रंथों से भी मछलीशहर का उल्लेख हमें प्राप्त होता है। चित्र में एक प्राचीन मंदिर के मुख्य दरवाजे के कुछ भागों को दिखाया गया है। यह बदलापुर मछलीशहर मार्ग पर स्थित है। इस साक्ष्य से भी यह पता चलता है कि मछलीशहर व यह क्षेत्र कितना महत्वपूर्ण था।
1. जौनपुर का गौरवशाली इतिहास, डॉ सत्यनारायण दुबे