जौनपुर का शाही किला फ़िरोज़ शाह तुगलक द्वारा बनवाया गया था तथा इस किले पर कई राजवंशों ने राज किया जिनमें तुगलक, शर्की और मुग़ल प्रमुख हैं। यह किला अपनी परम पराकाष्ठा पर शर्कियों के शासन में पहुंचा था परन्तु लोधियों द्वारा किये गए आक्रमण और संहार ने इस किले को पूर्ण रूप से क्षतिग्रस्त कर दिया था। यह ऐसा दौर था जब लोधियों के आक्रमण से कोई ही एक धरोहर बची हो, शाही किले से लेकर जामा, अटाला आदि को तोड़ दिया गया था। एक हँसते खेलते शहर जौनपुर की हालत मानो विधवा की सूनी मांग के समान हो चुकी थी। परन्तु कहा जाता है कि बुरे दिन ज्यादा नहीं टिकते और हुआ भी ऐसा, समय बीतने के साथ मुग़ल काल अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँचा।
मुगलों को जौनपुर की महत्ता का आभास हुआ और उन्होंने इस शहर को फिर से आबाद करना शुरू किया। यहाँ पर उपस्थित तमाम इमारतों का दुरुस्तीकरण शुरू हुआ और यहाँ का मशहूर शाही पुल (अकबरी पुल) इसी दौर में बना। शाही किले के सामने ही अकबर के आदेश पर मुनीम खान ने एक विशाल दरवाजे का निर्माण करवाया जिस पर लाजवर्द जैसे पत्थरों से नक्काशी करायी गयी। वर्तमान में इसी दरवाजे से किले में प्रवेश किया जाता है। जौनपुर में इस्लामी काल के अभिलेख पाए जाते हैं जिन पर कई सारी जानकारियां उकेरी गयी हैं।
ये सभी अभिलेख अरबी और फारसी भाषा में हैं। किले के प्रमुख द्वार पर मुनीम खान ने एक स्तम्भ का निर्माण करवाया था (यह अभिलेख 17 पंक्तियों का है) जिसपर लिखे अभिलेख से यहाँ पर धार्मिक सम्मान का प्रमाण मिलता है। इसपर उत्कीर्ण लेख के अनुसार मुनीम खान हिन्दू और मुस्लिम कोतवालों को किले में प्रवेश की इजाजत देता है तथा राज्य के प्रति समभाव रखने को प्रेरित भी करता है। यह स्तम्भ धार्मिक कट्टरता से ऊपर उठकर राष्ट्र को उत्तम बताता है।
1- जौनपुर का गौरवशालि इतिहास, डॉ सत्य नारायण दुबे ‘शरतेन्दु’
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