कानून व्यवस्था का कायम होना किसी भी शहर के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण बिंदु है। बिना क़ानून व्यवस्था के किसी भी शहर का न्यायिक और सामाजिक कार्य अवरुद्ध होते रहता है। कौटिल्य ने अर्थशास्त्र में कानून व्यवस्था के महत्व पर अपना वक्तव्य प्रस्तुत किया है तथा उन्होंने कानून व्यवस्था के सिद्धांतों का भी विवरण प्रस्तुत किया है। प्राचीन भारत के 16 महाजनपदों और 10 गणराज्यों के भी कानून व्यवस्था से सम्बंधित तथ्य हमें प्राप्त होते हैं। विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक सिन्धु सभ्यता से भी हमें इसके श्रोत प्राप्त होते हैं। राखीगढ़ी के मुख्य टीले से एक किले के अवशेष प्राप्त हुए हैं जो कि राजशाही और कानून व्यवस्था की तरफ हमारा ध्यान आकर्षित करते हैं। गुप्त काल और सल्तनत काल में कानून व्यवस्था और इसके नियमों आदि में कई फेर बदल दिखाई देते हैं तथा छोटे-छोटे राज्यों के उदय और अंग्रेजों के भारत पर आधिपत्य के बाद प्रत्येक महत्वपूर्ण शहर में कानूनी अदालतों का निर्माण किया जाने लगा। पहले अदालतें या तो पञ्च के अनुसार चलती थी या फिर राजाओं के दीवान-ए-आम में परन्तु यह बदलाव एक मील का पत्थर साबित हुआ। जौनपुर अंग्रेजों के समय में एक महत्वपूर्ण स्थान था, कारण कि यहाँ पर नील की खेती बड़े पैमाने पर की जाती थी। यहाँ पर अंग्रेजों ने अपनी कालोनियां बनायीं थी जहाँ वे निवास करते थे तथा पूरे जिले के उत्पाद पर अपनी नजर बनाये रखते थे।
1911 के पहले जौनपुर की सारी न्यायिक प्रक्रियाएं विभिन्न अलग अलग स्थानों पर होती थी या फिर इलाहबाद में होती थी जैसा कि इलाहाबाद ही वह स्थान था जहाँ पर जौनपुर से सम्बंधित सभी कार्य संपन्न किये जाते थे। 1911 में जौनपुर में अदालत का निर्माण कराया गया। यहाँ से पूरे जिले की न्यायिक गतिविधियों और विभिन्न अदालती कार्यवाहियों को किया जाने लगा। इस अदालत की ईमारत गोथिक कला के अनुसार बनायी गयी है जिसका प्रमाण इसके मेहराबों को देखकर आसानी से लगाया जा सकता है। इसी प्रकार की अन्य प्रशासनिक इमारतें इलाहाबाद, बनारस, मेरठ व अन्य स्थानों पर दिखाई देती हैं।
1. द इम्पीरियल गजेटीयर ऑफ़ इंडिया, वॉल्यूम 13 सर विलियम विल्सन हंटर
2. https://indiankanoon.org/doc/1153879/
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