हम सभी को अपने माता-पिता, बड़ों, शिक्षकों और महान आत्माओं के आगे झुककर पैर छूने की शिक्षा दी जाती है। बदले में वे अपना हाथ हमारे ऊपर रखकर आशीर्वाद देते हैं। पैर छूना एक दैनिक प्रक्रिया है जैसे कि एक नए कार्य की शुरुआत में, जन्मदिन, त्यौहार आदि शुभ अवसर पर, आशिर्वाद एक अभिवादन के साथ किया जाता है जो कि स्वयं को, एक परिवार को और एक सामाजिक ढांचे को दर्शाता है। पैर छूना एक सम्मान है जो कि हम अपने से बड़े उम्र के परिपक्व और दिव्य बुजुर्गों को व्यक्त करते हैं।
यह एक तरह का प्रतीक है जो, हमारे वरिष्ठ जन जिन्होंने अपने निस्वार्थ प्रेम और हमारे कल्याण के लिए त्याग किए हैं उनके प्रति हमारा सम्मान दर्शाता है। यह नम्रता से दूसरे की महानता को स्वीकार करने का एक तरीका है। यह परंपरा प्रतिबिंबित करती है एक मजबूत पारिवारिक संबंध, जो भारत की स्थायी शक्तियों में से एक रही है। प्यार, देवत्व और बड़प्पन से भरे दिल से शुभकामनाएं एक महत्वपूर्ण सन्देश है जो कि इस प्रकार से प्रदर्शित की जाती है। यह प्रक्रिया हमें शक्ति देने का कार्य करती है तथा बुजुर्गों के आशीर्वाद से एक सकारात्मक उर्जा का संचार हमारे अन्दर होता है।
सम्मान दिखाने के विभिन्न रूप हैं:
प्रथुथन - किसी व्यक्ति का स्वागत करने के लिए।
नमस्कार - नमस्कार के रूप में श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए।
उपसंग्रहण - बड़ों या शिक्षकों के पैर छूने के लिए।
शाष्टांग- पेट के बल लेट कर आशीर्वाद लेना।
प्रत्याबिवादन - शुभकामना प्रदान करना।
इन नियमों को हमारे शास्त्रों में निर्धारित किया गया है कि किसके लिए झुकना चाहिए। महाभारत में इस पहलू को उजागर करने वाली कई कहानियां हैं जो कि पैर छूने के इस महत्व को दर्शाती हैं।
1. इन इंडियन कल्चर व्हाई डू वी... – स्वामिनी विमलानान्दा, राधिका कृष्णकुमार
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