Post Viewership from Post Date to 04-Nov-2024
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Email Instagram Total
1881 73 1954

***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions

कैसे इलाहाबादी सुर्खा बन गया है उत्तर प्रदेश के लोगों की पहली पसंद?

जौनपुर

 30-10-2024 09:28 AM
निवास स्थान
हमारे जौनपुर से लगभग 100 किलोमीटर दूर, प्रयागराज या इलाहाबाद शहर, अपने "इलाहाबादी सुर्खा" के लिए मशहूर है। यह अमरूद की एक किस्म है, जिसका अंदरूनी रंग गहरा गुलाबी होता है, जबकि आम तौर पर अमरूद का रंग सफ़ेद होता है, और इसकी बाहरी सतह सेब जैसी लाल होती है। यह फल मीठा होता है, इसकी ख़ुशबू तेज़ होती है और इसमें बहुत कम बीज होते हैं। इसके दोनों सिरे थोड़े दबे हुए होते हैं।
तो आज हम, इस फ़ल के बारे में विस्तार से जानेंगे। इसके बाद, हम इलाहाबादी सुर्ख़ा के प्रति स्थानीय लोगों के बीच लोकप्रियता के बारे में बात करेंगे। फिर हम, इलाहाबादी सुर्खा के वर्तमान उत्पादन की स्थिति का जायज़ा लेंगे। अंत में, हम उत्तर प्रदेश में अमरूद उत्पादन में तेज़ी से बदलाव लाने वाली तकनीक, 'एस्पालियर तकनीक' (Espalier) पर भी प्रकाश डालेंगे।
इलाहाबादी का संक्षिप्त परिचय
प्रयागराज के शायर अकबर इलाहाबादी ने 19 वीं सदी के अंत में कहा था कि इलाहाबाद का अमरूद एक दिव्य फ़ल है, जिसकी सही जगह भगवान के चरणों में होनी चाहिए। आज भी इलाहाबाद सुर्खा अमरूद के स्वाद को लोग स्वर्गीय आनंद मानते हैं।
"इलाहाबाद सेबिया" या " सुर्खा " अमरूद सेब जैसा होता है। इसका अंदरूनी हिस्सा रसदार गुलाबी और बाहरी हिस्सा लाल होता है, इसलिए इसे "सुर्ख़ा" कहा जाता है। सुबह 5 बजे से ही विक्रेता बागों से अमरूद तोड़ते हैं, और ये जल्दी ही बिक जाते हैं। इसकी महक इतनी अनूठी होती है कि इलाहाबाद जंक्शन पर लोग चाय-पानी भूलकर अमरूद खरीदने दौड़ते हैं। सर्दियों में लोग इसे रिश्तेदारों को उपहार में भेजते हैं।
ये अमरुद कौशाम्बी ज़िले की ख़ास मिट्टी में उगता है। मूरतगंज और चायल ब्लॉक को फल बोर्ड घोषित किया गया है, और जिले की 75% बागवानी यहीं होती है। मौसम में प्रतिदिन 50 टन फ़ल बिहार, झारखंड, और पश्चिम बंगाल भेजे जाते हैं।
सुर्खा के अलावा, सफ़ेदा, नरमा और पत्ता जैसी अन्य किस्मों की भी अपनी पहचान है, और इनमें से इलाहाबाद सुर्खा को 2007-08 में जी आई (GI) टैग मिलकर विशेष मान्यता प्राप्त हुई है।
इलाहाबादी सुर्खा के प्रति स्थानीय लोगों में बढ़ती लोकप्रियता का कारण
इलाहाबादी सुर्खा अमरूद की विशेषता उसके अनूठे स्वाद और गहरे गुलाबी रंग में छिपी है, जो आमतौर पर सफ़ेद अमरूदों से अलग होती है। इसका नाम " सुर्खा " (जिसका मतलब लाल होता है) इसलिए पड़ा है क्योंकि इसका अंदरूनी हिस्सा एक रसीला, गहरा गुलाबी रंग का होता है, जो स्वाद में बेहद स्वादिष्ट होता है और इसे अन्य किस्मों से अलग बनाता है।
इलाहाबाद के विक्रेताओं का दिन, सूरज की पहली किरणों के साथ शुरू होता है, जब वे सुबह 5 बजे अपने बागों से ताज़ा अमरूद तोड़ने निकलते हैं। इनकी रंग-बिरंगी पैकेजिंग बाज़ार में एक ख़ास रौनक बिखेर देती है, और जैसे ही ये अमरूद बाज़ार में पहुँचते हैं, सिर्फ़ एक घंटे के भीतर ही बिक जाते हैं, और ग्राहकों की भीड़ इनका इंतज़ार करती दिखाई देती है।
लेकिन इलाहाबादी अमरूद की ख़ासियत सिर्फ़ बाज़ारों तक सीमित नहीं है। जब ट्रेनें, इलाहाबाद जंक्शन पर रुकती हैं, तो थके हुए यात्री चाय और पानी को छोड़कर अमरूद के स्टालों की ओर दौड़ पड़ते हैं। इनकी लुभावनी ख़ुशबू यात्रियों को आकर्षित करती है, और वे विक्रेताओं की ओर खींचे चले आते हैं, अपने टोकरे में रखे इस रसीले फ़ल का आनंद लेने के लिए।
इलाहाबादी सुर्खा की लाजवाब मिठास का रहस्य कौशाम्बी ज़िले की उपजाऊ मिट्टी में है, जहाँ लगभग, 300 हेक्टेयर में इसकी खेती होती है। इस दोआब क्षेत्र की मिट्टी और जलवायु मिलकर अमरूद की गुणवत्ता को अमरूद की गुणवत्ता में चार चाँद लगा देती हैं, जिससे यह अमरूद न केवल स्वाद में बेजोड़ है, बल्कि अपने ताज़ा और रसीले रूप में भी ख़ास होता है।
इलाहाबादी सुर्खा के उत्पादन की वर्तमान स्थिति
इसका प्राकृतिक निवास कौशाम्बी ज़िले के दोआब क्षेत्र में 300 हेक्टेयर भूमि है, जो पहले के अविभाजित इलाहाबाद का हिस्सा था। जहाँ इसे उगाया जाता है, उन दो ब्लॉकों—मूरतगंज और चायल—को राज्य सरकार ने फल' पट्टी' घोषित किया है।
अमरूद उत्पादन को बेहतर ढंग से समझने के लिए, यह जानना ज़रूरी है कि जहाँ केला की उत्पादन मात्रा तीन लाख मेट्रिक टन और आम की दो लाख मेट्रिक टन है, वहीं भारत में तीसरे, चौथे और पाँचवे सबसे अधिक उत्पादित फलों — पपीता, संतरा और अमरूद—का उत्पादन क्रमशः केवल छह हज़ार, पाँच और चार हज़ार मेट्रिक टन है। अमरूद का उत्पादन, मुख्य रूप से महाराष्ट्र, बिहार, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में होता है, लेकिन कहीं भी इस फल का सुर्खा' रंग और स्वाद' नहीं मिलता।
एस्पालियर तकनीक से, उत्तर प्रदेश का अमरूद उत्पादन कैसे हो रहा है बेहतर?
एस्पालियर तकनीक, एक विशेष तरीके से पेड़-पौधों को उगाने की विधि है, जिसमें पेड़ के तने और शाखाओं का उपयोग करके उन्हें दीवारों, बाड़ों या अन्य संरचनाओं के ख़िलाफ, एक विशेष रूप बनाकर उगाया जाता है। यह तकनीक प्राचीन समय से चली आ रही है, जब इसे छोटे स्थानों में फ़लदार बेलें और पेड़ उगाने के लिए उपयोग किया जाता था, जैसे किलों के आंगनों या भीड़-भाड़ वाली मध्यकालीन गलियों में।
एस्पालियर तकनीक का सबसे बड़ा लाभ यह है कि अमरूद के पेड़ के सभी भागों को पूरे दिन समान धूप मिलेगी, जिससे अमरूद का रंग और आकार एक समान होगा। इसके अलावा, फ़लों की तुड़ाई और पैकिंग जैसी कृषि गतिविधियाँ भी आसान हो जाएँगी।
इस परियोजना में दो तरह की पहलों का समावेश है। पहले चरण में, किसानों को प्रयागराज में, पारंपरिक अमरूद बागवानी के बजाय, गहन बागवानी के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। पारंपरिक बागवानी में अमरूद के पौधे, 6 से 7 मीटर की दूरी पर लगाए जाते हैं, जबकि गहन बागवानी में इन्हें 1.5 से 3 मीटर की दूरी पर लगाया जाएगा। इससे एक ही भूखंड पर, 5 गुना अधिक पौधे उगाए जा सकेंगे।
इस परियोजना के दूसरे चरण में, किसानों के बागों में एस्पालियर प्रणाली का उपयोग किया जाएगा।

संदर्भ
https://tinyurl.com/33hecx2u
https://tinyurl.com/42ayk8cp
https://tinyurl.com/ycyxbvd
https://tinyurl.com/ykkdpehn

चित्र संदर्भ

1. अमरुद बेचते व्यक्ति को संदर्भित करता एक चित्रण (pxhere)
2. अमरुद की टोकरी को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. अमरुद बेचती महिला को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
4. कटे हुए अमरुद को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. एस्पालियर तकनीक से उगाए गए पेड़ को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)


***Definitions of the post viewership metrics on top of the page:
A. City Subscribers (FB + App) -This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post. Do note that any Prarang subscribers who visited this post from outside (Pin-Code range) the city OR did not login to their Facebook account during this time, are NOT included in this total.
B. Website (Google + Direct) -This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership —This is the Sum of all Subscribers(FB+App), Website(Google+Direct), Email and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion ( Day 31 or 32) of One Month from the day of posting. The numbers displayed are indicative of the cumulative count of each metric at the end of 5 DAYS or a FULL MONTH, from the day of Posting to respective hyper-local Prarang subscribers, in the city.

RECENT POST

  • भारतीय स्वास्थ्य प्रणाली में, क्या है आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस और चिकित्सा पर्यटन का भविष्य
    विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

     14-11-2024 09:15 AM


  • क्या ऊन का वेस्ट बेकार है या इसमें छिपा है कुछ खास ?
    नगरीकरण- शहर व शक्ति

     13-11-2024 09:17 AM


  • डिस्क अस्थिरता सिद्धांत करता है, बृहस्पति जैसे विशाल ग्रहों के निर्माण का खुलासा
    शुरुआतः 4 अरब ईसापूर्व से 0.2 करोड ईसापूर्व तक

     12-11-2024 09:25 AM


  • साउथहैंपटन विश्वविद्यालय का भारत में कैंपस, कैसे बदल सकता है, हमारे शिक्षा के नज़रिए को ?
    नगरीकरण- शहर व शक्ति

     11-11-2024 09:28 AM


  • आइए, नज़र डालें, टैंगो नृत्य कला से संबंधित चलचित्रों पर
    द्रिश्य 2- अभिनय कला

     10-11-2024 09:28 AM


  • खेत में गन्ने और चुकंदर से आपके खाने की मेज़ पर क्रिस्टल के रूप में, जानें चीनी की यात्रा
    वास्तुकला 2 कार्यालय व कार्यप्रणाली

     09-11-2024 09:24 AM


  • एक लुप्तप्राय प्रजाति होने के कारण, भारत में प्रतिबंधित है लाल चंदन का व्यापार
    जंगल

     08-11-2024 09:22 AM


  • कैंसर जागरूकता दिवस पर जानें, कैंसर से प्रभावित व सामान्य कोशिकाओं के बीच मौजूद अंतर को
    विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

     07-11-2024 09:17 AM


  • क्यूरियम: एक दुर्लभ तत्व की खोज और इसके उपयोग
    खनिज

     06-11-2024 09:11 AM


  • विदेशों से खरीदा गया कच्चा तेल, आपकी जेब को ठंडा कर रहा है !
    य़ातायात और व्यायाम व व्यायामशाला

     05-11-2024 09:39 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id