वैश्विक पर्यावरण परिवर्तन इतनी तेजी से हो रहा है कि यह स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहा है और मानव सहित कई पृथ्वी के निवासियों के भविष्य को खतरे का संकेत दे रहा है। ग्लोबल वॉर्मिंग; वायु, पानी और मिट्टी के प्रदूषण; और बड़े पैमाने पर वनों की कटाई से जैवविविधता में गिरावट आई है जो कि बायोफिजिकल (biophysical) तंत्र की अखंडता को खतरा है जिस पर सभी जीव निर्भर होते हैं।
पर्यावरण के क्षरण का एक प्रमुख कारण अधिक मानव जनसंख्या और प्राकृतिक संसाधनों की खासी खपत है। अगर हम जल्द पर्यावरणीय परिवर्तनों पर ध्यान नहीं देते हैं तो हम जो भी दवा और सार्वजनिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में जो कुछ भी हासिल कर चुके हैं उसका कोई महत्व नहीं रह जायेगा। चिकित्सकों, मनुष्यों और जैविक समुदाय के सदस्यों के रूप में, हमें स्वास्थ्य और बीमारी पर अपने परिप्रेक्ष्य को व्यापक बनाने की आवश्यकता है। दुनिया की जनसंख्या 3,000 साल पहले की तुलना में अप्रतिम रूप से बढ़ी है, जो पिछले 50 सालों में दो तिहाई वृद्धि के साथ बढ़ी है। वर्ष 2050 तक दुनिया की जनसंख्या 7.4 अरब से 10.6 अरब तक पहुँच सकती है। मानव आबादी में तेजी से वृद्धि, और बढ़ती हुई संसाधनों की खपत ने मनुष्य की सरासर बढ़ती संख्या और विकास की तीव्र गति से धरती को और बुनियादी भौगोलिक चक्र को बदल दिया, जिस पर जीवन निर्भर करता है।
यद्यपि ये मानव प्रजातियों के बारे में सोचने के लिए आशंकित लग सकता है। मानव आबादी ने केवल पृथ्वी की पपड़ी और पतली कार्बनिक परत को प्रभावित नहीं किया है, जो इसे ढक कर रखती है, लेकिन मानव की गतिविधियों से भूगर्भीय पानी भी कम हो गया है, मनुष्य की आबादी का बोझ हमारी अपनी प्रजातियों को प्रभावित करता है और जिनके साथ हम दुनिया को साझा करते हैं।
अधिक जनसंख्या न केवल पर्यावरणीय गिरावट का कारण है, लेकिन गरीबी, सामाजिक ध्रुवीकरण और बड़े पैमाने पर मानव प्रवास में योगदान कर सकता है। ये सारे बदलाव मानव शरीर में भी कई बदलावों को निमंत्रण देते हैं।
1. इकोलॉजिकल चेंज एंड फ्यूचर ऑफ़ द ह्यूमन स्पीशीज: कैन फीजीसीयंस मेक अ डिफरेंस? रॉजर ए रोसेनब्लाट
2. https://www.theguardian.com/environment/2013/jun/30/stephen-emmott-ten-billion
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