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कृषि से उच्चतम लाभ पाने हेतु, प्रबंधित अनुबंध खेती हो सकती है, एक विकल्प

जौनपुर

 05-10-2024 09:15 AM
भूमि प्रकार (खेतिहर व बंजर)
यह व्यापक तौर पर मान्यता प्राप्त तथ्य है, कि, भारत की अर्थव्यवस्था में कृषि एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। हालांकि, कृषि, अब आर्थिक विकास की प्राथमिक चालक नहीं है। भारत में, कृषिलगभग 60% आबादी को आजीविका प्रदान करती है। विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों, खाद्य सुरक्षा और निर्यात में, कृषि महत्वपूर्ण योगदान देती है। इसलिए, आज, हम भारत में कृषि के भविष्य के बारे में जानेंगे। फिर, हम अनुबंध खेती के फ़ायदे और नुकसान पर चर्चा करेंगे। हम, इस बारे में भी चर्चा करेंगे कि, सरकार एमएसपी(MSP) अर्थात, न्यूनतम समर्थन मूल्य के माध्यम से कृषि उपज की कीमत को कैसे नियंत्रित करती है, और इससे किसानों को कैसे मदद मिलती है। अंत में, हम चर्चा करेंगे कि, केवल एमएसपी ही किसानों की आय में, सुधार करने में, क्यों मदद नहीं कर सकती है।
चूंकि, भारत तीव्र आर्थिक विकास और सामाजिक परिवर्तन की जटिलताओं से निपट रहा है, कृषि, भारतीय अर्थव्यवस्था की आधारशिला तथा लाखों लोगों के लिए, जीवन रेखा बनी हुई है। देश की कुल आय में20% योगदान देने वाली कृषि, सिर्फ़ एक पारंपरिक क्षेत्र नहीं है, बल्कि नवाचार और निवेश के लिए भीएक गतिशील क्षेत्र है। मैकिन्से(McKinsey) की, एक हालिया रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि, 2030 तक, कृषि, भारत के सकल घरेलू उत्पाद या जीडीपी(GDP) में 600 बिलियन डॉलरका योगदान दे सकती है। यह, 2020 में, इसके योगदान से,50% अधिक योगदान होगा।
यह वृद्धि, सिर्फ़ एक अनुमान नहीं है, बल्कि इस क्षेत्र में बढ़ते निवेश से समर्थित है। 2022 में उद्यम पूंजी फर्मों ने 114 सौदों के माध्यम से कृषि में $1.2 बिलियन से अधिक निवेश किया है, जो पिछले वर्ष से50% अधिक है। दिलचस्प बात यह है कि, इनमें से, 90% निवेश, पांच श्रेणियों : एग्रीफ़िन टेक(AgriFin Tech), एग्रीकल्चर ऑटोमेशन(Agriculture Automation), अपस्ट्रीम एग्रीकल्चर(Upstream Agriculture), फार्म 2 फ़ोर्क सॉल्यूशन(Farm 2 Fork Solution) और बायोटेक्नोलॉजी(Biotechnology), पर केंद्रित थें।
हाल ही में, कृषि-तकनीक स्टार्टअप की संख्या में भी,उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है। यह2013 में, केवल 50 से बढ़कर, 2020 में 1,000 हो गई है, जो कृषि के आधुनिकीकरण में बढ़ती रुचि का संकेत देता है। इस प्रकार, विशेषकर प्रौद्योगिकी एकीकरण के साथभारत में कृषि का भविष्य आशाजनक लगता है।
एग्रीबिजनेस ग्लोबल(Agribusiness Global estimates) का अनुमान है कि, आपूर्ति श्रृंखला प्रौद्योगिकीऔर उत्पादन बाज़ार खंड मे राजस्व, 2025 तक, क्रमशः 204 बिलियन डॉलर और 12.1 बिलियन डॉलर तक पहुंच सकता है। इसके अलावा, 2021 तक 40% भारतीय आबादी के लिए, कृषि आय का प्राथमिक स्रोत बनी हुई है।
एक तरफ़, कृषि क्षेत्र की चुनौतियों से निपटने और अवसरों का लाभ उठाने के लिए इंटरनेट ऑफ़ थिंग्स(Internet of Things), आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस(Artificial Intelligence), ड्रोन(Drones), प्लांट साइंस(Plant science) अर्थात, वनस्पति विज्ञान और हाइड्रोपोनिक्स(Hydroponics) को अपनाने पर महत्वपूर्ण जोर दिया जा रहा है। इन प्रौद्योगिकियों का उद्देश्य, उत्पादकता को बढ़ाना और जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न, खतरों को कम करना है। इससे, भारतीय कृषि की दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित हो सकें।
इसके अतिरिक्त, सुप्रबंधित अनुबंध खेती, कृषि में उत्पादन, विपणन के समन्वय और इन्हें बढ़ावा देने काएक प्रभावी तरीका है। फिर भी, असमान पक्षों जैसे – कंपनियां, सरकारी निकाय या व्यक्तिगत उद्यमी और आर्थिक रूप से कमज़ोर किसानों – के बीच, यह एक समझौता है। हालांकि, यह एक ऐसा दृष्टिकोण है, जो किसानों के लिए, बढ़ी हुई आय और प्रायोजकों के लिए, उच्च लाभप्रदता, दोनों में योगदान कर सकता है। जब इसे, कुशलतापूर्वक व्यवस्थित और प्रबंधित किया जाता है, तो अनुबंध खेती, खुले बाज़ार में फ़सल खरीदनेऔर बेचने की तुलना मेंदोनों पक्षों के लिए, जोखिम और अनिश्चितता को कम करती है।
•किसानों के लिए, अनुबंध खेती के मुख्य संभावित लाभ, निम्नलिखित हैं:
१.निवेश और उत्पादन सेवाओं का प्रावधान;
२.ऋण तक पहुंच;
३.उपयुक्त प्रौद्योगिकी का परिचय;
४.कौशल हस्तांतरण;
५.गारंटीकृत और निश्चित मूल्य निर्धारण संरचनाएं और
६.विश्वसनीय बाज़ारों तक पहुंच।
•अनुबंध खेती से, जुड़ी संभावित समस्याओं में निम्नलिखित बातें शामिल हैं:
१.बढ़ा हुआ जोखिम;
२.अनुपयुक्त प्रौद्योगिकी और फ़सल असंगति
३.कोटा और गुणवत्ता विनिर्देशों में हेरफ़ेर,
४.भ्रष्टाचार,
५.एकाधिकार द्वारा प्रभुत्व और
६.ऋणग्रस्तता और अग्रिम लोगों पर अत्यधिक निर्भरता।
इन संभावित समस्याओं कोआमतौर परकुशल प्रबंधन द्वारा कम किया जा सकता है, जो किसानों के साथ, अक्सर परामर्श करता है और क्षेत्र के संचालन की बारीकी से निगरानी करता है।
एक तरफ़, किसानों की मदद के लिए, सरकार भी कुछ प्रावधान करती है। 1960 के दशक की शुरुआत में, भारत अनाज की भारी कमी का सामना कर रहा था। तब, हरित क्रांति की शुरुआत के रूप में नई कृषि नीतियों का जन्म हुआ। 1964 में सरकार ने किसानों से लाभकारी कीमतों पर खाद्यान्न खरीदने और सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से इसे उपभोक्ताओं को वितरित करने एवं खाद्य सुरक्षा के लिए, बफर स्टॉक बनाए रखने हेतु, भारतीय खाद्य निगम की स्थापना की थी।
खाद्यान्न खरीदने के लिए, मूल्य निर्धारण पर एक नीति होनी चाहिए। अतः, 1965 में कृषि वस्तुओं की मूल्य निर्धारण नीति और अर्थव्यवस्था पर इसके प्रभाव पर,सलाह देने के लिए, एक कृषि मूल्य आयोग की स्थापना की गई थी।
तभी, सरकार की मूल्य समर्थन नीति आई, जिसने कृषि उत्पादकों को कृषि कीमतों मेंभारी गिरावट के खिलाफ़, एक अचूक समाधान प्रदान किया। न्यूनतम गारंटीकृत कीमतें, एक ऐसी सीमा निर्धारित करने के लिए, तय की जाती हैं, जिसके नीचे, बाज़ार कीमतें नहीं गिर सकतीं हैं। यदि, कोई इस मूल्य पर उत्पाद नहीं खरीदता है तो सरकार, इस न्यूनतम गारंटीकृत कीमतों पर,स्टॉक खरीदती है। तब से इसे ही, ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य या एमएसपी(MSP)’ के नाम से जाना जाने लगा।
इस नीति ने, 1974-76 के आसपास, अपना अंतिम रूप ले लिया। एमएसपी, उत्पादकों के निवेश निर्णयों के लिए, दीर्घकालिक गारंटी के रूप मेंकार्य करता है। न्यूनतम समर्थन मूल्य या एमएसपी(MSP)’, इस आश्वासन के साथ आया था कि, बंपर फ़सल होने की स्थिति में भीकीमतें, एक निश्चित स्तर से नीचे नहीं गिरेंगी।
कृषि प्रणाली को वित्तीय स्थिरता प्रदान करने और उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिए, एमएसपी की शुरुआत की गई थी। बुआई की ऋतु की शुरुआत में, भारत सरकार द्वारा, कृषि लागत और मूल्य आयोग की सिफ़ारिशों के आधार पर, 23 फ़सलों के लिए, एमएसपी की घोषणा की जाती है।
फिर भी, लाभकारी कृषि आय की कमी, वर्षों से चिंता का विषय रही है। कृषि उपज की बहुतायत सहित, विभिन्न कारणों से पिछले कुछ वर्षों में, देश भर में, कई विरोध प्रदर्शन हुए हैं। लेकिन, चावल और गेहूं के रिकॉर्ड उत्पादन के बावज़ूद , लाभकारी कृषि कीमतों की चिंता बनी हुई है। एमएसपी शासन के तहत, ये दोनों, सबसे अधिक खरीदी जाने वाली फ़सलें हैं। एमएसपी, किसानों को बाज़ार मूल्य में उतार-चढ़ाव से बचाने के लिएबनाई गई थी। वह अकेले, बेहतर कृषि आय की गारंटी नहीं दे सकती है। इसलिए, आवश्यकता, सेवाओं की एक ऐसी श्रृंखला की है, जो किसानों की आय वृद्धि में सुधार कर सकती है और उन्हें, विविधता लाने में मदद कर सकती है।

संदर्भ
https://tinyurl.com/yeyerxzv
https://tinyurl.com/nhkevez8
https://tinyurl.com/59djstje
https://tinyurl.com/25mfwdc8

चित्र संदर्भ
1. खेतों में काम करती महिलाओं को संदर्भित करता एक चित्रण (Pexels)
2. स्ट्रॉबेरी के साथ एक महिला किसान को संदर्भित करता एक चित्रण (Pexels)
3. खेतों में उर्वरक छिड़कती महिला को संदर्भित करता एक चित्रण (Pexels)
4. आधुनिक कृषि तकनीक का उपयोग करते किसान को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)


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