पतंग का भारतीय समाज में एक अहम् स्थान है। यह यहाँ पर खिचड़ी के मौके पर उड़ाई जाती है जिसका लुत्फ़ बच्चों से लेकर बूढ़े तक लेते हैं। जौनपुर जिले में पतंग एक बड़े कारोबार के रूप में प्राचीन काल से ही चले आ रही है। यहाँ पर बड़े पैमाने पर पतंगें तैयार की जाती हैं जो प्रदेश भर में बेचने हेतु भेजी जाती हैं। यदि हम पतंग के इतिहास पर नजर डालते हैं तो पतंग उड़ाने का इतिहास 3,000 वर्षों से अधिक है। 14 वीं शताब्दी ईसा पूर्व में ग्रीक साहित्य में पतंग उड़ाने के बारे में उल्लेख है। बाद में पतंग ग्रीस से बाहर गयी और चीन, मंगोलिया और यूरोप की यात्रा की। ऐसा माना जाता है कि चीन के बौद्ध विहारों ने कोरिया और जापान में पतंगों का प्रसार शुरू किया था। रेशम मार्ग को अरब और उत्तरी अफ्रीका में पतंग के प्रसार के लिए जिम्मेदार माना गया था। पुर्तगाली व्यापारियों और डच को यूरोप में पतंग उड़ाने के लिए जिम्मेदार माना जाता है। अन्य सिद्धांतों से पता चलता है कि आक्रमणकर्ता चंगेज खान और उनके मंगोलियाई योद्धा अपने साथ पतंग लाये थे।
पतंग का हमेशा भारत के इतिहास में एक विशेष स्थान था और जब उस समय के दौरान मंगोलों ने भारत पर हमला किया था तब पतंगे यहाँ पर बड़ी मात्र में आयी हालांकि पतंग भारत में अस्तित्व में थी। शब्द 'पतंग' और 'गुड्डी' का उल्लेख भारतीय साहित्य में मिलता है। मणान द्वारा 'मधुमट्टी' में, पतंग का एक उल्लेख है, एक पतंग की उड़ान कवि द्वारा प्यार के साथ जोड़ी गयी है। मराठी कवियों एकनाथ और तुकाराम ने भी उनके छंदों में पतंग का वर्णन किया है जहां शब्द 'वाध्दी' का प्रयोग किया गया है। हाथ में रखी एक धागे से जुडी कागज पतंगों का उल्लेख किया गया है और गुड्डी का अन्य साहित्यिक कार्यों में उड़ाने का भी उल्लेख है, जो दर्शाता है कि पतंगों ने भारत में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। मुगल काल (1526-1857) के दौरान पतंग भारतीय संस्कृति के भीतर घर कर गयी थी। मुगल बादशाहों - बाबर, अकबर और शाहजहां के समय मुगल सम्राट पतंग प्रतियोगिताओं के साथ-साथ शतरंज के संरक्षक भी थे, जो अच्छे मौद्रिक पुरस्कारों वाले सर्वोत्तम खिलाड़ियों को पुरस्कृत करते थे। उन्होंने पतंग को खुद उड़ाने की बजाय अपने निजी घरों की खिड़कियों से उन्हें उड़ते देखा क्योंकि वे मानते थे कि राजकुमार इस तरह के खेल के मैदान में नहीं खेलते। उत्तर प्रदेश पतंग बनाने और पतंग उड़ाने के लिए अच्छी तरह से जाना जाता है, वास्तव में भारत की पतंग राजधानी माना जाता है। यहां पतंग की लोकप्रियता ने उन्हें पंजाब, पश्चिम बंगाल, दिल्ली, गुजरात, राजस्थान और यहां तक कि दक्षिण में कर्नाटक की यात्रा करने के लिए भी प्रेरित किया।
जौनपुर में पतंग का व्यापार विगत कुछ वर्षों में बड़ी तेजी से गिरा है जिसका प्रमुख कारण है लोगों में पतंग उड़ाने की उदासीनता। यहाँ पर खिचड़ी के दौरान पतंग उड़ाने की प्रतियोगिताएं करायी जाती हैं जहाँ पर देश भर से पतंगबाज़ आते हैं और अपने हुनर को प्रदर्शित करते हैं।
1. अ काईट जर्नी थ्रू इंडिया, टाल स्ट्रीटर, 1996
2. http://www.dsource.in/resource/kites/history
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