किसी भी धार्मिक अनुष्ठान या कोई भी शुभ कार्य करने के दौरान माथे पर कुमकुम, रोली का चन्दन लगाया जाता है। तिलक का रंग जाति, धर्म, सम्प्रदाय आदि के अनुसार होता है तथा ईश्वर के अनुसार भी, कि तिलक लगाने वाला किस ईश्वर का अनुयायी है। शुरूआती समय में चार वर्ण (जाति) की मान्यता थी जिसे रंग के आधार पर विभाजित किया गया था- ब्राहमण, क्षत्रिय, वैश्य व शुद्र, इन सभी जातियों में तिलक अलग अलग प्रकार से लगाया जाता था। जैसा कि वर्णों के उत्पत्ति को ऋग्वेद के पुरुष मंडल में श्लोक के माध्यम से बताया गया है-
ब्राह्मणों अस्य मुखजा बाहू: राजन्य कृतः उरु तदस्य वैश्य: पदभ्याम शुद्रो जायते
इस श्लोक में वर्णों की उत्पत्ति को ब्रम्हा के शरीर से बताया गया है वहीं अन्य श्लोक के अनुसार वर्णों की उत्पत्ति रंग के आधार पर बताई गयी है।
ब्राहमण अपने माथे पर सफ़ेद चन्दन लगाता था जो कि शुद्धता का प्रतीक है, तथा उसका कार्य पठन-पाठन व पूजा-पाठ से सम्बंधित था। क्षत्रिय अपने माथे पर कुमकुम लगाते थे जो कि लाल रंग का होता है और यह दृढ निश्चय का प्रतीक होता है। वैश्य पीले रंग का तिलक लगाते थे जो कि समृद्धि का प्रतीक है जैसा कि वैश्य व्यापार व धन के संचयन से सम्बन्ध रखते थे। शूद्रों द्वारा काले रंग का भस्म या कोयला लगाया जाता था जो कि उपरोक्त तीन वर्णों के समर्थन का प्रतीक था। तिलक के भी कई रूप व प्रकार होते हैं जैसे कि ‘यू’ (‘U’) आकार का तिलक विष्णु को पूजने वाले, भस्म का त्रिपुन्द्र तिलक शिव को पूजने वाले लगाते हैं। देवी के उपासक लाल रंग का तिलक लगाते हैं। तिलक बुरी शक्तियों से सुरक्षा प्रदान करता है तथा यह ईश्वर के आशीर्वाद के रूप में कार्य करता है।
मानव शरीर विद्युतीय तरंगो के आधार पर कार्य करता है तथा माथे पर दोनों भौहों के मध्य का स्थान केंद्र के रूप में माना जाता है। यही कारण है कि किसी भी प्रकार की चिंता होने पर सर में दर्द होने लगता है। तिलक माथे को शाँत रखता है और ऊर्जा के श्राव को रोकता है। कभी-कभी पूरा माथा चन्दन या भस्म से ढक दिया जाता है।
1. इन इंडियन कल्चर व्हाई डू वी... – स्वामिनी विमलानान्दा, राधिका कृष्णकुमार
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