जौनपुर का हर नागरिक, इस बात से तो सहमत होगा ही कि, बारिश के बिना, जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। लेकिन, क्या आपने कभी ‘अम्लीय वर्षा’ के बारे में सुना है? अम्लीय वर्षा, या अम्लीय जमाव, एक व्यापक शब्द है, जिसमें सल्फ़्यूरिक अम्ल(Sulfuric acid) या नाइट्रिक अम्ल(Nitric acid) जैसे, अम्लीय घटकों के साथ, किसी भी प्रकार की वर्षा शामिल होती है। इसमें बारिश, बर्फ़, कोहरा, ओले या यहां तक कि, अम्लीय धूल भी, शामिल हो सकती है । तो चलिए, आज अम्लीय वर्षा और इसके कारणों के बारे में, विस्तार से जानें। इसके अलावा, हम पर्यावरण पर अम्लीय वर्षा के नकारात्मक प्रभावों पर चर्चा करेंगे। हम देखेंगे कि, यह मानव निर्मित घटना, मनुष्यों, जानवरों, जल निकायों और जंगलों को कैसे प्रभावित करती है। आगे, हम यह समझने की कोशिश करेंगे कि, समय के साथ, ताज महल का संगमरमर पत्थर पीला क्यों होता जा रहा है। इसे समझते समय, हम ताज महल की सुंदरता को, नष्ट करने में, अम्लीय वर्षा की भूमिका के बारे में जानेंगे। अंत में, हम उन उपायों पर कुछ प्रकाश डालेंगे, जो अम्लीय वर्षा से बचने और इसे नियंत्रित करने के लिए, अपनाए जा सकते हैं।
अम्लीय वर्षा, तब होती है, जब सल्फ़र डाइऑक्साइड(Sulfur dioxide) और नाइट्रोजन ऑक्साइड(Nitrogen oxides), वायुमंडल में उत्सर्जित होते हैं, एवं हवा और वायु धाराओं द्वारा प्रसारित होते हैं। ये यौगिक, पानी, ऑक्सीजन और अन्य रसायनों के साथ प्रतिक्रिया करके, सल्फ़्यूरिक और नाइट्रिक अम्ल बनाते हैं। और तब, ज़मीन पर गिरने से पहले, वे पानी और अन्य सामग्रियों के साथ मिल जाते हैं।
जबकि, अम्लीय वर्षा का कारण बनने वाले, सल्फ़र डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड, का एक छोटा हिस्सा, ज्वालामुखी जैसे प्राकृतिक स्रोतों से आता है, लेकिन, इसका अधिकांश हिस्सा, जीवाश्म ईंधन के जलने से आता है।
वायुमंडल में इन यौगिकों के प्रमुख स्रोत निम्नलिखित हैं:
1.) बिजली उत्पन्न करने के लिए, जीवाश्म ईंधन को जलाना: वायुमंडल में, दो तिहाई सल्फ़र डाइऑक्साइड और एक चौथाई नाइट्रोजन ऑक्साइड, विद्युत ऊर्जा जनरेटर से आते हैं। हालांकि, वाहन और भारी उपकरणों से भी, इनका उत्सर्जन होता है ।
2.) विनिर्माण, तेल रिफ़ाइनरियां और अन्य उद्योग, भी इनके उत्सर्जन के लिए, ज़िम्मेदार हैं।
3.) हवाएं, सल्फ़र डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड को, लंबी दूरी तक उड़ा सकती हैं। इससे, अम्लीय वर्षा, सभी के लिए एक समस्या बन जाती है, और न केवल उन लोगों के लिए, जो इसके स्रोतों के करीब रहते हैं।
पर्यावरण पर पड़ने वाले अम्लीय वर्षा के हानिकारक प्रभाव, निम्नलिखित हैं –
1.) मनुष्यों पर प्रभाव: यदि आप, समय के साथ, नाइट्रिक और सल्फ़्यूरिक अम्ल की उच्च सांद्रता के संपर्क में हैं, तो यह निम्नलिखित समस्याओं का कारण बन सकता है।
ए.) एक या दोनों अम्लों के संपर्क से, हमारी आंखों, त्वचा और श्लेष्मा झिल्ली में जलन हो सकती है।
बी.) यदि आप, नाइट्रिक एसिड में सांस लेते हैं, तो फेफड़ों में, तरल पदार्थ या पल्मोनरी एडिमा(Pulmonary edema) हो सकती है।
सी.) यदि, यह अम्ल आपके दांतों के इनेमल(Enamel) को खराब कर देता है, तो दांतों का क्षरण हो सकता है ।
डी.) श्वसन संबंधी बीमारियां भी, इन अम्लों के संपर्क से हो सकती हैं। इनमें, क्रोनिक ब्रोंकाइटिस(Chronic bronchitis), निमोनिया और अस्थमा शामिल हैं।
ई.) साथ ही, हृदय रोग जैसी, हृदय संबंधी समस्याएं भी, अम्लीय संपर्क का परिणाम हो सकती हैं।
2.) जलीय जानवरों पर प्रभाव: वे जानवर, जो झीलों, नदियों और झरनों जैसे, जलीय वातावरण में रहते हैं, अम्लीय वर्षा से सबसे अधिक प्रभावित होते हैं। सभी जानवर, अम्लता के प्रति संवेदनशील नहीं होते हैं। क्लैम(Clams) और घोंघे जैसे प्राणियों को, जीवित रहने के लिए, कम से कम, 6 पीएच(pH) की आवश्यकता होती है। जबकि, कई प्रजातियों के बच्चे, अक्सर वयस्कों की तरह, अम्लता को संभाल नहीं पाते हैं। एक वयस्क मछली, कम पीएच (अधिक अम्लीय) वाले पानी को संभालने में सक्षम हो सकती है, लेकिन, उनके अंडे, अधिक अम्लीय पानी में फूट नहीं सकते।
3.) जल निकाय: अम्लीय वर्षा, झीलों, नदियों और झरनों के खतरों को, काफ़ी बढ़ा सकती है। जब अम्लीय वर्षा, ज़मीन पर गिरती है, और मिट्टी में प्रवाहित होती है, तो यह, आसपास की मिट्टी से एलुमिनियम(Aluminum) को अवशोषित कर लेती है। फिर यह झीलों, नदियों और झरनों में बह जाता है, और वहां रहने वाले प्राणियों के लिए, पानी को ज़हरीला बना सकता है।
4.) पौधे और वन: अम्लीय वर्षा, कैल्शियम(Calcium) और मैग्नीशियम(Magnesium) जैसे पोषक तत्वों को नष्ट कर सकती है, जो पेड़ों को स्वस्थ रखते हैं। यह एलुमिनियम को भी अवशोषित करती है, जिससे, पेड़ों के लिए, ज़मीन से पानी प्राप्त करना कठिन हो जाता है। अधिक ऊंचाई पर स्थित, पेड़ों पर, अम्लीय बादलों और कोहरे का भी, खतरा अधिक होता है।
इसके अलावा, अम्लीय वर्षा, स्मारकों व इमारतों के लिए भी हानिकारक साबित होती है।
इसी कड़ी में, चलिए जानते हैं कि, ताज महल, पीला क्यों पड़ रहा है? ताज महल के पीले होने का सबसे आम कारण, लोहा है, जो पानी, अम्ल या ब्लीच(Bleach) के संपर्क में आने पर, ऑक्सीकरण (oxidation) करना शुरू कर देता है, और संगमरमर को पीला कर देता है।
इसके अतिरिक्त, मथुरा में, स्थानीय कारखानों और तेल रिफ़ाइनरियों से होने वाला वायु प्रदूषण भी, इसके लिए ज़िम्मेदार है। ये कारखाने, सल्फ़र डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड जैसे प्रदूषक पैदा करते हैं। ये यौगिक वायुमंडलीय ऑक्सीजन के साथ, प्रतिक्रिया करते हैं। फिर, ये गैसें, हवा में मौजूद, पानी के अणुओं के साथ, प्रतिक्रिया करके सल्फ़्यूरिक और नाइट्रिक अम्ल बनाती हैं। ये अम्ल फिर अम्लीय वर्षा के रूप में ताज महल पर गिरते हैं।
अम्लीय वर्षा, ताज महल की बाहरी परत को नष्ट कर देती है। इससे, सफ़ेद संगमरमर पीला हो जाता है, और इसमें दरारें भी पड़ जाती हैं। अम्लीय वर्षा में मौजूद अम्ल, संगमरमर के कैल्शियम कार्बोनेट(Calcium carbonate) के साथ, प्रतिक्रिया करते हैं, और इसे ख़राब कर देते हैं। इस घटना को ‘संगमरमर कैंसर’ भी कहा जाता है, जो धीरे-धीरे संगमरमर को नष्ट कर देता है। इसके अलावा, ताज महल के निकटवर्ती शहरों में, 2000 मीट्रिक टन कचरा नालों में डाला जा रहा है। यह कचरा, अंततः यमुना नदी में मिल जाता है, जिससे दुनिया की सबसे खूबसूरत मानव निर्मित कृतियों में से एक, धीरे-धीरे धूमिल हो रही है।
ऐसे प्रभावों को जानकर, हम इन्हें कम करने के बारे में सोचने लगते हैं। अतः, जानें कि, अम्लीय वर्षा को कैसे नियंत्रित करें?
1.) एसिड न्यूट्रलाइज़ेशन (Acid Neutralization):
ए.) बफ़रिंग(Buffering): इसमें कोई न्यूट्रलाइज़िंग पदार्थ मिलाकर, अम्लीय पानी का पीएच बढ़ाना शामिल है । आमतौर पर, चूने के दो रूपों – कैल्शियम ऑक्साइड और कैल्शियम कार्बोनेट, का उपयोग, इस हेतू किया जाता है।
बी.) चूने का प्रयोग या लाइमिंग(Liming): मार्ल(Marl), चाक, चूना पत्थर, जला हुआ चूना, या हाइड्रेटेड चूने, जैसे, कैल्शियम और मैग्नीशियम युक्त पदार्थों का मिट्टी में, विभिन्न रूपों में उपयोग करना चाहिए। क्योंकि, ये पदार्थ आम तौर पर, अम्लीय मिट्टी में, क्षारीय पदार्थों (Basic compounds) के रूप में प्रतिक्रिया करते हैं, और अम्लता को बेअसर करते हैं।
सी.) स्ट्रीम लाइमिंग: इसमें, धारा या नदी के पानी में, सीधे बारीक कण वाला चूना या अन्य बफ़रिंग खनिज मिलाना शामिल है। इससे तेज़ एसिड न्यूट्रलाइज़ेशन और पानी के पीएच में तदनुरूप वृद्धि होती है।
2.) क्लीनर(Cleaner) कारें: कारों में उपयोग की जाने वाली, प्रौद्योगिकियों में से एक, उत्प्रेरक कनवर्टर(Catalytic converter) है। मशीनरी की इस तकनीक का उपयोग, 20 वर्षों से अधिक समय से, वाहनों द्वारा उत्पादित नाइट्रोजन ऑक्साइड की मात्रा को कम करने के लिए, किया जा रहा है। कारें, प्राकृतिक गैस और इलेक्ट्रिक वाहनों जैसे, स्वच्छ ईंधन पर भी चल सकती हैं।
3.) फ़्लू-गैस डीसल्फराइज़ेशन (FGD – Flue-gas desulfurization): यह प्रौद्योगिकियों का एक उपाय है, जिसका उपयोग, जीवाश्म-ईंधन बिजली संयंत्रों के निकास – फ़्लू गैसों के साथ-साथ, अन्य ऑक्साइड-उत्पादक प्रक्रियाओं, जैसे अपशिष्ट भस्मीकरण से डाइऑक्साइड (SO2) को हटाने के लिए किया जाता है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/496cr374
https://tinyurl.com/44deaz3d
https://tinyurl.com/27ev93s9
https://tinyurl.com/dcmc23r
चित्र संदर्भ
1. ताजमहल को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. एसिड रेन के स्रोत को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. बारिश की बूंदों को संदर्भित करता एक चित्रण (Pexels)
4. नज़दीक से ताजमहल को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)