जौनपुर का प्राचीन इतिहास काल के परदे के पीछे छुपा हुआ है। बहुतायता से उपलब्ध लिखित और पुरातात्विक साक्ष्यों के अनुसार जौनपुर की प्राचीनता को हम महाभारत-रामायण काल तथा महाजनपद के समयकाल तक पीछे ले जा सकते हैं लेकिन मान्यता है कि भर, राजभर, शोरी यहाँ पर प्रागैतिहासिक काल से व्यवसाय में थे। पुरातात्विक अन्वेषण और अनुसंधान के बिनह पर यह सूचित किया जाता है कि आज का जौनपुर जिला जो वाराणसी विभाग के पश्चिमोत्तर क्षेत्र में स्थित है वह कोसल और वत्स महाजनपदों का हिस्सा था। सई नदी जिसका पुराना नाम शायद स्यन्दिका अथवा सुन्दरिका था उसके दक्षिण तट का भाग थी।
भर, राजभर, शोरी यहाँ के मूलनिवासी माने जाते हैं और पुरातत्वशास्त्र के अनुसार यहाँ पर दिखाई देने वाले प्राचीन माटी के टीले इसका साक्ष्य देते हैं। ये जो टीले हैं वह इन मूलनिवासियों के वस्ती स्थान माने जाते हैं तथा स्थानीय धारणा के अनुसार इन टीलों पर किसी भी प्रकार का निर्माण करना निषेध है। भर उपनाम सभी मूलनिवासी उपनामों के लिए इस्तेमाल किया गया है लेकिन मूलतत्व और उनकी धारणाओं में अलग है। मछलीशहर का पुराना नाम घिसवा था जो एक भर सरदार घिसु के नाम पर रखा गया था, मछलीशहर की स्थापना उसने की थी। बहुत से भर आज विभिन्न हिन्दू जाती में सम्मिलित हो चुके हैं और अब उनके रूढ़ि और रीति-रिवाज़ का पालन करते हैं।
1. गज़ेटियर ऑफ़ इंडिया, उत्तर प्रदेश, जौनपुर 1986
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