City Subscribers (FB+App) | Website (Direct+Google) | Total | ||
1679 | 80 | 1759 |
***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions
गड़वाल (Gadwall), इंडियन स्पॉट-बिल्ड डक(Indian Spot-billed Duck), नॉर्दर्न पिंटेल(Northern Pintail) और कॉमन टील(Common Teal), हमारे शहर जौनपुर में पाए जाने वाले, कुछ सबसे आम पक्षी हैं। हालांकि, आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि, कुछ ऐसे जानवर भी जीवित हैं, जिनका डायनासौर (Dinosaur) से संबंध है। मुर्गियों जैसे पक्षी, दो पैरों वाले डायनासौर से संबंधित हैं, जिन्हें थेरोपोड(Theropods) के नाम से जाना जाता है। थेरोपोड में शक्तिशाली टिरैनोसौरस रेक्स(Tyrannosaurus rex) और छोटे वेलोसिरैप्टर(Velociraptors) शामिल हैं। तो, आज हम उन पक्षियों के बारे में बात करेंगे, जो डायनासौर से संबंधित हैं। आगे, हम उन जानवरों के बारे में चर्चा करेंगे, जो डायनासौर के साथ सह-अस्तित्व में थे। उसके बाद, हम चर्चा करेंगे कि, कुछ डायनासौर पक्षियों में कैसे विकसित हुए। अंत में हम डॉ. सलीम अली के बारे में जानेंगे, जो भारत के पहले पक्षी विज्ञानी थे ।
निम्नलिखित पक्षी अपने डायनासोर पूर्वजों की तरह दिखते हैं:
1.) हेल्मेटेड हॉर्नबिल(Helmeted Hornbill): हेल्मेटेड हॉर्नबिल अपनी विशिष्ट सिर रचना और प्रागैतिहासिक उपस्थिति के साथ, कुछ की छवियों को उजागर करता है। दक्षिण पूर्व एशिया के वर्षावनों के मूल निवासी, इस पक्षी के सिर पर एक ठोस केराटिन(Keratin) आवरण होता है। इस आवरण का आकार और पक्षी का समग्र कद, कुछ डायनासौर प्रजातियों से काफ़ी मिलता-जुलता है।
2.) द ग्रेट टीनमौ(The Great Tinamou): द ग्रेट टीनमौ का मज़बूत गोल शरीर और पैर विकास के उत्पाद हैं, जो इस पक्षी को उसके थेरोपोड पूर्वजों की तरह आश्चर्यजनक चपलता के साथ दौड़ने में सक्षम बनाते हैं। इनके घोंसले बनाने की आदतें भी, एक आदिम विशेषता को दर्शाती हैं, जिसमें नर अंडे सेने और बच्चों को अकेले पालने की भूमिका निभाते हैं, जो कि कुछ डायनासौर प्रजातियों में देखी गई है।
3.) होटज़िन(Hoatzin): होटज़िन, अमेज़ॉन वर्षावन में पाया जाने वाला एक अनोखा पक्षी है। होटज़िन चूज़े अपने पंखों पर पंजों के साथ पैदा होते हैं, जो 150 से 125 मिलियन वर्ष पहले विलुप्त हो चुके आर्कियोप्टेरिक्स(Archaeopteryx) की याद दिलाते हैं, जिसे अस्तित्व में आने वाला पहला पक्षी माना जाता है।
4.) मुर्गियां: मुर्गियां अपने प्रागैतिहासिक पूर्वज – टिरेनोसौरस रेक्स के साथ एक आकर्षक संबंध रखती हैं। इनका साझा वंश एवियन परिवार(Avian family) निहित है, जहां मुर्गियां एव्स(Aves) से संबंधित हैं। इसलिए, मुर्गियां थेरोपोड डायनासौर के जीवित वंशज हैं।
5.) कीवी(Kiwi): कीवी, अपनी अत्यधिक अनुकूलित इंद्रियों के साथ अंधेरे में खोज करते हैं । इसकी नासिका इसकी चोंच की नोक पर स्थित होती है, जो पक्षियों के बीच एक अनोखी विशेषता है। यह संवेदी अनुकूलन कुछ थेरोपोड्स की याद दिलाते हैं, जो शिकार या चारा खोजने के लिए गंध की गहरी भावना पर निर्भर रहे होंगे।
6.) दक्षिणी कैसोवरी(Southern Cassowary): अपने चमकीले नीले पंखों और प्रमुख कलगी के साथ, दक्षिणी कैसोवरी की उपस्थिति को आसानी से मीसोज़ोइक युग(Mesozoic era) का प्राणी समझा जा सकता है। खंजर जैसे पंजों के साथ, यह अपनी और शक्तिशाली लात से अपना बचाव करने में सक्षम है। कैसोवरी का फल-आधारित आहार है और उनके बीज फैलाने की भूमिका एक प्राचीन सहजीवन को दर्शाती है, जो संभवतः कुछ शाकाहारी डायनासौरों द्वारा निभाई गई पारिस्थितिक भूमिकाओं के समान है।
जी हां, कुछ प्राणी उस समय भी, डायनासौरों के साथ सहजीवन में थे। ऐसे कुछ वर्तमान में जीवित प्राण, जो डायनासौर के साथ सह-अस्तित्व में थे, निम्नलिखित है:
1.) मगरमच्छ: डायनासौरों के समय, मगरमच्छ भी बहुतायत में थे। वास्तव में, क्रेटेशियस काल(Cretaceous period) सरकोसुचस, ड्रायोसॉरस, डाइनोसुचस, शील्डक्रोक और अन्य विशाल मगरमच्छों का गवाह है।
2.) सांप: सांपों के सबसे पहले ज्ञात जीवाश्म 140 से 167 मिलियन वर्ष पूर्व के हैं, जिससे पता चलता है कि, उनका आगमन डायनासौर युग के मध्य में हुआ था। और हां, ये सांप, डायनासौरों के बच्चों का शिकार भी करते थे!
3.) मधुमक्खियां: जब डायनासौर पृथ्वी पर थे, तब मधुमक्खियां भी अस्तित्व में थीं । वे पहली बार क्रेटेशियस काल के दौरान, लगभग उसी समय प्रकट हुई थीं, जब पहले फूल वाले पौधे खिलना शुरू हुए।
4.) शार्क: शार्क, डायनासौरों के अस्तित्व में आने से पहले से ही, अर्थात, लगभग 450 मिलियन वर्षों से महासागरों में मौजूद हैं। क्रेटेशियस काल के दौरान, वे संभवतः विशाल स्पिनोसॉरस एजिपटियाकस (Spinosaurus aegyptiacus) का शिकार थीं ।
5.)हरे समुद्री कछुए: माना जाता है कि, सबसे पहले समुद्री कछुए जुरासिक काल(Jurassic period) के दौरान दिखाई दिए थे। लेकिन, 100 मिलियन वर्ष पहले क्रेटेशियस काल तक वे विकसित नहीं हुए थे। हालांकि, प्रागैतिहासिक कछुए विलुप्त होने तक डायनासौर के साथ सह-अस्तित्व में थे।
यहां आपको प्रश्न पड़ सकता है कि, डायनासौर पक्षियों में कैसे विकसित हुए?
दरअसल, इसकी शुरुआत 1960 के दशक में डाइनोनीचस(Deinonychus) की खोज के साथ हुई, जो एक छोटा शिकारी डायनासौर था। यह लगभग 115 मिलियन वर्ष पहले पृथ्वी पर रहता था। यह पक्षियों के साथ अद्वितीय रूप से समान था। साथ ही, यह एक बुद्धिमान व तेज़ गति से चलने वाले शिकारी के रूप में भी प्रसिद्ध था। पुराने नमूनों पर नए संशोधन, तथा क्षेत्र में डायनासौर और प्रारंभिक पक्षी प्रजातियों की खोज ने इस विचार का समर्थन किया कि डायनासौर पक्षियों के प्रत्यक्ष पूर्वज थे।
शायद सबसे अधिक आश्चर्य की बात, पंख वाले डायनासौर थे। हमनें ऊपर, होटज़िन का उदाहरण देखा ही है । वास्तव में, डायनासोर ने आर्कियोप्टेरिक्स की उपस्थिति से बहुत पहले ही, पक्षियों जैसी विशेषताओं को विकसित किया था। दरअसल, लेट जुरासिक जीवाश्म(Late Jurassic fossil) को आमतौर पर सबसे प्रारंभिक पक्षी माना जाता है। फिर, क्रमिक विकासवादी परिवर्तन – तेज़ी से दौड़ने वाले व जमीन पर रहने वाले, द्विपाद थेरोपोड से लेकर छोटे, पंख वाले, उड़ने वाले पक्षियों तक – संभवतः 160 मिलियन वर्ष पहले शुरू हुआ था।
उनके विकासवादी इतिहास के दौरान, कुछ थेरोपोड समूहों के शरीर का आकार धीरे-धीरे कम हो गया। यह प्रवृत्ति, कंकाल में कई अन्य परिवर्तनों के साथ, अंततः पक्षियों की उपस्थिति का कारण बनी।
आइए अब, एक दिलचस्प बात पढ़ते हैं। भारत के पहले पक्षी विज्ञानी व “बर्ड मैन ऑफ इंडिया(Bird Man of India)”, ने दृढ़ संकल्प और समर्पण के साथ दुनिया में अपनी जगह बनाई है। उन्होंने भारत में विज्ञान की इस शाखा के फलने-फूलने की नींव रखी और अपने काम के लिए पद्मभूषण और पद्मविभूषण पुरस्कार प्राप्त किया। ये कहानी डॉ. सलीम अली की है, जिनका योगदान भारत में पक्षियों पर शोध के लिए वरदान रहा है।
भारतीय पक्षीविज्ञान के पुरोधा – सलीम अली ने, भारत में आधुनिक पर्यावरणीय चेतना को भी जन्म दिया। पक्षियों का दस्तावेज़ीकरण और रिकॉर्ड करने के प्रयास में, वह देश भर में यात्रा करते थे। उन्होंने राजस्थान में भरतपुर पक्षी अभयारण्य की स्थापना और केरल में साइलेंट वैली नेशनल पार्क के विनाश को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उनकी याद में, भारत सरकार द्वारा 1990 में कोयंबटूर में सलीम अली पक्षीविज्ञान और प्राकृतिक इतिहास केंद्र (SACON) की स्थापना भी की गई थी।
साथ ही, वे भारतीय पक्षियों की पुस्तक; भारतीय उपमहाद्वीप के पक्षियों के लिए सचित्र मार्गदर्शिका व भारत और पाकिस्तान के पक्षियों की पुस्तिका आदि महत्वाकांक्षी पुस्तको के लेखक थे।
संदर्भ
https://tinyurl.com/3ke3csw2
https://tinyurl.com/ysc84ead
https://tinyurl.com/ye25dz6m
https://tinyurl.com/8ndx97wt
चित्र संदर्भ
1. आर्कियोप्टेरिक्स को दर्शाता चित्रण (Flickr)
2. टिरैनोसौरस रेक्स को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
3. हेल्मेटेड हॉर्नबिल को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. द ग्रेट टीनमौ को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. होटज़िन को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
6. मुर्गियों को संदर्भित करता एक चित्रण (Pexels)
7. कीवी को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
8. दक्षिणी कैसोवरी को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
9. मगरमच्छ को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
10. किंग कोबरा को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
11. मधुमक्खी को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
12. शार्क को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
13. हरे समुद्री कछुए को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
14. पंखों वाले डायनासौर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.