भारत में ब्रिटिश राज आने के बाद कई नयी चीजें भी आयीं जैसे कि ट्रेन, बिजली, तार आदि। इन सभी सुविधाओं को भारत में लाने का बस एक मात्र कारण था कि बड़ी संख्या में जल्द भारत के आतंरिक भागों से सामान को बंदरगाहों तक पहुचाया जा सके। जो विदेशी भारत में 17वीं शताब्दी में मात्र कुछ गिने-चुने जहाज़ों से आये थे वो 200 वर्ष गुजर जाने के बाद पूरे भारत पर कब्जा कर चुके थे और अब यहाँ के श्रोतों को बड़ी संख्या में देश के बाहर लन्दन भेज रहे थे।
सम्पूर्ण उत्तर भारत में नील अफीम आदि की खेती से ईस्ट इंडिया कंपनी बड़े मोटे तौर पर पैसे कमा रही थी। जौनपुर जिले में आज भी कितने ही अंग्रेजों द्वारा बनवाये गए नील के गोदाम खण्डहर की अवस्था में देखे जा सकते हैं। जौनपुर एक कृषक जिला आज नहीं अपितु प्राचीन काल से ही रहा है तथा यहाँ से ब्रिटिश शासन मोटी रकम वसूल करता था। यहाँ से बड़ी संख्या में काम करवाने व जिले के विभिन्न कार्यों को सुचारू रूप से चलाने के लिए एक ऐसे भवन की आवश्यकता थी जहाँ पर यह सब कार्य हो सके। जैसा कि टाउन हॉल शब्द का अभिप्राय है ‘वह स्थान जहाँ पर विभिन्न पदाधिकारी आपस में विचार विमर्श कर सकते हों’। भारत भर के तमाम प्रमुख व महत्वपूर्ण शहरों में टाउन हॉल की उपस्थिति को देखा जा सकता है जैसे मेरठ, इलाहबाद आदि।
जौनपुर का टाउन हॉल एक लाल और सफ़ेद रंग की इमारत है जो वास्तुकला के अनुसार गोथिक (Gothic) कला से प्रेरित है। यह जौनपुर के खूबसूरत भवनों में से एक है तथा इसके निर्माण कला व आकार से यह पता लगाया जा सकता है कि जौनपुर कितना महत्वपूर्ण था। वर्तमान समय में यह इमारत नगर पालिका का मुख्यालय है। इस भवन का निर्माण इलाहबाद के कमिश्नर ए.जे. लारेंस द्वारा 19वीं शताब्दी के अंत में करवाया गया था। जौनपुर उस वक़्त इलाहाबाद के आधीन हुआ करता था।
1. द इंडियन ऑफिस एंड बर्मा ऑफिस लिस्ट
2. रिकार्ड्स ऑफ़ गवर्नमेंट, नार्थ वेस्टर्न प्रोविन्सेस
3. द इम्पीरियल गजेटियर ऑफ़ इंडिया वॉल्यूम 8
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