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प्रत्येक देश में समय-समय पर जनसंख्या गणना की जाती है। हमारे देश भारत में भी अब तक कुल 15 बार जनसंख्या गणना की जा चुकी है। भारत में, पहली बार जनसंख्या गणना 1872 में की गई थी और तब से लेकर आखिरी बार 2011 में की गई थी। लेकिन यहां कुछ लोगों के मन में प्रश्न उठता है कि आखिर जनसंख्या की गणना करना इतना महत्वपूर्ण क्यों है? इसका उत्तर स्पष्टतया यह जानना है कि वर्तमान में किसी देश में कितने निवासी रहते हैं और भविष्य में उनकी संख्या कितनी बढ़ सकती है। इस जानकारी की सहायता से देश के अंदर स्कूलों, अस्पतालों और सड़कों के निर्माण जैसे बुनियादी ढांचे के संबंध में बेहतर निर्णय लिए जा सकते हैं और उनके अनुरूप योजनाएं बनाई जा सकती हैं। तो आइए आज, 'विश्व जनसंख्या दिवस' के मौके पर, यह समझने का प्रयास करते हैं कि जनसंख्या गणना क्यों आवश्यक है और हमारे देश में जनसंख्या गणना के मामले में क्या स्थिति है? इसके साथ ही ब्रिटिश अर्थशास्त्री थॉमस रॉबर्ट माल्थस द्वारा जनसंख्या पर प्रस्तुत किए गए उनके सिद्धांत 'माल्थसियन सिद्धांत' के विषय में भी जानते हैं।
थॉमस रॉबर्ट माल्थस (Thomas Robert Malthus) एक प्रभावशाली ब्रिटिश अर्थशास्त्री थे, जो 1798 में प्रकाशित हुई अपनी पुस्तक "एन एसे ऑन द प्रिंसिपल ऑफ पॉपुलेशन" (An Essay on the Principle of Population) में जनसंख्या वृद्धि पर रेखांकित किए गए अपने सिद्धांत के लिए जाने जाते हैं। अपने इस सिद्धांत में, माल्थस तर्क देते हुए लिखते हैं कि आबादी अनिवार्य रूप से केवल तब तक बढ़ती है, जब तक कि वे अपनी उपलब्ध खाद्य आपूर्ति से आगे नहीं बढ़ जाती हैं, जिससे बीमारी, अकाल, युद्ध या आपदा के कारण जनसंख्या वृद्धि उलट जाती है। उन्हें जनसंख्या वृद्धि का पूर्वानुमान लगाने के लिए उपयोग किए जाने वाले एक घातीय सूत्र को विकसित करने के लिए भी जाना जाता है, जिसे वर्तमान में 'माल्थसियन विकास मॉडल' (Malthusian growth model) के रूप में जाना जाता है। 18वीं और 19वीं सदी की शुरुआत में, कुछ दार्शनिकों का दृढ़ विश्वास था कि मानव समाज में वृद्धि जारी रहेगी। माल्थस ने इस धारणा का खंडन करते हुए तर्क दिया कि सामान्य आबादी के कुछ हिस्से ऐसे हैं जो सदैव गरीब और दुखी रहे हैं, और जिनके कारण जनसंख्या वृद्धि प्रभावी रूप से धीमी हो जाती है। 1800 के दशक की शुरुआत में इंग्लैंड (England) की स्थितियों के अपने अवलोकन के आधार पर, माल्थस ने इस बात को अपने तर्क का आधार बनाया कि बढ़ती आबादी की तुलना में फसल उत्पन्न करने के लिए कृषि भूमि अपर्याप्त थी। अपने तर्क की पुष्टि के लिए, उन्होंने कहा कि मानव जनसंख्या ज्यामितीय रूप से बढ़ती है, जबकि खाद्य उत्पादन अंकगणितीय रूप से बढ़ता है। इस प्रतिमान के तहत, वे कहते हैं कि जनसंख्या तब तक बढ़ती है, जब तक कि मनुष्यों की संख्या उनकी उत्पादन क्षमता से अधिक न हो जाए, उस बिंदु पर अकाल या किसी अन्य आपदा से जनसंख्या स्वतः कम हो जाती है और प्रबंधनीय स्तर पर वापस आ जाती है।
जनसंख्या आंकड़ों के माध्यम से किसी देश या क्षेत्र में रहने वाले लोगों की संख्या, मृत्यु और जन्म की संख्या को दर्ज़ किया जाता है। इसके साथ ही जीवन प्रत्याशा और जनसंख्या वृद्धि की भविष्यवाणी की गणना जाती है। इस जानकारी की सहायता से सरकारों को देश की वर्तमान जनसंख्या के विषय में पता चलता है। साथ ही भविष्य के लिए भी जनसंख्या का अनुमान लगाना संभव हो पाता है। इस जानकारी के आधार पर सरकारों द्वारा देश में नीति निर्माण का कार्य किया जाता है और विभिन्न प्रकार के बुनियादी ढांचों जैसे कि स्कूलों, अस्पतालों, सड़कों आदि के निर्माण के संबंध में निर्णय लिए जाते हैं। उदाहरण के लिए, पेंशन, स्वास्थ्य देखभाल आदि की योजना बनाने के लिए सरकारों को यह जानने की आवश्यकता होती है कि वर्तमान जनसंख्या के आधार पर देश में कितनी स्वास्थ्य सेवाओं की आवश्यकता है, देश में कितने बुजुर्ग हैं, जिन्हें पेंशन आदि की आवश्यकता है, कुल जनसंख्या में बच्चों की संख्या क्या है जिनके लिए वर्तमान में स्कूल आदि की आवश्यकता है और भविष्य में रोजगार की आवश्यकता होगी, आदि। हमारे देश भारत में जनसंख्या की गणना प्रत्येक 10 साल में की जाती है और 2011 तक यह 15 बार आयोजित की जा चुकी है। भारत में पहली बार जनसंख्या गणना 1872 में वायसराय लॉर्ड मेयो (Viceroy Lord Mayo) के तहत शुरू की गई थी, हालांकि देश में पहली पूर्ण जनगणना 1881 में की गई थी। 1949 के बाद, स्वतंत्र भारत में यह जनगणना भारत सरकार के गृह मंत्रालय के तहत भारत के रजिस्ट्रार जनरल और जनगणना आयुक्त द्वारा आयोजित की जाती है। 1951 के बाद से सभी जनगणनाएं 1948 के 'भारतीय जनगणना अधिनियम' के तहत आयोजित की गईं। 1948 के 'भारतीय जनगणना अधिनियम' के अनुसार, केंद्र सरकार किसी विशेष तिथि पर जनगणना करने या एक अधिसूचित अवधि में अपने आंकड़े जारी करने के लिए बाध्य नहीं है। पिछली जनगणना 2011 में हुई थी, जबकि अगली जनगणना 2021 में होनी थी, लेकिन COVID-19 महामारी के कारण इसे स्थगित कर दिया गया था।
विश्व जनसंख्या दिवस (World Population Day), जिसका उद्देश्य जनसंख्या के मुद्दों की तात्कालिकता और महत्व पर ध्यान केंद्रित करना है, की स्थापना 1989 में 'संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम' (United Nations Development Programme) की तत्कालीन गवर्निंग काउंसिल द्वारा की गई थी। दिसंबर 1990 के संकल्प द्वारा, संयुक्त राष्ट्र महासभा (United Nations General Assembly) द्वारा पर्यावरण और विकास के साथ, जनसंख्या संबंधी मुद्दों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए 'विश्व जनसंख्या दिवस' को मनाना जारी रखने का निर्णय लिया गया। यह दिवस पहली बार 11 जुलाई 1990 को 90 से अधिक देशों में मनाया गया था। तब से, 'संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष' (United Nations Population Fund (UNFPA) के कई देशों में स्थित कार्यालयों और अन्य संगठनों एवं संस्थानों द्वारा सरकारों और नागरिक समाज के साथ साझेदारी में विश्व जनसंख्या दिवस मनाया जाता है। 'संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या प्रभाग' जनसंख्या के लिए कार्यक्रमों के कार्यान्वयन और जनसंख्या विकास पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन की अनुवर्ती कार्रवाई में संयुक्त राष्ट्र प्रणाली की एजेंसियों, फंडों, कार्यक्रमों और निकायों के साथ मिलकर सहयोग करता है।
संदर्भ
चित्र संदर्भ
1. ट्रेन में सफ़र कर रहे यात्रियों को दर्शाता चित्रण (flickr)
2. थॉमस रॉबर्ट माल्थस को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. भारत में जनसँख्या वृद्धि के ग्राफ को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. भारतीयों की भीड़ को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)