City Subscribers (FB+App) | Website (Direct+Google) | Total | ||
2170 | 113 | 2283 |
***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions
आज हम सिंधु-गंगा के मैदान को समझेंगे और जानेंगे कि, कैसे जौनपुर की कृषि, पौधे और पेड़ अन्य भारतीय मैदानी इलाकों से भिन्न हैं। इस क्षेत्र में फूल वाले पौधों की 2,000-3,000 प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें, से 26 अलग-अलग प्रजातियां, अन्य क्षेत्रों में सामान्य नहीं हैं। इस क्षेत्र में कई जंगल भी हैं, जो इन पौधों को संरक्षित करने में मदद करते हैं, और इन जंगलों के भीतर, 126 देशी स्तनपायी प्रजातियां हैं। ये प्रजातियां दुधवा राष्ट्रीय उद्यान जैसे वन अभ्यारण्यों में संरक्षित हैं। हमारे राज्य उत्तर प्रदेश के सिंधु-गंगा मैदानी कृषि भूमि में ही हमारा जिला जौनपुर शामिल हैं। आइए, इसके बारे में विस्तार से पढ़ते हैं।
हमारे राज्य उत्तर प्रदेश के पूर्वी मैदानी क्षेत्र के अंतर्गत आज़मगढ़, मऊ, बलिया, फ़ैज़ाबाद, ग़ाज़ीपुर, जौनपुर, संत रविदास नगर और वाराणसी जिले आते हैं। 1,025 मिलीमीटर सामान्य वर्षा के साथ, यहां पर्याप्त वर्षा होती है। जबकि, यहां की जलवायु शुष्क उप-आर्द्र से लेकर नम उप-आर्द्र है। यहां की 70% से अधिक भूमि पर खेती की जाती है, और 80% से अधिक खेती योग्य क्षेत्र सिंचित है।
इस क्षेत्र की मिट्टी जलोढ़-व्युत्पन्न मिट्टी हैं, जिनमें अधिकतर खादर (हाल का जलोढ़) और भांगर (पुराना जलोढ़) क्षेत्र हैं। कुछ क्षेत्रों में मिट्टी अत्यधिक कैल्शियम युक्त है। साथ ही, यह मिट्टी गहरी, दोमट और कार्बनिक पदार्थ की अधिक मात्रा से युक्त होती है।
इन मैदानों में ख़रीफ़ ऋतु में चावल, मक्का, अरहर, मूंग की फ़सलें आम हैं। बरसात के बाद, रबी मौसम में गेहूं, मसूर, बंगाल चना, मटर, तिल और कुछ स्थानों पर, मूंगफली अवशिष्ट मिट्टी की नमी पर उगाई जाती है। जबकि, पूरक सिंचाई के साथ इस क्षेत्र की महत्वपूर्ण नकदी फसलें गन्ना, आलू, तम्बाकू, मिर्च, हल्दी और धनिया हैं। यहां चावल-गेहूं फसल प्रणाली अधिक प्रचलित है। फलों की फसलों में आम, अमरूद, लीची, केला और नींबू एवं सब्जियों की फसलों में आलू, प्याज, बैंगन, टमाटर, फूलगोभी और पत्तागोभी प्रमुख हैं। पूरक सिंचाई के साथ वर्षा आधारित कृषि का अभ्यास भी क्षेत्र में किया जाता है।
गर्म व आर्द्र ग्रीष्मकाल एवं ठंडी शुष्क सर्दी, इस क्षेत्र के जलवायु की विशेषता है। इस क्षेत्र में वार्षिक वर्षा 1,050-1,300 मिलीमीटर होती है। इसमें से 80% वर्षा जून से सितंबर महीनों में प्राप्त होती है। फरवरी से मई के दौरान, हालांकि इस क्षेत्र में लगभग 400-500 मिलीमीटर पानी की कमी का अनुभव होता है। मिट्टी की नमी का नियंत्रण अनुभाग या तो पूरी तरह से, या आंशिक रूप से जनवरी के मध्य से मई तक शुष्क रहता है।
इस कारण, इन मैदानों में निम्नलिखित मुख्य पौधे पाए जाते हैं–
शिकाकाई, महुआ, नीम, आम, हरड़, अदरक, सदाबहार, चौपतिरा, हल्दी, नाग चम्पा या नागकेसर, तेजपत्ता, बकुल, मौलसरी, मुलेठी, कामिनी, माधवी लता, कमल, तुलसी, आमला, चमेली, सर्पगंधा, चंदन एवं अशोक आदि।
जबकि, यहां की प्राकृतिक वनस्पति अधिकतर अर्ध-सदाबहार वन है। यहां के सबसे ऊंचे पेड़ मुख्य रूप से पर्णपाती है, जबकि, निचले पेड़ सदाबहार है। मानव हस्तक्षेप से दूर रहे जंगलों में, विशिष्ट वृक्ष बॉम्बैक्स सीइबा(Bombax ceiba) अल्बिज़िया प्रोसेरा(Albizia procera), डुआबंगा सोनेराटियोइड्स(Duabanga sonneratioides) और स्टेरकुलिया विलोसा(Sterculia villosa) हैं। हालांकि, जैसे-जैसे ये वन परिपक्व होते हैं, तो साल प्रमुख हो जाता है। लेकिन, बचे हुए अधिकांश वन मानव हस्तक्षेप के कारण, चरम अवस्था तक परिपक्व नहीं हो पाते हैं। जहां शुष्क मौसम के दौरान अक्सर आग लगती है, वहां आग प्रतिरोधी पेड़ और झाड़ियां आम हैं। लेकिन, तटवर्ती वन आम तौर पर बबूल-डालबर्गिया संघ के पेड़ों का घर है।
एक तरफ़, दुधवा राष्ट्रीय उद्यान लखीमपुर खीरी जिले में स्थित है। यह क्षेत्र उप हिमालयी क्षेत्र या तराई बेल्ट के अंतर्गत आता है। तराई क्षेत्र दुनिया भर में, सबसे अधिक लुप्तप्राय पारिस्थितिक तंत्रों में से एक है। पार्क के खूबसूरत क्षेत्र में हरे-भरे साल के जंगल, दलदल और घास के मैदान शामिल हैं। अद्भुत जंगल से भरपूर, दुधवा राष्ट्रीय उद्यान देश के सबसे जीवंत संरक्षित क्षेत्रों में से एक है।
दुधवा उद्यान जंगल के मामले में, भारत के सबसे घने राष्ट्रीय उद्यानों में से एक है। यह बाघ संरक्षण के लिए भी महत्त्वपूर्ण है।
प्रमुख भारतीय संरक्षणवादी – बिली अर्जन सिंह ने इस उद्यान को दलदली हिरण के अभयारण्य के रूप में स्थापित करने के लिए, बहुत प्रयास किया। बाद में, यह भव्य राष्ट्रीय उद्यान बाघों और तेंदुओं का भी निवास स्थान बन गया। दिलचस्प बात यह है कि, दुधवा हमारे ग्रह पर एकमात्र स्थान है, जहां 5 हिरण प्रजातियों का निवास है। इस राष्ट्रीय उद्यान के घास के मैदानों में एक सींग वाले गैंडों की भी उल्लेखनीय आबादी निवास करती है। 1984 में नेपाल और असम से दुधवा में एक सींग वाले गैंडे लाए गए थे। इसके अलावा, दुधवा नेशनल पार्क में हिस्पिड हेयर(Hispid Hare) और बंगाल फ्लोरिकन(Bengal Florican) जैसी गंभीर रूप से दुर्लभ वन्यजीव प्रजातियों को फिर से खोजा गया है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/5d2256bz
https://tinyurl.com/259vt6js
https://tinyurl.com/yc3uhxwu
https://tinyurl.com/3d9tvk2n
चित्र संदर्भ
1. अपने खेतों की जुताई करते एक किसान को दर्शाता चित्रण (
Pexels)
2. धान के खेत को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. अपने खेतों की जुताई करते एक किसान को दर्शाता चित्रण (
wikimedia)
4. दुधवा उद्यान जंगल को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.