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मिथकों को तोड़कर आर्थिक स्तर पर भी स्वतंत्र हो रही हैं, भारतीय महिलाएं

जौनपुर

 26-06-2024 09:44 AM
आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

यदि आपको कम समय में पूरे भारत की महिलाओं की स्थिति या खासतौर पर उनकी आर्थिक स्थिति को समझना है, तो आप मोटे-मोटे तौर पर हमारे जौनपुर में महिलाओं की आर्थिक स्थिति को समझ सकते हैं। पहले के समय में महिलाओं की आर्थिक स्थिति, मुख्य रूप से उनके घर के पुरुषों की आर्थिक स्थिति से पता चल जाती थी, लेकिन आज ऐसा नहीं है। आधुनिक समय की महिलाएं आर्थिक क्षेत्र में भी अपना स्वतंत्र अस्तित्व रखती हैं। हालांकि कई कारणों से इन सभी महिलाओं की आर्थिक स्थिति में एक दूसरे के बजाय थोड़ा बहुत अंतर् जरूर है। साथ ही कुछ चुनौतियाँ भी हैं, जिनके बारे में आज हम विस्तार से जानेंगे। भारत में किये गए अधिकांश शोधों में अक्सर यह देखा गया है कि “ यहाँ की महिलाएँ मुख्य रूप से पारिवारिक कारणों से ही प्रवास करती हैं।” हालाँकि, वैश्वीकरण के कारण महिलाओं के प्रवास के पैटर्न (pattern)भी बदल गए हैं। आज के समय में महिलाएं पारिवारिक कारणों के बजाय, आर्थिक अवसरों की तलाश में भी पलायन कर रही हैं। निष्कर्ष बताते हैं कि आर्थिक कारक महिला प्रवास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
भारतीय उपमहाद्वीप में प्रवासन पारंपरिक रूप से कम ही रहा है। हालांकि, भारतीय अर्थव्यवस्था में आए हाल के बदलावों, बेहतर शिक्षा, बेहतर परिवहन और संचार, और कृषि से उद्योग और सेवाओं की ओर झुकाव ने प्रवास करने की गतिशीलता को बढ़ा दिया है।
नीचे दी गई तालिका में 1971 से 2001 तक लिंग के आधार पर आजीवन और अल्पकालिक प्रवासियों (पांच साल से कम अवधि वाले) का वितरण प्रस्तुत किया गया है।

वर्ष जीवनकाल प्रवासी (लाख में) पुरुष महिला
1971 159.6 49.6 110
1981 201.6 59.2 142.4
1991 225.9 61.1 164.8
2001 309.4 90.7 218.7
स्रोत: भारत की जनगणना, 1971-2001
विकासशील देशों की महिलाएँ घरेलू काम सहित विभिन्न व्यवसायों में रोजगार पाने के लिए उच्च आय वाले देशों में प्रवास करती हैं। इस प्रवास के बारे में जानना इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय प्रवासियों में से लगभग आधी महिलाएँ होती हैं। जबकि पारंपरिक रूप से महिलाओं को प्रवास के दौरान अपने पतियों के साथ जाते देखा गया था, लेकिन आज अधिकांश वयस्क प्रवासी महिलाएँ अपने आप में कार्यरत हैं। प्रवासन आम तौर पर विभिन्न सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और पर्यावरणीय कारकों के कारण होता है।
इन कारकों का विश्लेषण करने से हमारे लिए यह समझना आसान हो जायेगा कि महिलाएँ क्यों प्रवास करती हैं। महिला और पुरुष प्रवासन के बीच सबसे उल्लेखनीय अंतर यह है कि महिलाओं के लिए विवाह एक प्राथमिक कारण है। लेकिन महिलाओं के प्रवास हेतु आर्थिक कारक भी तेजी से महत्वपूर्ण होते जा रहे हैं। कई अध्ययनों (ससीन-कूब 1984; शांति 1991; घोष 2002; सुंदरी और रुक्मणी 1998; सरदामोनी 1995) से पता चलता है कि महिलाएँ आर्थिक कारणों से भी स्वतंत्र रूप से प्रवास करती हैं। 1981 की जनगणना में महिलाओं के पलायन के पाँच मुख्य कारणों की पहचान की गई:
- रोजगार
- शिक्षा
- परिवार का स्थानांतरण
- विवाह
- अन्य कारण।
1991 की जनगणना ने प्रवासन के कारणों के रूप में व्यवसाय और प्राकृतिक आपदाए भी जुड़ गई। महिला प्रवासी श्रमिकों को कई चुनौतियों का भी सामना करना पड़ता है, जिसमें स्वास्थ्य सेवा तक सीमित पहुँच, भेदभाव, यौन हिंसा और मानव तस्करी तक का भी जोखिम शामिल है। इन चुनौतियों का उनके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है।
महिला प्रवासी श्रमिक अपने मूल देशों को महत्वपूर्ण मात्रा में धन वापस भेजती हैं, जिसे प्रेषण के रूप में जाना जाता है। ये प्रेषण किसी देश के सकल घरेलू उत्पाद का 25% तक हो सकते हैं और विकासशील देशों को व्यापार घाटे और बाहरी ऋणों से निपटने में मदद करते हैं। महिला प्रवासी श्रमिक अक्सर घरेलू काम जैसे लिंग आधारित व्यवसायों में काम करती हैं, जो उन्हें शोषण और दुर्व्यवहार के प्रति अधिक संवेदनशील बना सकता है। उन्हें अपने परिवारों से अलग होने की पीड़ा झेलनी पड़ती है।
महिला प्रवासी श्रमिक अक्सर वेतन संबंधी भेदभाव का भी शिकार होती हैं, जहाँ उन्हें अपने पुरुष समकक्षों की तुलना में कम वेतन दिया जाता है। भारत में लगभग 663 मिलियन(million) महिलाएँ हैं, जिनमें से लगभग 450 मिलियन 15-64 वर्ष की कामकाजी आयु वर्ग में हैं। हालाँकि, पिछले तीन दशकों में भारत की महिला श्रम बल भागीदारी दर (FLFPR) में भारी गिरावट देखी गई है। विश्व बैंक, सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) और पीरियोडिक लेबर फोर्स सर्वे (PLFS) की रिपोर्टों के अनुसार, 1990 में यह भागीदारी 30.2% थी जो आज 2018 में गिरकर 17.5% के निचले स्तर पर आ गई। 1990 के दशक से गिरावट के रुझान के विपरीत, 2020-21 की PLFS रिपोर्ट हाल के वर्षों में महत्वपूर्ण सुधार दिखाती है। 15 वर्ष और उससे अधिक आयु की महिलाओं के लिए FLFPR 17.5% से बढ़कर 24.8% हो गई, और 2017-18 में 23.3% से बढ़कर 2020-21 में 32.8% हो गई। वित्त मंत्रालय की एक हालिया प्रेस विज्ञप्ति में इस सुधार का श्रेय कई कारकों को दिया गया है, जिसमें प्रगतिशील श्रम सुधार, विनिर्माण क्षेत्र में बेहतर रोजगार रुझान, स्वरोजगार में वृद्धि और औपचारिक रोजगार के स्तर में वृद्धि शामिल है।
महिलाओं के प्रति पीढ़ियों से चले आ रहे कुछ मिथक भी, कार्यक्षेत्र में उनके योगदान को कम करते हैं। चलिए अब इन मिथकों को जानते हैं, और इन्हें तोड़ने का प्रयास करते हैं:
1. मिथक: कार्यस्थल में महिलाएँ पुरुषों जितनी महत्वाकांक्षी नहीं होती हैं।
वास्तविकता: महिलाएँ पुरुषों जितनी ही महत्वाकांक्षी होती हैं, लेकिन उन्हें अपने करियर में ज़्यादा बाधाओं का सामना करना पड़ता है। अध्ययनों से पता चलता है कि महिलाओं में पुरुषों जितनी ही महत्वाकांक्षा होती है, लेकिन भेदभाव और पूर्वाग्रह अक्सर उनकी उन्नति के अवसरों में बाधा डालते हैं।
2. मिथक: महिलाएँ अच्छी वार्ताकार नहीं होती हैं।
वास्तविकता: महिलाएँ बेहतरीन वार्ताकार हो सकती हैं, लेकिन जब वे दृढ़ता से बातचीत करती हैं, तो उन्हें अक्सर नकारात्मक प्रतिक्रियाओं का सामना करना पड़ता है। शोध से पता चलता है कि महिलाएँ बातचीत में पुरुषों जितनी ही प्रभावी हो सकती हैं, लेकिन अक्सर पुरुषों के व्यवहार की प्रशंसा करने के लिए उनकी आलोचना की जाती है।
3. मिथक: कार्यस्थल पर महिलाएँ पुरुषों जितनी आत्मविश्वासी नहीं होती हैं।
वास्तविकता: महिलाएँ पुरुषों जितनी ही आत्मविश्वासी हो सकती हैं, लेकिन जब वे आत्मविश्वास दिखाती हैं तो उन्हें अक्सर अधिक आलोचना का सामना करना पड़ता है। शोध से पता चलता है कि महिलाएँ अपनी क्षमताओं को कम आंकती हैं, लेकिन ऐसा काम पर उनके साथ होने वाले पूर्वाग्रह और भेदभाव के कारण होता है।
4. मिथक: महिलाएं पुरुषों की तरह अपने काम के प्रति उतनी प्रतिबद्ध नहीं होती हैं।
वास्तविकता: महिलाएं पुरुषों की तरह ही अपने काम के प्रति प्रतिबद्ध होती हैं, लेकिन उन्हें अक्सर काम और परिवार के बीच संतुलन बनाने में अधिक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। शोध से पता चलता है कि महिलाएं अपने करियर के प्रति समान रूप से समर्पित होती हैं, लेकिन उनके पास देखभाल की ज़िम्मेदारियाँ होने की संभावना अधिक होती है जो कार्य-जीवन संतुलन को जटिल बनाती हैं।
5. मिथक: महिलाएं पुरुषों जितनी प्रभावी लीडर(leader) नहीं होती हैं।
वास्तविकता: महिलाएं भी पुरुषों जितनी या कुछ मामलों में तो और भी अधिक प्रभावी लीडर साबित हो सकती हैं। इन सभी मिथकों को हमने नहीं बल्कि शोधों ने तोड़ा है।

संदर्भ
https://tinyurl.com/f546mxdn
https://tinyurl.com/ym9tdf67
https://tinyurl.com/3d9nferh
https://tinyurl.com/5efa7c8c

चित्र संदर्भ

1. ऑफिस में काम करती महिलाओं को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. काम पर जाती महिलाओं को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
3. सूर्यास्त को देखती महिला को संदर्भित करता एक चित्रण (PixaHive)
4. कार्यालय में तनाव झेलती महिला को दर्शाता एक चित्रण (PxHere)



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