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अनेक धर्मों के घर भारत में, हिंदू और सिख धर्म की कुछ विशेष परंपराएं हैं जो सभी लोगों को एक साथ लाती हैं और उन सभी को एक अटूट बंधन से जोड़ती हैं। ये परंपराएँ हिंदू धर्म में “प्रसाद” और सिख धर्म में “कड़ाह प्रसाद” एवं “लंगर” के रूप में देखी जा सकती हैं। भले ही यह परंपराएं दो अलग धर्मों से जुड़ी हैं, लेकिन उनके अर्थ समान हैं, जो इश्वर के प्रति आस्था दर्शाती हैं और लोगों को एक-दूसरे के प्रति एकजुट करती है और एक-दूसरे की सेवा करने के लिए प्रेरित करती है। हिंदू मंदिरों में प्रसाद, देवताओं के आर्शीवाद के रूप में वितरित किया जाता है। प्रसाद पूजा के दौरान देवताओं को भोग के रूप में चढ़ाया जाता है, और फिर इसे सभी भक्तों के साथ साझा किया जाता है। सिख गुरुद्वारों में, दो महत्वपूर्ण परंपराएँ हैं: कड़ाह प्रसाद और लंगर। कड़ाह प्रसाद घी में बना गेहूँ के आटे का मीठा हलवा है, जिसका स्वाद वास्तव में बहुत ही भव्य होता है। इसे प्रार्थना के बाद आशीर्वाद के रूप में सभी को दिया जाता है। लंगर, मंदिर / गुरुद्वारा परिसर में परोसा गया एक मुफ़्त भोजन है, जिसे कोई भी खा सकता है। यह दर्शाता है कि गुरूद्वारे में आए सभी समान हैं और सभी का ध्यान रखा जाना चाहिए, कि कोई यहां से भूका न जाए । तो आज हम सिख धर्म में सबसे स्वादिष्ट प्रसाद, जिसे अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में कड़ाह प्रसाद कहा जाता है, का महत्व देखेंगे, इसके साथ ही हम सिख धर्म में लंगर शब्द की उत्पत्ति और इसके इतिहास के बारे में भी देखेंगे। हम यह भी जानेंगे कि स्वर्ण मंदिर की रसोई जहां लंगर का भोजन तैयार किया जाता है उसे दुनिया की सबसे बड़ी सामुदायिक रसोई क्यों कहा जाता है?
कड़ाह प्रसाद, स्वर्ण मंदिर अमृतसर: कड़ाह प्रसाद, जिसे कड़ा प्रसाद या केवल प्रसाद के रूप में भी जाना जाता है, यह पवित्र प्रसाद गुरुद्वारों में भक्तों को वितरित किया जाता है। सिख धर्म में समानता और एकता के प्रतीक के रूप में, इसे हर किसी को उनकी जाति, धर्म या पृष्ठभूमि की परवाह किए बिना परोसा जाता है। अमृतसर में श्री दरबार साहिब (स्वर्ण मंदिर) सबसे प्रमुख और पूजनीय स्थानों में से एक है जहाँ इसे परोसा जाता है। स्वर्ण मंदिर दुनिया भर के सिखों के लिए पूजा और आध्यात्मिक महत्व का एक केंद्र है। कड़ाह प्रसाद का सिख धर्म में बहुत आध्यात्मिक महत्व है। ऐसा माना जाता है कि इसे प्रार्थनाओं के माध्यम से पवित्र किया जाता है और भक्तों के लिए गुरु (आध्यात्मिक शिक्षक) की ओर से एक उपहार माना जाता है।
लंगर शब्द की उत्पत्ति:
लंगर, गुरु के नाम पर संचालित किया जाने वाला एक सामुदायिक रसोईघर है। यह आमतौर पर गुरुद्वारे से जुड़ा होता है। लंगर, एक फ़ारसी शब्द है, जिसका अर्थ है 'एक भिक्षागृह', 'गरीबों और बेसहारा लोगों के लिए एक आश्रय', 'एक महान व्यक्ति द्वारा अपने अनुयायियों और आश्रितों, ज़रूरतमंदों के लिए रखी गई सार्वजनिक रसोई’। कुछ विद्वान लंगर शब्द को संस्कृत के अनलगृह (खाना पकाने का स्थान) से जोड़ते हैं। फ़ारसी परंपरा में लंगर की संस्था का भी पता लगाया जा सकता है। बारहवीं और तेरहवीं शताब्दियों में लंगर सूफ़ी केंद्रों की एक सामान्य विशेषता थी। यहाँ तक कि आज भी कुछ दरगाहें, या अन्य स्थान जहां सूफी संतों की स्मृति में, लंगर चलाए जाते हैं, जैसे अजमेर में ख्वाजा मुइन उद-दीन चिश्ती की दरगाह में इसे देखा जा सकता है।
स्वर्ण मंदिर, अमृतसर, पंजाब में विश्व का सबसे बड़ा सामुदायिक रसोईघर: स्वर्ण मंदिर की भव्यता के अलावा, एक और चीज़ जो आगंतुकों को संतुष्टि प्रदान करती है, वह है स्वर्ण मंदिर का लंगर, जिसे ‘गुरु का लंगर’ भी कहा जाता है। यहां गुरुद्वारे के सामुदायिक हॉल में नि:शुल्क भोजन कराया जाता है। स्वर्ण मंदिर को विश्व के सबसे बड़े सामुदायिक रसोईघरों में से एक माना जाता है, जहाँ हर दिन हज़ारों लोगों को भोजन परोसा जाता है।
सिख धर्म के उपदेशों के अनुसार, गुरुद्वारे के प्रवेश द्वार सभी दिशाओं से होते हैं, जो यह दर्शाते हैं कि किसी जाति, रंग, पंथ, धर्म या लिंग के सभी लोगों का यहां स्वागत किया जाता है। उनसे किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जाता है और सभी को समान माना जाता है।
गुरु के लंगर का सिद्धांत इतना महत्वपूर्ण है कि जब भारत के शक्तिशाली शासक सम्राट अकबर भी गुरु अमर दास जी से मिलने गए, तो वह भी गुरु जी के दर्शन करने से पहले समान रूप से आम लोगों के बीच लंगर लेने के लिए पंगत में बैठ गए। सम्राट अकबर लंगर से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने इसके रखरखाव के लिए बड़ी मात्रा में भूमि और धन प्रदान किया। महिमा प्रकाश (सिख साहित्य) में उल्लिखित है सम्राट जब गुरू से मिलने गए तो उनके सेवकों ने उनके पैरों के नीचे रेशम बिछा दिया, जिसे सम्राट ने किनारे कर दिया और नंगे पैर ही गुरू के समक्ष उपस्थित हुए। गुरु ने सम्राट द्वारा भेंट स्वरूप दी गयी जागीर को स्वीकार नहीं किया, इसलिए अकबर ने इसे गुरु की बेटी की शादी में उपहार के रूप में पेश किया। ऐसा माना जाता है कि उपहार में दी गई भूमि आज अमृतसर शहर है।
जब मिस्र के राष्ट्रपति नासिर ने स्वर्ण मंदिर का दौरा किया तो वह इतने सारे कश्मीरी मुसलमानों, हिंदुओं, ईसाइयों और सिखों को एकसाथ लंगर में खाना खाते हुए देखकर इतने प्रभावित हुए, कि उनकी पार्टी ने लंगर चलाने के लिए योगदान के रूप में अपने साथ लाए गए सारे पैसे दान दे दिए।
इश्वर के प्रति भक्ति के रूप में, लंगर, सेवादारों यानी की 'स्वैच्छिक निस्वार्थ' सिखों और अन्य लोगों द्वारा चलाया जाता है जो मानव जाति की मदद करना चाहते हैं। यह एक सामुदायिक रसोई है और इसके संचालन में कोई भी मदद कर सकता है। सेवा का यह कार्य व्यक्ति के मन में सामुदायिक भावना लाता है और मानवता के लिए इस मूल्यवान सेवा के प्रदर्शन से उनके अहंकार और "मैं" की भावना को नष्ट करता है।
लंगर की परंपरा से संबंधित नियम:
1 सादा एवं शाकाहारी भोजन
2 लंगर गुरबानी का पाठ करने वाले भक्तों द्वारा तैयार किया जाता है
3 अरदास करके सेवा करना
4 बिना किसी पूर्वाग्रह या भेदभाव के भोजन को पंगत में बांटा जाता है
5 भोजन को ताजा, स्वच्छ और स्वच्छतापूर्वक तैयार करना
सिख धर्म की स्थापना 1469 में गुरु नानक द्वारा हुई। गुरु नानक जी ने पहली सिख समुदाय का गठन कर्तारपुर में किया, जो नानक द्वारा रावी नदी के किनारे स्थापित एक गांव था। गुरु नानक की मृत्यु के बाद, उनके जीवन के विवरण उनके अनुयायियों द्वारा लिखे गए, और इस प्रकार 'जनमसाखी साहित्य' का गठन हुआ (जनम पंजाबी शब्द है जिसका अर्थ जन्म होता है जबकि साखी का मतलब कहानी होता है)। जबकि यह साहित्य मूलत: ऐतिहासिक उद्देश्यों के लिए नहीं था, यह एक आध्यात्मिक व्यक्ति (गुरु नानक जी) और उन संस्थाओं के बारे में मूल्यवान जानकारी प्रदान करता है जिन्हें वे लोकप्रिय मानते थे। गुरु नानक द्वारा प्रवर्तित सिख धर्म की तीन महत्वपूर्ण लोकतांत्रिक मूल्यों में सेवा, लंगर और संगत शामिल हैं। उपमहाद्वीप के बाहर के स्थानों में जहां सिख प्रवासी समुदाय बड़ी संख्या में हैं, जैसे टोरंटो (Toronto), हांगकांग (Hong Kong), न्यूयॉर्क (New York), सैन फ्रांसिस्को (San Francisco) वहां विशेष रूप से गुरुपुरब के दौरान भव्य लंगर होते हैं।
इस प्रकार, स्वर्ण मंदिर का लंगर न केवल एक धार्मिक और आध्यात्मिक अनुभव है, बल्कि यह एक सामाजिक और सांस्कृतिक संस्था भी है, जो समानता, एकता और सेवा की मूल भावना को जीवंत बनाए रखती है।
संदर्भ :
https://rb.gy/s748x4
https://rb.gy/gsonzr
https://rb.gy/ipdu7g
चित्र संदर्भ
1. ‘लंगर’ परंपरा को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. स्वर्ण मंदिर अमृतसर में लंगर की तैयारी को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. लंगर शब्द को संदर्भित करता एक चित्रण (प्रारंग चित्र संग्रह)
4. मूल स्वर्ण मंदिर (हरमंदिर साहिब) के निर्माण की देखरेख करते हुए गुरु अर्जन के चित्र को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. स्वर्ण मंदिर में लगे लंगर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
6. 'जनमसाखी साहित्य' को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
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