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जौनपुर के स्वर्णिम इतिहास का एक सुनहरा पन्ना हमारे भारत में बना सबसे पुराना ज्ञात एटलस भी है, जिसे पहली बार 17 वीं शताब्दी में हमारे जौनपुर शहर में बनाया गया था। आधुनिक मशीनों के बिना निर्मित, इस एटलस की सटीकता आज भी विद्वानों को चकित कर देती है। दरअसल एटलस मानचित्रों का पुस्तक के रूप में या एक डिजिटल संग्रह होता है। इसमें विभिन्न क्षेत्रों, देशों, महाद्वीपों और पूरी दुनिया के बारे में भौगोलिक जानकारी को दर्शाया जाता है। आज हम एटलस के इतिहास और इसके उपयोग के बारे में विस्तार से जानेंगे। साथ ही आज हम मानचित्रों के इतिहास पर भी ध्यान केंद्रित करेंगे। इसके अतिरिक्त, हम भारत में बने पहले एटलस, (जो जौनपुर में बनाया गया था) के इतिहास के बारे में जानेंगे।
एटलस मानचित्रों का एक संग्रह होता है, जो पृथ्वी के विभिन्न भागों, जैसे देशों, महाद्वीपों या संपूर्ण विश्व को दर्शाता है। ये मानचित्र भूमि की भौतिक विशेषताओं, जैसे पहाड़ों, नदियों और समुद्र तटों के बारे में भी ज़रूरी जानकारी प्रदान करते हैं। एटलस देश की सीमाओं की तरह राजनीतिक सीमाओं को भी दर्शाते हैं। एटलस में जलवायु, जनसंख्या, अर्थव्यवस्था और विभिन्न क्षेत्रों के अन्य पहलुओं से संबंधित डेटा भी शामिल हो सकता है।
एटलस को पारंपरिक रूप से पुस्तकों के रूप में प्रकाशित किया जाता है, जिसमें मानचित्र एक साथ बंधे होते हैं। कुछ एटलस पुस्तकें हार्डकवर (hardcover) होती हैं, जबकि अन्य सॉफ्टकवर यात्रा मार्गदर्शिकाएँ (softcover travel guides) होती हैं। आजकल, ऐसे डिजिटल एटलस भी प्रचलित हो गए हैं, जिन्हें कंप्यूटर और इंटरनेट पर एक्सेस किया जा सकता है। "एटलस" शब्द ग्रीक पौराणिक कथा के एक किरदार एटलस से लिया गया है, जिसे दंड दिया गया था कि वह पृथ्वी और आकाश को पकड़े रहे। उनकी छवि अक्सर प्रारंभिक मानचित्र संग्रहों के कवर पर मुद्रित होती थी, जो अंततः एटलस के रूप में जानी जाने लगी।
सबसे पहला ज्ञात एटलस प्राचीन यूनानी भूगोलवेत्ता क्लॉडियस टॉलेमी (Claudius Ptolemy) से जुड़ा हुआ है। उनका काम, जिसे "जियोग्राफिया (Geographia)" कहा जाता है, को मानचित्रों की पहली प्रकाशित पुस्तक माना जाता है। इसमें दूसरी शताब्दी में दुनिया के ज्ञात भूगोल को शामिल किया गया था। ये प्रारंभिक मानचित्र हस्तनिर्मित थे।
1400 के दशक के अंत में क्रिस्टोफर कोलंबस (Christopher Columbus), जॉन कैबोट और अमेरिगो वेस्पूची (John Cabot, and Amerigo Vespucci) जैसे खोजकर्ताओं ने दुनिया के नए हिस्सों की खोज की, जिसके बाद वैश्विक भूगोल के बारे में हमारी समझ का विस्तार हुआ। जोहान्स रुयश (Johannes Ruysch) जैसे मानचित्रकारों ने नए विश्व मानचित्र बनाए जो 1500 के दशक की शुरुआत में टॉलेमी के "जियोग्राफिया" के अद्यतन संस्करणों में प्रकाशित हुए थे।
पहला आधुनिक एटलस 1570 में अब्राहम ओर्टेलियस (Abraham Ortelius) नामक फ्लेमिश मानचित्रकार और भूगोलवेत्ता द्वारा बनाया गया था। उन्होंने इसे "थियेट्रम ऑर्बिस टेरारम (Theatrum Orbis Terrarum")" कहा, जिसका अर्थ "विश्व का रंगमंच” है।" यह पहला एटलस था जिसमें एक समान आकार और डिज़ाइन के मानचित्र थे। पहले संस्करण में 70 अलग-अलग मानचित्र थे। टॉलेमी के "जियोग्राफिया" की तरह, ऑर्टेलियस का यह "थिएटर ऑफ द वर्ल्ड (Theatre of the World)" भी बेहद लोकप्रिय हुआ।
1633 में, हेनरिकस होंडियस (Henricus Hondius) नामक एक डच मानचित्रकार और प्रकाशक ने एक विस्तृत रूप से सजाया गया एक विश्व मानचित्र बनाया, जिसे फ्लेमिश भूगोलवेत्ता जेरार्ड मर्केटर (Gerard Mercator) के एटलस के एक संस्करण में शामिल किया गया था, जो मूल रूप से 1595 में प्रकाशित हुआ था।
ऑर्टेलियस और मर्केटर के कार्यों को "डच कार्टोग्राफी के स्वर्ण युग" की शुरुआत माना जाता है। इस समय एटलस अधिक लोकप्रिय और उन्नत हो गए थे। 18वीं शताब्दी के दौरान डचों ने कई एटलस का निर्माण जारी रखा, जबकि फ्रांस और ब्रिटेन जैसे यूरोप के अन्य हिस्सों में भी मानचित्रकारों ने खासकर समुद्री और व्यापारिक गतिविधियों के लिए अधिक मानचित्र बनाना शुरू कर दिया।
19वीं शताब्दी तक, एटलस अधिक विस्तृत हो गए, जिसमें संपूर्ण देशों या क्षेत्रों के बजाय, शहरों जैसे विशिष्ट क्षेत्रों को भी शामिल किया जाने लगा था। आधुनिक मुद्रण तकनीकों के विकास के साथ, ही प्रकाशित होने वाले एटलस की संख्या में भी वृद्धि हुई। भौगोलिक सूचना प्रणाली (Geographic Information System (GIS) जैसी तकनीकी प्रगति ने आधुनिक एटलस को विषयगत मानचित्रों को शामिल करने की अनुमति दी है जो विभिन्न क्षेत्रों के बारे में विभिन्न आंकड़े और डेटा दिखाते हैं।
हालाँकि पहली नजर में एटलस और मानचित्र एक समान प्रतीत होते हैं लेकिन वास्तव में एटलस विभिन्न क्षेत्रों को कवर करने वाले विस्तृत मानचित्रों की एक पुस्तक होती है, जबकि मानचित्र संपूर्ण विश्व या किसी विशिष्ट क्षेत्र को दर्शाने वाला एक एकल मानचित्र होता है।
शुरुआती मानचित्र मिट्टी की गोलियों में उकेरे गए थे या गुफाओं की दीवारों पर उकेरे गए थे, लेकिन आधुनिक मानचित्र जनसंख्या के आकार से लेकर मौसम के पैटर्न तक, रचनात्मक रूप से सूचनाओं की एक श्रृंखला प्रदर्शित करने में भी सक्षम हो चुके हैं, जिससे हमें अपनी दुनिया को बेहतर ढंग से समझने में मदद मिलती है।
सबसे पहले ज्ञात मानचित्रों में से कुछ लगभग 17,000 ईसा पूर्व के हैं, और इनमें नेविगेशन में सहायता के लिए तारामंडल, परिदृश्य और अन्य भौतिक विशेषताएं भी दिखाई गई थीं। 600 ईसा पूर्व में बनाए गए ‘बेबीलोनियाई विश्व मानचित्र’ को पृथ्वी का पहला प्रतिनिधित्व माना जाता है। बाद में, यूनानियों जैसी प्राचीन सभ्यताओं ने खोजकर्ता अवलोकनों और गणितीय गणनाओं के आधार पर नेविगेशन के लिए कागजी मानचित्रों का उपयोग किया।
मानचित्रों ने शहरी विकास में भी भूमिका निभाई। कई सभ्यताओं ने भविष्य के शहरों की योजना बनाने के लिए विभिन्न प्रकार के मानचित्रों का उपयोग किया। 1736 में इतालवी वास्तुकार जियोवानी बतिस्ता नोली (Giovanni Battista Noli) द्वारा बनाया गया नोली मानचित्र एक महत्वपूर्ण उदाहरण है।
पिछली दो शताब्दियों में, प्रौद्योगिकी की बदौलत मानचित्र बहुत अधिक सटीक और उन्नत हो गए हैं। आज, अधिकांश मानचित्र जीआईएस (भौगोलिक सूचना विज्ञान) सॉफ्टवेयर का उपयोग करके बनाए जाते हैं, जो शहर की वर्तमान स्थिति और भविष्य की जरूरतों को समझने के लिए डेटा बिंदुओं को जोड़ सकते हैं।
मैपिंग के भविष्य में और भी अधिक तकनीकी प्रगति शामिल होगी, जो हमें हमारे शहरों की व्यापक समझ देने के लिए विभिन्न स्रोतों से वास्तविक समय की जानकारी और डेटा प्रदान करेगी।
ऐतिहासिक संदर्भों से पता चलता है कि जौनपुर कभी महान खगोलविदों और दार्शनिकों का घर हुआ करता था।
जब मुग़ल सम्राट हुमायूँ ने फ़ारसी शाह तहमास के दरबार का दौरा किया, तो शाह ने उनसे सबसे पहले जौनपुर के विद्वानों के बारे में पूछा। इससे पता चलता है कि हमारे जौनपुर शहर को कला और वास्तुकला में अपनी उपलब्धियों के लिए दुनियाभर में सम्मान और पहचान हासिल थी।
हुमायूँ के परपोते, सम्राट शाहजहाँ ने भी जौनपुर का दौरा किया और इसकी साहित्यिक और कलात्मक उपलब्धियों के कारण इसे "दारुल इल्म" (ज्ञान का निवास) और "भारत का शिराज़" के ख़िताब से नवाज़ा।
बहुत कम लोग इस बात को जानते हैं कि सबसे पहला ज्ञात भारतीय एटलस 1646-47 में हमारे जौनपुर में ही मुहम्मद सादिक इस्फ़हानी द्वारा बनाया गया था। इस्फ़हानी द्वारा बनाया गया सबसे पहला भारतीय एटलस, इंडो-इस्लामिक कार्टोग्राफी के इतिहास में एक अद्वितीय कार्य माना जाता है। इस एटलस का निर्माण कार्य 1646-47 ई. में जौनपुर में ही पूरा हुआ।
इस एटलस में विभिन्न क्षेत्रों के 33 और मानचित्र हैं, जो सभी परिचयात्मक विश्व मानचित्र से जुड़े हुए हैं।
इस विश्व एटलस पर:
- भूमध्य रेखा को बाएं किनारे पर दिखाया गया है।
- कैस्पियन सागर और फारस (आधुनिक ईरान) मध्य में हैं।
- कैस्पियन सागर और फारस के पश्चिम (ऊपर) में अफ्रीका और अंडालूसिया (स्पेन का एक क्षेत्र) हैं।
- पूर्व में (नीचे) भारत, तुर्किस्तान (मध्य एशिया का एक ऐतिहासिक क्षेत्र) और चीन हैं।
- इसमें समुद्र का रंग लाल है, और भूमि का रंग सफेद है।
इस मानचित्र के बारे में और अधिक जानने के लिए आप नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक कर सकते हैं!
1. https://prarang.in/jaunpur/posts/7715/historical-maps-including-the-first-atlas-of-Jaunpur
2. https://prarang.in/jaunpur/posts/1542/postname
संदर्भ
https://tinyurl.com/3dxjp3sc
https://tinyurl.com/3dxjp3sc
https://tinyurl.com/5n8xch5
चित्र संदर्भ
1. सबसे पहला ज्ञात भारतीय एटलस 1646-47 में हमारे जौनपुर में ही मुहम्मद सादिक इस्फ़हानी द्वारा बनाया गया था। को संदर्भित करता एक चित्रण (प्रारंग चित्र संग्रह)
2. इदरीसी के तबुला रोजेरियाना की सबसे पुरानी ज्ञात जीवित पांडुलिपि प्रति में अल-मग़रिब अल-अक्सा और अल-मग़रिब अल-अव्सत के नक़्शे को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. भूगोलवेत्ता क्लॉडियस टॉलेमी के मानचित्र को संदर्भित करता एक चित्रण (GetArchive)
4. पहला आधुनिक एटलस 1570 में अब्राहम ओर्टेलियस नामक फ्लेमिश मानचित्रकार और भूगोलवेत्ता द्वारा बनाया गया था। को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. ऑर्टेलियस के "थिएटर ऑफ द वर्ल्ड' मानचित्र को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
6. इमागो मुंडी बेबीलोनियाई मानचित्र विश्व का सबसे पुराना ज्ञात मानचित्र है। यह बेबीलोनिया में छठी शताब्दी ईसा पूर्व का है और वर्तमान में ब्रिटिश संग्रहालय में रखा गया है! को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
7. नोली मानचित्र को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
8. जौनपुर में निर्मित एटलस (मानचित्र), को दर्शाता एक चित्रण (प्रारंग चित्र संग्रह)
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