जौनपुर अपनी कला व स्थापत्य के नजरिये से अत्यंत महत्वपूर्ण शहर है जिस पर आदिकाल से ही कई राजवंशों का शासन रहा और यहाँ पर कई भवनों आदि का निर्माण करवाया गया। जौनपुर की प्रमुख इमारतों में कलीच खान का मकबरा प्रमुख है। वर्तमान काल में यह मकबरा अपनी वजूद की लड़ाई लड़ रहा है परन्तु एक वक़्त ऐसा था जब यह मकबरा जौनपुर के सभी मकबरों से उत्तम और सुन्दर था। यह मकबरा बारादरी नाम से भी जाना जाता है। जौनपुर शहर में गोमती नदी के दक्षिण में कटघरा नामक स्थान पर यह मकबरा बसा हुआ है। गोमती के दाहिने तरफ या दक्षिण दिशा में प्राचीन जौनपुर का इतना विस्तार नहीं हुआ था, इसी कारण इस तरफ कम मात्रा में इमारतें दिखाई देती हैं।
कटघरा में ही एक और मकबरा स्थित है जिसे सुलेमान खान का मकबरा कहा जाता है। सुलेमान खान का मकबरा सही तरीके से संरक्षित कर के रखा गया है। कलीच खान अकबर के काल में सूरत किले में किलेदार पद पर तैनात थे जिन्हें बाद में शाहजहाँ के समयकाल में जौनपुर भेजा गया था। जौनपुर में मुग़ल काल में सिक्कों की टकसाल भी थी जिस कारण जौनपुर शहर अत्यंत महत्वपूर्ण था। मुग़ल काल में यहाँ पर कई संरक्षण के कार्य भी करवाए गए थे। उन्ही कामों में से एक था यहाँ पर अकबरी पुल का निर्माण करवाना। कलीच खान के जौनपुर आगमन के बाद उसने इस मकबरे का निर्माण करवाया।
यह मकबरा सफ़ेद रंग से रंगा गया था और इसपर नीले और पीले पत्थरों से कलाकृतियों का निर्माण करवाया गया था। इस मकबरे के ऊपर मिले एक अभिलेख से इस मकबरे के विषय में कुछ जानकारी भी प्राप्त होती है। इसे दिल्ली के हुमायूँ के मकबरे की तरह बनाया गया था जो कि एक बड़े चबूतरे पर स्थित है। चबूतरे के निचले भाग में कई छोटी कोठरियों का निर्माण करवाया गया था। गोमती के कटान पर स्थित होने के करण इस मकबरे का एक भाग वर्तमान काल में जमीनदोज हो चुका है। कलीच खान के नाम के कारण ही यहाँ पर कलीचाबाद नामक स्थान भी उपस्थित है। इस मकबरे के पास में ही कुछ और कब्रें भी स्थित हैं।
1. द शर्की सल्तनत ऑफ़ जौनपुर, मियां मुहम्मद सईद
2. अनुअल प्रोग्रेस रिपोर्ट, आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया, 1922
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