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प्राचीन काल से ही भारतीय मूर्तिकला ने हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म और जैन धर्म की पवित्र शिक्षाओं के प्रसार हेतु एक अनूठे माध्यम के रूप में भूमिका निभाई है। मूर्तियों को आत्मा का प्रतीक माना गया है, जो देवताओं के कल्पना किए गए रूपों को मूर्त रूप देती हैं। वहीं आज 27 अप्रैल के दिन को पूरी दुनिया में अंतर्राष्ट्रीय मूर्तिकला दिवस के रूप में मनाया जा रहा है। तो आइये आज अंतरराष्ट्रीय मूर्तिकला दिवस के अवसर पर भारतीय मूर्तियों की अनूठी शैलियों को समझने का प्रयास करते हैं। साथ ही आज हम यह भी जानेंगे कि मूर्तियों ने पूरे इतिहास में विभिन्न संस्कृतियों में धार्मिक अभिव्यक्ति के रूप में कैसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है?
भारत में विविध प्रकार की सामग्रियों का उपयोग करके मूर्तिकला बनाने का इतिहास सदियों पुराना माना जाता है। भारत में मूर्तियाँ बनाने के लिए प्रयुक्त होने वाली प्रमुख सामग्रियों में पत्थर, लकड़ी, कांस्य, हड्डी और संगमरमर शामिल हैं। इन सामग्रियों का प्रयोग करने के पीछे का प्रमुख उद्देश्य, स्थायी और टिकाऊ कलाकृतियाँ बनाना था। हालाँकि, पत्थर, धातु और कुछ अन्य प्रकार की लकड़ी का उपयोग उनकी सामर्थ्य और उपलब्धता के कारण अधिक किया जाता था। अपनी लंबी उम्र के लिए जानी जाने वाली ये सामग्रियां आज भी भारतीय मूर्तिकला की रीढ़ बनी हुई हैं।
मूर्तियाँ बनाने के लिए प्रयुक्त होने वाली सामग्रियों में शामिल हैं:
भारतीय लकड़ी की मूर्तियां: लकड़ी की मूर्तियाँ, लकड़ी से निर्मित अनोखी संरचनाएँ होती हैं। लकड़ी की मूर्ति की शैलियाँ स्थानीय परंपराओं और प्रत्येक क्षेत्र में उपलब्ध सामग्रियों के आधार पर अलग-अलग हो सकती हैं। उदाहरण के तौर पर दक्षिण भारत को विशेष रूप से लकड़ी की मूर्तियों और खिलौनों के लिए जाना जाता है। इन मूर्तियों में देवी-देवताओं की मूर्तियाँ सबसे आम विषय-वस्तु होती हैं।
भारतीय कांस्य मूर्तियां: 17वीं शताब्दी से ही दक्षिण भारत में विभिन्न देवताओं, संतों और पूजनीय लोगों की कांस्य मूर्तियां बनाने की शुरुआत हो चुकी थी। ये कांस्य मूर्तियां प्राचीन बौद्ध, जैन और हिंदू संस्कृतियों की अद्वितीयता और रहस्य का शक्तिशाली रूप से प्रतिनिधित्व करती हैं।
भारतीय रेत की मूर्तियां: भारत में रेत की मूर्तियां भी बनाई जाती हैं जो, कोई भी आकार या रूप ले सकती हैं। ये मूर्तियाँ महल, मनुष्य, जानवर, पौधे या कोई भी अन्य काल्पनिक आकृतियाँ हो सकती हैं। इन मूर्तियों की उत्पत्ति उड़ीसा में हुई, लेकिन आज इस तरह की मूर्तियाँ पूरे देश में लोकप्रिय हो गई हैं।
भारतीय संगमरमर की मूर्तियां: न केवल भारत बल्कि, विश्व कला के क्षेत्र में संगमरमर की मूर्तियों का विशेष स्थान रहा है। भारत में संगमरमर की मूर्तिकला, पवित्र उद्देश्यों जैसे देवी-देवताओं की मूर्तियाँ और वास्तुशिल्प नक्काशी को समर्पित है। ये संगमरमर की मूर्तियां उत्कृष्ट शैली और बेहतरीन शिल्प कौशल के पैटर्न का प्रदर्शन करती हैं।
भारतीय पत्थर की मूर्तियां: देवी-देवताओं की पत्थर की मूर्तियों को हिमाचल के अधिकांश मंदिरों में आसानी से देखा जा सकता है। यहाँ के जनजातीय क्षेत्रों में उनकी धार्मिक मान्यताओं को प्रतिबिंबित करने वाली अपनी अनूठी मूर्तियाँ होती हैं। पत्थर की मूर्तियों के उल्लेखनीय उदाहरणों में बैजनाथ में शिव मंदिर और मसरूर में कृष्ण मंदिर शामिल हैं। दोनों ही मूर्तियों को एक ही चट्टान से बनाया गया है। चंबा, मंडी, कुल्लू और बिलासपुर के मंदिर स्थानीय कारीगरों के स्थापत्य कौशल का प्रदर्शन करते हैं।
उक्त उदाहरणों से यह स्पष्ट हो जाता है कि “कला और धर्म दोनों ही सदियों से आपस में गहराई से जुड़े हुए हैं।” अपनी दृश्य अभिव्यक्तियों और रूपों के माध्यम से, कला ने मानवीय आकांक्षाओं, अनुभवों और कहानियों को अर्थ और मूल्य प्रदान किया है। इसके अलावा कला, मानवीय उत्पत्ति, अस्तित्व, मृत्यु और उसके बाद के जीवन को अपनी दृश्य प्रस्तुतियों के माध्यम से समझने योग्य बनाती है।
कला, धर्म के एक दृश्य के रूप में, मानव शरीर की प्रतिमा और चित्रण के माध्यम से धार्मिक मान्यताओं, रीति-रिवाजों और मूल्यों का संचार करती है। ऐतिहासिक परिवर्तनों और वैश्विक सांस्कृतिक तथा धार्मिक मूल्यों में भिन्नता के बावजूद, कला और धर्म के बीच घनिष्ठ संबंध आज भी कायम है।
भारत में आज भी कई ऐसे हुनरमंद और अद्भुत कलाकार हैं, जिनकी सुंदर मूर्तियां किसी को भी पहली नज़र में विस्मित कर सकती हैं। ये कलाकृतियाँ भारत की समृद्ध संस्कृति, इतिहास और विविधता को दर्शाती हैं।
इनमें से कुछ सर्वश्रेष्ठ भारतीय मूर्तिकला कलाकारों के नाम क्रमशः दिये गये हैं:
रविंदर रेड्डी: रविंदर फाइबरग्लास (Fiberglass) का उपयोग करके महिलाओं के सिर और शरीर की बड़ी मूर्तियां बनाते हैं। वह अपने काम में आधुनिक और पारंपरिक शैलियों को जोड़ते हैं और उनकी कृतियाँ स्त्रीत्व के विभिन्न पहलुओं का प्रतिनिधित्व करती हैं।
नीरज गुप्ता: नीरज, भारत की संस्कृति और आध्यात्मिकता की सुंदरता का प्रतिनिधित्व करने के लिए पारंपरिक मूर्तिकला की शक्ति में विश्वास करते हैं। उनकी रचनाएँ भारतीय कला रूपों की आधुनिक व्याख्याएँ प्रदान करती हैं।
सुबोध गुप्ता: मूल रूप से एक चित्रकार रहे सुबोध गुप्ता जी ने 1996 में प्रतिष्ठान बनाना शुरू किया। उन्हें अपने काम में भारतीय घरों की रोज़मर्रा की वस्तुओं का उपयोग करने के लिए जाना जाता है।
भारती खेर: भारती, अपने काम में संस्कृति और आधुनिकता का संयोजन करने के लिए प्रसिद्ध हैं। उनकी कला समकालीन जीवन की जटिलताओं और विरोधाभासों को दर्शाती है।
हेमा उपाध्याय: हेमा जी, पहचान, अपनेपन और विस्थापन की अभिव्यक्ति करने के लिए फोटोग्राफी और मूर्तिकला का उपयोग करती हैं। उनका काम मुंबई की बहुसांस्कृतिक प्रकृति को दर्शाता है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/4aaca7d7
https://tinyurl.com/3rdtdx2y
https://tinyurl.com/4ru3sykb
चित्र संदर्भ
1. १२वीं शताब्दी की धार्मिक प्रतिमाओं को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
2. भगवान विष्णु की प्रतिमा को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. भारतीय लकड़ी की प्रतिमा को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. नटराज की कांस्य प्रतिमा को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
5. रेत की प्रतिमा बनाते मूर्तिकार को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
6. हनुमान जी की संगमरमर की प्रतिमा को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
7. भारतीय पत्थर की मूर्तियों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
8. एक भारतीय मूर्तिकार को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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