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‘राम नाम’ जप कर परम राम भक्त श्री हनुमान ने राम को ही कर दिया था पराजित

जौनपुर

 23-04-2024 09:25 AM
विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

प्रत्येक वर्ष संपूर्ण भारत में हनुमान जयंती बहुत धूमधाम और भव्यता के साथ मनाई जाती है। इस शुभ अवसर पर भगवान श्रीराम के भक्त भगवान हनुमान के जन्म का जश्न मनाया जाता है, जिसे हनुमान जन्मोत्सव के रूप में भी जाना जाता है। हनुमान जी के विषय में यह तो सभी जानते हैं कि वे परम रामभक्त, ब्रह्मचारी एवं बलशाली थे। यह भी माना जाता है कि हनुमान जी के हृदय में भगवान राम एवं माता सीता का वास है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि एक बार परम भक्त हनुमान जी को भी अपने प्रिय प्रभु श्रीराम से ही युद्ध के लिये स्वीकार होना पड़ा था। लेकिन ये सच है और इस घटना का संदर्भ हमें राम कथा में भी सुनने और पढ़ने को मिलता है। लेकिन इससे भी अधिक आश्चर्य की बात तो यह है कि जब हनुमान जी श्री राम से युद्ध करने के लिए तैयार हुए तो उन्होंने भी भगवान राम की ही शपथ ली। तो आज हनुमान जयंती के मौके पर आइए जानते हैं कि ऐसा क्या हुआ था कि एक महान राम भक्त को उनसे युद्ध करना पड़ा? इसके साथ ही हनुमान जी के पंचमुखी अवतार और महाभारत में हनुमान जी की भूमिका एवं महत्त्व के विषय में जानते हैं।
हिन्दू धर्म के पुराणों और अन्य धार्मिक ग्रंथों में असंख्य पौराणिक कहानियाँ हैं। इन कहानियों का न केवल धार्मिक महत्व है बल्कि गहरे अर्थ भी हैं जो हमें जीवन के कई महत्वपूर्ण सिद्धांत सिखाती हैं। हनुमान जी को भगवान राम का सबसे समर्पित अनुयायी माना जाता है। भगवान हनुमान हमेशा प्रभु श्रीराम की साधना में लीन रहते हैं। वह सदैव भगवान राम का नाम जपते रहते हैं। हम सभी हनुमान की भगवान राम के प्रति समर्पित भक्ति से परिचित हैं। रामायण महाकाव्य की कहानी ऐसे उदाहरणों से भरी पड़ी है जहां हनुमान जी ने सदैव भगवान राम के सभी कार्यों को सिद्ध किया और उनके प्रति अपनी अन्य भक्ति एवं श्रद्धा व्यक्त की है। रामायण में हनुमान जी सीता जी की खोज में 100 योजन समुद्र लांघकर लंका गए। वहाँ सूक्ष्म रूप रखकर सीताजी का पता लगाया और संपूर्ण लंका में आग लगा दी। उन्होंने संजीवनी बूटी लाकर लक्ष्मण जी की जान बचाई। इसके बाद उन्होंने राम जी के साथ मिलकर रावण के साथ युद्ध किया और रावण को परास्त करने में राम जी की सहायता की। इसलिए, यह जानना हम सभी के लिए आश्चर्य की बात है कि भगवान हनुमान और भगवान राम के बीच भी कभी युद्ध हुआ था। एक बार अयोध्या के राज दरबार में महान संतों एवं ऋषियों की एक सभा आयोजित की गई थी। इस सभा में नारद, वशिष्ठ और विश्वामित्र जैसे ऋषि शामिल थे। वे इस बात पर चर्चा करने के लिए एकत्र हुए थे कि क्या भगवान राम का नाम स्वयं से अधिक शक्तिशाली था। हनुमान जी भी दरबार में उपस्थित थे लेकिन उन्होंने अपनी राय व्यक्त नहीं की। चर्चा के दौरान वह चुप रहे। अधिकांश संतों ने व्यक्त किया कि भगवान राम स्वयं अपने नाम से अधिक शक्तिशाली हैं। हालाँकि, ऋषि नारद अन्य ऋषियों से असहमत थे और उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि राम का नाम स्वयं उनसे अधिक शक्तिशाली है।
नारद ने ज़ोर देकर कहा कि वह अपनी टिप्पणी को साबित कर सकते हैं कि राम का नाम स्वयं भगवान राम से अधिक शक्तिशाली है। जब सभा समाप्त हो गई, तो ऋषि नारद हनुमान जी के पास गए और कहा कि वे सभी ऋषियों का सम्मान करें लेकिन विश्वामित्र को छोड़ दें, क्योंकि वह एक राजा हैं। चूँकि हनुमान जी ऋषि नारद का बहुत सम्मान करते थे, इसलिए उन्होंने उनके निर्देशों का पालन करना स्वीकार किया और विश्वामित्र के प्रति सम्मान प्रदर्शित नहीं किया। उन्होंने विश्वामित्र को छोड़कर सभी संतों का अभिनंदन किया। प्रारंभ में ऋषि विश्वामित्र को हनुमान जी के इस व्यवहार से कोई आपत्ति नहीं हुई। लेकिन, जब नारद ने विश्वामित्र को बताया कि हनुमान ने जानबूझकर उन्हें अपमानित करने के लिए उनका अभिनंदन नहीं किया, तो इससे महान ऋषि विश्वामित्र क्रोधित हो गये। ऋषि विश्वामित्र ने प्रभु श्रीराम से हनुमान जी को उनके इस व्यवहार के लिए दंडित करने के लिए कहा। ऋषि विश्वामित्र भगवान राम के गुरु थे, इसलिए वे उनकी आज्ञा का प्रतिकार न करते हुए तुरंत हनुमान को मारने के उनके आदेश को पूरा करने के लिए सहमत हो गए। जब हनुमान जी को इस बात का पता चला तो वे बहुत उदास हुए और असमंजस में पड़ गए कि उनके प्रिय भगवान राम उन्हें क्यों मारना चाहेंगे। भगवान हनुमान की उदासी को देखकर नारद उनके पास आये और उनसे कहा कि आप चिंता न करें। उन्होंने हनुमान से कहा कि वे शांत रहें और भगवान राम का नाम जपते रहें -"श्री राम जय राम जय जय राम।" जब प्रभु श्रीराम हनुमानजी के सामने आए तो वे सच्ची भक्ति के साथ राम नाम का जाप कर रहे थे। भगवान राम ने हनुमान पर एक के बाद एक तीर चलाना शुरू कर दिया। लेकिन उनके किसी भी तीर से हनुमान जी को कोई भी नुकसान नहीं हुआ। अंत में भगवान राम ने हनुमान पर ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया। हालाँकि, वह भी हनुमान को किसी भी तरह से नुकसान पहुँचाने में विफल रहा। इस पर भगवान राम चौंक गए और विचार करने लगे कि उनके सभी हथियार हनुमान को नुकसान पहुंचाने में विफल क्यों रहे। नारद मुनि सारा तमाशा देख रहे थे। वे विश्वामित्र के पास गए और उन्हें बताया कि उन्होंने ही हनुमान जी को ऐसा करने के लिए कहा था। जब भगवान राम को नारद की चाल के बारे में पता चला, तो उन्होंने हनुमान के ख़िलाफ़ अपनी लड़ाई रोक दी। इस पर नारद ने कहा कि उन्होंने भगवान राम और भगवान हनुमान के बीच युद्ध की योजना सिर्फ यह सिद्ध करने के लिए बनाई थी कि भगवान राम का नाम स्वयं राम से अधिक बलशाली है। चूँकि हनुमान जी भगवान राम का नाम जप रहे थे, भगवान राम के हथियार उन्हें किसी भी तरह से नुकसान पहुँचाने में विफल रहे। इस प्रकार, भगवान राम और भगवान हनुमान के बीच युद्ध की यह कहानी हमें सर्वोच्च शक्ति भगवान राम के नाम पर विश्वास करने और उसका जप करने के महत्व के विषय में बताती है।
दुनिया भर में हनुमानजी के कई रूपों की पूजा की जाती है। हनुमान जी का एक ऐसा ही शक्तिशाली रूप पंचमुखी हनुमान का है जिसमे हनुमान जी के पांच अलग अलग मुख अलग-अलग दिशाओं में होते हैं। पंचमुखी हनुमान या पंचमुखी अंजनेय स्वामी को उनके 'विराट' रूपों में से एक माना जाता है। कुछ लोग तो श्री पंचमुखी हनुमान के भी दो रूप मानते हैं। एक रूप में स्वयं हनुमान जी के ही पांच राजसी चेहरे हैं जबकि दूसरे रूप में, जो अधिक लोकप्रिय है, पांच राजसी चेहरे प्रत्येक एक अलग भगवान से संबंधित हैं।
वे हैं:
1. भगवान हनुमान: यह मुख भक्ति भाव को दर्शाता हुआ पूर्व दिशा की ओर है। हनुमान की पूजा करने से व्यक्ति के पाप धुल जाते हैं और शांति, पवित्रता, खुशी और तृप्ति मिलती है।
2. भगवान नरसिम्हा: भगवान विष्णु के चौथे अवतार, यह सिंह रूप दक्षिणमुखी है। नृसिंह की पूजा करने से भय दूर होता है।
3. भगवान गरुड़: पश्चिम की ओर मुख करके, गरुड़ या चील पंचमुखी हनुमान स्वरूप का एक हिस्सा है। वह नकारात्मक प्रभावों, काले जादू और बुरी आत्माओं से सुरक्षा प्रदान करता है।
4. भगवान आदिवराह: यह मुख भगवान वराह का है और माना जाता है कि यह ग्रहों की गतिविधियों के बुरे प्रभावों को दूर करता है। उत्तर दिशा की ओर मुख करके वराह धन और समृद्धि प्रदान करते है।
5. भगवान हयग्रीव: मानव शरीर और ऊपर की ओर देखने वाले घोड़े के चेहरे वाला विष्णु का यह अवतार व्यक्ति को ज्ञान, संतान और मुक्ति का आशीर्वाद देता है।
भगवान पंचमुखी हनुमान भव्य और विस्मयकारी हैं। हनुमान जी अपने इस रूप में परशु, चक्र, गदा, त्रिशूल और तलवार जैसे कई हथियारों से सुशोभित हैं। पंचमुखी हनुमान के एक और चित्रण में भगवान गणेश भी शामिल हैं। इस रूप में हनुमान जी के एक मुख को आधे हनुमान और आधे गणेश के रूप में दर्शाया गया है। इन दोनों शक्तिशाली देवताओं पर नवग्रहों का कोई प्रभाव नहीं है। यह रूप पंचमुखी हनुमान का एक दुर्लभ और शक्तिशाली स्वरूप माना जाता है। रामायण में हनुमान जी की बेहद महत्वपूर्ण भूमिका से हम सभी परिचित हैं। लेकिन हममें से बहुत कम लोग जानते हैं कि हनुमान जी महाकाव्य महाभारत में भी दो बार प्रकट हुए थे। यह सर्वविदित तथ्य है कि भगवान हनुमान जी चिरंजीवी हैं। अर्थात हनुमान जी को सदैव जीवित रहने का वरदान प्राप्त है। महाभारत में भगवान हनुमान को भीम का भाई भी माना जाता है क्योंकि उन दोनों के ही आध्यात्मिक पिता वायु देव हैं। महाभारत में भगवान हनुमान का पहला उल्लेख तब मिलता है जब वह पांडवों के वनवास के दौरान भीम से मिले थे और दूसरी बार जब भगवान हनुमान ने अर्जुन के ध्वज में रहकर पूरे कुरुक्षेत्र के युद्ध में अर्जुन के रथ की रक्षा की थी। वनवास के दौरान एक बार द्रौपदी ने भीम से सौगंधिका पुष्प लाने को कहा। भीम फूलों की खोज में निकल पड़े। रास्ते में भीम को आराम कर रहा एक विशाल वानर मिला जिसने पूरा मार्ग रोक रखा था। भीम ने वानर से रास्ते से हट जाने के लिए कहा, लेकिन वानर ने भीम से अनुरोध किया कि बहुत वृद्ध होने के कारण वह अपने आप चल-फिर नहीं सकता। इसलिए, यदि भीम को आगे जाना है तो उन्हीं को उस वानर की पूंछ को उठाकर एक तरफ धकेलना होगा। भीम को वानर पर क्रोध तो आया किंतु उन्होंने अपनी गदा से उसकी पूंछ को धक्का देने की कोशिश की। लेकिन पूँछ एक इंच भी नहीं हिली। काफी देर तक प्रयास करने के बाद भीम को एहसास हुआ कि यह कोई साधारण वानर नहीं है। अत: भीम ने हार मान ली और क्षमा मांगी। इस प्रकार, भगवान हनुमान अपने मूल रूप में आये और भीम को आशीर्वाद दिया।
महाभारत की एक अन्य घटना में, हनुमान रामेश्‍वरम में एक सामान्य वानर के रूप में अर्जुन से मिले थे। भगवान राम द्वारा लंका तक बनाए गए पुल को देखकर अर्जुन ने आश्चर्य व्यक्त किया कि भगवान राम को पुल बनाने के लिए बंदरों की मदद की आवश्यकता क्यों पड़ी। यदि वह होता तो स्वयं ही बाणों से पुल बना देता। किंतु हनुमान जी ने अर्जुन से कहा कि तीरों से बनाया गया पुल एक व्यक्ति का भी वजन सहन नहीं कर पाएगा। अर्जुन ने इसे एक चुनौती के रूप में लिया। अर्जुन ने प्रतिज्ञा की कि यदि उसके द्वारा बनाया गया पुल ढह जाएगा, तो वह आग में कूद जाएगा। अत: अर्जुन ने अपने बाणों से पुल का निर्माण किया। जैसे ही हनुमान ने उस पर कदम रखा, पुल ढह गया। अर्जुन आश्चर्यचकित रह गए और उन्होंने अपना जीवन समाप्त करने का फैसला कर लिया। तभी भगवान श्रीकृष्ण उनके सामने प्रकट हुए और अपने दिव्य स्पर्श से पुल का पुनर्निर्माण किया। उन्होंने हनुमान जी से उस पर पैर रखने को कहा। इस बार पुल नहीं टूटा। इस प्रकार, हनुमान अपने मूल रूप में आये और अर्जुन को युद्ध में सहायता करने का वचन दिया। इसलिए, जब कुरुक्षेत्र का युद्ध शुरू हुआ, तो भगवान हनुमान अर्जुन के रथ के ध्वज पर बैठ गए और युद्ध के अंत तक रुके रहे। कुरुक्षेत्र युद्ध के अंतिम दिन, भगवान कृष्ण ने अर्जुन को पहले रथ से बाहर निकलने के लिए कहा। अर्जुन के बाहर निकलने के बाद, भगवान कृष्ण ने हनुमान को अंत तक वहां रहने के लिए धन्यवाद दिया। हनुमान जी के रथ से बाहर आते ही रथ अग्नि में भस्म हो गया। यह देखकर अर्जुन आश्चर्यचकित रह गये। तब भगवान कृष्ण ने अर्जुन को समझाया कि यदि भगवान हनुमान दिव्य हथियारों से रथ की रक्षा नहीं कर रहे होते तो रथ बहुत पहले ही भस्म हो गया होता। इस प्रकार, हम देखते हैं कि भगवान हनुमान न केवल रामायण के केंद्रीय पात्रों में से एक हैं, बल्कि महाभारत में भी एक महत्वपूर्ण पात्र हैं।

संदर्भ
https://shorturl.at/kowX9
https://shorturl.at/pDS24
https://shorturl.at/cen18

चित्र संदर्भ
1. हनुमान जी को अंगूठी देते प्रभु श्री राम को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. साधना में लीन हनुमान जी को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. ऋषि नारद को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. हनुमान जी को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. भगवान पंचमुखी हनुमान को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
6. प्रभु श्री राम और हनुमान जी को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)



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