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प्राचीन समय में यात्रियों का मार्गदर्शन करती थी, कोस मीनारें , इसलिए है हमारी धरोहर

जौनपुर

 18-04-2024 09:28 AM
वास्तुकला 2 कार्यालय व कार्यप्रणाली

पहले, जब हम मोटर वाहनों से लंबी दूरी की यात्रा करते थे, तो गंतव्य की दिशा के लिए, मील के पत्थर हमारे लिए मुख्य संकेतक के रूप में कार्य करते हैं। जबकि, कुछ वर्ष पहले से हम गूगल मैप जैसी सुविधाजनक तकनीकी प्रणालियों पर निर्भर रहे हैं। हालांकि, राजाओं के दिनों में, ‘कोस मीनार’ हमारे गूगल मानचित्र के रूप में कार्य करते थे। लेकिन, आधुनिक समय में ये कोस मीनारें लुप्त होती जा रही हैं। तो आज, विश्व धरोहर दिवस के मौके पर आइए, मध्यकालीन भारत के कोस मीनार, इसके इतिहास और इनका विकास कैसे हुआ इसके बारे में जानते हैं। साथ ही, आइए यह भी जानें कि, आज के आधुनिक मील के पत्थर अलग-अलग स्थानों के लिए अलग-अलग रंग के क्यों होते हैं? हम सब जानते ही हैं कि, ‘कोस’, दूरी मापने की एक प्राचीन भारतीय इकाई है। यह लगभग 3.22 किलोमीटर (2 मील) का प्रतिनिधित्व करती है, और एक योजन का ¼ होती है, जो दूरी का एक वैदिक माप है। योजन का उपयोग प्राचीन वैदिक ग्रंथों से मिलता है, और इसका उपयोग अशोक ने अपने प्रमुख शिलालेख संख्या 13 में पाटलिपुत्र और बेबीलोन(Babylon) के बीच की दूरी का वर्णन करने के लिए किया था। दूसरी ओर, मीनार का अर्थ ‘स्तंभ’ होता है। इसलिए, कोस मीनार का अनुवाद ‘मील स्तंभ’ है। दिलचस्प बात यह है कि, भारतीय उपमहाद्वीप के कई ग्रामीण इलाकों में बुजुर्ग लोग आज भी आस-पास के इलाकों की दूरी कोस में बताते हैं।
भारत में दूरी तथा मार्गों को विशेष रूप से दर्शाने के लिए, किसी चीज़ का उपयोग करने का पहला दर्ज प्रमाण तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व से मिलता है। सम्राट अशोक ने अपनी राजधानी पाटलिपुत्र को ढाका, काबुल और बल्ख से जोड़ने वाले मार्गों की स्थापना की थी। और तब, मिट्टी के खंभों, पेड़ों और कुओं के रूप में मानक चिन्हों ने यात्रियों को मार्गदर्शन करने और उनके गंतव्य की दूरी का पता लगाने में मदद की। अधिकांश मामलों में, ये स्थलचिह्न पहले से ही परिदृश्य में मौजूद थे। परंतु, आज हम जिन कोस मीनारों को देख सकते हैं, उनमें से कई मीनारों का श्रेय संभवतः अकबर के समय को दिया जा सकता है। अबुल फजल ने ‘अकबर नामा’ (अकबर के शासनकाल का आधिकारिक इतिहास) में दर्ज किया है कि, वर्ष 1575 में अकबर ने एक आदेश जारी किया था कि, आगरा से अजमेर के रास्ते में प्रत्येक कोस पर, लोगों की सुविधा के लिए एक स्तंभ या मीनार खड़ी की जाए। 1615 और 1618 के बीच, अकबर के शासनकाल के तुरंत बाद, भारत के शुरुआती यूरोपीय यात्री उनके द्वारा देखे गए, कोस मीनारों की विस्तृत रिपोर्ट वापस लाए। हालांकि, आज इन मीनारों का अस्तित्व खतरे में हैं। शायद इसी वजह से, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने, उनके ‘कम राष्ट्रीय महत्व’ का हवाला देते हुए, 18 केंद्रीय संरक्षित स्मारकों को अपनी रजिस्ट्री से हटाने की योजना की घोषणा की है। यह निर्णय केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय द्वारा पहचाने गए और पिछले साल एक संसदीय समिति को प्रस्तुत किए गए, 24 ‘अनुसरणीय’ स्मारकों की सूची से लिया गया है।
इस सूची से हटाने के लिए निर्धारित स्मारकों में हरियाणा से कोस मीनार नंबर 13, झांसी से गनर बर्किल का मकबरा, दिल्ली का बाराखंबा कब्रिस्तान, लखनऊ के गऊघाट का कब्रिस्तान और वाराणसी से तेलिया नाला बौद्ध खंडहर जैसे उल्लेखनीय स्थल शामिल हैं। इन स्मारकों को सूची से हटाने से यह संस्था प्रभावी रूप से उनकी सुरक्षा के दायित्व से मुक्त हो जाती है, जिससे, उनके आसपास नियमित निर्माण और शहरी विकास गतिविधियों की अनुमति मिलती है। परंतु, यह हमें सोचना हैं कि, ऐसी धरोहरों का संरक्षण कितना महत्त्वपूर्ण है।
दूसरी ओर, सड़क के किनारे ‘मील का पत्थर’ दिखना हमारे लिए एक दैनिक घटना है। लेकिन आपके मन में कभी ना कभी एक बात जरूर आई होगी कि, ये पत्थर अलग-अलग रंगों में क्यों आते हैं? आइए जानते हैं। नारंगी रंग से रंगा हुआ मील का पत्थर दर्शाता है कि, आप ग्रामीण सड़क पर यात्रा कर रहे हैं। प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना और जवाहर रोजगार योजना जैसी महत्वाकांक्षी पहलों के तहत निर्मित, ऐसी ग्रामीण सड़कें 3.93 लाख किमी की लंबाई में फैली हुई हैं। पीले रंग का मील का पत्थर दर्शाता है कि, आप राष्ट्रीय राजमार्ग पर यात्रा कर रहे हैं। वर्ष 2021 के आंकड़ों के अनुसार, वे विभिन्न शहरों और राज्यों को एकीकृत करते हैं, और 151,019 किमी की लंबाई में फैले हैं। काली या नीली और सफेद पट्टियों वाले मील के पत्थर दर्शाते हैं कि, आप किसी शहर या जिले की सड़क पर यात्रा कर रहे हैं। वर्तमान में भारत में जिला सड़कों का 5,61,940 किमी लंबा नेटवर्क है।
राज्य राजमार्गों पर हरे रंग वाले मील पत्थरों को देखा जाता है। वे एक राज्य के विभिन्न शहरों को जोड़ते हैं, और 2016 में जारी आंकड़ों के अनुसार 176,166 किमी की लंबाई में फैले हुए हैं।
जीरो माइल केंद्र: 
ब्रिटिश काल के दौरान नागपुर शहर को, भारत में जीरो माइल केंद्र के रूप में पहचाना जाता था। यह वह स्थान था, जिसका उपयोग अन्य सभी प्रमुख शहरों की दूरी मापने के लिए संदर्भ बिंदु के रूप में किया जाता था।

संदर्भ
https://tinyurl.com/y47ck29k
https://tinyurl.com/35sxb62y
https://tinyurl.com/4zr3dytk

चित्र संदर्भ
1. कोस मीनार को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. हरियाणा में ग्रैंड ट्रंक रोड के किनारे पलवल में कोस मीनार को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. राष्ट्रीय प्राणी उद्यान दिल्ली में कोस मीनार को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. मील के पत्थर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)



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