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हम जानते ही हैं कि, प्राचीन भारतीय लिपियों में संस्कृत, पाली और खरोष्ठी सहित विभिन्न प्रकार की कुछ अन्य भाषाएं शामिल हैं। हालांकि, ये भाषाएं अब व्यापक रूप से नहीं बोली जाती हैं। फिर भी, इन भाषाओं एवं लिपियों को समझना महत्वपूर्ण है, क्योंकि इन लिपियों में इन भाषाओं में दर्ज कहानियों के मूल्यवान सबक शामिल हैं, जो अब इतिहास में खो गए हैं। इन कहानियों का भारतीय संस्कृति, देवी-देवताओं और पौराणिक कथाओं से भी कुछ संबंध है। आइए, आज दो महत्त्वपूर्ण लिपियों – पाली और खरोष्ठी की उत्पत्ति पर चर्चा करें।
पाली ‘थेरवाद बौद्ध धर्म’ यानी कि, पाली कैनन(Pāli Canon) या पाली भाषा में ‘टिपिटका’, के धर्मग्रंथों की भाषा है। ये ग्रंथ पहली शताब्दी ईसा पूर्व के दौरान श्रीलंका में लिखे गए थे। पाली को विभिन्न प्रकार की लिपियों में लिखा गया है, जिसमें ब्राह्मी, देवनागरी और अन्य इंडिक लिपियां शामिल हैं। साथ ही, इसमें पाली टेक्स्ट सोसाइटी(Pāli Text Society) के टी. डब्ल्यू. राइस डेविड्स(T. W. Rhys Davids) द्वारा तैयार की गई, लैटिन वर्णमाला (Latin alphabet) के एक संस्करण का भी उपयोग किया गया है।
दरअसल, पाली नाम का अर्थ है – “पंक्ति” या “(धर्मवैधानिक) पाठ”, और यह शब्द संभवतः टिप्पणी परंपराओं से आया है, जिसमें “पाली” (उद्धृत मूल पाठ की पंक्ति के अर्थ में) को, पांडुलिपि पृष्ठ पर आने के बाद, टिप्पणी या स्थानीय भाषा से अलग किया गया था।
आज पाली का अध्ययन मुख्य रूप से उन लोगों द्वारा किया जाता है, जो मूल बौद्ध धर्मग्रंथों को पढ़ना चाहते हैं, और अनुष्ठानों में अक्सर इसका उच्चारण किया जाता है। पाली में ऐतिहासिक और चिकित्सा ग्रंथों सहित गैर-धार्मिक पाठ हैं। वर्तमान समय के मुख्य क्षेत्र जहां पाली भाषा का अध्ययन किया जाता है, वे म्यांमार, श्रीलंका, थाईलैंड(Thailand), लाओस(Laos) और कंबोडिया(Cambodia) हैं।
दूसरी ओर, खरोष्ठी लिपि, जिसे ‘इंडो-बैक्ट्रियन(Indo-Bactrian)’ लिपि के रूप में भी जाना जाता है, वह एक लेखन प्रणाली थी। यह मूल रूप से वर्तमान उत्तरी पाकिस्तान में चौथी और तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व के बीच विकसित हुई थी। खरोष्ठी को एक इंडो-आर्यन भाषा(Indo-Aryan) – प्राकृत के एक रूप का प्रतिनिधित्व करने के लिए निर्मित किया गया था। इसका उत्तरी पाकिस्तान, पूर्वी अफगानिस्तान, उत्तर पश्चिम भारत और मध्य एशिया(Asia) में व्यापक लेकिन अनियमित वितरण था।
खरोष्ठी के शुरुआती पहचाने जाने योग्य उदाहरण गांधार (उत्तरी पाकिस्तान) के क्षेत्र में पाए गए हैं, जो सम्राट अशोक के शिलालेखों (तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व के मध्य) में मनसेहरा और शाहबाजगढ़ी शहरों में दर्ज हैं। भारतीय उत्तरपश्चिम क्षेत्र के बाहर, अशोक के शिलालेख प्राकृत में थे, जो ब्राह्मी लिपि में लिखे गए थे। लेकिन, गांधार क्षेत्र की ओर ये शिलालेख खरोष्ठी लिपि का उपयोग करके लिखे गए हैं। साथ ही, वे प्राकृत भाषा में या कभी-कभी सीधे अरामी(Aramaic) या ग्रीक(Greek) भाषाओं में भी अनुवादित किए गए हैं। वास्तव में, यह आश्चर्य की बात नहीं है, क्योंकि खरोष्ठी की उत्पत्ति फारसियों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली, सेमेटिक लिपि(Semitic script) के प्रभाव में हुई थी।
जब ईसा पूर्व 6वीं शताब्दी के अंत और 5वीं शताब्दी की शुरुआत के बीच, अचमेनिद फारसियों (Achaemenid Persians) ने गांधार और सिंधु पर नियंत्रण कर लिया, तो वे अपने साथ यहां अरामी भाषा लाए। तब अरामी भाषा को आधिकारिक रिकॉर्ड के लिए, संचार के मानक साधन के रूप में नियोजित किया गया था। लिखित स्तर पर, अरामी को उत्तरी सेमेटिक लिपि का उपयोग करके दर्शाया गया था। खरोष्ठी इस उत्तरी सेमेटिक लिपि का एक रूपांतर है, जिसे गांधारी के ध्वनिविज्ञान के अनुरूप अनुकूलित किया गया है। गांधारी भाषा जो गांधार और उसके आसपास के क्षेत्र में इस्तेमाल की जाने वाली एक प्राकृत बोली है।
क्या आप जानते हैं कि, सरकारी संग्रहालय और आर्ट गैलरी, चंडीगढ़ में ‘हरिति’ नामक एक सुंदर मूर्ति प्रदर्शित की गई है। यह बौद्ध देवता – ‘हरिति’, गांधारन कला का एक अच्छा उदाहरण है। इस देवता की मूर्ति, मूर्तिकला क्षेत्र में ग्रीक या हेलेनिस्टिक(Greek or Hellenistic) सांस्कृतिक प्रभाव को दर्शाती है, और इसमें खरोष्ठी लिपि में एक शिलालेख है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/3wamebbw
https://tinyurl.com/c6udyv9c
https://tinyurl.com/3bv6e2he
चित्र संदर्भ
1. पाली व खरोष्ठी लिपियों को संदर्भित करता एक चित्रण (World History Encyclopedia,wikimedia)
2. पाली पाण्डुलिपि को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. संस्कृत और पाली पाण्डुलिपि को दर्शाता एक चित्रण (PICRYL)
4. इंडो-ग्रीक राजा आर्टेमिडोरोस अनिकेटोस के सिक्के पर खरोष्ठी लिपि को दर्शाता एक चित्रण (wikipedia)
5. खरोष्ठी लिपि में लिखित पाण्डुलिपि को दर्शाता एक चित्रण (wikipedia)
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