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हमारा देश भारत अपने समृद्ध इतिहास के साथ साथ अपनी समृद्ध संस्कृति, परंपराओं और सामाजिक मूल्यों के लिए जाना जाता है। यह कहना अतिशयोक्तिपूर्ण न होगा कि हमारा देश भारत विविध संस्कृतियों का एक ऐसा रंग-बिरंगा गुलदस्ता है, जिसमें प्रत्येक संस्कृति रूपी फूल की अपनी एक अनोखी विशेषता है। यह विविधता प्रत्येक क्षेत्र की अनोखी विवाह परंपराओं में भी देखी जाती है। उत्तर से लेकर दक्षिण तक और पूर्व से लेकर पश्चिम तक प्रत्येक क्षेत्र और राज्य में होने वाले विवाह उत्सवों से संबंधित रीति रिवाजों एवं परंपराओं में कहीं समानता देखने को मिलती है तो कहीं पूरी तरह भिन्नता।
उत्तर भारत में जहाँ विवाह रात के दौरान संपन्न किये जाते हैं, वहीं दक्षिण भारत में विवाह उत्सव दिन के दौरान संपन्न होते हैं। जैसा कि हम उत्तर भारत में ही निवास करते हैं तो उत्तर भारत के विवाह उत्सवों के रीति रिवाज़ों से हम भली भांति परिचित हैं। तो आइये आज के अपने इस लेख के माध्यम से हम आपको दक्षिण भारत में संपन्न होने वाले विवाह उत्सवों की संस्कृति एवं परंपराओं के विषय में बताने का प्रयास करते हैं। इसके साथ ही यह भी जानते हैं कि दक्षिण भारतीय विवाह उत्सव उत्तर भारतीय विवाह समारोहों से कैसे भिन्न होते हैं।
दक्षिण भारत में विवाह के दौरान भव्य समारोह आयोजित किए जाते हैं। हालांकि पूरे भारतवर्ष में हिंदू विवाह में कुछ मुख्य रस्में तो आम होती हैं लेकिन दक्षिण भारतीय विवाह में कुछ अनूठी रस्मों एवं परंपराओं का पालन किया जाता है। केवल इतना ही नहीं दक्षिण में भी अलग अलग राज्यों में और कभी कभी राज्यों के अंदर अलग अलग क्षेत्रों में कुछ विशेष परंपराएं होती हैं। केरल में गठबंधन स्वीकृत होने के बाद, दोनों परिवार विवाह की तारीख तय करने के लिए मिलते हैं और एक सगाई समारोह आयोजित करके इसकी घोषणा कर देते हैं।
वहीं तमिलनाडु में दोनों परिवार विवाह से एक दिन पहले घर पर या मंदिर में अपने देवताओं से नए जोड़े के लिए आशीर्वाद प्राप्त करने की प्रार्थना करते हैं। इस रिवाज को पंडा काल मुहूर्तम कहा जाता है। दुल्हन सुखी वैवाहिक जीवन के लिए सुमंगली प्रार्थना करती है। चावल के आटे से पारंपरिक डिज़ाइन बनाए जाते हैं, जिन्हें 'कोलम' कहा जाता है। अनिष्ट से बचने के लिए दूल्हा-दुल्हन की कमर पर हल्दी से रंगा सूती धागा बांधा जाता है। जबकि कर्नाटक में आधिकारिक सगाई समारोह को निश्चय तामुलम कहते हैं, जिसमें माता-पिता दोनों पान के पत्तों का आदान-प्रदान करते हैं और दूल्हा और दुल्हन को अपने नए परिवारों से उपहार मिलते हैं। दोनों परिवारों में नंदी शास्त्र का पाठ किया जाता है, जहां विवाह समारोह की शुरुआत का संकेत देने के लिए घर में पानी से भरा एक तांबे का कलश और उसके ऊपर एक नारियल रखा जाता है। और तेलंगाना में विवाह से कुछ दिन पहले, पेलिकुटुरु और पेलिकोडुकु समारोह आयोजित किए जाते हैं, जिनमे परिवार की महिलाएं दूल्हा दुल्हन के शरीर पर आटा, हल्दी और सुगंधित तेल का पेस्ट लगाती हैं और उन्हें हल्दी के पानी से स्नान कराती हैं। हालांकि दक्षिण भारतीय विवाह में मेहंदी, संगीत और हल्दी समारोह उत्तर भारतीय परंपराओं के समान ही आयोजित किए जाते हैं।
विवाह के दिन तमिलनाडु में, दूल्हा और दुल्हन को उनके परिवार की विवाहित महिलाएँ हल्दी, चंदन और सिन्दूर का मिश्रण लगाती हैं और पवित्र जल से स्नान कराती हैं; इसे मंगला स्नानम कहा जाता है। दुल्हन देवी का आशीर्वाद पाने के लिए गौरी पूजा करती है। कर्नाटक में दूल्हे आसपास के सभी मंदिरों में जाते हैं और सभी देवताओं से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। केरल में, दूल्हे को दुल्हन के परिवार की महिलाएं 'थालम' में फूल, अगरबत्ती और दीपक जैसी विभिन्न शुभ वस्तुएं लेकर पारंपरिक वाद्ययंत्रों की ध्वनि के साथ मंडप तक ले जाती हैं। वहीं तमिलनाडु, तेलंगाना और कर्नाटक में दूल्हे एक छड़ी, छाता और कुछ भोजन लेकर काशी की ओर भागने का नाटक करते हैं - मानो कि यह उनके कुंवारे रहने का आखिरी मौका है। दुल्हन के पिता उसका पीछा करते हैं, और उसे विश्वास दिलाते हैं कि उनकी बेटी से विवाह करना उसके लिए बेहतर होगा। तेलुगु शादियों में, दुल्हन के पिता और भाई दूल्हे को गृहस्थ जीवन में प्रवेश करने के लिए मनाते हैं।
दक्षिण भारतीय विवाह में दुल्हन के विवाह स्थल पर पहुंचने के बाद दुल्हन के परिवार की ओर से पद पूजा समारोह किया जाता है। दुल्हन का परिवार दूल्हे के पैरों को गुलाब जल, पवित्र जल, दूध, चंदन और कुमकुम से धोता है। धोने के बाद पैरों को फूलों की पंखुड़ियों से पोंछा जाता है। यह एक सम्मान है जो दुल्हन का परिवार दूल्हे को देता है। काशी यात्रा और पद पूजा के बाद मलाई मात्रल समारोह होता है जिसमें दूल्हा और दुल्हन एक-दूसरे को फूल माला पहनाते हैं और इस अनुष्ठान को तीन बार दोहराया जाता है।
दक्षिण भारतीय विवाह में दूल्हे को भगवान विष्णु के प्रतिनिधि के रूप में देखा जाता है। दूल्हा-दुल्हन को जीवन भर के बंधन में बांधने के लिए, दुल्हन की साड़ी के सिरे को दूल्हे के अंगवस्त्रम के सिरे से बांधा जाता है। दुल्हन की माँ दूल्हे के पैर धोकर दूल्हे की आँखों में काजल लगाती है। फिर दुल्हन के पिता अपनी बेटी का हाथ पकड़कर उन्हें एक नारियल देते हैं जिस पर दुल्हन की मां पवित्र जल डालती है। फिर सप्तपदी की रस्म में दूल्हा-दुल्हन हाथ पकड़ते हैं और वैदिक मंत्रों के जाप के साथ पवित्र अग्नि के चारों ओर सात बार परिक्रमा करते हैं।
दक्षिण भारतीय विवाह की वह विशेषता जो उत्तर भारतीय विवाह से पूरी तरह अलग है, वह है दूल्हे और दुल्हन के विवाह के जोड़े। दक्षिण भारतीय विवाह में दूल्हे को क्रीम रंग की रेशमी शर्ट, या कुर्ता, और धोती, या मुंडू पहनाया जाता है। तेलुगु और कन्नड़ दूल्हे कपड़े की पगड़ी पहनते हैं। वही दक्षिण भारतीय दुल्हन विवाह के दिन सोने के आभूषणों, और लाल एवं अन्य जीवंत रंगों की रेशमी साड़ी में पूरी तरह खिल जाती है। कुछ समुदायों में, दूल्हा इस समय दुल्हन को 'पुदावा' या दुल्हन की साड़ियाँ उपहार में देता है। केरल की दुल्हनें आम तौर पर ऑफ-व्हाइट या क्रीम रंग की वेष्टी-मुंडू, या बॉर्डर वाली बनारसी रेशम की साड़ियाँ पहनती हैं। तमिलनाडु में दुल्हन आम तौर पर या तो पारंपरिक 9 गज़ की 'मदिसार' साड़ी या गहना टोन में भारी कांचीपुरम साड़ी पहनती है। तेलुगु और कन्नड़ दुल्हनें पारंपरिक रूप से लाल, हरे, मैरून, बैंगनी जैसे गहरे रंगों वाली साड़ियां पहनती है। काले और सफेद रंग को अशुभ माना जाता है और आमतौर पर दुल्हन इसे कभी नहीं पहनती है।
आइए अब जानते हैं कि दक्षिण भारतीय विवाह उत्तर भारतीय विवाह समारोहों से किस तरह भिन्न होते हैं:
1. समारोह और अनुष्ठान: आमतौर पर, दक्षिण भारतीय विवाहों को धार्मिक और पारंपरिक परंपराओं से चिह्नित किया जाता है। शुभ "मुहूर्त" से लेकर मालाओं के आदान-प्रदान और मंगलसूत्र बांधने तक, प्रत्येक रस्म को मंत्रोच्चारण के साथ संपन्न किया जाता है। दूसरी ओर, उत्तर भारतीय विवाहों में हल्दी, संगीत और जूता छुपाई जैसे रीति-रिवाज दक्षिण से पूरी तरह अलग होते हैं।
2. गहने और कपड़े: दक्षिण भारत में दुल्हन आमतौर पर पारंपरिक रेशम की साड़ी और सोने के आभूषण पहनती है। दूसरी ओर, उत्तर भारतीय दुल्हन "पोल्की" और "कुंदन" सेट जैसे अलंकृत सोने के आभूषणों के साथ रंगीन साड़ी या लहंगा पहनना पसंद करती हैं। वही दक्षिण भारतीय दूल्हे सफेद या क्रीम रंग की शर्ट और धोती पहनते हैं तो उत्तर भारतीय दूल्हे जड़ाऊ शेरवानी या सूट पहनना पसंद करते हैं।
3. भोजन: उत्तर और दक्षिण दोनों विवाह समारोहों में प्रत्येक क्षेत्र की विविध पाक परंपराओं को दर्शाया जाता है। दक्षिण भारतीय विवाह में डोसा, इडली, वड़ा जैसे व्यंजन और चावल से बने कई व्यंजन शामिल होते हैं। दूसरी ओर, उत्तर भारतीय विवाह में समृद्ध करी और स्वादिष्ट कबाब से लेकर जलेबी और गुलाब जामुन जैसी समृद्ध मिठाइयों तक विविध प्रकार के भोजन शामिल होते हैं। उत्तरी शादी की दावतों के मुख्य आकर्षणों में स्वादिष्ट बिरयानी और तंदूरी रसोई के व्यंजन भी शामिल हैं।
4. स्थान और सजावट: दोनों क्षेत्रों के बीच विवाह समारोह के माहौल और शैली में बड़ा अंतर है। दक्षिण भारतीय विवाहों में पारंपरिक फूलों की सजावट और रूपांकन आम हैं। आयोजन स्थलों को मुख्य रूप से आम के पत्तों और सुगंधित चमेली के फूलों से सजाया जाता है। दूसरी ओर, उत्तर भारतीय विवाहों में महंगी सजावट, जटिल मंच सेट, जीवंत पर्दे और विस्तृत पुष्प पृष्ठभूमि, आदि पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।
5. नृत्य और संगीत: भारत में किसी भी क्षेत्र में विवाह उत्सव को संगीत और नृत्य के बिना पूरा नहीं माना जाता। दक्षिण भारतीय विवाह में नादस्वरम और मृदंगम जैसे पारंपरिक वाद्ययंत्रों के साथ भरतनाट्यम जैसे शास्त्रीय नृत्यों और कर्नाटक संगीत का मंच पर आयोजन होता है । वहीं दूसरी ओर, शहनाई और ढोल की आवाज़ के साथ गिद्दा और भांगड़ा जैसे जीवंत लोक नृत्य अक्सर उत्तर भारतीय विवाहों से जुड़े होते हैं। उत्तर भारतीय विवाह समारोहों में मंच पर अक्सर बॉलीवुड संगीत और नृत्य प्रदर्शन शामिल होते हैं।
6. निमंत्रण पत्र: परंपरागत रूप से, अक्सर धार्मिक विषयों, या देवताओं की तस्वीरों के साथ, दक्षिण भारतीय विवाह निमंत्रण पत्र, सुंदर और विनम्र होते हैं, । इनमें विवाह समारोह के प्रमुख तत्वों को सटीक और संक्षिप्त रूप से व्यक्त करने पर ध्यान केंद्रित किया जाता है। दूसरी ओर, उत्तरी विवाह निमंत्रण पत्र भव्य और विस्तृत होते हैं, जिनमें समृद्ध डिजाइन, ज्वलंत रंग और फ़ॉइलिंग, एम्बॉसिंग और लेजर-कट विवरण जैसे अलंकरण होते हैं। ये निमंत्रण कला के नमूने होते हैं जो उत्तर भारतीय विवाहों की समृद्धि और भव्यता को दर्शाते हैं।
7. विवाह से पहले और बाद की परंपराएं: उत्तर और दक्षिण क्षेत्रों के विवाह समारोह की पहले और बाद की परंपराएं भिन्न भिन्न होती हैं। जबकि उत्तरी विवाह में संगीत और हल्दी समारोह जैसी विवाह से पहले की रस्में नृत्य, संगीत और मौज-मस्ती से भरपूर होती हैं, दक्षिण भारतीय विवाहों में मेहंदी समारोह और निश्चयार्थम (सगाई) जैसी विवाह से पहले की रस्में, सादगी से की जाती हैं। गृहप्रवेशम समारोह, जो दुल्हन का उसके नए घर में स्वागत को संदर्भित करता है, और सप्तपदी समारोह, जिसमें पवित्र अग्नि के चारों ओर सात फेरे लगाना शामिल है, विवाह के बाद के रीति-रिवाज़ हैं जो जोड़े की एक साथ यात्रा का प्रतिनिधित्व करते हैं।
वास्तव में दोनों क्षेत्रों की विवाह रस्मों एवं परंपराओं में यह अंतर, प्रत्येक क्षेत्र एवं राज्य के विशिष्ट ऐतिहासिक रीति-रिवाज़, पोशाक, भोजन और सांस्कृतिक गतिविधियों के कारण होता है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/2p9pfmtm
https://tinyurl.com/2kfut887
https://tinyurl.com/459yva26
चित्र संदर्भ
1. उत्तर और दक्षिण भारत के विवाह को संदर्भित करता एक चित्रण (Wikimedia)
2. विवाह में हल्दी की रस्म को दर्शाता एक चित्रण (Wikimedia)
3. पुडुचेरी में हो रही एक भव्य शादी को दर्शाता एक चित्रण (Wikimedia)
4. दक्षिण भारतीय विवाह समारोह को संदर्भित करता एक चित्रण (Wikimedia)
5. पारंपरिक दक्षिण भारतीय विवाह को संदर्भित करता एक चित्रण (Wikimedia)
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