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धारणा खंडन: इंद्रियों की विशालता को समझिए और जीवन में सुधार कीजिए

जौनपुर

 26-02-2024 09:29 AM
विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

ज्ञानेन्द्रियाँ (आँख, कान, त्वचा, नाक और जीभ) इस दुनियाँ की प्रत्येक वस्तु या दृश्य का अनुभव लेने के लिए सबसे प्राथमिक माध्यम मानी जाती हैं। इंद्रियां ही हमें हमारे आस-पास की चीज़ों को देखने, सुनने, महसूस करने, सूंघने और स्वाद लेने की अनुमति देती हैं। हमारी सभी इंद्रियों में विशेष कोशिकाएं होती हैं, जो वस्तुओं या ऊर्जाओं को हमारे मस्तिष्क की समझ में आने योग्य संकेतों में बदल सकती हैं। इसी समझ को अनुभूति कहा जाता है। फिर हमारा मस्तिष्क, इन संकेतों का उपयोग दुनिया की छवि बनाने के लिए करता है। दुनियाँ की इसी अंतिम छवि को धारणा कहा जाता है। हालाँकि इंद्रियों का विस्तार केवल आंख, नाक, जीभ, कान और त्वचा जैसी हमारी शारीरिक इंद्रियों तक ही सीमित नहीं हैं। वास्तव में इंद्रियाँ एक ऐसा माध्यम भी हैं, जो हमें हमारी आत्मा या हमारे आस-पास की दुनिया को देखने और इसकी गहरी समझ लेने में भी मदद करती है।
हमारी इंद्रियाँ हमारे वातावरण से जो भी संवेदनाएँ ग्रहण करती हैं, उससे हमें दुनिया को उसके वास्तविक रूप में समझने और सीखने में मदद मिलती है।
इंद्रियों के लिए “इंद्रिय” शब्द “इंद्र” नामक मूल शब्द से लिया गया है, जिसका अर्थ “आत्मा” होता है। इस प्रकार, इंद्रियाँ एक ऐसी भावना भी है, जो विभिन्न माध्यमों से हमारी आत्मा से जुड़ी हुई होती है।
अधिक स्पष्ट रूप से समझने के लिए इंद्रियों को तीन व्यापक श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता है:
1. बुद्धि इंद्रियां या ज्ञानेंद्रियां: हमारी इन इंद्रियों में आंखें (देखने के लिए), कान (सुनने के लिए), नाक (गंध के लिए), जीभ (स्वाद के लिए), और त्वचा (स्पर्श के लिए) शामिल हैं।
2. कर्म इन्द्रियाँ: ये कर्म में संलग्न इन्द्रियाँ होती हैं।
3. उभय इंद्रिय: उभय इंद्रिय अथवा इंद्रियों का तात्पर्य किसी ऐसी चीज़ से है, जिसमें संवेदी और मोटर दोनों कार्य होते हैं। "मोटर अंग" हमारे शरीर के उन हिस्सों को संदर्भित करते हैं, जो हमें शारीरिक क्रियाएं करने की अनुमति देते हैं। इनमें आम तौर पर हमारी मांसपेशियां और हमारे तंत्रिका तंत्र के वे हिस्से शामिल होते हैं, जो मांसपेशियों को नियंत्रित करते हैं। जब हम चीजों या घटनाओं को समझ रहे होते हैं, तो उस समय हमारे संवेदी अंग (जैसे हमारी आंखें, कान, नाक, जीभ और त्वचा) सक्रिय होते हैं, और जब हम शारीरिक गतिविधियां कर रहे होते हैं, तो उस समय हमारे मोटर अंग (जैसे हमारी मांसपेशिया) सक्रिय होती हैं।
हमारी पांच इंद्रियां या पंच इंद्रियां हमें मानसिक सद्भाव की ओर ले जाती हैं। हमारी पांच इंद्रियां हमें शांत और स्वस्थ महसूस करने में मदद करती हैं। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि हमारी पांच इंद्रियां हमारे मन को हमारे भीतर और बाहर की चीज़ों से जोड़ने का काम करती हैं।
प्राचीन चिकित्सा पद्धति “आयुर्वेद” में भी पांच इंद्रियों को बहुत अधिक महत्व दिया गया है। आयुर्वेद में इन्हें पंच इंद्रिय कहा गया है, जिसका अर्थ पांच संवेदी अंग होता है। प्रत्येक इंद्रिय पांच तत्वों अर्थात् पंच तत्वों (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश) में से एक से संबंधित है। ये तत्व हमारे आसपास की प्रत्येक वस्तु में विद्यमान होते हैं, लेकिन प्रत्येक मामले में एक तत्व दूसरे तत्व से अधिक मजबूत होता है। अरस्तू के अनुसार, जो वस्तुएँ हमारी इंद्रियों को उत्तेजित करती हैं या उत्तेजित करने का प्रयास करती हैं, उन्हें "इंद्रिय वस्तुएं" कहा जाता है। उदाहरण के लिए, हमारी आंखें नींबू पानी की खटास का स्वाद नहीं ले सकतीं, न ही हमारी जीभ छोटी और ऊंची मूर्ति के बीच अंतर कर सकती है। जब कोई जीवित प्राणी किसी "इंद्रिय वस्तु" को देखता है, तो उसकी "इंद्रिय संकाय" या बस "इंद्रियां" उस वस्तु अथवा विषय के साथ संबंध स्थापित करने के लिए सक्रिय हो जाती हैं।
"इंद्रिय वस्तुओं" से प्रभावित होने की क्षमता, पदार्थ की विशिष्ट विशेषता पर निर्भर होती है। जीवित पदार्थ में, इस क्षमता को "इंद्रिय संकाय" के रूप में जाना जाता है! हमारी इंद्रियाँ अविश्वसनीय रूप से शक्तिशाली होती हैं, और "इंद्रिय वस्तुओं" के साथ अनिश्चित काल तक तथा असीमित शक्ति के साथ संबंध स्थापित कर सकती हैं।
जितना अधिक हम अपनी इंद्रियों को सक्रिय करेंगे, उतनी ही अधिक जागरूकता का स्तर हम अपने आस-पास की दुनिया से जुड़ी अपनी समझ में ला सकते हैं। जिस प्रकार कुछ जीव, जैसे साँप, सुनने के लिए अपनी आँखों का उपयोग करते हैं। इसी तर्ज़ पर यह भी संभव है कि हमारी कुछ "इंद्रियाँ" उन "इंद्रिय वस्तुओं" पर प्रतिक्रिया करने के लिए सक्रिय हो सकती हैं, जो उनकी मूल इंद्रिय क्षमता के अनुरूप नहीं हैं। यानी दार्शनिक रूप से यह संभव है, कि हमारे कान हमारी आँखों का काम करने लगे। हमारी "इंद्रियों" और "इंद्रिय वस्तुओं" के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए गहरे ध्यान और आत्मनिरीक्षण की आवश्यकता होती है। पवित्र धार्मिक ग्रंथ "भगवद गीता" भी इस अवधारणा को गहराई से उजागर करती है।
भावार्थ: जब इंद्रियां, इंद्रिय विषयों से संपर्क करती हैं, तो मनुष्य को सर्दी या गर्मी अथवा सुख या दर्द का अनुभव होता है। ये अनुभव क्षणभंगुर हैं; वे आते हैं और चले जाते हैं।

संदर्भ
http://tinyurl.com/38vjw53u
http://tinyurl.com/mw484aps
http://tinyurl.com/34dmve29
http://tinyurl.com/n6fwf4h6

चित्र संदर्भ
1. पांच इन्द्रियों के प्रयोग को संदर्भित करता एक चित्रण (Rawpixel)
2. संवेदी अंगों को दिखाते बच्चे को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
3. प्राणायाम करते योगी को दर्शाता एक चित्रण (Look and Learn)
4. स्वस्थ शरीर के लक्षणों को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
5. एक दृष्टि बाध्य स्त्री को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)



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