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भारत के अंडमान द्वीपसमूह पर स्थित सक्रिय ज्वालमुखी का कैसे किया जाता है अध्ययन?

जौनपुर

 21-02-2024 09:20 AM
पर्वत, चोटी व पठार

दिसंबर 2021 में प्रशांत महासागर के पास एक ज्वालामुखी विस्फोट हुआ था। यह विस्फोट इतना बड़ा था कि इसके झटके पूरी दुनिया में महसूस किए गए थे। इस ज्वालामुखी के कारण प्रशांत महासागर में सुनामी आ गई थी। ज्वालामुखी विस्फोट पूरी दुनिया के लिए विनाशकारी हो सकता है। तो आइए आज के अपने इस लेख के माध्यम से ज्वालामुखी विस्फोट और इनकी भयंकरता के विषय में जानते हैं। साथ ही भारत में सक्रिय ज्वालामुखी के बारे में जानते हैं।
ज्वालामुखी वे छिद्र या सूराख़ होते हैं, जहां से लावा (Lava), टेफ़्रा (Tephra) अर्थात, छोटी चट्टानें और भाप पृथ्वी की सतह से बाहर निकलते हैं। ऐसा ज्वालामुखी विस्फोट कई दिनों, महीनों या वर्षों तक भी चल सकता है। दरअसल, ज्वालामुखी विस्फोट का प्रभाव सैकड़ों किलोमीटर दूर स्थान पर भी महसूस किया जा सकता है। ज्वालामुखीय राख और ज्वलखंडाश्मी प्रवाह (Pyroclastic flows) सल्फर डाइऑक्साइड (Sulphur dioxide) और धातु जैसे कणों से भरे होते हैं। ये हमारी सुरक्षा, स्वास्थ्य और आर्थिक कल्याण को हानि पहुंचा सकते हैं। ज्वालामुखीय विस्फोट तब होता है, जब मैग्मा (Magma) अर्थात, पिघली हुई चट्टानों का तरल पृथ्वी के अंदर से जमीन पर बने किसी छिद्र से ऊपर उठकर बाहर निकलता है। वायुमंडल में इन विस्फोटों से अत्यधिक ऊष्मा के साथ साथ धातुओं के टुकड़े, चट्टानें, पानी, अम्लऔर कार्बन डाइऑक्साइड (Carbon dioxide) और सल्फर (Sulpher) जैसी गैसें फैल जाती हैं। ज्वालामुखीय भूभाग का निर्माण विस्फोटित लावा के धीमे संचय से होता है। ये ज्वालामुखीय छिद्र शंकु के आकार के पहाड़ के शिखर पर, एक छोटे कटोरे के आकार के अवसाद के रूप में दिखाई दे सकते हैं। ज्वालामुखी के भीतर और नीचे दरारों की एक श्रृंखला के माध्यम से, छिद्र पिघली हुई या आंशिक रूप से पिघली हुई चट्टान अर्थात, मैग्मा के एक या अधिक भंडारण क्षेत्रों से जुड़ा होता है। जब तक मैग्मा पूरी तरह से निकल नहीं जाता तब तक ज्वालामुखी बार बार फूटता रहता है। जबकि, ज्वालामुखी भूभागों के टुकड़े चट्टान गिरने या भूस्खलन के रूप में ढह जाते हैं।
ज्वालामुखी विस्फोट से प्रत्यक्ष दिखाई देने वाले वायुमंडलीय एवं भौतिक खतरे तो होते ही हैं साथ ही बिजली कटौती, खराब वायु गुणवत्ता, जंगल की आग और विमानन में व्यवधान जैसी अप्रत्यक्ष समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं। इसीलिए, ऐसे खतरों का मानचित्रण और पूर्वानुमान लगाना महत्वपूर्ण है। ऐसे कई तरीके हैं, जिनसे ज्वालामुखी विस्फोट के जोखिम की निगरानी की जा सकती है। ज्वालामुखी विस्फोट से पहले, ज्वालामुखी प्रवण क्षेत्र का आकार बदलने लगता है, क्योंकि, उनमें से मैग्मा ऊपर उठता है। ज्वालामुखी की सतह के आकार में परिवर्तन का पता लगाने के लिए, टिल्टमीटर (Tiltmeters) और उपग्रहों या सैटेलाइट (Satellite) का उपयोग किया जाता है।
ज्वालामुखी के चारों ओर रेडॉन (Radon) और सल्फर जैसी गैसों के स्तर की जांच कर के भी ज्वालामुखी की सक्रियता का पता लगाया जा सकता है। क्योंकि, ये अक्सर ज्वालामुखी गतिविधि से पहले निकलने लगती हैं। साथ ही, ज्वालामुखी की सतह के तापमान में परिवर्तन का पता लगाने के लिए, थर्मल हीट सेंसर (Thermal heat sensor) का उपयोग किया जा सकता है। क्योंकि मैग्मा के स्तर के बढ़ने पर ज्वालामुखी की सतह के तापमान में वृद्धि होती है। इसके अलावा, जैसे ही मैग्मा ऊपर बढ़ता है, इससे छोटे भूकंप आ सकते हैं। भूकंपमापी और लेजर (Laser) का उपयोग पृथ्वी की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए किया जाता है, जो अक्सर ज्वालामुखी विस्फोट से पहले हो सकती हैं। टेक्टोनिक प्लेटों (Tectonic plates), जिन भू–आकृतियों से पृथ्वी की सतह बनी है, की गति और ज्वालामुखी की सतह में परिवर्तन की निगरानी करके, वैज्ञानिक ज्वालामुखी विस्फोट की संभावना का अनुमान लगा सकते हैं। इससे यह भी पूर्वानुमान लगाया जा सकता है कि, किन क्षेत्रों को इसके लिए तैयार रहना चाहिए। पूर्वानुमान से, निकासी योजनाओं को शुरू करने के लिए समय मिल जाता है।
ज्वालामुखी विस्फोट के जोखिमों को कम करना सबसे चुनौतीपूर्ण सुरक्षा पहलुओं में से एक है। क्योंकि ज्वालामुखी से लावा प्रवाह, लहार (Lahar) और राख गिरने से बचाव नहीं किया जा सकता है। इसके परिणामस्वरूप, ज्वालामुखी विस्फोट से जुड़े जोखिमों को कम करने का एकमात्र वास्तविक तरीका इससे निकासी है। अतीत में भी, ज्वालामुखी विस्फोट के जोखिम से मानव बस्तियों को बचाने के लिए, कई तकनीकों का उपयोग किया गया है। ज्वालामुखी के विषय में जानकर आपके मन में एक प्रश्न अवश्य उठा होगा कि क्या भारत में भी कोई ज्वालामुखी प्रवण क्षेत्र मौजूद है? दिलचस्प तथ्य यह है कि, हमारे देश भारत में कुल आठ ज्वालामुखी हैं। हालांकि, इनमें से केवल एक ही ज्वालामुखी सक्रिय है। शेष ज्वालामुखी सक्रिय अवस्था में नहीं हैं, अर्थात, उनमें हाल के वर्षों में विस्फोट नहीं हुआ है। इन आठ ज्वालामुखियों में, मिट्टी के ज्वालामुखी (Mud volcanoes) भी शामिल हैं। भारत में सबसे हालिया ज्वालामुखी विस्फोट, वर्ष 2017 में, बैरन द्वीप (Barren Island) पर हुआ था। यही, देश की एकमात्र सक्रिय ज्वालमुखी है, जो अंडमान एवं निकोबार द्वीपसमूह में स्थित है। बैरन द्वीप सुमात्रा (Sumatra) से म्यांमार (Myanmar) तक फैली, एकमात्र सक्रिय ज्वालामुखी श्रृंखला है।
इसके अलावा धोसी पहाड़ी (हरियाणा), धिनोधर पहाड़ी (गुजरात) और तोशाम पहाड़ी (हरियाणा) भारत में तीन विलुप्त ज्वालामुखी हैं। भारत में कुछ ऐसे ज्वालामुखी भी हैं, जिन्हें सक्रिय, निष्क्रिय या मृत नहीं माना जाता है। हमारे देश भारत में पाये जाने वाले अन्य प्रमुख ज्वालामुखी, नारकोंडाम (अंडमान एवं निकोबार द्वीपसमूह), डेक्कन ट्रेप्स (Deccan Traps), बारातांग (अंडमान एवं निकोबार द्वीपसमूह) एवं लोकतक झील (मणिपुर) आदि हैं।

संदर्भ
http://tinyurl.com/5n6mdkxd
http://tinyurl.com/nztn8tdx
http://tinyurl.com/y9s4r98v
http://tinyurl.com/ysexamvm
http://tinyurl.com/32ue6dpe

चित्र संदर्भ
1. अंडमान द्वीपसमूह पर स्थित सक्रिय ज्वालमुखी को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. अंडमान द्वीपसमूह को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
3. ज्वालमुखी आरेख को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. ज्वालमुखी विस्फोट को दर्शाता एक चित्रण (DeviantArt)
5. भारत में सबसे हालिया ज्वालामुखी विस्फोट, वर्ष 2017 में, बैरन द्वीप (Barren Island) पर हुआ था। को संदर्भित करता एक चित्रण (garystockbridge617)



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