जौनपुर - सिराज़-ए-हिन्द
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शुरुआत से ही चेंबर ऑफ़ कॉमर्स का प्राथमिक उद्देश्य रहा है, स्थानीय व्यवसायों का समर्थन करना
आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक
Modern State: 1947 to Now
20-02-2025 09:23 AM
Jaunpur District-Hindi
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क्या आप जानते हैं कि, 'चेंबर ऑफ़ कॉमर्स' एक ऐसा नेटवर्क या संगठन होता है, जिसमें स्थानीय व्यापार मालिक और उद्यमी शामिल होते हैं। ये संगठन, अपने सदस्यों के हितों को बढ़ावा देने और उनकी रक्षा करने के लिए, आमतौर पर एक विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र या उद्योग क्षेत्र के भीतर बने होते हैं। चेंबर ऑफ़ कॉमर्स का प्राथमिक उद्देश्य व्यावसायिक समुदाय का समर्थन करना और नीतियों की वकालत करना है, जो एक स्वस्थ व्यावसायिक वातावरण के लिए अनुकूल हों। हालांकि, यह भी सत्य है कि, व्यवसायों के फलने-फूलने के लिए प्रोत्साहन के साथ-साथ विज्ञापन और प्रचार की आवश्यकता होती है। इसमें मुख्य भूमिका आती है शहर से संबंधित येलो पेज और ई-कार्ड्स की। आपको यह जानकर गर्व होगा कि, भारत की पहली हिंदी येलो पेज और ई-कार्ड्स पहल की शुरुआत, प्रारंग द्वारा की गई है। हमारे जौनपुर के पोर्टल पर इनके उपयोग बारे में भी बताया गया है। यहां निःशुल्क खाता खोलने और शहर में अपने उत्पादों को साझा करने के लिए आपको बस एक मोबाइल नंबर की आवश्यकता है। हमारे शहर जौनपुर के लिए आप इस लिंक पर क्लिक करके पूरी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं:
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तो आइए, आज चेंबर्स ऑफ़ कॉमर्स की शुरुआत के बारे में जानते हैं और यह समझने का प्रयास करते हैं कि चेंबर ऑफ़ कॉमर्स को अपने कार्यकाज के लिए धन कहां से प्राप्त होता है। इस संदर्भ में, हम इस बात पर भी चर्चा करेंगे कि क्या भारत में चेंबर्स ऑफ़ कॉमर्स को अपने राजस्व को उत्पन्न करने के तरीके से फिर से विचार करने की आवश्यकता है। इसके साथ ही, हम बंगाल चेंबर ऑफ़ कॉमर्स की उत्पत्ति, उद्देश्यों और इसके सदस्यों के बारे में जानेंगे।
चेंबर ऑफ़ कॉमर्स की शुरुआत:
हालांकि, जबसे वाणिज्य अस्तित्व में है, तब से ही व्यापारियों ने अपने हितों की रक्षा के लिए एक साथ मिलकर संगठनों में कार्य किया है। लेकिन, किसी भी ऐसे संगठन के लिए "चेंबर ऑफ़ कॉमर्स" शब्द का पहला ज्ञात उपयोग मार्सिले, फ़्रांस में हुआ, जहां 17 वीं शताब्दी के अंत में नगर परिषद द्वारा इस तरह के एक संगठन की स्थापना की गई थी। यद्यपि ये संगठन व्यवसायों के संघ थे, ये अक्सर अर्ध-सार्वजनिक एजेंसियों के रूप में काम करते थे, और व्यापार के संबंध में प्रशासनिक और न्यायिक शक्तियों के साथ निहित थे।
अमेरिकी महाद्वीप में सबसे पुराना चेंबर ऑफ़ कॉमर्स न्यूयॉर्क में 1768 में बीस न्यूयॉर्क व्यापारियों के एक समूह द्वारा आयोजित किया गया एक राज्यव्यापी चेंबर था। इस इमारत को अब फ्राउंस टैवर्न (Fraunces Tavern) के नाम से जाना जाता है। उस चेंबर को 1770 में दो साल बाद किंग जॉर्ज III द्वारा अधिकृत किया गया। दूसरा सबसे पुराना चेंबर 'चार्ल्सटन, एससी चेंबर' 1773 में बनाया गया था। 1790 तक, स्थानीय चेंबर्स की संख्या बढ़कर 40 हो गई थी। शुरुआत में अमेरिकी चेंबरचेंबर्स, यूरोप की तरह, वाणिज्य के संरक्षण और प्रचार के लिए बनाए गए थे। उदाहरण के लिए, न्यूयॉर्क स्टेट चेंबर की स्थापना 'स्टैम्प टैक्स एक्ट' के परिणामस्वरूप हुई थी। व्यवसायी संघों के रूप में, शुरुआती चेंबरचेंबर्स ऑफ़ कॉमर्स ने माल की बिक्री को बढ़ावा देने का कार्य शुरू किया।
उन्होंने बाज़ारों को सुनियोजित , व्यापार के नियमों को लागू और पारगमन में संरक्षित वस्तुओं को संरक्षित किया। लेकिन उनकी गतिविधियाँ, वाणिज्य से सीधे संबंधित लोगों तक सीमित थीं। एक सच्चे सामुदायिक संगठन के रूप में, चेंबर ऑफ़ कॉमर्स का उद्भव, बाद में आया जब व्यापारियों ने महसूस किया कि, उनकी अपनी समृद्धि, एक समृद्ध, स्वस्थ और खुश समुदाय के विकास पर निर्भर थी। एक अच्छी व्यावसायिक जलवायु को बनाए रखा जाना चाहिए। 1925 तक, यह माना जाता था कि, इन चेंबर्स को, अपने उद्देश्य के लिए सही होने के लिए, मुख्य रूप से व्यावसायिक संगठन बने रहना चाहिए और व्यवसाय के दृष्टिकोण को व्यक्त करना चाहिए।
चेंबर ऑफ़ कॉमर्स को धन कहां से मिलता है ?
स्थानीय चेंबर ऑफ़ कॉमर्स, सरकारी एजेंसी नहीं होते हैं। इसका अर्थ यह है कि, इन्हें सरकार से कोई पैसा नहीं मिलता है। इन संगठनों को अक्सर गैर -लाभकारी संगठनों के रूप में संचालित किया जाता है, जिसका अर्थ है कि वे लाभ कमाने का प्रयास नहीं करते हैं। ये समूह विभिन्न स्रोतों के माध्यम से धन जुटाते हैं, जिसमें शामिल हैं:
1. सदस्य बकाया: सभी व्यवसाय, जो किसी चेंबर ऑफ़ कॉमर्स में शामिल होते हैं, उन्हें मिलने वाले लाभों के बदले में कुछ राशि का भुगतान करना होता है। कुछ संगठनों में अधिक लाभों के लिए उच्च शुल्क के साथ अलग-अलग सदस्यता स्तर होते हैं।
2. अनुदान संचय समारोह: कुछ समूह अपने वित्त पोषण के लिए समुदाय में अनुदान संचय समारोह रखते हैं।
3. निजी दान: स्थानीय चेंबर ऑफ़ कॉमर्स को कुछ लोग, मुख्य रूप से व्यापारी वर्ग, निजी रूप से दान करते हैं।
4. समारोह प्रवेश शुल्क: चेंबर ऑफ़ कॉमर्स कुछ ऐसे समारोह आयोजित करते हैं, जिनमें प्रवेश के लिए शुल्क लगाया जाता है, जैसे कि व्यापार मेले आदि।
क्या भारत में विभिन्न चेंबर्स ऑफ़ कॉमर्स को राजस्व उत्पन्न करने के अपने तरीके पर फिर से विचार करना चाहिए ?
मार्च 2020 में, कोविड-19 महामारी के चलते लॉकडाउन के बाद से, भारत में चेंबर ऑफ़ कॉमर्स को प्राप्त होने वाला राजस्व बिल्कुल ना के बराबर हो गया। इन्हें मूल रूप से तीन स्रोतों - सदस्यता/समारोहों/प्रायोजकों से राजस्व प्राप्त होता है, लेकिन इस दौरान ये सभी स्रोत गंभीर रूप से प्रभावित हुए। समारोहों को, जिनसे आमतौर पर 20-30% राजस्व प्राप्त होता था, पूरी तरह से बंद कर दिया गया। वहीं अनिश्चितता के चलते, व्यक्ति एवं व्यापारी वर्ग इनकी सदस्यता लेने से भी कतराने लगे। हालांकि, अब जब महामारी का खतरा टल चुका है, तो चेंबर्स चेंबर्स अपनी सदस्यता संख्याओं के पुनर्निर्माण की कोशिश कर रहे हैं और यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि प्रायोजकों को वापस कैसे प्राप्त किया जाए। लेकिन, बड़े व्यवसाय, आज भी संभलने की कोशिश कर रहे हैं और इसी कारण, कई बार, वे चेंबर सदस्यता में निवेश नहीं करना चाहते हैं। वहीं, छोटे व्यवसाय, इन चेंबरों में शामिल नहीं होते हैं। यहां समस्या यह है, चेंबर ऑफ़ कॉमर्स अपने सदस्य बनाने के लिए नए तरीके बनाने के बजाय, पुराने तरीकों को और अधिक आकर्षक बनाने की कोशिश कर रहे हैं जो वास्तव में पर्याप्त नहीं है। सदस्यता और प्रायोजन पैकेजों को फिर से शुरू करने के बजाय, उन्हें अधिक आकर्षक साझेदारी और योजनाएं प्रस्तुत करनी चाहिए। वास्तव में, यदि कोविड ने हमें कुछ भी सिखाया है, तो यह है कि इन चेंबरों के सदस्यों को भूगोल की सीमाओं से बाधित न होकर, केवल अपने स्थानीय समुदायों से बात करने की आवश्यकता नहीं है, वे कहीं भी, किसी के साथ भी बात कर सकते हैं!
बंगाल चेंबर ऑफ़ कॉमर्स की उत्पत्ति:
बंगाल चेंबर ऑफ़ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (Bengal Chamber of Commerce and Industry) की स्थापना, 1853 में हुई थी। हालांकि, चेंबर की उत्पत्ति 1833 में हुई थी, जब इसके संस्थापक देश में अपनी तरह का पहला संघ बनाने के लिए एक साथ आए थे। बाद में, इसे बंगाल चेंबर के रूप में औपचारिक रूप दिया गया था। पिछली डेढ़ शताब्दियों में, इस संगठन ने भारत में वाणिज्य और उद्योग के विकास को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
बंगाल चेंबर ऑफ़ कॉमर्स के उद्देश्य:
1. व्यापार में उचित और न्यायसंगत सिद्धांतों को स्थापित करना,
2. व्यवसाय के लेनदेन को सुविधाजनक बनाने के लिए, एक कोड या नियम स्थापित करना,
3. व्यापार के नियमों, विनियमों और उपयोगों में एकरूपता बनाए रखना,
4. दुनिया भर में वाणिज्य और अन्य व्यापारिक और सार्वजनिक निकायों के चैंबरों के साथ संवाद करना,
5. व्यापार और व्यापारियों की सुरक्षा के लिए उपायों को बढ़ावा देना।
बंगाल चेंबर्स ऑफ़ कॉमर्स के सदस्य:
सभी निगम और उद्योग, पेशेवर, बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के विभिन्न विभाग और सेवा उद्योग संगठन इसके सदस्य हैं। इसके कॉर्पोरेट सदस्य, न केवल पश्चिम बंगाल से बल्कि पूरे भारत से, बड़े पैमाने पर कृषि, इंजीनियरिंग, वस्त्र, चमड़े, उपभोक्ता वस्तुओं और ग्राहक सेवाओं के क्षेत्रों से आते हैं।
संदर्भ
मुख्य चित्र: जूट के बोरों से भरा एक गोदाम (प्रारंग चित्र संग्रह)
आइए जानें, उत्तर प्रदेश की प्रसिद्ध हैंड ब्लॉक प्रिंटिंग तकनीक और इसकी पारंपरिक विविधताएँ
स्पर्शः रचना व कपड़े
Touch - Textures/Textiles
19-02-2025 09:26 AM
Jaunpur District-Hindi
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उत्तर प्रदेश, हैंड ब्लॉक प्रिंटिंग (Hand BlockPrinting) के लिए एक महत्वपूर्ण केंद्र है, जहां पारंपरिक डिज़ाइनों जैसे पैस्ले, बूटियाँ और कल्पवृक्ष (Tree of Life) का चित्रण किया जाता है।फ़र्रूख़ाबाद, पिलखुवा और हमारा पड़ोसी शहर वाराणसी, उत्तर प्रदेश में इस प्रकार की प्रिंटिंग के प्रमुख केंद्र हैं। तो आज हम बात करेंगे कि, हैंड ब्लॉक प्रिंटिंग कैसे की जाती है।फिर, हम इस तकनीक में इस्तेमाल होने वाले कुछ डिज़ाइन तत्वों के बारे में जानेंगे जो उत्तर प्रदेश में बहुत लोकप्रिय हैं। उसके बाद, हम बनारसी हैंड ब्लॉक प्रिंटिंग की कला के बारे में जानेंगे।इस संदर्भ में, हम यहां इस्तेमाल होने वाले विभिन्न प्रकार के ब्लॉक्स के बारे में भी सीखेंगे।अंत में, हम वाराणसी में हैंडब्लॉक प्रिंटिंग के कुछ प्रमुख केंद्रों के बारे में जानेंगे।
हैंडब्लॉक प्रिंटिंग कैसे की जाती है?
1.) प्रिंटिंग: प्रिंटिंग की प्रक्रिया में नक़्क़ाशीदार लकड़ी के ब्लॉक को कपड़े पर रंगीन डाई के साथ दबाया जाता है। कारीगर, हर छाप को सावधानीपूर्वक संरेखित करते हैं ताकि एक निरंतर और स्पष्ट डिज़ाइन बने। यह प्रक्रिया पूरे कपड़े पर दोहराई जाती है ताकि पूरा कपड़ा ढक जाए। साड़ी के मामले में, पहले पल्लू (साड़ी का आंतरिक हिस्सा) को प्रिंट किया जाता है और फिर बॉर्डर। पहले आउटलाइन का रंग लगाया जाता है, फिर भरे हुए रंग डाले जाते हैं।
2.) सूखना: प्रिंटिंग के बाद कपड़े को अच्छे से सूखने दिया जाता है। यह प्रक्रिया हवा से या सूर्य की रोशनी में की जा सकती है। सूखने की यह प्रक्रिया रंगों को सेट करने और यह सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण होती है कि प्रिंट्स धुंधले न हों।
3.) अतिरिक्त रंग और ब्लॉक्स: यदि डिज़ाइन में कई रंग हैं, तो प्रत्येक रंग के लिए अलग-अलग ब्लॉक्स का उपयोग किया जाता है। कारीगरों को, ब्लॉक्स को ठीक से संरेखित करना पड़ता है ताकि रंग एक-दूसरे से मेल खाएं और एक सुंदर डिज़ाइन बने।
4.) रंगों को स्थिर करना: कुछ ब्लॉक प्रिंटेड कपड़े अतिरिक्त प्रक्रियाओं से गुज़रते हैं ताकि रंग स्थिर हो जाएं और अधिक स्थायी बनें। इसमें स्टीमिंग, धोने, या कपड़े को फिक्सेटिव्स के साथ ट्रीट करना शामिल हो सकता है।
5.) अंतिम सुधार: जब कपड़ा, पूरी तरह से सूख जाता है और रंग स्थिर हो जाते हैं, तो उसमें कोई अंतिम सुधार किया जा सकता है। इसमें कपड़े को आयरन करना ताकि झुर्रियां हटा दी जाएं और रंगों को और निखारा जा सके।
6.) गुणवत्ता परीक्षण: अंतिम चरण में प्रिंटेड कपड़े की गुणवत्ता की जांच की जाती है। कारीगर प्रिंट में समानता, डिज़ाइन की स्पष्टता और कुल मिलाकर सौंदर्यात्मक आकर्षण की जांच करते हैं।
हैंड ब्लॉक प्रिंटिंग के डिज़ाइन तत्व जो उत्तर प्रदेश में लोकप्रिय हैं
उत्तर प्रदेश में हैंड ब्लॉक प्रिंटिंग में जो डिज़ाइन तत्व इस्तेमाल होते हैं, वे मुख्य रूप से मुस्लिम वास्तुकला से प्रेरित होते हैं और इनमें इण्डो-फ़ारसी प्रभाव की झलक मिलती है। इनमें से कुछ प्रमुख डिज़ाइन तत्व हैं कल्पवृक्ष, पैस्ले और बूटी
कल्पवृक्ष का रूपांकन, दुनिया भर की संस्कृतियों में बहुत प्रसिद्ध है और इसके कई अर्थ हैं, क्योंकि यह पौराणिक कथाओं, विज्ञान, दर्शन और धर्म से जुड़ा हुआ है। यह डिज़ाइन आमतौर पर एक पेड़ को दिखाता है, जो जानवरों, पक्षियों और फूलदानों जैसे तत्वों से घिरा होता है। इसके आसपास संकरे और चौड़े फूलों की सीमाएँ होती हैं। इस रूपांकन के शुरुआती रूपों में मोर, कमल और समुद्री जीव जैसे मछलियाँ भी दिखाई जाती थीं।
बूटियां, हैंड ब्लॉक प्रिंटिंग की पारंपरिक और छोटी रूपांकन होती हैं , जो अक्सर पोल्का डॉट्स की तरह दिखती हैं । इसे आमतौर पर हल्के रंगों वाले कपड़ों पर प्रिंट किया जाता है ताकि यह अधिक स्पष्ट और सुंदर दिखाई दे।
पैस्ले रूपांकन (Paisley motifs) को विभिन्न आकारों और डिज़ाइनों में तैयार किया जाता है, जिसमें महीन, बोल्ड या मध्यम डिज़ाइन होते हैं। भारत में इसे ‘आम’ या ‘केरी’ रूपांकन के नाम से भी जाना जाता है।
बनारसी हैंडब्लॉक प्रिंटिंग का परिचय
भारत की संस्कृति और परंपराएँ हैंडब्लॉक प्रिंटिंग के साथ गहरे जुड़ी हुई हैं। उत्तर प्रदेश इस कला का एक प्रमुख केंद्र है, जहाँ हैंडप्रिंट किए गए कपड़े पर पारंपरिक डिज़ाइन जैसे पैस्ले, बुटी और कल्पवृक्ष बहुत प्रसिद्ध हैं।
कला का रूप: इस कला में कारीगर लकड़ी या कभी-कभी धातु के ब्लॉकों का उपयोग करते हैं, ताकि वे डिज़ाइन का रूप तैयार कर सकें। इन ब्लॉकों को पहले नमक मिले पानी में डुबोकर, खुरचकर और चिकना किया जाता है, फिर इन्हें एक काटने वाली मशीन और काग़ज के सांचे से उकेरा जाता है। इसके बाद, कच्चे कपड़े को टेबल पर फैलाया जाता है और उसे स्टार्च पेस्ट से लेपित चादर या जलरोधी कपड़े से ढक दिया जाता है। डिज़ाइन प्रिंट करने के बाद, रंगों को कपड़े पर स्पष्ट और जीवंत दिखाने के लिए, कारीगर अलग-अलग आकार के ब्रशों से हाथ से रंग भरते हैं।
जी आ ई टैग: इस जीवंत कारीगरी को 2021 में जी आई (गियोग्राफिकल इंडिकेशन) टैग प्राप्त हुआ।
हैंड ब्लॉक प्रिंटिंग में प्रयुक्त विभिन्न प्रकार के ब्लॉक्स
हैंड ब्लॉक प्रिंटिंग में मुख्यतः दो प्रकार के ब्लॉक्स का उपयोग किया जाता है:
लकड़ी का ब्लॉक: यह ब्लॉक सीतक़ी लकड़ी से बनाया जाता है और इसमें तीन मुख्य भाग होते हैं—गध (पृष्ठभूमि), रेख (आउटलाइन), और दत्ता (आंतरिक भराई)।
धातु का ब्लॉक: यह पतली धातु की चादरों से बनाया जाता है, जिसे आकार में ढालकर लकड़ी के ब्लॉक पर फ़िट किया जाता है।
वाराणसी में हैंड ब्लॉक प्रिंटिंग के प्रमुख केंद्र
वाराणसी, भारत के प्रमुख सांस्कृतिक और कारीगरी केंद्रों में से एक है, जहाँ हैंड ब्लॉक प्रिंटिंग की प्राचीन कला बड़े पैमाने पर प्रचलित है। यहाँ के प्रमुख ब्लॉक प्रिंटिंग केंद्रों में कश्मीरिगंज, खोजवान, और मंडुआदीह शामिल हैं। ये केंद्र, न केवल वाराणसी, बल्कि समूचे उत्तर प्रदेश में इस कला के प्रमुख केंद्र हैं।
वाराणसी के ये केंद्र, विशेष रूप से अपने उत्कृष्ट और जटिल डिजाइनों के लिए प्रसिद्ध हैं, जिन्हें कारीगर सदियों पुरानी पारंपरिक तकनीकों का पालन करते हुए तैयार करते हैं। इन केंद्रों में लकड़ी के ब्लॉकों का उपयोग किया जाता है, जो विशेष रूप से सागौन, गूलर और नाशपाती जैसे पेड़ों से बनाए जाते हैं। यहाँ के कारीगरों द्वारा इस्तेमाल किए गए डिज़ाइनों में पेड़ की शाखाओं, फूलों, और अद्भुत जटिल रूपांकनों की विशेषता होती है।
ये केंद्र, न केवल भारतीय बाज़ार में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी पहचान बना चुके हैं, और यहाँ के प्रिंट किए गए वस्त्र, उच्च गुणवत्ता और सौंदर्य के लिए अत्यधिक मूल्यांकित किए जाते हैं।
संदर्भ
मुख्य चित्र : मध्य प्रदेश के धार ज़िले के बाघ गांव से उत्पन्न, हैंड ब्लॉक प्रिंटिंग का एक प्रकार - "बाघ प्रिंट" (Wikimedia)
आइए जानें, भारतीय रेलवे को उन्नत बनाने के लिए अपनाई जा रहीं कुछ पहलों को
य़ातायात और व्यायाम व व्यायामशाला
Locomotion and Exercise/Gyms
18-02-2025 09:23 AM
Jaunpur District-Hindi
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जौनपुर की रेलवे प्रणाली, शहर के बुनियादी ढांचे का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो इसे पूरे भारत के प्रमुख क्षेत्रों से जोड़ती है। जौनपुर जंक्शन, एक प्रमुख रेलवे केंद्र के रूप में कार्य करता है, जो यात्रियों और सामानों की आवाजाही को सुविधाजनक बनाता है। जौनपुर के लोगों के लिए, रेलवे, परिवहन का एक किफ़ायती और विश्वसनीय साधन प्रदान करती है, जिससे दैनिक आवागमन आसान हो जाता है। रेलवे, कुशल व्यापार और रसद को सक्षम करके, स्थानीय अर्थव्यवस्था में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसके अतिरिक्त, रेलवे प्रणाली, पर्यटन का समर्थन करती है, क्योंकि, कई यात्री धार्मिक और सांस्कृतिक स्थलों की यात्रा के लिए, जौनपुर से होकर गुज़रते हैं। हर पहलू में, रेलवे नेटवर्क शहर के लिए संयोजकता और विकास का एक आवश्यक चालक है।
आज, हम भारतीय रेलवे उद्योग के बारे में एक संक्षिप्त चर्चा करेंगे, जो देश के परिवहन और अर्थव्यवस्था में इसकी भूमिका का अवलोकन प्रदान करेगी। फिर हम, भारतीय रेलवे बाज़ार के आकार को देखेंगे, तथा भारतीय अर्थव्यवस्था और इसके विस्तृत नेटवर्क में, इसके योगदान पर प्रकाश डालेंगे। इसके बाद, हम सेवाओं और बुनियादी ढांचे में सुधार लाने के उद्देश्य से, नवीनतम नीतियों और विकास पर ध्यान केंद्रित करते हुए, 2024 में भारतीय रेलवे क्षेत्र में सरकारी पहलों का पता लगाएंगे। अंत में, हम स्वच्छ ऊर्जा और पर्यावरण-अनुकूल प्रथाओं को अपनाने सहित, पर्यावरण की दृष्टि से अधिक टिकाऊ बनने के लिए, भारतीय रेलवे के प्रयासों की जांच करेंगे।
भारतीय रेलवे उद्योग-
भारतीय रेलवे प्रणाली को हमारे अर्थव्यवस्था की नींव और जीवनधारा माना जाता है। भारतीय रेलवे, व्यावहारिक रूप से पूरे देश को कवर करते हुए हज़ारों किलोमीटर तक फ़ैली हुई है, जो इसे अमेरिका, चीन और रूस के बाद दुनिया में चौथा सबसे बड़ा रेलवे नेटवर्क बनाती है। रेलवे बोर्ड, जिसका भारत में रेल सेवाओं के प्रावधान पर एकाधिकार है, इस पूरे बुनियादी ढांचे की देखरेख करता है। अपनी कम लागत और प्रभावी परिचालन के कारण, लंबी दूरी की यात्रा करते समय, रेलवे अधिकांश भारतीयों के लिए परिवहन का सबसे लोकप्रिय साधन बना हुआ है।
भारत के रेलवे नेटवर्क को एकल प्रबंधन के तहत, दुनिया की सबसे बड़ी रेलवे प्रणालियों में से एक माना जाता है। परिवहन का एक ऊर्जा-कुशल और किफ़ायती साधन होने के अलावा, रेलवे नेटवर्क, लंबी दूरी की यात्रा और थोक वस्तुओं की आवाजाही के लिए भी आदर्श है। भारतीय रेलवे देश में वाहनों भी का पसंदीदा वाहक है।
भारत सरकार ने, निवेशक-अनुकूल नीतियां बनाकर, रेलवे बुनियादी ढांचे में निवेश पर ध्यान केंद्रित किया है। यह माल ढुलाई और तेज़ ट्रेनों के लिए बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए, रेलवे में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश ( Foreign Direct Investment (एफ़ डी आई)) को सक्षम करने के लिए तेज़ी से आगे बढ़ा है। इस समय, कई राष्ट्रीय और विदेशी कंपनियां भी भारतीय रेल परियोजनाओं में निवेश करना चाहती हैं।
भारतीय रेलवे का बाज़ार मूल्य-
भारतीय रेलवे ने, वित्तीय वर्ष 2024 के अंत तक, 2.56 लाख करोड़ रुपयों या 30.76 बिलियन अमेरिकी डॉलर का कुल राजस्व इकट्ठा किया है। भारतीय रेलवे ने, 2024 के दौरान, 5100 किलोमीटर का ट्रैक बिछाने का लक्ष्य भी हासिल किया है।
वित्त वर्ष 2023-24 में, रेल यात्रियों की कुल संख्या, 648 करोड़ तक पहुंच गई। वित्त वर्ष 2024 में, माल लदान पिछले वर्ष के 1512 मेट्रिक टन के मुकाबले, 1591 मेट्रिक टन से अधिक हो गया।
इसी वर्ष में, भारतीय रेलवे ने अप्रैल से फरवरी तक 1,434.03 मेट्रिक टन माल ढुलाई की, जो पिछले वर्ष की समान अवधि की तुलना में, लगभग 66.51 मेट्रिक टन की वृद्धि थी। साथ ही, रेलवे का राजस्व, लगभग 778 मिलियन अमेरिकी डॉलर (6,468 करोड़ रुपये) बढ़ गया।
2022-23 में, भारतीय रेलवे ने, अपने आंतरिक राजस्व का 69% हिस्सा, माल ढुलाई से और 24% हिस्सा, यात्री यातायात से अर्जित किया। शेष 7%, अन्य विविध स्रोतों जैसे पार्सल सेवा, कोचिंग रसीदें और प्लेटफ़ॉर्म टिकटों की बिक्री से अर्जित किया था।
भारतीय रेलवे, सिग्नलिंग और दूरसंचार जैसे क्षेत्रों में, प्रौद्योगिकी का विकास और निर्माण कर रही है। इसमें 15,000 किलोमीटर को स्वचालित सिग्नलिंग में परिवर्तित किया जा रहा है, और 37,000 किलोमीटर को देशज स्तर पर विकसित ट्रेन टक्कर बचाव प्रणाली – ‘कवच’ से सुसज्जित किया जाएगा।
2024 में भारतीय रेलवे क्षेत्र की सरकारी पहलें -
भारत सरकार ने यात्री सुविधाओं, सुरक्षा उपायों और परिचालन क्षमताओं में सुधार पर ध्यान केंद्रित करते हुए, रेलवे क्षेत्र के आधुनिकीकरण और दक्षता को बढ़ाने के लिए कई पहल की हैं।
•पी एम रेल यात्री बीमा योजना:
पी एम रेल यात्री बीमा योजना की शुरूआत, रेल यात्रियों की सुरक्षा और कल्याण सुनिश्चित करने के लिए सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाती है। यह बीमा योजना, सभी रेल यात्रियों को कवरेज प्रदान करती है, एवं ट्रेन यात्रा के दौरान, दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं के मामलों में वित्तीय सुरक्षा भी उपलब्ध करती है।
•रेलवे के लिए बजट आवंटन:
वित्तीय वर्ष 2024 के बजट में, केंद्रीय रेल मंत्रालय को 2.55 लाख करोड़ रुपये आवंटित किए गए, जो पिछले वर्ष की तुलना में 5.8% की वृद्धि है। यह महत्वपूर्ण अनुदान वृद्धि, देश भर में टिकाऊ और कुशल परिवहन सेवाओं का समर्थन करने के लिए, रेलवे बुनियादी ढांचे, विद्युतीकरण और सुरक्षा उपायों को बढ़ाने के लिए सरकार की प्रतिबद्धता को रेखांकित करती है।
•मिशन रफ़्तार:
मिशन रफ़्तार का उद्देश्य, चुनिंदा गलियारों पर ट्रेन की गति बढ़ाना, यात्रा का समय कम करना और परिचालन दक्षता बढ़ाना है। यह परियोजना, दिल्ली-मुंबई, दिल्ली-हावड़ा और चेन्नई-मुंबई जैसे उच्च-यातायात मार्गों को लक्षित करती है, जिसका लक्ष्य, तेज़ और सुरक्षित रेल सेवाओं के साथ, यात्रियों और माल परिवहन की बढ़ती मांगों को पूरा करना है।
•भारत विकसित रेलवे कार्यक्रम:
भारत विकसित रेलवे कार्यक्रम के तहत, सरकार 10 लाख से अधिक आबादी वाले शहरों में मल्टी-मॉडल कनेक्टिविटी (Multi-modal connectivity) वाले, मेगा रेलवे टर्मिनल विकसित करने की योजना बना रही है। यह पहल, प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी की ‘विकसित भारत’ पहल के तहत, रेलवे के बुनियादी ढांचे को बढ़ावा देने के दृष्टिकोण का हिस्सा है, जिसका लक्ष्य, देश भर में रेल परिवहन और संयोजकता को बदलना है।
•रेलवे स्टेशनों का पुनर्विकास:
अमृत भारत स्टेशन योजना, देश भर में, 553 रेलवे स्टेशनों के पुनर्विकास पर केंद्रित है, जिसमें 19,000 करोड़ रुपये से अधिक का निवेश है। इस महत्वाकांक्षी परियोजना का उद्देश्य, स्टेशन के बुनियादी ढांचे का आधुनिकीकरण करना, यात्री सुविधाओं को बढ़ाना और प्रमुख रेलवे जंक्शनों और टर्मिनलों पर विश्व स्तरीय सुविधाएं बनाना है।
गो ग्रीन (Go Green) हरित रणनीति अपनाना-
नीति आयोग के अनुसार, 2014 में भारतीय रेलवे से, कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन, लगभग 6.84 मिलियन टन था। पिछले दस वर्षों में, भारतीय रेलवे को 100% हरित रेलवे में बदलने के लक्ष्य के साथ, काफ़ी काम किया गया। वास्तव में, पर्यावरण प्रदूषण को कम करने में मदद करने के लिए, भारतीय रेलवे को दुनिया की पहली नेट-ज़ीरो रेलवे (Net Zero) बनाने की दिशा में काम पहले से ही चल रहा है। भारतीय रेलवे ने 2022 तक, अपने ट्रैक के 100% विद्युतीकरण का लक्ष्य रखा है। इससे न केवल कार्बन फ़ुटप्रिंट को कम करने में मदद मिलेगी, बल्कि ईंधन लागत में कमी के माध्यम से वित्तीय बचत भी होगी।
भारतीय रेलवे ने सभी रेलवे स्टेशनों पर 100% एलईडी लाइटिंग और कई स्टेशनों पर सौर पैनल उपलब्ध करा दिए हैं। हरित कवरेज में सुधार के लिए, भारतीय रेलवे, हर साल, एक करोड़ पौधे लगा रही है और लगभग 15,000 वर्ग किलोमीटर भूमि को हरित कवरेज प्रदान किया गया है।
ऊर्जा स्थिरता पहल को बढ़ावा देने के लिए, भारतीय रेलवे द्वारा उठाए गए कुछ अन्य कदमों में, ऊर्जा दक्षता प्रथाओं को अपनाना; ईंधन दक्षता को सक्षम करना; ऊर्जा प्रतिष्ठानों की स्थापना और बायो-डीज़ल पर ध्यान केंद्रित करना शामिल है।
संदर्भ
मुख्य चित्र: वंदे भारत एक्सप्रेस ट्रेन की सीटें (Wikimedia)
अदरक और दालचीनी का, पाक उपयोग के अलावा, आयुर्वेद में भी है, बड़ा औषधीय महत्व
पेड़, झाड़ियाँ, बेल व लतायें
Trees, Shrubs, Creepers
17-02-2025 09:22 AM
Jaunpur District-Hindi

जौनपुर में आने वाली सर्दी, काफ़ी ठंडी हो सकती है। लेकिन, अदरक और दालचीनी जैसे आयुर्वेदिक पौधे, आपको ऐसे समय गर्म और स्वस्थ रहने में मदद कर सकते हैं। अदरक, शरीर में गर्मी पैदा करने की अपनी क्षमता के लिए जाना जाता है, जो इसे सर्दियों की ठंड से लड़ने, गले की खराश से राहत देने, और आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ाने के लिए एकदम सही बनाता है। दूसरी ओर, दालचीनी, शरीर को गर्म करने और परिसंचरण में सुधार करने के साथ-साथ, सर्दियों में होने वाले संक्रमणों से लड़ने में भी मदद करती है। इन्हें अपने दैनिक आहार में शामिल करने से, आप पूरे सर्दियों में स्वस्थ रह सकते हैं।
आज हम अपने औषधीय गुणों के लिए मशहूर मसाले – अदरक के बारे में चर्चा करेंगे। हम अदरक के स्वास्थ्य लाभों का पता लगाएंगे, जिसमें मतली से राहत, पाचन में सुधार और सूजन को कम करना शामिल है। आगे, हम दालचीनी के बारे में बात करेंगे, जो आमतौर पर खाना पकाने में इस्तेमाल किया जाने वाला, एक अन्य सुगंधित मसाला है। फिर, हम रक्त शर्करा को नियंत्रित करने, हृदय स्वास्थ्य में सुधार, और चयापचय को बढ़ावा देने की इसकी क्षमता, जैसे दालचीनी के स्वास्थ्य लाभों पर चर्चा करेंगे।
अदरक-
अदरक, ज़िंजिबर ऑफ़िसिनेल (Zingiber officinale) पौधे की “जड़” या प्रकंद है, जो हज़ारों वर्षों से एक लोकप्रिय मसाला और जड़ी–बूटी औषधि रही है। इसका एशियाई, भारतीय और अरबी जड़ी–बूटी परंपराओं में उपयोग का, एक लंबा इतिहास है। उदाहरण के लिए, चीन में, अदरक का उपयोग, 2,000 से अधिक वर्षों से पाचन में मदद करने, और पेट की खराबी, दस्त और मतली के इलाज के लिए किया जाता रहा है। अदरक का उपयोग गठिया, उदरशूल, दस्त और हृदय संबंधी समस्याओं के इलाज में भी किया जाता है। साथ ही, इसका उपयोग सामान्य सर्दी, फ़्लू जैसे लक्षणों, सिरदर्द और दर्दनाक मासिक धर्म के इलाज में मदद के लिए किया गया है।
अदरक एशिया का मूल पौधा है, जहां इसका उपयोग कम से कम 4,400 वर्षों से खाना पकाने के मसाले के रूप में किया जाता रहा है। अदरक, एक गांठदार, मोटा व कोरे ऊन के रंग का भूमिगत तना है, जिसे प्रकंद कहा जाता है। इसका तना, ज़मीन से लगभग 12 इंच ऊपर लंबे, संकरे, पसली वाले, हरे पत्ते और सफ़ेद या पीले-हरे फूल उगाता हैं।
अदरक, एक फूल वाला उष्णकटिबंधीय पौधा है, जो चीन (China), भारत, अफ़्रीका (Africa), कैरेबियन (Caribbean) और अन्य गर्म जलवायु में उगता है।
अदरक के स्वास्थ्य लाभ-
हज़ारों वर्षों से, अदरक का उपयोग पूरी दुनिया में खाना पकाने और उपचार के लिए किया जाता रहा है। यह खाना पकाने के व्यंजनों में स्वाद जोड़ने के लिए जाना जाता है, लेकिन, यह कई स्वास्थ्य लाभ भी प्रदान करता है। कई अध्ययनों में पाया गया है कि, अदरक रक्त शर्करा के स्तर में सुधार करने, सूजन को कम करने, दर्द से राहत देने, प्रतिरक्षा प्रणाली को मज़बूत करने और मतली एवं अपच का इलाज करने में मदद कर सकता है।
•रक्त शर्करा के स्तर में सुधार-
अदरक में जिंजरोल (Gingerol) नामक एक शक्तिशाली यौगिक होता है। इसमें शक्तिशाली एंटी-इंफ्लेमेटरी (Anti-inflammatory) और एंटीऑक्सिडेंट (Antioxidant) गुण होते हैं। ये आपके शरीर को ग्लुकोज़ को बेहतर ढंग से अवशोषित करने, और आपके रक्त शर्करा के स्तर में सुधार करने में मदद कर सकते हैं। जिंजरोल, टाइप 2 मधुमेह (Type 2 Diabetes) वाले लोगों में इंसुलिन (Insulin) उत्पादन को नियंत्रित करने में भी मदद कर सकता है।
•सूजन कम करना-
अदरक, गठिया के कारण होने वाले जोड़ों के दर्द और सूजन को कम करने में भी मदद कर सकता है। कई अध्ययनों से पता चला है कि, अदरक के अर्क का सेवन करने या इसे जोड़ों पर लगाने से, गठिया की सूजन से होने वाले दर्द में सुधार होता है।
•दर्द दूर करना–
कुछ अध्ययनों से पता चला है कि, अदरक, एस्पिरिन (Aspirin) और इबुप्रोफ़ेन (Ibuprofen) जैसी सामान्य दर्द निवारक दवाओं की तरह ही दर्द से राहत देता है। उदाहरण के लिए, ताज़ा अदरक का सेवन, मासिक धर्म की ऐंठन से होने वाले दर्द से राहत दिलाने में मदद करता है। अदरक का प्रभाव देर से होता है। इससे, यह तत्काल निवारक के बजाय, दीर्घकालिक दर्द निवारक बन जाता है।
•प्रतिरक्षा प्रणाली को मज़बूत करना-
अदरक, महत्वपूर्ण विटामिन (Vitamins) और खनिजों का एक बड़ा स्रोत है, जिसमें लौह, मैग्नीशियम, विटामिन बी 6, विटामिन सी और ज़िंक शामिल हैं। अदरक के एंटीऑक्सिडेंट गुणों के साथ, ये विटामिन और खनिज आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली को मज़बूत करने में मदद कर सकते हैं। साथ ही, जिंजरोल मांसपेशियों की थकान और गले में खराश जैसे सामान्य सर्दी के लक्षणों को कम करने में, मदद करता है। यह फ़्लू के लक्षणों से लड़ने में भी मदद कर सकता है।
•मतली और अपच का इलाज-
अध्ययनों से पता चला है कि, अदरक विभिन्न प्रकार की मतली में मदद करता है। यह मॉर्निंग सिकनेस (Morning sickness), मोशन सिकनेस (Motion sickness) और कुछ कीमोथेरेपी (Chemotherapy) उपचारों के दुष्प्रभावों में मदद कर सकता है। यह उस प्रक्रिया के बाद, मतली को कम करने में भी मदद कर सकता है, जिसके लिए सामान्य संज्ञाहरण की आवश्यकता होती है। अदरक, जठरांत्र पथ के माध्यम से भोजन के प्रवाह को बढ़ाने में मदद करता है, और अपच से लड़ता है।
दालचीनी-
दालचीनी एक मसाला है, जो कुछ खास प्रकार के पेड़ों से बनाया जाता है। दालचीनी के पेड़ की छाल के साथ-साथ, पत्तियों, फूलों, फ़लों और जड़ों के अर्क का उपयोग, हज़ारों वर्षों से दुनिया भर में पारंपरिक चिकित्सा में किया जाता रहा है। इसका उपयोग, खाना पकाने और बेकिंग में किया जाता है, और इसे कई खाद्य पदार्थों में मिलाया जाता है। दालचीनी एक मसाला है, जो सिनामोमम परिवार (Cinnamomum family) के पेड़ों की शाखाओं से प्राप्त होता है। यह कैरेबियन (Caribbean), दक्षिण अमेरिका (South America) और दक्षिण पूर्व एशिया (Southeast Asia) का एक मूल पौधा है। प्राचीन मिस्र में 2000 ईसा पूर्व से ही, लोग दालचीनी का उपयोग करते आ रहे हैं, जहां वे इसे बहुत महत्व देते थे। मध्यकाल में, डॉक्टर इसका उपयोग खांसी, गठिया और गले में खराश जैसी स्थितियों के इलाज के लिए करते थे।
दालचीनी के फ़ायदे-
दालचीनी में पोटैशियम (potassium), मैग्नीशियम (magnesium) और कैल्शियम (calcium) होता है। पोटैशियम रक्तचाप पर सोडियम के प्रभाव का प्रतिकार करने में मदद करता है, और हृदय गति को नियंत्रित करता है। पोटैशियम तंत्रिका क्रिया में भी शामिल होता है। दिल की धड़कन को स्वस्थ बनाए रखने के लिए, मैग्नीशियम और कैल्शियम मिलकर काम करते हैं। ये दो खनिज़, हमारे कंकाल या हड्डियों के स्वास्थ्य के लिए आवश्यक हैं। वे हड्डियों को कमज़ोर होने से रोकते हैं, जिसे ऑस्टियोपोरोसिस (Osteoporosis) कहा जाता है।
•सूजनरोधी-
दालचीनी एक प्रभावी सूजन-रोधी दवा है। शोधकर्ताओं ने दालचीनी में पाए जाने वाले, फ़ाइटोकेमिकल्स (Phytochemicals) का परीक्षण किया, और एंटीऑक्सिडेंट (Antioxidant) और सूजन-रोधी प्रभावों की खोज की। एक अध्ययन में, कुछ दालचीनी यौगिकों ने आशाजनक परिणामों के साथ मुक्त कणों को भी लक्षित किया।
•कैंसर से बचाव-
एंजियोजेनेसिस (Angiogenesis), ट्यूमर(Tumour) को पोषण देने के लिए, नई रक्त वाहिकाओं के निर्माण की प्रकिया है। कैंसर के इलाज की कुंजी में से एक कदम, एंजियोजेनेसिस को रोकना है। एक अध्ययन से पता चला है कि, दालचीनी एंजियोजेनेसिस, कोशिका वृद्धि और कोशिकीय संकेतन को धीमा कर सकती है या रोक सकती है। इससे पता चलता है कि, दालचीनी, कैंसर को रोकने या उसका इलाज करने में एक उपकरण हो सकती है।
•एंटीबायोटिक गुण(Antibiotic properties)-
दालचीनी की विशिष्ट गंध और स्वाद के लिए, सिनामाल्डिहाइड(Cinnamaldehyde) यौगिक ज़िम्मेदार है। इस फ़ाइटोकेमिकल ने व्यापक एंटीबायोटिक प्रभाव भी सिद्ध किया है। सिनामाल्डिहाइड का परीक्षण स्टैफ़िलोकोकस(Staphylococcus), ई. कोली(E. coli), साल्मोनेला(Salmonella) और कैंडिडा(Candida) सहित कई बैक्टीरिया और वायरस के खिलाफ़ किया गया था। शोधकर्ताओं ने पाया कि, यह घटक इन जीवाणुओं को बढ़ने से रोकने में सक्षम था।
•ऑक्सीडेटिव तनाव(Oxidative stress) से सुरक्षा-
दालचीनी में पॉलीफ़ेनोल्स(Polyphenols) जैसे ढेर सारे एंटीऑक्सिडेंट होते हैं। ये आपके शरीर को ऑक्सीडेटिव क्षति से बचने में मदद कर सकते हैं। दालचीनी में एंटीऑक्सिडेंट इतने मज़बूत होते हैं कि, इसका कभी-कभी प्राकृतिक खाद्य परिरक्षक के रूप में उपयोग किया जा सकता है।
•हृदय रोग से बचाव-
दालचीनी, आपके ट्राइग्लिसराइड्स (Triglycerides) और आपके कुल कोलेस्ट्रॉल (Cholesterol) के स्तर को कम कर सकती है, जिससे हृदय रोग को रोकने में मदद मिल सकती है। यदि आप प्रतिदिन कम से कम 1.5 ग्राम दालचीनी की खुराक लेते हैं, और यदि आपको चयापचय संबंधी रोग है, तो यह आपके कुल कोलेस्ट्रॉल, एल डी एल कोलेस्ट्रॉल (LDL cholesterol), ट्राइग्लिसराइड्स और रक्त शर्करा को कम कर सकता है। यदि, आप इसे लगातार 7 सप्ताह तक लेते हैं, तो यह रक्तचाप भी कम कर सकता है।
संदर्भ
मुख्य चित्र स्रोत: Pexels
आइए देखें, क्या क्या चीज़ें बनाती हैं, हमारे जौनपुर को एक अद्भुत शहर !
द्रिश्य 3 कला व सौन्दर्य
Sight III - Art/ Beauty
16-02-2025 09:12 AM
Jaunpur District-Hindi
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हमारा शहर जौनपुर, लगभग एक सदी तक शर्की सल्तनत के अधीन रहा। शायद यही कारण है कि, हमारे शहर की वास्तुकला में इस सल्तनत का विशिष्ट प्रभाव झलकता है। शाही किला, अटाला मस्ज़िद और ज़ामा मस्ज़िद, हमारे शहर के कुछ ऐतिहासिक स्मारक हैं। जौनपुर ज़िले में भी कई ऐतिहासिक और दर्शनीय स्थल हैं, जिनमें शर्की काल की इमारतें, अकबर द्वारा निर्मित शाही पुल और शीतला चौकिया धाम आदि पर्यटकों के लिए मुख्य आकर्षण का केंद्र हैं। इन सभी ऐतिहासिक और दर्शनीय स्थलों का अपना विशेष महत्व है। इन प्रमुख दर्शनीय स्थलों में मां शीतला चौकिया देवी का मंदिर, शाही किला, अटाला मस्जिद, झंझरी मस्जिद, शाही पुल और गूजर ताल एक विशेष स्थान रखते हैं। उपर्युक्त स्मारकों के अलावा, इलाहाबाद रोड पर शाही पुल और ईदगाह में मुनईम खान द्वारा निर्मित शेर-की-मस्जिद, मुहम्मद शाह के समय में निर्मित सदर इमामबाड़ा, जलालपुर पुल, मड़ियाहूं में ज़ामा मस्ज़िद, धर्मपुर में राजा श्री कृष्णदत्त द्वारा निर्मित शिव मंदिर आदि उल्लेखनीय स्थल हैं। हमारे शहर और इसके आस आपस कुछ और महत्वपूर्ण स्थलों की बात करें तो, शहर में हिंदी भवन, केराकत में काली मंदिर, हर्षवर्द्धन काल का शिवलिंग, गोमतेश्वर महादेव (केराकत), वन विहार, परमहंस की समिधि (ग्राम औंका, धनियामऊ), गैसुरी शंकर मंदिर (सुजानगंज), गुरुद्वारा (रसमादल), हनुमान मंदिर (रसमादल), शारदा मंदिर (परमानतपुर), विजेथुआ महावीर, कबीर मठ (बसेठा गांव, मछलीशहर) आदि उल्लेखनीय हैं। तो आइए, आज हम, कुछ चलचित्रों के माध्यम से अपने शहर की विरासत, इसकी ऐतिहासिक वास्तुकला और संस्कृति को विस्तार से जानने की कोशिश करें। इस संदर्भ में, हम फिर अपने शहर का पूरा दौरा करेंगे तथा यहाँ के कुछ प्रसिद्ध व्यंजनों के दृश्यों का आनंद लेंगे। इस संदर्भ में हम, समोसा, लौंग लट्टा, इमरती, ककरोई कबाब आदि जैसे सबसे लोकप्रिय व्यंजनों पर नज़र डालेंगे । इसके अलावा, हम जौनपुर के कुछ सबसे प्रसिद्ध रेस्तरां का भी दौरा करेंगे।
संदर्भ:
चलिए समझते हैं, मणि और सुग्रीव पर्वत के माध्यम से, अयोध्या की सांस्कृतिक धरोहर को
पर्वत, चोटी व पठार
Mountains, Hills and Plateau
15-02-2025 09:18 AM
Jaunpur District-Hindi
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जौनपुर के लोगों, क्या आप जानते हैं कि, उत्तर प्रदेश में मणि पर्वत (Mani Parvat) और सुग्रीव पर्वत (Sugriv Parvat) नामक दो खास और सुंदर पहाड़ हैं ? मणि पर्वत को चकराता या चकरौता (Chakrata) हिल भी कहते हैं।यह हिमालय की शिवालिक पहाड़ियों में आता है और ये पर्वत, समुद्र तट से 2,273 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है । वहीं, सुग्रीव पर्वत समुद्र तट से 1,725 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है
आज हम इन दोनों पहाड़ों के बारे में कुछ मज़ेदार बातें जानेंगे हम इनके इतिहास और संस्कृति के महत्व को समझेंगे।साथ ही, यहां के मशहूर मंदिरों के बारे में भी बात करेंगे।इसके बाद, हम मणि मंदिर के आसपास की कुछ दिलचस्प जगहों के बारे में जानेंगे, जैसे राम की पैड़ी पर जाना, अयोध्या के
घाटों की सैर करना और हनुमान गढ़ी के दर्शन करना।
फिर हम जानेंगे कि, अयोध्या में तीर्थ यात्रा और पर्यटन कैसे विकसित हुआ। अंत में, यहां के नए और अनोखे पर्यटन रुझानों के बारे में भी विस्तार से जानेंगे।
मणि और सुग्रीव पर्वत का परिचय
अयोध्या, जो भगवान राम की जन्मभूमि के रूप में विख्यात है, यहां स्थित मणि पर्वत और सुग्रीव पर्वत इसपवित्र नगरी के महत्त्व
को और बढ़ाते हैं। मणि पर्वत, जिसकी ऊंचाई, लगभग 65 फ़ीट है, और सुग्रीव पर्वत, दोनों धार्मिक और पौराणिक दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थान हैं।यह माना जाता है कि, जब भगवान हनुमान, संजीवनी बूटी लेने गए थे, तो पर्वत का एक हिस्सा यहां गिर गया। इस घटना के साथ जुड़ी कहानियां इन स्थलों को तीर्थयात्रियों और पर्यटकों के लिए खास बनाती हैं।
मुख्य जानकारी:
- घूमने का सही समय: पूरे साल
- मुख्य गतिविधियां: फ़ोटोग्राफ़ी, प्राकृतिक सुंदरता का आनंद, और आध्यात्मिक साधना
- औसत खर्च: 500 से 1000 रूपए प्रति व्यक्ति (1 दिन की यात्रा)
- कैसे पहुंचें: हवाई मार्ग, रेल मार्ग और सड़क मार्ग के द्वारा
मणि पर्वत का ऐतिहासिक महत्व
पौराणिक दृष्टिकोण:
मणि पर्वत का वर्णन, रामायण में मिलता है। यह स्थान, उस घटना से जुड़ा है जब मेघनाद के शक्तिशाली बाण से लक्ष्मण घायल हो गए थे। उन्हें बचाने के लिए भगवान हनुमान संजीवनी बूटी लेने हिमालय गए। संजीवनी पर्वत का एक भाग यहां गिर गया, और यही स्थान आज मणि पर्वत के रूप में जाना जाता है।
ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पहलू:
मणि पर्वत पर कई प्राचीन मंदिर स्थित हैं। यहां से अयोध्या का सुंदर नजारा देखा जा सकता है। इसके अलावा, यह माना जाता है कि भगवान बुद्ध ने इस पर्वत पर छह वर्षों तक धर्म का प्रचार किया था। सम्राट अशोक, जो बौद्ध धर्म के अनुयायी थे, ने यहां एक स्तूप का निर्माण कराया। यह स्थान, बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए भी पवित्र है।
मुख्य आकर्षण:
बौद्ध मठ और स्तूप: बौद्ध धर्म की गहरी जड़ें यहां की विरासत में झलकती हैं।
मंदिर परिसर: मणि पर्वत पर छोटे-छोटे मंदिरों की मौजूदगी, इसे भक्तों के लिए खास बनाती है।
शांत वातावरण: साधना और ध्यान के लिए यह जगह अद्भुत है।
सुग्रीव पर्वत का महत्व
सुग्रीव पर्वत, जिसे वानरराज सुग्रीव से जोड़ा जाता है, अयोध्या के पौराणिक और धार्मिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता
है। यह पर्वत भी कई छोटे मंदिरों और अद्भुत प्राकृतिक दृश्यों का केंद्र है।सुग्रीव पर्वत पर कई प्राचीन मंदिर हैं, जिनकी वास्तुकला, पुराने समय और संस्कृति का प्रतिबिंब है।यहां के मंदिर, न केवल धार्मिक दृष्टि से, बल्कि ऐतिहासिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण हैं। इन मंदिरों के साथ-साथ, यहां पर कई छोटी-छोटी संरचनाएं भी हैं, जो उस काल की कहानियों को दर्शाती हैं।
पौराणिक कहानियां:
रामायण के अनुसार, भगवान राम ने सुग्रीव की सहायता से रावण के विरुद्ध अपनी सेना तैयार की थी। इस पर्वत को सुग्रीव के उस दौर के निवास स्थान के रूप में माना जाता है, जब उन्होंने भगवान राम के साथ रणनीतियां बनाईं। यहां पर स्थित मंदिरों में सुग्रीव से संबंधित कथाएं जीवित रहती हैं, जो श्रद्धालुओं के लिए विशेष आस्था का केंद्र हैं।
मुख्य आकर्षण:
प्राकृतिक सौंदर्य: यहां की हरियाली और चट्टानी संरचना, इसे दर्शनीय बनाती है।
धार्मिक अनुभव: सुग्रीव पर्वत पर पूजा-अर्चना करने के लिए सालभर भक्तों की भीड़ रहती है।
अद्वितीय नजारा: यहां से अयोध्या और सरयू नदी का दृश्य अत्यंत मनमोहक लगता है।
मणि पर्वत और सुग्रीव पर्वत के आस पास करने योग्य गतिविधियां
1. राम की पैड़ी
राम की पैड़ी, सरयू नदी के किनारे स्थित एक प्रसिद्ध घाट है।यहां लोग पवित्र नदी में डुबकी लगाने के लिए आते हैं। सरयू (Saryu) नदी को गंगा और यमुना के बाद भारत की सबसे पवित्र नदियों में से एक माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि भगवान राम ने, स्वर्ग जाने से पहले यहीं अंतिम स्नान किया था। यह घाट, शाम के समय, दीपों की रोशनी और आरती के दौरान, बेहद मनमोहक लगता है।
2. अयोध्या के अन्य घाटों की सैर
राम की पैड़ी के अलावा, अयोध्या में कई और सुंदर घाट हैं, जैसे नया घाट, स्वर्ग द्वार, राम घाट और गुप्तार घाट। इन घाटों पर, आप सरयू नदी के किनारे बैठकर शांति का अनुभव कर सकते हैं या ठंडे पानी में डुबकी लगाकर आध्यात्मिक
शांति पा सकते हैं।
3. त्रेता के ठाकुर मंदिर
यह प्राचीन मंदिर, भगवान राम को समर्पित है। ऐसा माना जाता है कि इसे त्रेता युग में बनाया गया था। यहां भगवान राम और उनके युग की कई पौराणिक कथाओं की झलक मिलती है। मंदिर की मूर्तियां और वास्तुकला इसे खास बनाती हैं।
4. कनक भवन
कनक भवन, भगवान राम और माता सीता को समर्पित एक प्रमुख मंदिर है। यह मंदिर, एक विशाल परिसर में फैला हुआ है और यहां भगवान राम के जन्म का पवित्र कक्ष स्थित है। यह स्थान, श्रद्धालुओं के लिए आस्था और विश्वास का केंद्र है।
5. हनुमान गढ़ी
हनुमान गढ़ी, अयोध्या के सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है इस भव्य मंदिर को भगवान हनुमान को समर्पित किया गया है।इसकी ऊंची संरचना और दीवारों पर की गई नक्काशी, इसे अद्वितीय बनाती है।यहां से अयोध्या का अद्भुत नज़ारा देखने को मिलता है।
6. राम मंदिर
राम मंदिर, हिंदुओं के लिए सबसे पवित्र स्थलों में से एक है। यह मंदिर, भगवान राम के जीवन और उनके कार्यों की झलक प्रस्तुत करता है। यहां आने वाले श्रद्धालु, उनकी दिव्य उपस्थिति का अनुभव करते हैं और आशीर्वाद पाते हैं।
7. सरयू नदी में आरती समारोह
सरयू नदी के घाटों पर शाम के समय होने वाली आरती को देखना एक विशेष अनुभव होता है। आरती के दौरान जलते दीप, मंत्रोच्चार और भक्तों का समर्पण, माहौल को आध्यात्मिकता से भर देता है।
8. सरयू नदी में नाव की सवारी
सरयू नदी में नाव की सवारी करना बेहद सुखद अनुभव है। इस दौरान आप नदी के किनारे के मंदिरों और प्राकृतिक दृश्यों को करीब से देख सकते हैं। नाव की सवारी के साथ-साथ आप सूरज की ढलती रोशनी का आनंद भी ले सकते हैं।
9. स्थानीय बाजारों की सैर
अयोध्या के स्थानीय बाज़ारों में जाकर वहां की संस्कृति को महसूस करें। आप यहां पारंपरिक हस्तशिल्प, पूजा सामग्री और अयोध्या के खास व्यंजनों का स्वाद ले सकते हैं। यह बाज़ार, अयोध्या के जीवंत जीवन और परंपरा की झलक प्रस्तुत करते हैं।
10. अयोध्या के इतिहास और संस्कृति का अनुभव
मणि पर्वत मंदिर के आसपास घूमने के दौरान, अयोध्या के ऐतिहासिक स्थलों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का हिस्सा बनें।यहां के मंदिर और घाट न, केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं बल्कि भारतीय संस्कृति और परंपराओं कागहरा संबंध भी दर्शाते हैं।
यह सभी गतिविधियां और मणि पर्वत मंदिर के आस-पास स्थल, आपकी यात्रा को न केवल यादगार बनाएंगे, बल्कि आपको अयोध्या की समृद्ध आध्यात्मिक और सांस्कृतिक धरोहर से जोड़ देंगे।
अयोध्या में तीर्थ यात्रा और पर्यटन का विकास
अयोध्या का इतिहास, बहुत पुराना है। यहां मणि और सुग्रीव पर्वत जैसे पवित्र स्थल हमेशा से तीर्थ यात्रियों के लिए खास रहे हैं। पहले के समय में, लोग इन जगहों तक पैदल या बैलगाड़ियों से यात्रा करते थे। धीरे-धीरे समय बदला और यात्राओं को आसान बनाने के लिए धर्मशालाएं बनाई गईं। साथ ही सड़क और रेल मार्ग अच्छे हो गए, जिससे लोगों को यहां तक पहुंचने में ज़्यादा दिक्कत नहीं होती थी।
अब के समय में, अयोध्या में तीर्थ यात्रियों और पर्यटकों के लिए बहुत कुछ नया किया गया है। मंदिरों की मरम्मत की गई है, पर्वतों तक जाने वाले रास्ते सुधारे गए हैं और रहने व सफ़ाई की अच्छी सुविधाएं दी गई हैं।
संदर्भ
मुख्य चित्र: अयोध्या शहर : Wikimedia, Rawpixel
आइए जानें, भारत में हर वर्ष, कितने लोग, हृदय रोगों के शिकार होते हैं
विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा
Thought II - Philosophy/Maths/Medicine
14-02-2025 09:17 AM
Jaunpur District-Hindi
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जौनपुर के अस्पतालों में हृदय से संबंधी समस्याओं से जूझ रहे मरीज़ों को देखना आम बात है। न केवल जौनपुर बल्कि समूचे भारत में हृदय रोग अब एक खामोश महामारी का रूप ले चुका है। आपको जानकर हैरानी होगी कि देश में होने वाली कुल मौतों में से लगभग 27% मौतें इसी वजह से होती हैं। 2017 में भारत में कार्डियोवैस्कुलर डिज़ीज़ (Cardiovasular Diseases (CVD)) के कारण 26.4 लाख लोगों की मृत्यु हुई। एक और चिंताजनक बात यह है कि हर साल लगभग 15.8 लाख भारतीय कोरोनरी हार्ट डिज़ीज़ (CHD) के कारण अपनी जान गंवा देते हैं। इनमें से 20% यानी 3 लाख से अधिक मौतें उत्तर प्रदेश में होती हैं। इसलिए आज विश्व जन्मजात हृदय दोष जागरूकता दिवस के अवसर पर, हम उत्तर प्रदेश में हृदय रोगियों की मौजूदा स्थिति पर चर्चा करेंगे। साथ ही, यह भी समझने की कोशिश करेंगे कि पिछले 30 वर्षों में उत्तर प्रदेश में हृदय रोगियों की संख्या क्यों बढ़ रही है। इसके बाद, हम भारत में हृदय रोग से जुड़े कुछ प्रमुख आँकड़ों पर नज़र डालेंगे। फिर, हृदय रोगियों को उपचार और प्रबंधन के दौरान आने वाली चुनौतियों पर बात करेंगे। अंत में, भारत में हृदय विफलता प्रबंधन के क्षेत्र में मौजूद बड़ी कमियों पर ध्यान केंद्रित करेंगे।
आइए सबसे पहले उत्तर प्रदेश में हृदय रोगियों की वर्तमान स्थिति का आंकलन करते हैं:
भारत में कोरोनरी हृदय रोग (Coronary Heart Disease (CHD)) के कारण हर साल 15.8 लाख लोगों की मृत्यु होती है। इसमें से लगभग 3 लाख मौतें उत्तर प्रदेश में होती हैं। पिछले तीन दशकों में हृदय रोग के मामलों की संख्या तीन गुना बढ़ गई है।
उत्तर प्रदेश में हृदय रोग क्यों बढ़ रहे हैं?
स्वास्थ्य अध्ययन बताते हैं कि 1990 के बाद से 60 साल से कम उम्र के लोगों में हृदय रोग से होने वाली असामयिक मौतें 85% तक बढ़ी हैं। यह स्थिति शहरीकरण, जीवनशैली में बदलाव और आनुवंशिक कारणों से जुड़ी हुई है। शहरीकरण के चलते, लोग अधिक कैलोरी वाले आहार का सेवन करने लगे हैं। ऊपर से हमारी शारीरिक गतिविधियां कम हो गई हैं, और बैठकर काम करने की आदतें बढ़ गई हैं। इन कारणों से मोटापा और अन्य कार्डियोमेटाबोलिक (cardiometabolic) समस्याएं तेज़ी से बढ़ रही हैं।
भारत में हृदय रोगों से जुड़े कुछ हैरानी भरे तथ्य निम्नवत दिए गए हैं:
- भारत की आबादी दुनिया की 20% से भी कम है, लेकिन दुनिया के कुल हृदय रोग के मामलों का लगभग 60% भारत में है।
- भारतीयों में हृदय रोग औसतन 33% कम उम्र में होता है।
- भारतीय पुरुषों में 50% दिल के दौरे 50 वर्ष से कम उम्र के लोगों में होते हैं। इनमें से 25% मामले 40 वर्ष से कम उम्र के लोगों में होते हैं।
- जनसांख्यिकीय आंकड़ों के अनुसार, भारतीयों में हृदय रोग की दर पश्चिमी देशों की औसत दर से दोगुनी है।
यह आंकड़े दिखाते हैं कि, हृदय रोग, एक गंभीर समस्या है और इससे बचने के लिए जीवनशैली में सुधार की बहुत आवश्यकता है।
लेकिन, भारत में हृदय रोगियों के उपचार और प्रबंधन से संबंधित कई बड़ी चुनौतियां भी हैं! इनमें रोगी देखभाल में विसंगतियां और उन्नत नैदानिक तकनीकों तक सीमित पहुंच शामिल हैं। इसका परिणाम यह होता है कि रोग का प्रारंभिक चरण में ही सटीक निदान नहीं हो पाता। विशेष रूप से वंचित समुदायों में स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी के कारण ये समस्याएं और भी बढ़ जाती हैं।
लेकिन भारत में हृदय रोगियों के उपचार और प्रबंधन में आने वाली प्रमुख चुनौतियों में शामिल हैं:
निदान में देरी और भ्रम: कोरोनरी धमनी रोग (Coronary Artery Disease (CAD)) और परिधीय धमनी रोग (Peripheral Artery Disease (PAD)) से पीड़ित 42% मरीज मानते हैं कि उनके लिए "आगे क्या करना है?" इस बारे में स्पष्टता का अभाव एक बड़ी बाधा है।
मानकीकृत दृष्टिकोण की कमी: 40% भारतीय चिकित्सकों के अनुसार, सी ए डी/पी ए डी के निदान के लिए मानकीकृत प्रक्रिया का अभाव सटीक निदान को कठिन बना देता है।
चिकित्सा प्रणाली की सीमाएं: मरीज़ों की स्थिति को जल्दी पहचानने और उन्हें सही उपचार की ओर मार्गदर्शन देने में डॉक्टरों को कठिनाई होती है।
कम सुविधा वाले क्षेत्रों में भौगोलिक दूरी, सामाजिक-आर्थिक स्थिति, आयु और लिंग जैसे कारक मरीज़ों की देखभाल को प्रभावित करते हैं।
हृदय रोग प्रबंधन में सबसे बड़ी आवश्यकताएं:
सार्वजनिक जागरूकता की कमी: भारत में लाखों लोग हृदय रोग और इसके खतरों के प्रति जागरूक नहीं हैं।
निदान में देरी: यहाँ पर समय पर रोग की पहचान न हो पाना एक बड़ी समस्या है।
शुरुआती उपचार: मरीज़ों को जल्दी और प्रभावी उपचार नहीं मिल पाता।
अस्पताल में भर्ती के लिए अपर्याप्त सुविधाएं: गंभीर स्थिति वाले मरीज़ों के लिए भी भारत में उचित व्यवस्था का अभाव है।
रिमोट मॉनिटरिंग की कमी: इलाज शुरू होने के बाद, मरीज़ों की निगरानी की सुविधाएं बहुत कम हैं।
बहु-विशेषज्ञ टीम का अभाव: मरीज़ों की स्थिति का सही मार्गदर्शन और मूल्यांकन करने वाली टीम की कमी है।
ये सभी समस्याएं, यह दिखाती हैं कि, भारत में हृदय रोग प्रबंधन को बेहतर बनाने के लिए तत्काल कदम उठाने की सख्त आवश्यकता है। डॉक्टरों और स्वास्थ्य सेवाओं को नई तकनीकों और प्रक्रियाओं को अपनाकर मरीज़ों को बेहतर उपचार देना चाहिए।
संदर्भ
https://tinyurl.com/2373kzx9
https://tinyurl.com/268y4r4m
https://tinyurl.com/2d8nak8a
https://tinyurl.com/2ykg2k8p
मुख्य चित्र स्रोत: Wikimedia
आइए जानें कैसे, भारत के इसरो ने, अंतरिक्ष यान डॉकिंग तकनीक हासिल की
य़ातायात और व्यायाम व व्यायामशाला
Locomotion and Exercise/Gyms
13-02-2025 09:30 AM
Jaunpur District-Hindi
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क्या आप जानते हैं कि, 30 दिसंबर, 2024 को, 'भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन' (Indian Space Research Organisation (ISRO)) द्वारा 'स्पेस डॉकिंग एक्सपेरिमेंट' (Space Docking Experiment (SpaDeX)) नामक मिशन के तहत, पहली बार अंतरिक्ष में दो छोटे अंतरिक्ष यानों को एक साथ जोड़ा गया। इसरो ने, इस मिशन की सफलता की घोषणा, 16 जनवरी 2025 को की। यह मिशन, अंतरिक्ष डॉकिंग तकनीक को विकसित और प्रदर्शित करने के लिए, एक महत्वपूर्ण तकनीकी पहल है। स्पेडेक्स नामक इस मिशन में, दो अंतरिक्ष यान शामिल थे, जो दक्षिणी भारत में, श्रीहरिकोटा (Sriharikota) में एक लॉन्च पैड (launch pad) से छोड़े गए थे। एक ही रॉकेट पर लॉन्च किए गए ये दो यान, अंतरिक्ष में अलग हो गए। फिर उनको, अंतरिक्ष में एक साथ जोड़ा गया। इस सफलता के साथ, भारत रूस, अमेरिका और चीन के बाद यह तकनीकी उपलब्धि हासिल करने वाला दुनिया का चौथा देश बन गया है। तो आइए, आज स्पेडेक्स मिशन की अवधारणा और इस मिशन के लिए विकसित की गई स्वदेशी प्रौद्योगिकियों के बारे में विस्तार से जानते हैं। इसके साथ ही, हम स्पेडेक्स मिशन के उद्देश्य और महत्व के बारे में जानेंगे। अंत में, हम यह समझने का प्रयास करेंगे कि स्पेडेक्स मिशन की डॉकिंग प्रक्रिया को सफलतापूर्वक कैसे क्रियान्वित किया गया।
स्पेडेक्स मिशन (SpaDex Mission):
स्पेडेक्स मिशन अंतरिक्ष में डॉकिंग के प्रदर्शन के लिए एक लागत प्रभावी प्रौद्योगिकी प्रदर्शक मिशन है, जिसके लिए 'ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण वाहन' (Polar Satellite Launch Vehicle (PSLV)) द्वारा प्रक्षेपित किए गए दो छोटे अंतरिक्ष यानों का उपयोग किया जाएगा। भारत की अंतरिक्ष महत्वाकांक्षाओं जैसे चंद्रमा पर भारतीयों के पहुंचने, चंद्रमा से नमूना लाने, भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (Bharatiya Antariksh Station (BAS)) के निर्माण और संचालन आदि के लिए यह तकनीक आवश्यक है। जब सामान्य मिशन उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए कई रॉकेटों को एक साथ लॉन्च करने की आवश्यकता होती है, तो इन-स्पेस डॉकिंग तकनीक आवश्यक होती है। इस मिशन के जरिए भारत अंतरिक्ष डॉकिंग तकनीक वाला दुनिया का चौथा देश बन गया है।
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मिशन संकल्पना:
स्पेडेक्स मिशन में, दो छोटे अंतरिक्ष यान – एस डी एक्स01 (SDX01) और एस डी एक्स 02 (SDX02), (जिनमें से प्रत्येक का वज़न लगभग 220 किलोग्राम है), शामिल थे, जिन्हें PSLV-C60 द्वारा एक साथ, लगभग 66 दिनों के स्थानीय समय चक्र के साथ, 55° झुकाव पर 470 किलोमीटर गोलाकार कक्षा में लॉन्च किया गया। पी एस एल वी वाहन की प्रदर्शित सटीकता का उपयोग करके प्रक्षेपण यान से अलग होने के समय लक्ष्य और चेज़र अंतरिक्ष यान के बीच सापेक्ष वेग दिया गया। इस बढ़ते हुए वेग से लक्ष्य अंतरिक्ष यान एक दिन के भीतर चेज़र से 10-20 किलोमीटर अंतर-उपग्रह दूरी बनाने में सक्षम हुआ । उस समय, लक्ष्य और चेज़र यान, समान वेग के साथ एक ही कक्षा में थे। लेकिन लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर अलग हुए, जिसे 'फ़ार रेंडेज़वस' (Far Rendezvous) के रूप में जाना जाता है। दो अंतरिक्ष यान के बीच एक छोटे सापेक्ष वेग की शुरुआत और फिर क्षतिपूर्ति करने की समान रणनीति के साथ, चेज़र क्रमशः 5 किलोमीटर, 1.5 किलोमीटर , 500 मीटर, 225 मीटर, 15 मीटर और 3 मीटर की उत्तरोत्तर कम अंतर-उपग्रह दूरी के साथ लक्ष्य तक पहुंचा, जिससे अंततः दो अंतरिक्ष यानों की डॉकिंग हुई । सफल डॉकिंग के बाद, उनके संबंधित पेलोड का संचालन शुरू करने के लिए दोनों उपग्रहों को अनडॉक करने और अलग करने से पहले दोनों उपग्रहों के बीच विद्युत ऊर्जा हस्तांतरण का प्रदर्शन भी किया गया ।
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डॉकिंग को सक्षम बनाने के लिए विकसित की गईं स्वदेशी तकनीकें:
- डॉकिंग तंत्र,
- चार रेंडेज़वस' और डॉकिंग सेंसर का एक सेट,
- विद्युत हस्तांतरण तकनीक,
- स्वदेशी नवीन स्वसंचालित रेंडेज़वस और डॉकिंग रणनीति,
- अंतरिक्ष यान के बीच स्वायत्त संचार के लिए 'अंतर-उपग्रह संचार लिंक' (Inter-satellite communication link (ISL)), जिसे अन्य अंतरिक्ष यान की स्थिति जानने के लिए अंतर्निहित जानकारी के साथ शामिल किया गया है।
- अन्य अंतरिक्ष यान की सापेक्ष स्थिति और वेग निर्धारित करने के लिए जी एन एस एस-( Global Navigation Satellite System (GNSS)) आधारित नवीन 'सापेक्ष कक्षा निर्धारण और प्रसार' (Relative Orbit Determination and Propagation (RODP)) प्रोसेसर,
- हार्डवेयर और सॉफ़्टवेयर डिज़ाइन सत्यापन और परीक्षण दोनों के लिए सिमुलेशन परीक्षण आधार।
स्पेडेक्स मिशन का उद्देश्य और महत्व:
डॉकिंग प्रौद्योगिकी का प्रदर्शन: इसका प्राथमिक उद्देश्य, पृथ्वी की निचली कक्षा में अंतरिक्ष यान के मिलन, डॉकिंग और अनडॉकिंग के लिए आवश्यक तकनीक का विकास और प्रदर्शन करना है। यह क्षमता, मानव अंतरिक्ष उड़ान और उपग्रह सर्विसिंग सहित विभिन्न भविष्य के मिशनों के लिए महत्वपूर्ण है।
भविष्य के जटिल मिशनों के लिए समर्थन: यह डॉकिंग तकनीक, उन जटिल मिशनों के लिए आवश्यक है, जिनके लिए, सामान्य उद्देश्यों को प्राप्त करने हेतु, एक साथकई रॉकेटों के लॉन्च की आवश्यकता होती है, जैसे कि भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन का निर्माण और संचालन और चंद्रयान -4 जैसे चंद्र मिशन।
स्वायत्त संचालन: इस मिशन का उद्देश्य, स्वायत्त डॉकिंग क्षमताओं का परीक्षण करना था । इसमें डॉक किए गए अंतरिक्ष यान के बीच विद्युत ऊर्जा हस्तांतरण की पुष्टि करना शामिल है, जो अंतरिक्ष में भविष्य के रोबोटिक संचालन के लिए महत्वपूर्ण है।
पेलोड संचालन: डॉकिंग के बाद, इस मिशन के तहत, पेलोड संचालन का भी परीक्षण किया गया , जिसमें अनडॉकिंग के बाद दोनों अंतरिक्ष यानों पर विभिन्न प्रयोगों की कार्यक्षमता का प्रदर्शन किया गया।
एक विशिष्ट समूह में शामिल होना: इन क्षमताओं का सफलतापूर्वक प्रदर्शन करके, भारत का लक्ष्य उन देशों के एक विशिष्ट समूह में शामिल होना है, जिन्होंने अंतरिक्ष डॉकिंग तकनीक में महारत हासिल की है। अब तक, भारत से पहले केवल तीन देशों - संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस और चीन - ने ही यह सफलता हासिल की है। यह प्रगति, इसरो को वैश्विक अंतरिक्ष समुदाय में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी के रूप में स्थापित करती है।
सैटेलाइट सर्विसिंग और रखरखाव: डॉकिंग से उपग्रहों की सर्विसिंग और ईंधन भरने की अनुमति मिलती है, जिससे उनके परिचालन जीवन का विस्तार होता है। यह क्षमता, लॉन्चिंग प्रतिस्थापन से जुड़ी लागत को कम कर सकती है और उपग्रह संचालन की स्थिरता को बढ़ा सकती है।
मानव अंतरिक्ष उड़ान के लिए समर्थन: भारत के गगनयान जैसे मिशनों के लिए, जिनका उद्देश्य, मनुष्य को अंतरिक्ष में भेजना है, अंतरिक्ष यान के बीच चालक दल के स्थानांतरण और अंतरिक्ष स्टेशनों से जुड़ने के लिए डॉकिंग तकनीक महत्वपूर्ण है। इस मिशन ने मानवयुक्त मिशनों के दौरान, सुरक्षित और कुशल संचालन सुनिश्चित की ।
अंतरग्रहीय मिशन: डॉकिंग क्षमताएं, भविष्य के अंतरग्रहीय मिशनों के लिए महत्वपूर्ण हैं, जैसे चंद्रमा या मंगल से नमूना वापसी मिशन।
तकनीकी उन्नति और वैश्विक स्थिति: डॉकिंग तकनीक में महारत हासिल करने से भारत ऐसे संचालन में सक्षम देशों के चुनिंदा समूह में शामिल हो गया है, जिससे वैश्विक अंतरिक्ष समुदाय में इसकी प्रतिष्ठा बढ़ गई है। यह प्रगति, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देती है और संयुक्त मिशनों और अनुसंधान के अवसर खोलती है।
अंतरिक्ष यान डॉकिंग क्या है:
अंतरिक्ष यान डॉकिंग, एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें दो अंतरिक्ष यान अंतरिक्ष में जुड़ते हैं। इस प्रक्रिया में एक अंतरिक्ष यान (जैसे कि एक अंतरिक्ष स्टेशन मॉड्यूल) दूसरे अंतरिक्ष यान या अंतरिक्ष स्टेशन के साथ जुड़ता है। इस प्रक्रिया में, दोनों अंतरिक्ष यानों की सुरक्षा और स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए सटीक संरेखण और नियंत्रण की आवश्यकता होती है। उदाहरण के लिए, 'अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन' (International Space Station (ISS)), रूसी सोयुज़ (Soyuz) जैसे अंतरिक्ष यान से डॉकिंग के माध्यम से कार्गो और चालक दल प्राप्त करता है।
भारत के लिए स्पेस डॉकिंग तकनीक का महत्व:
इसरो के अनुसार, भारत को चंद्रमा पर एक भारतीय नागरिक को भेजने, घरेलू अंतरिक्ष स्टेशन के निर्माण एवं संचालन और चंद्रमा के नमूने वापस करने की अपनी महत्वाकांक्षा को आगे बढ़ाने में सफल होने के लिए, घरेलू स्तर पर, विकसित डॉकिंग तकनीक, एक आवश्यकता है। यह तकनीक, भारत को एक उपग्रह या अंतरिक्ष यान से दूसरे यान में सामग्री स्थानांतरित करने की अनुमति देगी, जैसे कि पेलोड, चंद्र नमूने या अंततः, अंतरिक्ष में मानव। इस मिशन के हिस्से के रूप में, डॉक किए गए अंतरिक्ष यानों ने, आपस में जुड़ने के बाद, अपने बीच, विद्युत ऊर्जा के हस्तांतरण का भी प्रदर्शन किया। भविष्य के मिशनों के दौरान, अंतरिक्ष में रोबोटिक्स, अंतरिक्ष यान नियंत्रण और पेलोड संचालन के लिए, यह आवश्यक है।
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स्पेडेक्स मिशन की डॉकिंग प्रक्रिया कैसे क्रियान्वित की गई:
स्पेडेक्स मिशन में शामिल अंतरिक्ष यान, प्रकृति में उभयलिंगी हैं, अर्थात डॉकिंग के दौरान, कोई भी अंतरिक्ष यान चेज़र (सक्रिय अंतरिक्ष यान) के रूप में कार्य कर सकता है। ये यान, सौर पैनलों, लिथियम-आयन बैटरी और एक मज़बूत बिजली प्रबंधन प्रणाली से युक्त हैं। इनके 'एटीट्यूड एंड ऑर्बिट कंट्रोल सिस्टम' (Attitude and Orbit Control System (AOCS)) में स्टार सेंसर, सन सेंसर, मैग्नेटोमीटर और एक्चुएटर्स जैसे रिएक्शन वील , मैग्नेटिक टॉर्कर्स और थ्रस्टर्स जैसे सेंसर शामिल हैं। डॉकिंग के बाद, दोनों यान, एक ही अंतरिक्ष यान के रूप में काम करेंगे। डॉकिंग की सफलता की पुष्टि के लिए विद्युत शक्ति को एक उपग्रह से दूसरे उपग्रह में स्थानांतरित किया गया। सफल डॉकिंग और अनडॉकिंग के बाद, अंतरिक्ष यान, अलग हो गए और अनुप्रयोग मिशनों के लिए उपयोग किए गए । अनडॉकिंग के दौरान, अंतरिक्ष यान पेलोड संचालन शुरू करने के लिए अलग हो गया । इन पेलोड से उच्च रिज़ॉल्यूशन छवियां, प्राकृतिक संसाधन निगरानी, वनस्पति अध्ययन और कक्षा विकिरण पर्यावरण माप जैसे अनुप्रयोग किया जा सकते हैं।
संदर्भ
मुख्य चित्र: बिना पायलट वाला आई एस एस प्रोग्रेस पुनः आपूर्ति वाहन, स्टेशन पर मौजूद एक्सपीडिशन 23 के चालक दल के सदस्यों के लिए 2.6 टन भोजन, ईंधन, ऑक्सीजन, प्रणोदक और आपूर्ति लेकर अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन की ओर बढ़ रहा है। : (Wikimedia)
भारत में, कैंसर के उपचार में बदलाव ला रही है प्रौद्योगिकी
विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा
Thought II - Philosophy/Maths/Medicine
12-02-2025 09:21 AM
Jaunpur District-Hindi
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भारत में कैंसर के मरीज़ों की देखभाल, अपनी अंतर्निहित जटिलता और उच्च लागत के कारण, लंबे समय से एक महत्वपूर्ण चुनौती रही है। कई वर्षों तक, यह माना जाता था कि इस बीमारी का इलाज केवल अमीर लोग ही करा सकते हैं। हालाँकि, भारत में कैंसर के उपचार का परिदृश्य, तेज़ी से बदल रहा है, प्रौद्योगिकी और व्यक्तिगत चिकित्सा में प्रगति के साथ, पारंपरिक रूप से कैंसर के इलाज के तरीके में बदलाव आ रहा है। कैंसर के उपचार से संबंधित चिकित्सा को ऑन्कोलॉजी (Oncology) कहते हैं। चिकित्सा के इस क्षेत्र में विशेषज्ञता रखने वाले चिकित्सकों को ऑन्कोलॉजिस्ट (Oncologist) कहा जाता है। क्या आप इस तथ्य से अवगत हैं कि, हमारे पड़ोसी शहर वाराणसी में दो कैंसर विशेषज्ञ अस्पताल हैं, - 'होमी भाभा कैंसर अस्पताल' और 'महामना पंडित मदन मोहन मालवीय कैंसर केंद्र'। तो आइए, आज पिछले 50 वर्षों में हमारे राज्य उत्तर प्रदेश में ऑन्कोलॉजी के विकास के बारे में जानते हैं और इस बात पर ध्यान केंद्रित करते हैं कि, कैसे प्रौद्योगिकी, भारत में कैंसर के उपचार में बदलाव ला रही है। उसके बाद, हम भारत में ऑन्कोलॉजी में उपलब्ध आजीविकाओं के प्रकारों और एक ऑन्कोलॉजिस्ट की भूमिका और ज़िम्मेदारियों के बारे में जानेंगे। अंत में, हम यह जानेंगे कि भारत में ऑन्कोलॉजिस्ट बनने के लिए क्या करना होगा?
उत्तर प्रदेश में पिछले 50 वर्षों में ऑन्कोलॉजी का विकास:
शुरुआत और सत्तर का दशक:
चालीस के दशक की शुरुआत में देश में, 'रेडियम इंस्टीट्यूट, मेडिकल कॉलेज, आगरा' चार रेडियम संस्थानों में से एक था। सत्तर के दशक की शुरुआत में उत्तर प्रदेश में कैंसर का इलाज रेडियोथेरेपी की सुविधा देने वाले केवल कुछ सरकारी और निजी अस्पतालों तक ही सीमित था। रेडियोथेरेपी सुविधा केवल किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज लखनऊ, मेडिकल कॉलेज आगरा, कमला नेहरू मेमोरियल हॉस्पिटल, इलाहाबाद, इंस्टीट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज़, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी और जेके कैंसर इंस्टीट्यूट कानपुर में उपलब्ध थी। साठ के दशक तक, इलाहाबाद, आगरा और लखनऊ में कोबाल्ट 60 मशीनें आ चुकी थीं। 1953 में, इलाहाबाद में के एन एम एच में पहली बार कोबाल्ट 60 रेडियोथेरेपी शुरू की गई। 1961 में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा कानपुर में अपने नागरिकों को कैंसर का सर्वोत्तम समकालीन उपचार प्रदान करने के लिए जेके कैंसर संस्थान की स्थापना की गई। इस संस्थान का औपचारिक उद्घाटन, 1963 में हुआ। 1979 में के जी एम सी के सर्जरी विभाग में पहली ऑन्कोलॉजी यूनिट की स्थापना हुई। इसी समय प्रोफेसर एन सी मिश्रा सहित कैंसर सर्जनों के एक समूह ने1977 में 'इंडियन एसोसिएशन ऑफ़ सर्जिकल ऑन्कोलॉजी' (Indian Association of Surgical Oncology) की स्थापना की।
सर्जिकल ऑन्कोलॉजी का विकास:
उत्तर प्रदेश में, सितंबर 1998 में, एक मेडिकल कॉलेज में 'ऑन्कोलॉजी यूनिट' सर्जिकल ऑन्कोलॉजी का पहला स्वतंत्र विभाग बन गया। 'मेडिकल काउंसिल ऑफ़ इंडिया' ने 2004 में सर्जिकल ऑन्कोलॉजी में एमसीएच (MCh) विभाग को मंज़ूरी दी। यह उत्तर भारत में पहला एम सी एच सर्जिकल ऑन्कोलॉजी कार्यक्रम था। इस समय सर्जिकल ऑन्कोलॉजी में एम सी एच कार्यक्रम चलाने वाले केवल तीन अन्य संस्थान चेन्नई, बैंगलोर और अहमदाबाद में थे। तब से अब तक उत्तर प्रदेश में कई अस्पतालों एवं संस्थानों में सर्जिकल ऑन्कोलॉजी विभाग बनाए गए हैं।
विकिरण ऑन्कोलॉजी का विकास:
पिछले 50 वर्षों में, उत्तर प्रदेश में, रेडियोथेरेपी सेवाओं में बड़े पैमाने पर बदलाव आया है।आगरा, लखनऊ, इलाहाबाद, कानपुर और वाराणसी में जैसे शहरों के अलावा, बरेली, अलीगढ़, गोरखपुर और मेरठ आदि शहरों में निजी अस्पतालों के साथ-साथ मेडिकल कॉलेजों में भी रेडियोथेरेपी सुविधाएं विकसित हुईं हैं। 1983 में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा लखनऊ में, संजय गांधी 'पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज' की स्थापना एक सुपर-स्पेशियलिटी संस्थान के रूप में की गई थी। यह 1988 में आधुनिक रेडियोथेरेपी के साथ पूरी तरह कार्यात्मक हो गया। राज्य में पिछले दशक में कई नए सार्वजनिक और निजी अस्पतालों ने रेडियोथेरेपी प्रदान करना शुरू कर दिया है। हालाँकि, कैंसर रोगियों के भारी बोझ को देखते हुए, ये अभी भी बेहद अपर्याप्त हैं।
मेडिकल ऑन्कोलॉजी का विकास:
एक विषय के रूप में मेडिकल ऑन्कोलॉजी उत्तर प्रदेश में अभी भी अपनी प्रारंभिक अवस्था में है। कैंसर कीमोथेरेपी बड़े पैमाने पर रेडियोथेरेपिस्ट, सर्जिकल ऑन्कोलॉजिस्ट, चिकित्सकों, सर्जन और स्त्री रोग विशेषज्ञों द्वारा की जाती है। लखनऊ में किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी और डॉ. राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान जैसे केवल कुछ शिक्षण अस्पताल हैं जिनमें सक्रिय मेडिकल ऑन्कोलॉजी विभाग हैं। केजीएमयू, लखनऊ के बाल रोग विभाग में बाल चिकित्सा ऑन्कोलॉजी यूनिट पिछले कई वर्षों से सभी प्रकार के बाल कैंसर का प्रबंधन कर रही है। हाल ही में नोएडा में सुपर स्पेशलिटी पीडियाट्रिक हॉस्पिटल और स्नातकोत्तर शिक्षण संस्थान शुरू हुए हैं।
विकिरण
नई प्रौद्योगिकियां भारत में कैंसर देखभाल में कैसे बदलाव ला रही हैं:
विकिरण ऑन्कोलॉजी में प्रगति: विकिरण ऑन्कोलॉजी ने पिछले एक दशक में, कैंसर प्रबंधन को बदल दिया है, जो रोगी के परिणामों और जीवन की गुणवत्ता में सुधार के लिए आवश्यक हो गया है। स्टीरियोटैक्टिक बॉडी रेडियोथेरेपी (एस बी आ रटी/एस आर टी) जैसी तकनीकों से उच्च खुराक, और ट्यूमर के सटीक लक्ष्यीकरण से, कई सत्रों की आवश्यकता को कम करके स्वस्थ ऊतकों को बचाने में मदद मिलती है। ब्रैकीथेरेपी जैसी आंतरिक उपचार पद्धतियां भी सीधे ट्यूमर के भीतर या उसके बगल में विकिरण स्रोतों को रखकर गर्भाशय ग्रीवा और प्रोस्टेट जैसे कैंसर के लिए अत्यधिक लक्षित दृष्टिकोण प्रदान करती हैं। प्रोटॉन बीम थेरेपी, मस्तिष्क या रीढ़ जैसे संवेदनशील क्षेत्रों के लिए आदर्श, विकिरण को ट्यूमर तक ही सीमित रखती है, जिससे आस-पास के ऊतकों के लिए जोखिम कम हो जाता है। कुल मिलाकर, ये विकास, विकिरण ऑन्कोलॉजी को कैंसर के प्रबंधन में आधारशिला बनाता है।
तरल बायोप्सी (Liquid Biopsy): जबकि बायोप्सी कई मामलों में आक्रामक और दर्दनाक होती है, तरल बायोप्सी, रक्त परीक्षणों के माध्यम से की जाती है, जिसमें रक्त में ट्यूमर सामग्री का मूल्यांकन करके कैंसर का पता लगाया जा सकता है। कठिन ट्यूमर स्थलों तक पहुंचने में इसकी दक्षता और सटीकता के कारण, यह तकनीक लोकप्रिय हो रही है। ये परीक्षण, न केवल प्राथमिक और माध्यमिक निदान में मदद कर रहे हैं, बल्कि डी एन ए प्रोफ़ाइलिंग में परिवर्तनों के वास्तविक समय के परीक्षण को भी सक्षम कर रहे हैं। कैंसर के उपचार में इस तरह की सटीकता से डॉक्टरों को शीघ्र पता लगाने और अधिक सटीकता और बेहतर परिणामों के साथ उपचार का सुझाव देने में मदद मिलती है।
टेली-सर्जरी (Tele-surgery): बेहतर संचार प्रौद्योगिकियों के साथ, फ़्रंट-लाइन रोबोटिक्स द्वारा मूल स्थान से सर्जिकल टीम की देखरेख में एंडोस्कोप कैमरे और सर्जिकल उपकरणों का नियंत्रण करके सर्जिकल प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जाता है। इससे जटिल प्रक्रियाओं में सटीकता आ रही है, जिससे ऑपरेशन कक्ष में सर्जन के बैठने की तुलना में जटिलताओं का खतरा कम हो गया है। उच्च-रिज़ॉल्यूशन वाले 3डी कैमरे और रोबोटिक हथियार, दुर्गम क्षेत्रों तक बेहतर पहुंच प्रदान कर रहे हैं, जिससे सर्जिकल त्रुटियां कम होती हैं और आसपास के ऊतकों को कम नुकसान होता है।
सी ए आर-टी सेल थेरेपी (CAR-T Cell Therapy): इम्यूनोथेरेपी के माध्यम से, कैंसर कोशिकाओं से लड़ने और उन्हें नष्ट करने के लिए प्रतिरक्षा प्रणाली का उपयोग करके कैंसर के इलाज का एक नया तरीका विकसित हुआ है। उदाहरण के लिए, भारत ने हाल ही में सी ए आर टी-सेल थेरेपी में काफ़ी प्रगति की है।
कृत्रिम बुद्धिमत्ता की भूमिका: कैंसर देखभाल तक पहुंच में सुधार के लिए, कृत्रिम बुद्धिमत्ता ने अभूतपूर्व गति और सटीकता के साथ, बड़ी मात्रा में डेटा के प्रसंस्करण के माध्यम से कैंसर का शीघ्र पता लगाने में की मदद की है। इसका उपयोग, अस्पताल के कामकाज को सुव्यवस्थित करने, मरीज़ों का बेहतर नियुक्ति प्रबंधन और परामर्श देने के लिए भी किया जा रहा है।
ऑन्कोलॉजिस्ट के प्रकार:
1. मेडिकल ऑन्कोलॉजिस्ट (Medical Oncologist): एक मेडिकल ऑन्कोलॉजिस्ट कीमोथेरेपी, हार्मोनल थेरेपी, लक्षित थेरेपी और अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण के साथ कैंसर का इलाज करता है। ऑन्कोलॉजिस्ट, ऐसे विशेषज्ञ हैं जिनसे अधिकांश मरीज़ उपचार के बाद संपर्क करते हैं।
2. विकिरण ऑन्कोलॉजिस्ट (Radiation Oncologist): विकिरण ऑन्कोलॉजिस्ट, कैंसर रोगियों के इलाज के लिए विकिरण चिकित्सा का उपयोग करते हैं।
3. सर्जिकल ऑन्कोलॉजिस्ट (Surgical Oncologist): ये, ट्यूमर और आस-पास के ऊतकों को हटाने के लिए सर्जरी करते हैं।
4. बाल चिकित्सा ऑन्कोलॉजिस्ट (Pediatric Oncologist): ये, बच्चों में कैंसर के इलाज के विशेषज्ञ होते हैं।
5. स्त्री रोग ऑन्कोलॉजिस्ट (Gynecologic Oncologist): ये, महिलाओं में गर्भाशय, डिम्बग्रंथि और गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर जैसे कैंसर के इलाज में विशेषज्ञ होते हैं।
6. रुधिर रोग विशेषज्ञ ऑन्कोलॉजिस्ट (Hematologist Oncologist): ये ल्यूकेमिया और लिंफोमा जैसे रक्त कैंसर का निदान और उपचार करते हैं।
एक ऑन्कोलॉजिस्ट की भूमिका और ज़िम्मेदारियाँ:
- कैंसर का निदान करना और चरण का पता लगाना,
- सभी उपचार विकल्पों पर विचार करना और सर्वोत्तम विकल्प चुनना,
- उपचार योजनाओं का समन्वय करना और आवश्यक विभिन्न प्रकार के उपचार निर्धारित करना,
- रोगियों को कैंसर के दुष्प्रभावों और उपचार का प्रबंधन करने में मदद करना,
- चिकित्सा इतिहास एकत्र करना और चिकित्सा रिकॉर्ड बनाए रखना,
- अन्य भूमिकाएँ और ज़िम्मेदारियाँ, इस बात पर निर्भर करती हैं कि, आप किस प्रकार के ऑन्कोलॉजिस्ट हैं, जैसे मेडिकल ऑन्कोलॉजिस्ट कीमोथेरेपी करते हैं, रेडिएशन ऑन्कोलॉजिस्ट, रेडिएशन थेरेपी करते हैं और सर्जिकल ऑन्कोलॉजिस्ट, ट्यूमर और ऊतकों को हटाने के लिए सर्जरी करते हैं।
भारत में ऑन्कोलॉजिस्ट कैसे बनें:
चरण 1: उच्च माध्यमिक शिक्षा पूरी करें,
- योग्यता: छात्रों को अपनी 10वीं की शिक्षा, मुख्य विषयों के रूप में भौतिकी, रसायन विज्ञान, जीव विज्ञान/जैव प्रौद्योगिकी और अंग्रेज़ी के साथ पूरी करनी होगी।
- न्यूनतम अंक: पी सी बी (PCB) समूह में न्यूनतम कुल अंक 50% (आरक्षित श्रेणियों के लिए 40%) आवश्यक हैं।
- प्रवेश परीक्षा: एम बी बी एस (MBBS) प्रवेश के लिए 'राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा' (NEET) जैसी राष्ट्रीय या राज्य स्तरीय प्रवेश परीक्षा में उत्तीर्ण होना अनिवार्य है।
चरण 2: मेडिसिन में स्नातक की डिग्री (एमबीबीएस) प्राप्त करें,
- अवधि: एम बी बी एस कार्यक्रम, 5.5 साल का होता है, जिसमें एक साल की अनिवार्य इंटर्नशिप भी शामिल है।
- पाठ्यक्रम: पाठ्यक्रम में बुनियादी चिकित्सा विज्ञान और नैदानिक कौशल शामिल है, जो चिकित्सा अभ्यास के लिए एक आधार प्रदान करता है।
चरण 3: स्नातकोत्तर विशेषज्ञता प्राप्त करें,
- योग्यता: एम बी बी एस पूरा करने के बाद, उम्मीदवारों को ऑन्कोलॉजी या संबंधित क्षेत्रों में स्नातकोत्तर डिग्री हासिल करनी होगी। यह जनरल मेडिसिन में एम डी (MD) और उसके बाद मेडिकल ऑन्कोलॉजी में डी एम (DM) या जनरल सर्जरी में एम एस (MS) और उसके बाद सर्जिकल ऑन्कोलॉजी में एम सी एच (MCH) हो सकती है।
- प्रवेश परीक्षा: स्नातकोत्तर कार्यक्रमों में प्रवेश के लिए नीट पी जी (NEET-PG) या संस्थान-विशिष्ट प्रवेश परीक्षा जैसी परीक्षाओं को उत्तीर्ण करना आवश्यक है।
चरण 4: सुपर स्पेशलाइज़ेशन (वैकल्पिक)
- इच्छुक ऑन्कोलॉजिस्ट फेलोशिप कार्यक्रमों के माध्यम से बाल चिकित्सा ऑन्कोलॉजी, स्त्री रोग ऑन्कोलॉजी आदि जैसे क्षेत्रों में आगे विशेषज्ञता का विकल्प चुन सकते हैं।
- इन कार्यक्रमों में प्रवेश के लिए अतिरिक्त परीक्षाओं की आवश्यकता हो सकती है और यह उम्मीदवार की स्नातकोत्तर योग्यता पर निर्भर करता है।
लाइसेंस प्राप्त करना:
- मेडिकल पंजीकरण: एम बी बी एस की डिग्री पूरी करने पर, स्नातकों को भारत में डॉक्टर के रूप में कानूनी रूप से अभ्यास करने के लिए 'मेडिकल काउंसिल ऑफ़ इंडिया' या राज्य मेडिकल काउंसिल के साथ पंजीकरण करना होगा।
- विशेषज्ञ पंजीकरण: ऑन्कोलॉजी में स्नातकोत्तर अध्ययन पूरा करने के बाद, विशेषज्ञ ऑन्कोलॉजिस्ट के रूप में एम सी आई (MCI) के साथ आगे पंजीकरण की आवश्यकता होती है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/yevb9vab
मुख्य चित्र स्रोत : wikimedia
आखिर क्यों, नौटंकी, नए ज़माने के दर्शकों को रास नहीं आ रही है ?
द्रिश्य 2- अभिनय कला
Sight II - Performing Arts
11-02-2025 09:23 AM
Jaunpur District-Hindi
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नौटंकी, उत्तर भारत की एक पारंपरिक लोक नाट्य है! यह पहले बहुत लोकप्रिय हुआ करती थी, लेकिन पिछले कुछ वर्षों से यह तेज़ी के साथ अपनी लोकप्रियता खो रहा है। एक समय ऐसा भी था, जब यह नाट्य कला संगीत, नृत्य और नाटकीय कहानियों के माध्यम से बड़ी संख्या में दर्शकों को अपनी
ओर आकर्षित करती थी। लेकिन, फ़िल्मों, टीवी शो और डिजिटल मीडिया जैसे आधुनिक मनोरंजन के साधनों के उदय के कारण, नौटंकी के दर्शकों की
संख्या तेजी से घट रही है। हालांकि, इस कला रूप को बचाने के लिए कई प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन फिर भी नौटंकी धीरे-धीरे समाप्ति की ओर बढ़ रही है। इस परंपरा को ज़िंदा रखने वाले कलाकार और दर्शक, दोनों की संख्या, दिन-ब-दिन घट रही है। इसलिए, आज के इस लेख में हम इस अनूठी कला के पतन के कारणों पर चर्चा करेंगे। इस दौरान, हम यह भी जानेंगे कि सिनेमा और डिजिटल मीडिया ने मनोरंजन में नौटंकी की पारंपरिक भूमिका को किस तरह से
बदला है। साथ ही, दर्शकों की रुचियों में आए बदलाव और आधुनिक प्रभावों पर विचार करेंगे। इसके अलावा, हम वैश्वीकरण और आधुनिकीकरण के प्रभावों का अध्ययन करेंगे और देखेंगे कि यह कला कैसे प्रासंगिक बने
रहने के लिए खुद को ढाल रही है। अंत में, नौटंकी के पुनरुद्धार और इसे वर्तमान युग में जीवंत बनाए रखने की संभावनाओं पर विचार करेंगे।
चलिए, शुरुआत नौटंकी के परिचय के साथ करते हैं !
नौटंकी रंगमंच भारत के उत्तरी क्षेत्रों, खासकर उत्तर प्रदेश, राजस्थान और हरियाणा से उपजा एक पारंपरिक लोक रंगमंच है। इसे अपने जीवंत और रंगीन प्रदर्शन के लिए जाना जाता है। इसमें नाटक, संगीत, नृत्य और विस्तृत वेशभूषा का ऐसा समावेश होता है, जो कहानियों को और भी आकर्षक बना देता है। नौटंकी की कहानियाँ, अक्सर पौराणिक कथाओं, लोककथाओं और सामाजिक मुद्दों पर आधारित होती हैं। इनमें नैतिक दुविधाएँ, प्रेम कहानियाँ और महाकाव्य युद्ध जैसी विषयवस्तुएँ भी दिखाई जाती हैं।
इस कला रूप में भावनाओं को व्यक्त करने के लिए अतिरंजित भाव, नाटकीय संवाद और बार-बार गीतों का उपयोग किया जाता है। पारंपरिक रूप से, नौटंकी खुले स्थानों में प्रदर्शित की जाती थी, जो ग्रामीण दर्शकों को खूब आकर्षित करती थी। हालांकि, आधुनिक मनोरंजन साधनों की बढ़ती प्रतिस्पर्धा के कारण समय के साथ नौटंकी की लोकप्रियता में गिरावट आ रही है। फिर भी, अपनी समृद्ध परंपरा को बनाए रखने के लिए यह खुद को समकालीन समय के साथ अनुकूलित कर रही है। आज भी, नौटंकी भारत की सांस्कृतिक विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा मानी जाती है और देश की विविध प्रदर्शन कलाओं का
सजीव उदाहरण है।
भारतीय सिनेमा ने भी नौटंकी से बहुत कुछ सीखा है। अपने शुरुआती वर्षों में, बॉलीवुड फ़िल्मों ने भी नौटंकी और अन्य लोकप्रिय थिएटर शैलियों से कथानक, गीत, नृत्य और चरित्र
चित्रण की शैली अपनाई।मेलोड्रामा, संगीत, अच्छाई और बुराई के बीच संघर्ष, शाही दरबार, डाकू, जोकर, साइड-हीरो और साइड-हीरोइन जैसे कई तत्व मंच से ही स्क्रीन पर लाए गए।
1960 के दशक तक सिनेमा, जनता के मनोरंजन का मुख्य माध्यम बन चुका था। इस समय नौटंकी ने भी सिनेमा से प्रेरणा लेना शुरू कर दिया। उदाहरण के लिए, नौटंकी "मुगल-ए-आज़म" और "जहांगीर का इंसाफ़" 1960 की प्रसिद्ध फिल्म "मुगल-ए-आज़म" पर आधारित थीं। इसी तरह, "पुकार," "शोले," और "नागिन" जैसी नौटंकियां भी समान नाम की फ़िल्मों से प्रेरित थीं।
नौटंकी ने लोकप्रिय फ़िल्मों से वेशभूषा, गीत और कथानक को अपनाया, लेकिन नई तकनीक और नवाचार लाने के लिए कंपनी
मालिकों के पास पूंजी की कमी थी। धीरे-धीरे कंपनियों की स्थिति खराब होती गई। वे सुस्त पड़ने लगीं, दिवालिया हो गईं या बंद हो गईं। कुछ कंपनियां, अस्थायी रूप से प्रदर्शन करती रहीं, लेकिन उनके पास स्थायी कर्मचारी नहीं थे और काम के अवसर भी कम हो
गए। इसके कारण, अच्छी नौटंकी करने वाले हज़ारों कलाकार अपनी आजीविका चलाने में असमर्थ हो गए। सरकार ने, 1968 में श्रीकृष्ण पहलवान को संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार और 1990 में गुलाब बाई को पद्म श्री से सम्मानित किया। लेकिन, इस विधा को पर्याप्त समर्थन नहीं दिया गया, जिससे नौटंकी की हालत और भी खराब हो गई।
वैश्वीकरण और आधुनिकीकरण ने, नौटंकी के सामने सबसे बड़ी चुनौतियाँ खड़ी कर दी। इनका जवाब देने के लिए, नौटंकी में बड़े बदलाव किए गए। समकालीन दर्शकों को आकर्षित करने के लिए, इसमें फ़िल्मी गाने और नृत्य को शामिल किया गया। इस बदलाव ने नौटंकी के पारंपरिक स्वरूप को पूरी तरह बदल दिया। अब दो अलग-अलग कला रूपों—नौटंकी और सिनेमा—के बीच की सीमाएँ धुंधली हो चुकी हैं।
पहले नौटंकी की पारंपरिक शैली अपनी विशिष्ट समय अवधि, संगीत वाद्ययंत्रों और स्क्रिप्ट के लिए जानी जाती थी। लेकिन आधुनिक दर्शकों की पसंद को देखते हुए, इसे नए रूप में ढाला गया। अब, छोटी अवधि के प्रदर्शन, आधुनिक संगीत संगत और प्रासंगिक स्क्रिप्ट आम हो गए हैं। इस बदलाव ने उन दर्शकों को भी आकर्षित किया है जो सिनेमाई कथाओं में रुचि रखते हैं।
डिजिटल मीडिया के महत्व को पहचानते हुए, नौटंकी मंडलियों ने प्रचार और प्रदर्शन के लिए डिजिटल प्लेटफ़ॉर्मों का सहारा लिया है। सोशल मीडिया, ऑनलाइन स्ट्रीमिंग प्लेटफ़ॉर्म और डिजिटल मार्केटिंग, नौटंकी की दृश्यता बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण हो गए
हैं।
नौटंकी और हिंदी सिनेमा के बीच का संबंध, पारंपरिक लोक कला और आधुनिक सिनेमा के बीच गहरे प्रभाव को दिखाता है। शुरुआती हिंदी फ़िल्मों ने नौटंकी से प्रेरणा ली। इसमें नाटकीय कथानक, जीवंत संगीतमय प्रस्तुति और भव्यता को अपनाया गया। यह संबंध दोनों विधाओं के विकास और अनुकूलन का प्रमाण है। अनुकूलन के अपने प्रयासों के बावजूद, नौटंकी को दर्शकों का ध्यान आकर्षित करने और बनाए रखने में कठिनाइयों का सामना
करना पड़ता है। इनमें सबसे बड़ी चुनौती है, समकालीन सामाजिक मुद्दों पर आधारित नई और प्रासंगिक स्क्रिप्ट की कमी। परंपरा पर आधारित नौटंकी, तेज़ी से बदलते सामाजिक परिवेश के साथ सामंजस्य स्थापित करने में अक्सर असफल रहती है। आधुनिक दर्शकों की रुचियों और अपेक्षाओं के अनुरूप खुद को ढालना इसके लिए कठिन हो गया है।
सिनेमा और डिजिटल मीडिया के उदय ने मनोरंजन के ढेरों विकल्प उपलब्ध कराए हैं। इन विकल्पों के बीच नौटंकी को अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़नी पड़ रही है। हिंदी सिनेमा के गानों पर आधारित वैरायटी शो, आइटम नंबर, और ऑर्केस्ट्रा जैसे आधुनिक कार्यक्रम दर्शकों को नौटंकी जैसे
पारंपरिक लोक प्रदर्शनों से दूर कर रहे हैं।
नौटंकी कलाकारों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति इस विधा के वित्तीय संघर्ष को उजागर करती है। सीमित संरक्षण और न्यूनतम पारिश्रमिक के कारण, कई कलाकार अपनी आजीविका चलाने में कठिनाई का सामना कर रहे हैं। इन हालातों ने नौटंकी प्रदर्शनों की गुणवत्ता और आवृत्ति को बुरी तरह प्रभावित किया है। कलाकारों की इन चुनौतियों ने, इस कला रूप के भविष्य को भी अनिश्चित बना दिया है।
इन चुनौतियों के बावजूद, नौटंकी के पास, खुद को फिर से तलाशने और विकास के नए रास्ते खोजने का मौका है। फ़िल्म निर्माताओं, डिजिटल प्लेटफ़ॉर्मों और सांस्कृतिक संस्थानों के साथ सहयोग करके, यह व्यापक दर्शकों तक पहुँच सकती है। यह न केवल, बदलते समय के साथ तालमेल बिठाने में मदद करेगा, बल्कि इसकी समृद्ध विरासत और विशिष्ट विशेषताओं का
सम्मान भी बना रहेगा।
कुल मिलाकर, नौटंकी का विकास भारत में सांस्कृतिक परिवर्तन की जटिलता को दर्शाता है। इसमें यह स्पष्ट होता है कि पारंपरिक अभिव्यक्ति के रूप आधुनिक दुनिया में प्रासंगिक और जीवंत बने रहने के लिए आधुनिकता
और वैश्वीकरण को समझने की आवश्यकता है। निरंतर नवाचार, अनुकूलन और जागरूकता के माध्यम से, नौटंकी न केवल, अपने दर्शकों को आकर्षित कर सकती है बल्कि
आने वाली पीढ़ियों के लिए अपनी सांस्कृतिक धरोहर को भी सुरक्षित रख सकती है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/2bf288ze
https://tinyurl.com/2bf288ze
https://tinyurl.com/29u4dz7r
मुख्य चित्र: पंडित देवेन्द्र शर्मा द्वारा प्रदर्शित नौटंकी (Flickr)
आइए जानें कैसे, खेतों के साथ-साथ, अपने घर में भी भरपूर मात्रा में उगा सकते हैं आप बैंगन
साग-सब्जियाँ
Vegetables and Fruits
10-02-2025 09:14 AM
Jaunpur District-Hindi
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क्या आप जानते हैं कि, भारत में बैंगन की फ़सल, कुल सब्ज़ी उगाने वाले क्षेत्रों के 8.14% से अधिक हिस्से में उगाई जाती है और यह कुल सब्ज़ियों के उत्पादन में, 9% का योगदान करती है। बैंगन ‘सोलानेसी’ (Solanaceae) प्रजाति से संबंधित है और यह पूरे वर्ष उगाई जाने वाली एक विशिष्ट उष्णकटिबंधीय सब्ज़ी है। बैंगन की खेती के लिए, अधिक रखरखाव की आवश्यकता नहीं होती है और आमतौर पर इसके लिए दिन के दौरान 26° और रात में 18° तापमान की आवश्यकता होती है। बैंगन को वाराणसी क्षेत्र, बुलंदशहर और उप-हिमालयी तराई बेल्ट सहित उत्तर प्रदेश के कई हिस्सों में उगाया जाता है। चूंकि यह गर्म मौसम की फ़सल है, इसलिए फ़रवरी में बुआई करने से, बाद में तापमान बढ़ने पर फ़सल की अच्छी पैदावार होती है। तो आइए, आज बैंगन की खेती करने के लिए उपयुक्त जलवायु, मिट्टी, सिंचाई आवश्यकताओं और उनके प्रत्यारोपण आदि के बारे में समझते हुए इसकी खेती करने के बारे में जानते हैं। इसके साथ ही, हम भारत में बैंगन बीज दर, बीज उपचार, खरपतवार नियंत्रण, कटाई के तरीके आदि के बारे में भी जानेंगे। अंत में, हम बैंगन के पौधों की सर्वोत्तम वृद्धि सुनिश्चित करने के लिए कुछ युक्तियों का पता लगाएंगे।
Pexels
जलवायु एवं मिट्टी:
बैंगन की खेती के लिए, लंबे समय तक गर्म मौसम अच्छा माना जाता है। साथ ही, अच्छी मात्रा में पानी और पूर्ण सूर्य की रोशनी सबसे अधिक आवश्यक हैं। इसके लिए, 13-21° के बीच तापमान सबसे उपयुक्त माना जाता है। मिट्टी कार्बनिक पदार्थों के साथ-साथ अच्छी जल निकासी वाली होनी चाहिए। कार्बनिक पदार्थ मिश्रित मिट्टी का पी एच (pH) (लगभग 6.5-7.5) होना चाहिए। बैंगन की फ़सल बोने का सबसे अच्छा समय बरसात-गर्मी के मौसम के बीच का है। रेतीली और चिकनी मिट्टी में बैंगन की जल्दी और अधिक पैदावार होती है।
बैंगन की पौध के लिए मिट्टी की तैयारी और रोपण प्रक्रिया::
बैंगन के पौध लगाने के लिए, जल जमाव से बचने के लिए ऊंची मेढ़ बनानी चाहिए। बीजों को गोबर की खाद मिली हुई मिट्टी में अच्छी तरह दबाना चाहिए। बुआई के लिए हमेशा अच्छी किस्म के बीजों का ही प्रयोग करें। फ़फ़ूंद जनित रोगों से बचाने के लिए, बीजों को प्रति किलोग्राम बीज में 3 ग्राम कार्बेन्डाज़िम (Carbendazim) और 3 ग्राम थाइरैम (thiram) से उपचारित करें। रासायनिक उपचार के बाद, बीजों को 4 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से ट्राइकोडर्मा विराइड (Trichoderma viride) से उपचारित करें, छांव में सुखाएं और तुरंत बोएं। एक हेक्टेयर भूमि पर, 30,000 से 45,000 अंकुर उगाने के लिए, लगभग 250-375 ग्राम बीज पर्याप्त हैं। इन पौधों को लगभग 4-5 सप्ताह में प्रत्यारोपित किया जा सकता है।
अंकुर 4-5 सप्ताह के भीतर रोपाई के लिए तैयार हो जाते हैं। इस समय, अंकुरों को सख्त करने के लिए सिंचाई नहीं करनी चाहिए। जड़ों को कोई नुकसान पहुंचाए बिना, अंकुरों को सावधानी से निकालकर, सिंचाई के बाद रोपाई की जानी चाहिए। सामान्यतः पौधों को दोहरी पंक्ति में 2-3 फ़ीट की दूरी पर लगाया जा सकता है। हर दो सप्ताह में कार्बनिक पदार्थ जमीन में मिला से अच्छी पैदावार होती है। नमी और तापमान बनाए रखने के लिए मिट्टी को सूखे भूसे और गन्ने की घास से ढक दें। 4-6 सप्ताह के अंदर रोपाई करने से अच्छी पैदावार होती है।
सिंचाई:
बैंगन की संकर किस्मों के पूर्ण विकास के लिए, बैंगन की खेती के लिए अधिकतम जल आपूर्ति की आवश्यकता होती है। गर्मियों में 3-4 दिन और सर्दियों में 7-12 दिन में सिंचाई की जानी चाहिए। हालांकि, प्रारंभिक अवस्था में अधिक सिंचाई न करें। अन्यथा, आद्र गलन रोग से पौधों के तने गलने लगते हैं और क्षति हो सकती है। इसके लिए, ड्रिप सिंचाई सबसे उपयुक्त रहती है। बहुत कम या अधिक पानी देने से बचें। मिट्टी को नम रखें, वास्तव में, बैंगन की अधिक उपज के लिए समय पर सिंचाई बहुत जरूरी है।
पोषण संबंधी आवश्यकताएँ:
बेहतर उपज और फ़सल की गुणवत्ता के लिए, पोषण संबंधी आवश्यकताओं को पूरा किया जाना चाहिए, जो निम्न प्रकार है:
- खाद- 25 टन/हेक्टेयर
- नाइट्रोजन- 100 किलोग्राम/हेक्टेयर
- फ़ॉस्फ़ोरस - 60 किलोग्राम/हेक्टेयर
- पोटैशियम- 60 किलोग्राम/हेक्टेयर
- नाइट्रोजन, फ़ॉस्फोरस और पोटैशियम का अनुपात- 5:3:3
खरपतवार नियंत्रण:
खरपतवार नियंत्रण, वायु संचार तथा पौधों की अच्छी वृद्धि के लिए सामान्यतः दो से चार बार निराई-गुड़ाई आवश्यक होती है। काली पॉलिथीन फ़िल्म से पलवारन करने से खरपतवार की वृद्धि कम हो जाती है और मिट्टी का तापमान उचित बना रहता है।खरपतवारों को प्रभावी ढंग से नियंत्रित करने के लिए, पौधे से पहले मिट्टी में प्रति एकड़ में 800-1000 मिलीलीटर फ़्लुक्लोरालिन (Fluchloralin) या 400 ग्राम ऑक्साडियाज़ोन (Oxadiazon) का छिड़काव करें और बेहतर परिणामों के लिए पौधे से पहले सतह पर प्रति एकड़ में 2 लीटर अलाक्लोर (Alachlor) का छिड़काव करें।
कटाई:
बैंगन की कटाई, तब की जाती है, जब फल उचित आकार, रंग और पकने की अवस्था में आ जाते हैं। बाज़ार में अच्छी कीमत पाने के लिए फल चमकदार दिखने वाला, आकर्षक चमकीला रंग वाला होना चाहिए।
कटाई के बाद:
उच्च वाष्पोत्सर्जन दर और पानी की कमी के कारण बैंगन के फलों को कमरे के तापमान पर लंबे समय तक संग्रहीत नहीं किया जा सकता है। बैंगन के फल को 10-11 डिग्री सेल्सियस तापमान और 92% सापेक्ष आर्द्रता पर 2-3 सप्ताह तक भंडारित किया जा सकता है। कटाई के बाद, बैंगन के फलों की सुपर (Super), फ़ैंसी (Fancy) और कमर्शियल (Commercial) के आधार पर ग्रेडिंग की जाती है, और पैकिंग के लिए बोरे या टोकरियों का प्रयोग करें।
बैंगन के पौधों की सर्वोत्तम वृद्धि के लिए सुझाव:
- बैंगन का पौधा, फलों से लदते ही गिर सकता है, इसलिए पौधों को सहारा देने और उन्हें सीधा रखने के लिए ऊंचे पौधों को डंडी का उपयोग करके सहारा दें या पौधे के चारों ओर घेरा बना दें।
- यदि बैंगन को गमलों या कंटेनरों में उगा रहे हैं, तो फल बनने से पहले तनों को बांध दें।
- पौधों को अधिक घना बनाने के लिए, उनके सिरों की छटाई करते रहें।
- पर्याप्त मात्रा में पानी दें, जिससे मिट्टी कम से कम 6 इंच की गहराई तक मिट्टी गीली और नम रहे, लेकिन ध्यान रखें कि मिट्टी ज्यादा गीली न हो। लगातार पानी देना सर्वोत्तम है और ज़मीन पर बड़ी मात्रा में खेती के लिए ड्रिप प्रणाली उत्तम है।
- फल लगने और उसके विकास के दौरान, नमी बनाए रखना आवश्यक है। पलवारने (mulching) से एक समान नमी बनाए रखने और खरपतवारों को कम करने में मदद मिल सकती है।
- पौधे के विकास के दौरान, दो बार अच्छी तरह से संतुलित खाद का उपयोग करें। पहली बार जब फल एक चौथाई के आकार का हो जाए, तो प्रति 10 फ़ुट पंक्ति में 3 मात्रा में कैल्शियम नाइट्रेट का उपयोग करें। फिर लगभग दो से तीन सप्ताह में।
संदर्भ
मुख्य चित्र स्रोत: Pexels
आइए देखें, कैसे रिकी केज की ‘हिमालय’ जैसी शानदार रचनाओं ने उन्हें दिलाया, ग्रैमी पुरस्कार
ध्वनि 1- स्पन्दन से ध्वनि
Sound I - Vibration to Music
09-02-2025 09:19 AM
Jaunpur District-Hindi
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यह कोई छिपी हुई बात नहीं है कि जौनपुर के लोग, अच्छे संगीत की गहरी समझ रखते हैं। लेकिन क्या आपने ग्रैमी पुरस्कार (Grammy Awards) के बारे में सुना है? इसे संगीत जगत का एक प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय सम्मान माना जाता है। यह सम्मान, "रिकॉर्डिंग अकादमी" (Recording Academy) द्वारा प्रदान किया जाता है। यह पुरस्कार, संगीत के क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए दिया जाता है और इसे संगीत का ऑस्कर (oscar) भी कहा जाता है। बेंगलुरु के प्रतिभाशाली संगीतकार रिकी केज (Ricky Kej) ने 2022 में, अपना दूसरा ग्रैमी पुरस्कार जीता था। उनकी एल्बम "डिवाइन टाइड्स" (Divine Tides) को बेस्ट न्यू एज, एम्बिएंट या चैंट एल्बम (Best New Age, Ambient or Chant Album) की श्रेणी में मान्यता मिली। इससे पहले, उन्हें 2015 में इसी श्रेणी में उनके एल्बम "विंड्स ऑफ़ संसार" (Winds of Samsara) के लिए ग्रैमी पुरस्कार मिला था।
रिकी केज की अनूठी संगीत रचनाओं ने भारत को वैश्विक मंच पर सम्मान और पहचान दिलाई। आगे, हम इन पुरस्कार विजेता एल्बमों के कुछ गानों का आनंद लेंगे। शुरुआत, उनकी रचना ‘हिमालय’ के साथ करते हैं जिसकी वीडियो ऊपर दी गई है।
"हिमालय" (Himalaya), स्टीवर्ट कोपलैंड (Stewart Copeland) और रिकी केज द्वारा रचित एक शानदार संगीत रचना है। यह गीत, शक्तिशाली हिमालय पर्वत श्रृंखला के प्रति एक सच्ची श्रद्धांजलि है। इसे लेह में 12,000 फ़ीट की ऊंचाई पर फिल्माया गया है, जो इसे और भी विशेष बनाता है। इसकी भव्यता और संगीतमय गहराई इसे सच में "सांस रोक देने वाला" अनुभव बनाती हैं। यह गीत एल्बम "डिवाइन टाइड्स (Divine Tides)" का हिस्सा है।
लेखन: रिकी केज, स्टीवर्ट कोपलैंड
मुख्य गायक: वरिजाश्री वेणुगोपाल
बांसुरी: वरिजाश्री वेणुगोपाल
निर्माता: रिकी केज, स्टीवर्ट कोपलैंड, लोनी पार्क
भक्ति की कला (Art Of Devotion ) | स्टीवर्ट कोपलैंड | रिकी केज | डिवाइन टाइड्स
"भक्ति की कला" को भी स्टीवर्ट कोपलैंड और रिकी केज ने तैयार किया है। यह गीत, 2000 साल पुरानी कांस्य मूर्तिकला परंपरा को समर्पित है। इस परंपरा में दिव्य मूर्तियों को कांस्य में ढालने की प्रक्रिया अपनाई जाती है। इस गीत की धुन और रचना इस प्राचीन कला की भव्यता को दर्शाती हैं।
लेखन: रिकी केज, स्टीवर्ट कोपलैंड
मुख्य गायक: वरिजाश्री वेणुगोपाल
बांसुरी: वरिजाश्री वेणुगोपाल
निर्माता: रिकी केज, स्टीवर्ट कोपलैंड, लोनी पार्क
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महात्मा | रिकी केज | वाउटर केलरमैन | विंड्स ऑफ़ संसार
"महात्मा" (Mahatma), एक विशेष संगीत रचना है, जिसके निर्माता, रिकी केज और वाउटर केलरमैन (Wouter Kellerman) हैं । इस गीत का उद्देश्य, महात्मा गांधी के विचारों और उनके सार्वभौमिक संदेश को दर्शाना है। यह गाना, राजनीतिक और सांस्कृतिक परिदृश्य की झलक भी दिखाता है।
वाउटर केलरमैन, इस गीत को विविध तत्वों और आवाज़ों का मिश्रण बताते हैं, जो एक सामंजस्यपूर्ण धुन में ढलकर शांति और प्रेरणा का संदेश देती हैं। रिकी केज के अनुसार, महात्मा गांधी सिर्फ़ भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए प्रेरणा स्रोत हैं। उनका संदेश आज भी उतना ही प्रासंगिक है, जितना पहले था।
संगीत: रिकी केज, प्रकाश सोनटके
निर्माता: रिकी केज, वाउटर केलरमैन
वीडियो निर्देशन: साईराम सगीराजू
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विंड्स ऑफ़ संसार | न्यू अर्थ कॉलिंग | रिकी केज | वाउटर केलरमैन
"न्यू अर्थ कॉलिंग" (New Earth Calling), एक भावनात्मक संगीत रचना है, जिसे रिकी केज और वाउटर केलरमैन द्वारा तैयार किया गया है। इस गीत को मूल रूप से वाउटर केलरमैन ने अपने लाइव शो के दौरान प्रस्तुत किया था। यह रचना खोए हुए दोस्तों और उनके साथ बिताए अनमोल पलों की यादों को समर्पित है। यह संगीत आनंद, भावनाओं और यादों का सुंदर मिश्रण है।
लेखन: लैमिन सोनको, वाउटर केलरमैन
निर्माता: वाउटर केलरमैन, रिकी केज, चोंग लिम
बांसुरी: वाउटर केलरमैन
मुख्य स्वर: लैमिन सोनको
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आइए, अब डिवाइन टाइड्स के बारे में जानते हैं:
रॉक लेजेंड स्टीवर्ट कोपलैंड (द पुलिस) और रिकी केज द्वारा रचित 'डिवाइन टाइड्स' में दुनियाभर के कलाकार शामिल हैं। यह एल्बम, अद्भुत ध्वनि परिदृश्यों, लयबद्ध धुनों और समृद्ध परिवेशीय संगीत का संयोजन है, जो श्रोताओं को एक अनोखा अनुभव देता है। इसकी गतिशील लय, श्रोता को एक आध्यात्मिक यात्रा पर ले जाती है, जहाँ आत्मा स्वतंत्र महसूस करती है—अपने आप से, समय से और हमारे ग्रह से गहराई से जुड़कर।
हम सभी एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं, और हमारे निर्णय आसपास के जीवन को प्रभावित करते हैं। हर व्यक्ति, संतुलन बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जिससे सभी को समान रूप से लाभ मिलता है। 'डिवाइन टाइड्स' इन गहरे विचारों को अपने विविध संगीत के माध्यम से व्यक्त करती है। यह एक ऐसी दुनिया को दर्शाती है, जहाँ हम बदलाव को सहजता से स्वीकार कर सकते हैं, ठीक वैसे ही जैसे ज्वार-भाटे निरंतर प्रवाहित होते रहते हैं। यह संगीत एक ऐसे संसार की कल्पना करता है, जहाँ हर जीवन स्थायी रूप से पूर्ण सद्भाव में रह सकता है।
संदर्भ:
https://tinyurl.com/ye7hxn37
https://tinyurl.com/yn7vp4hf
https://tinyurl.com/nhawpju6
https://tinyurl.com/3vyuvybh
https://tinyurl.com/5n8h3cxn
संस्कृति 1938
प्रकृति 723