
समयसीमा 243
मानव व उनकी इन्द्रियाँ 994
मानव व उसके आविष्कार 786
भूगोल 220
जीव - जन्तु 282
हम में से कई लखनऊ वाले लोग, बड़ी पसंद के साथ अपने आहार में मछली खाते हैं। आखिरकार, लखनऊ की समृद्ध पाक विरासत में ज़मीनदोज़ मछली, माही रेज़ला, अजवाइन मछली टिक्का, मछली बिरयानी और सुफ़ियानी मछली कोरमा जैसे अति सुंदर मछली व्यंजन शामिल हैं। ये मछली व्यंजन, मुगल और अवध स्वाद के साथ अत्यंत स्वादिष्ट बनते हैं। इस संदर्भ में, क्या आप जानते हैं कि, भारत का मत्स्य पालन क्षेत्र लगभग 28 मिलियन लोगों को आजीविका प्रदान करता है; जिसमें मछुआरे, मछली किसान और प्रसंस्करण व विपणन में शामिल लोग मौजूद हैं। तो आज, आइए उत्तर प्रदेश में मछली उत्पादन की वर्तमान स्थिति की खोज करते हैं। उसके बाद, हम भारत में मत्स्य क्षेत्र के विकास हेतु किए जा रहे कुछ प्रयासों का पता लगाएंगे। फिर, हम मत्स्य पालन के लिए आवश्यक, कुछ सबसे महत्वपूर्ण उपकरणों के बारे में बात करेंगे। इसके अलावा, हमें पता चलेगा कि, भारत के मत्स्य पालन क्षेत्र में प्रौद्योगिकी की स्थिति क्या है। अंत में, हम देखेंगे कि, आप लखनऊ में अपना खुद का मछली फ़ार्म कैसे शुरू कर सकते हैं।
उत्तर प्रदेश में मछली उत्पादन की वर्तमान स्थिति:
उत्तर प्रदेश में 2023 में, 9.15 लाख मेट्रिक टन मछली उत्पादन हुआ था, जो 2022 में 8.08 लाख मेट्रिक टन दर्ज किया गया था। इसी तरह, राज्य ने 2022 में 27,128 लाख मेट्रिक एवं 2023 में 36,187 लाख मेट्रिक टन मछली बीज का उत्पादन दर्ज किया है। साथ ही, विभिन्न योजनाओं के माध्यम से लाभार्थियों को 152.82 करोड़ रुपये प्रदान किए गए हैं। संबंधित अधिकारियों ने कहा हैं कि, 68 ज़िलों की नदियों में मछली फ़ार्म बनाए जा रहे हैं।
भारत में उत्तर प्रदेश को मत्स्य क्षेत्र केंद्र के रूप में स्थापित करने हेतु, किए जा रहें प्रयास:
मछुआरे दुर्घटना बीमा योजना’ (Fishermen Accident Insurance Scheme) ने राज्य में 1,16,159 मछुआरों को लाभान्वित किया है। इस योजना के अनुसार, उन मछुआरों को 5 लाख रुपये की सहायता दी जाती है, जिनकी दुर्घटनाओं में मृत्यु होती हैं; विकलांग होने वाले मछुआरों को 2.5 लाख रुपये दिए जाते हैं; एवं घायल होने वाले मछुआरों को 25,000 रुपये दिए जाते हैं।
मत्स्य क्षेत्र केंद्र के रूप में राज्य को विकसित करने के लिए, चंदौली में एक अत्यंत आधुनिक ‘मत्स्य मॉल’ निर्माणाधीन है, जिसमें 62 करोड़ रुपये का निवेश किया गया है। आदित्यनाथ योगी सरकार ने 2023 में 14,021 मछुआरों के लिए, 10,772.77 लाख रुपयों के कुल बैंक ऋण को मंजूरी दी है। इसके अलावा, विभाग ने 1500 से अधिक मछुआरों को, मछली पालन खेती में प्रशिक्षण प्रदान किया है।
मछली पालन के लिए आवश्यक कुछ सबसे महत्वपूर्ण उपकरण:
1.) पंप (Pumps):
पारंपरिक मछली किसान, एक जल स्रोत के अंदर टैंक और जाल का उपयोग करते हैं। हालांकि गर्म मौसम में, वाष्पीकरण से जल स्रोत में पानी की कमी हो सकती है। यही कारण है कि, मछलियों के लिए पर्याप्त मीठे पानी की आपूर्ति हेतु, पंप स्थापित किए जाते हैं। कई किसान, मत्स्य पालन मौसम के अंत में, स्त्रोत से पानी को बाहर निकालने के लिए भी पंप का उपयोग करते हैं।
2.) वायु संचरण उपकरण (Aeration Devices):
यह सुनिश्चित करने के लिए कि, मछलियों को पर्याप्त ऑक्सीजन आपूर्ति मिल रही है, एक वायु संचारण उपकरण का उपयोग किया जाना चाहिए। ऐसे उपकरण, आपको एक छोटी सी जगह में भी अधिक मछली रखने की अनुमति देते हैं। यह मछलियों को स्वस्थ रखने और कम अवधि में तेज़ी से बढ़ने में मदद करते है। वायु संचरण उपकरण, अशुद्धियों को हटाकर पानी को पुनर्चक्रित करने में भी मदद करते हैं।
3.) स्वचालित मछली फ़ीडर(Automatic Fish Feeder):
स्वचालित मछली फ़ीडर, एक नियोजित अंतराल पर मछलियों को अन्न खिलाता है। यह काफ़ी प्रभावी है, क्योंकि यह किसानों को, मछलियों को हाथ से खिलाने के समय और प्रयास से बचाता है। हालांकि, स्वचालित मछली फ़ीडर केवल तभी ठीक से काम कर सकता है, जब पानी को यांत्रिक रूप से पुनर्नवनीकृत किया जाता है। यदि पानी संतृप्त और अशुद्ध होने पर भी फ़ीडर मछली को अन्न खिलाना जारी रखता है, तो मछलियां मर भी सकती हैं।
4.) सीन रील(Seine Reel):
मछली पकड़ने के दौरान, पानी से मछली को इकट्ठा करने के लिए, सीन रील का उपयोग किया जाता है। सीन को झील या तालाब में फ़ेंक दिया जाता है, जहां यह नीचे तक डूब जाता है। फिर किनारे पर मौजूद एक ट्रैक्टर की मदद से, रील को सीन के किनारों पर इकट्ठा किया जाता है, जिससे जाल के अंदर मछलियां फंस जाती हैं।
भारत के मत्स्य पालन क्षेत्र को, प्रौद्योगिकी द्वारा कैसे विकसित किया जा रहा है?
तकनीकी प्रगति, भारतीय मत्स्य पालन क्षेत्र में क्रांति लाने के लिए तैयार हैं। सैटेलाइट (Satellite) आधारित मत्स्य प्रबंधन प्रणालियों, उन्नत प्रजनन तकनीकें, स्वचालित फ़ीडर, बायोफ़्लॉक प्रौद्योगिकी, एक्वापॉनिक्स (Aquaponics) और जल गुणवत्ता निगरानी प्रणाली जैसे नवाचार, मत्स्य उत्पादकता और स्थिरता को बढ़ा रहे हैं। ये प्रौद्योगिकियां, मछलियों की बेहतर निगरानी, कुशल संसाधन उपयोग, मछलियों के स्वास्थ्य में सुधार और पर्यावरणीय प्रभावों को कम करने में भी मदद करती हैं।
इसके अलावा, डिजिटल उपकरण और मोबाइल विभिन्न एप्लिकेशन, किसानों को वास्तविक समय की जानकारी और सहायता प्रदान कर रहे हैं। उदाहरण के लिए, भौगोलिक सूचना प्रणाली (Geographic Information Systems – जी आई एस) और रिमोट सेंसिंग(Remote sensing) प्रौद्योगिकियों का उपयोग, मछली पकड़ने वाले क्षेत्रों के सटीक मानचित्रण और जलीय वातावरण की निगरानी के लिए अनुमति देता है। मौसम के पूर्वानुमानों से लेकर, बाज़ार की कीमतों तक, ये प्रौद्योगिकियां किसानों को सूचित निर्णय लेने और सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाने के लिए सशक्त बनाती हैं।
आप लखनऊ में, अपना खुद का मछली फ़ार्म कैसे शुरू कर सकते हैं ?
•तालाब तैयार करना:
एक तालाब अस्थायी या स्थायी हो सकता है। अस्थायी तालाब का उपयोग, कुछ तेज़ी से बढ़ने वाली प्रजातियों हेतु मौसमी मछली पालन के लिए किया जाता है। तालाब में आपको पानी के इनलेट्स और आउटलेट भी स्थापित करने होंगे। साथ ही, आपको पानी के पी एच (pH) स्तर को अनुकूलित करने के लिए भी उपाय करना चाहिए। यह प्रत्येक मछली प्रजातियों के लिए अलग होगा।
•मछली की उपयुक्त नस्लों का चयन:
आपको मछली की नस्लों को चुनने से पहले, मत्स्य पालन वातावरण, बाज़ार की मांग और रखरखाव के तरीकों पर विचार करना चाहिए। आप मोनोकल्चर (Monoculture (एक प्रकार की मछली प्रजाति का पालन)) या पॉलीकल्चर (Polyculture (एक साथ विभिन्न प्रकार की मछलियों का पालन)) कर सकते हैं।
•मछली पालन वातावरण का रखरखाव:
इसमें मछलियों की देखभाल करना, पानी के पीएच स्तर को बनाए रखना, मछलियों को अन्न खिलाना, पानी को बदलना आदि शामिल हैं। आपको तालाब से किसी भी अस्वास्थ्यकर मछली को हटाने के लिए, दैनिक आधार पर ध्यान भी देना चाहिए। मछली फ़ार्म में उनकी बीमारियों के इलाज और बीमारियां रोकने के लिए उचित उपाय करना भी यहां शामिल एक महत्वपूर्ण कदम है।
•मछलियों के लिए एक बाज़ार खोजना:
आप स्थानीय बाज़ार या मछलियों का निर्यात करना भी चुन सकते हैं। एक शुरुआत के रूप में, स्थानीय बाज़ार चुनने से आपको मदद मिलेगी। एक बार जब आप अपना मछलियों का फ़ार्म स्थापित कर लेते हैं, तो आप निर्यात के बारे में सोच सकते हैं।
संदर्भ
मुख्य चित्र स्रोत : Pexels
A. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.
B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership — This is the Sum of all Subscribers (FB+App), Website (Google+Direct), Email, and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.